रविवार, 31 जुलाई 2022

एक रिश्ते के सताईस बरस - special post

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एक रिश्ते के सताईस बरस 

कुछ याद सा है और कुछ भूला सा
दो अधूरे से लोग
दो बिखरी सी ज़िंदगियाँ 
दो ख़ुद से ही अनजान लोग
चले थे एक अनजानी राह पर

राह, अनजानी थी 
तो भटकना वाजिब था 
राह अनजानी थी 
तो बिखर जाना तय था 
राह अनजानी थी 
तो जुदा हो जाना नियति थी 

साथ चलते-चलते भी एक फासला सा हो गया था
दो ज़िन्दगियों के बीच, वो फासला, मृगतृष्णा से भर गया था 
और फासला और गहराता गया था 

शायद, कोशिशों की मेहनत
न कर सके हम-तुम
शायद, रिश्ते की अहमियत 
न समझ सके हम-तुम
शायद, झूठे आदर्शों की 
बलि चढ़ गए हम-तुम

पर, फिर भी 
वो जो कुछ पल कोशिश के थे 
वो आज भी याद आते हैं कभी-कभी 
वो जो, कुछ पल मेरे और तुम्हारे थे 
याद आते है आज भी कभी-कभी
वो जो, कुछ  पल जिसमें हम-तुम
कुछ और जान डाल सकते थे 
याद आते है आज भी कभी-कभी

गर, ये सही है
की एक जन्म के साथी 
किसी और जन्म में भी मिलते हैं 
तो, ए, इस जन्म, के कुछ पल साथी
मिलना तू मुझे किसी और जन्म में भी 
मिल कर, इस जन्म की गीले-शिकवे  मिटा लेंगें 

मिलना तू मुझे किसी और जन्म में भी
वो जो बिखर गया है इस जन्म में
एक कोशिश, उसे समेटने की कर लेंगें 
हम-तुम भी 

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