मेघालय के पहाड़ो में पाया जाने वाला एक पौधा है, जो की मांसाहारी पौधा है।
जी हाँ अपने ठीक पढ़ा मांसाहारी पौधा, जो की कीड़े और मकोड़े खाता है, स्थनीय लोग इसे 'मंकी कप' भी कहते हैं, क्यूंकि जायदातर बन्दर और अन्य जानवर इसमें जो पानी होता है उसे पीते दिखाई देते हैं।
दुनिया के कई देशो में कीड़े-मकोड़े खाने वाले पौधे पाए जाते हैं, ये पौधे कीड़ो और मकोड़ो को पहले फ़साते हैं और फिर उनको मार कर खा जाते हैं। इन पौधों में एक तरहं का पानी या तरल पदार्थ पाया जाता हैं, यह तरल पदार्थ मीठा होता हैं, जिस से कीड़े और मकोड़े आकर्षित होते हैं, पर ये मीठा पदार्थ कुछ चिप-चिपा सा होता हैं, जब कीड़े अपने को इस पदार्थ से छुड़ाने की कोशिश करते हैं तो थक कर अपनी जान गवा बैठते हैं, और इस तरहं ये पौधा कीड़ो को फ़सा कर खा जाता हैं।
इन्हे पिचर प्लांट (Pitcher Plant) कहा जाता है, जहाँ पिचर (Pitcher) का मतलब होता है मटका या पानी का जग, और प्लांट (Plant) का है मतलब पौधा। दिखने में यह पानी से भरे जग ही लगते हैं। कीड़े और मकोड़े इन पौधों के लिए अति आवश्यक पौषक तत्व हैं, इन से इन पौदों को पौषण मिलता है जो की इन पौधों के जीवित रहने के लिए आवश्यक हैं। भारत में यह पौधे भारत के उतर-पूर्व क्षेत्रों में पाए जाते हैं, विशेषकर मेघलाय के उत्तर-पूर्व खासी हिल्स तथा पचिमी दक्षिणी गारो हिल्स और जैंतिया हिल्स में पाए जाते हैं।
हिंदी में इन पौधों को घाटपर्णी (Ghatparni) के रूप में जाना जाता है, जबकि स्थानीय जनजातियों के अपने नाम हैं - खासी लोग (खासी, उतर-पूर्वी भारत के मेघालय में बसने वाला एक जातीय समूह है) पौधे को तिव-राकोट (Tiew-Rakot) कहते हैं, जिसका अर्थ है "भक्षण करने वाला पौधा" (Devouring Plant), गारो इसे मेमंग-कोक्सी (Memang Koksi) कहते हैं जिसका अर्थ है "भूत या शैतान की टोकरी"; और जयंतिया भाषा का शब्द केसेट-फारे (Kset Phare) है जिसका अर्थ है 'लिडेड फ्लाई नेट' (Lided fly net) ढकन वाला जग या ग्लास ।
पिचर प्लांट Piture Plant कई प्रकार के होते हैं और सभी पौधों की कीड़ो को लुभाने की अपनी ही रणनीति होती हैं, कुछ पौधे फूलों की तरहं भीनी-भीनी सुगंध छोड़ते हैं तो वहीँ कुछ पौधे मीठे पानी से कीड़ो को लुभाते हैं, कुछ-कुछ देर में ये पौधे मीठे पानी का फवरा छोड़ते हैं जिससे कीड़े आकर्षित हो इसमें फँस जाते हैं।
बड़ा ही दुःख होता है जब ये पड़ने को मिलता है की ये पौधे लुप्त होने की कगार पर हैं। इंसान अपनी ज़मीन बढ़ाता जा रहा है जिस से पेड़-पौधे और जानवरों पर खतरा बढ़ता जा रहा है।
बड़ी दुखद बात है पर सच है की आज मानव मंगल पर घर बनाने की बात करता है पर अपने गृह को नष्ट करता जा रहा है।
मैं उम्मीद करती हूँ जब ये महामारी का दौर ख़तम हो जायेगा और मैं फिर से इन पौधों को देखने जा सकूँगीं और सबसे बढ़ कर वो वहीँ देखने को मिल जायेंगें !
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