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हर लम्हा हर बात
बेमाना लगती है
यही मोहबत
हर लम्हें को
अल्फ़ाज़ दे देती है
इस मोहब्बत की
अपना
बनाने पर
लम्हों से अल्फ़ाज़ छीन
लेती है
और बेगाना कर देने पर
हर लम्हे को
अल्फ़ाज़ दे जाती है
'हिंदी कवितायेँ 'और कुछ 'हिंदी कहानियाँ' सपनो में गुज़र रही है ज़िन्दगी, ख्यालो में बना रखा है हमने अपना घर, दिल की बात को शब्दों की माला में पिरोते रहना, बस इतना ही बना रखा है हमने अपना दायरा, जीने के लिए बस जो ज़रूरी है उतने में ही समेट रखा है हमने अपना जहां। 'Hindi Poems' and some 'Hindi Stories'
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अपना
बनाने पर
लम्हों से अल्फ़ाज़ छीन
लेती है
और बेगाना कर देने पर
हर लम्हे को
अल्फ़ाज़ दे जाती है
| |
मैं
मोहब्बत के वादे भूलने लगा हूँ कुछ–कुछ गर
तुम्हें याद रहे हों तो
वही याद करवाने आ
जाना मैं
अपने टुकड़े न जाने कहाँ छोड़ आया हूँ गर
तुम्हारे पास हों तो
वही लौटाने आ
जाना। बहाने
बहुत हैं तुमको
बुलाने के पर
तुम्हारा बहाना क्या
है न आने का— बस
वही बताने एक
बार तो बस आ
जाना |
कुछ कच्ची उम्र
की
नादानियाँ थी
वो
अब पक्की उम्र में
लौट आयी हैं
नादानियाँ भी ऐसी
जो न
बालों की चाँदी देखती है
और न
उम्र की लकीरों का
तकाज़ा करती हैं
बस वो कच्ची उम्र वाले
लिहाफ ओढ़े
मुझे अपने में
समेटने को आती हैं
कोई जा कर कह दे
उन कच्ची उम्र की
नादानियों से
की अब हम
ज़माने को न छोड़ पायेंगें
और न ही
वो कच्ची उम्र वाला
लिहाफ ओढ़े पायेंगें
जो रंग न चढ़ा
हो
वही
सबसे हसीं लगता है
अपना
आप किसे अच्छा लगता
है
जो बिछड़ गया
वो अब भी
दिल
के किसी कोने में
रहता है
और आज भी वो
अपना-सा ही लगता
है
और जो पास है
वो अपने से
ही दूर लगता है
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एक रिश्ते के सताईस बरस
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'जाने क्या बात है नींद नहीं आती'
नींद आएगी कैसे :
नींद तो चुरा ली है उम्र ने, अरे निगोड़ी, क्या जल्दी है तुझे,
क्यों इतनी जल्दो बढ़ती ही जा रही है, कहाँ जाना है तुझे इतना तेज़ी से बढ़ कर,
रुक तो सही, अभी तो उम्र है, जी तो लेने दे कम्बखत,
देख तो सही दुनिया कितनी रंगीन है, इतनी रंगीनियां और कहाँ पाओगी,
ये जो हर और रंग ही रंग है इनका क्या होगा.
अभी तो उम्र है, बदन में कुछ सरसराहट सी भी है अभी,
दिल में अरमान भी है अभी, लबों पर एहसास अभी है बाकी.
बदन को अभी भी, किसीके के अघोष में पिघलने की तमन्ना है
अभी भी ज़रा सी आहट पर मचल जाते है एहसास .
क्यों बढ़ना चाहती है तेज़ी से ?
चल छोड़ अब ये ज़िद, देख तो सही रंग दुनिया के, कैसे सज्जेगें ये झुर्रियों में ?
अरमानो को तो देख, क्या यूँ ही अधूरे से रह जायेंगें ये ?
लिहाफ में अभी भी जान बाकी है, छुपा लेगा अभी भी ये मेरे राज़,
वो नशीली आँखों की मस्ती, वो कपकपाते बदन,
वो उलटे-पलटते अरमान, वो मेरे प्रेम की कहानी अभी भी जवान सी है.
किसीके कंधे पर सर रख, दुनिया भुला देने की आस, अभी भी टूटी नहीं है.
सोच तो सही, वो उँगलियाँ कैसे साजेगीं सुनहरी बालों में
वो सहलाना किस तरहं हो पायेगा शिथिल त्वचा पर
वो प्रीत की बातें कैसे होंगीं कंपकपाते होठों से
वो हाथों में हाथ डाल कैसे चल पायेंगें
वो ढलती काया पर कैसे चढ़ेंगें प्रीत के रंग .
ठहर तो सही, देख तो सही, किस प्यार से बुलाता है ये समां
कुछ और लम्हों में सिमट जाने दे
थोड़ा सा और प्रेम अगन में जल जाने दे
कुछ देर और उन बाँहों के घेरों में छुप जाने दे अभी
उन एहससों को थोड़ा और समेटने दे अभी
नस-नस में थोड़ा और प्रेम को बसने दे अभी
थोड़ा सा, बस थोड़ा सा और समय देदे बस ......
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गिले-शिकवे अपनों से किये जाते हैं,
हम - तुम तो अब पराये हो गए हैं
तुम किसी और के हो गए हो
और हम, हम अपने में ही खो गए हैं
तुम, वो एक बार की बहार थे
जिसने मेरे तन-मन को महका दिया था
कुछ देर जिसने मेरे जीवन को सजा दिया था
तुम वो किरण थे
जो ज़िन्दगी में उजाला ले आयी थी
मेरे सपनों को कभी रौशनी तुम्ही ने दी थी
मेरे बदन को महक तुम्हारे होने से थी
अब, जब तुम पास नहीं हो
पर, एहसास से तो पास हो
मेरी यादों में
मेरे एहसास में
मेरे बदन की खुशबू में
मेरी चाहतों में
मेरे खवाबों में
बस ख्याब ही तो थे तुम
मेरा, एक हसीं ख्याब
मेरा बस मेरा ही
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