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शनिवार, 5 नवंबर 2022

सुरभि की शादी - Part 1

 - 1 -

"सुरभि ने अपने को कल से बंद कर रखा है, न कुछ बोलती है और न बाहर ही आती है, बस खाने के लिए मैसेज कर देती है, और बाहर रख दो तो उठा लेती है, कब तक चलेगा ऐसा" माँ ने चिंत्ता जताते बोला.

"कुछ दिन छोड़ दो उसे, खुद ही वापस आ जाएगी, ज्यादा ज़ोर देने से कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ" ! पिता जी ने कहा, " हम-तुम को तो डर था बड़ों का, आज-कल कहाँ डर है इन बच्चों को हमारा".

"ठीक ही कहा आपने, शादी होते-होते बस यु ही......." माता जी बोलीं .

"बस, अब ये शादी की बात सुरभि के सामने कभी न हो" पिता जी बोले, "जो हुआ नहीं, उसके बारे में बात क्यों करनी" .


- 2 -


"लहंगा, कपडे, कार, चादर-तकिये, सब नए होने चाहिए, शादी के बाद बस सब नया ही चाहिए, एक जीवन नया शुरू हो रहा है, उसमें बस सब नया ही होगा" सुरभि ने कहा. 

"अरे, मैडम, इसी लिए मैंने, नया घर भी देख लिया" राघव ने सुरभि को टोकते हुए बोला. 

"अरे, ऐसे कैसे, मुझे भी देखना है घर कैसा है, अगर मुझे पसंद न आया तो ?" सुरभि गुस्से में बोली. 

"देखो, घर मेरी पसंद का और घर के अंदर जो होगा वो सब तुम्हारी पसंद का होगा" राघव ने बोला .

"ठीक हैं, बाबा, गुस्सा मत हो, जो तुम कहो, अब जब ज़िन्दगी में तुम हो तो तुम्हारी बात माननी ही होगी" सुरभि बोलते - बोलते राघव से लिपट गयी.




                                                                                                               - 3 - 

सुरभि और राघव पांच साल से साथ थे, अब पांच साल बाद सब के बहुत कहने पर दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया, पर सुरभि अभी भी, शादी के लिए तयार नहीं थी, 'शादी की साथ आने वाली जिम्मेदारी का क्या, उसे कैसे पूरा कर पाउंगीं मैं', यही सब सोच-सोच कर उसे शादी की बात से ही डर लगता था, और राघव भी अभी कोई काम में सेटल नहीं था, शादी की जिम्मेदारी उसके लिए भी अजीब थी .  

सुरभि, स्कूल की पढ़ाई पूरी कर तीन साल तक यही सोचती रही की अब क्या करूँ, घर में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी, घर के बाहर दो-तीन गाड़ियां थी, जब जो चाहिए था सब मिल जाता था, कोई कुछ कहने वाला न था, सो ज़िन्दगी दिशा हीन सी हो गई थी, और दोस्तों और पार्टियों में दिन गुज़र रहे थे.

राघव, स्कूल से निकल कर लन्दन पढ़ने चला गया, पर एक साल में ही लौट आया, भागती-दौड़ती दुनिया का हिस्सा न बन पाया, नौकरों-चाकरों और बड़ी-बड़ी घड़ी में घूमने वाले राघव को पढ़ाई-लिखाई समय की बर्बादी लगने लगी.

सुरभि से शादी कर वो ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू करना चाहता था, पर विवाह का फैसला जब राघव ने अपने पिता के सामने रखा तो उन्होंने विवाह के लिए एक शरत रख दी की अगर राघव को शादी करनी है तो खुद कमाना होगा.

राघव के पिताजी ने एक दूकान की ज़िम्मेदारी उसे दे दी, पर राघव ये सब नहीं करना चाहता था, वो तो बस दुनिया घूमना चाहता था. 

दूसरी और सुरभि अपनी मेहनत से कुछ कर दिखाना चाहती थी, सो उसने एक नया काम करने की ठान ली. सुरभि ने एक डब्बे बनाने की फैक्ट्री खोल ली, और अपनी मेहनत से उसने कुछ ही समय में बहुत कुछ हासिल कर लिया था .


- 4 -


समय बीतते, सुरभि का काम चलने लगा, वो थोड़ा व्यस्त रहने लगी, राघव, सुरभि को पार्टी में चलने को कहता तो वो काम की वजह से मना कर देती, राघव को सुरभि की ये बात बिलकुल न भाति, और ऊपर से उसे अपना काम न चलने का भी गम था. 

राघव को लगने लगा की सुरभि उसे नज़र-अंदाज़ करने लगी है, और वो सुरभि से नाराज़ सा रहने लगा, बात-बात पर लड़ने की राघव की आदत सी हो गयी थी.

सुरभि, राघव का साथ देना चाहती थी, वो राघव को आगे बढ़ते देखना चाहती थी, मेहनत करते देखना चाहती थी, इसलिए उसने राघव के जन्मदिन पर राघव को एक फैक्ट्री खरीद कर देने का प्लान बनाया, उसे लगा की राघव की अगर अपनी फैक्ट्री होगी तो शायद उसका काम में मन लग जाये. 

सुरभि ने राघव से मौका देख बात करनी चाही पर राघव अपनी ही मस्ती में मस्त रहता, सुरभि की बात को तवज्जो भी न देता, एक दिन सुरभि ने अपना प्रस्ताव उसके सामने रख ही दिया "मैं एक नयी फैक्ट्री खरीद रही हूँ, क्या तुन उसे चलाने में मेरी मदद करोगे !".

"पर, फैक्ट्री में बनता क्या है, और किसकी है, कुछ पता तो करो" राघव, सुरभि की और देखते पुछा. 

सुरभि जानती थी की राघव को शायद उसका ये प्रस्ताव पसंद न आये, पर फिर भी डरते-डरते उसने कहा,"फैक्ट्री छोटी सी है, वहां packaging materiel बनता है, पर हम दोनों मिल कर उसमें और addition  भी कर सकते हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं".

"छोटी सोच है तुम्हारी, बड़े शहर की बड़ी गलियों में रहने वाली और सोच छोटी, अफ़सोस होता है मुझे तुम पर, डब्बे बनाने की फैक्ट्री खोलोगी, कोई मेकअप के समान की बात करो, कोई खाने वाली फैक्ट्री की बात करो, ये क्या डब्बे बनाने वाली फैक्ट्री क्या लेनी" राघव हस्ते हुए बोला.

"राघव, मुझे लगता है तुम्हें कुछ करना ही नहीं है, सो तुम यहाँ बैठो मैं जाती हूँ, हर सुझाव को बस न करने की आदत सी हो गयी है तुम्हारी" सुरभि ने चिढ़ते हुए बोला, और वो वहां से चली गयी.

"हाँ-हाँ जाओ, पर आज रात पार्टी में आना मत भूलना, सभी आ रहे हैं, तुम भी ज़रूर आना, अपने डब्बों को थोड़ी देर अकेले छोड़ देना वो बुरा न मानेगें" राघव की हंसी आज सुरभि को बिलकुल अच्छी नहीं लगी.


- 5 - 


'पार्टी में जाने का मन तो नहीं है, पर जाना पड़ेगा, नहीं तो नीतू और विजय बुरा मान जायेंगें' सुरभि बे-मन सी पार्टी में जाने को तैयार हो गयी,'शायद आज राघव का मूड ठीक रहे'. 

सुरभि ने पार्टी में पहुंच कर सबसे पहले राघव को ही देखा, राघव ज़ोर-ज़ोर बातें कर रहा था, उसकी आवाज़ से पता चल रहा था की उसने पार्टी में आने से पहले से ही बहुत शराब पी रखी थी, 'हे भगवान्, इस शाम को बस जल्दी ख़तम कर देना, बिना किसी ड्रामे के' सुरभि मन ही मन सोच रही थी .

सुरभि को देखते ही राघव उसकी और बढ़ने लगा,"अरे, राघव देखो तो नीतू और विजय दोनों एक साथ कितने अच्छे लग रहे हैं, याद है आज से तीन महीने पहले पहले हमारी सगाई यहीं हुई थी" सुरभि बोलते - बोलते नीतू और विजय की ओर बढ़ चली.

"सुरभि, अगर तुम नहीं आती तो मैं तुमसे कभी बात नहीं करती, बहुत busy हो गयी हो आज-कल पता है पर दोस्तों के लिए टाइम हमेशा अलग से होता है" नीतू ने सुरभि के गले लगते कहा .

 "सुरभि को आज-कल डब्बों से प्यार हो गया है, एक डब्बा मेरे लिए भी बना दो न, कितने का डब्बा होगा ?" राघव ने तंज कस्ते कहा .

सुरभि ने मुस्कुरा कर बात को टाल दी, पर राघव आज अलग ही मूड में था, "राघव आज नहीं, नीतू तुम्हारी बहन है, उसके लिए ही बस चुप हो जाओ" सुरभि ने धीरे से राघव को बोला.

"चुप ही तो हूँ मैं, कब से, कुछ कहा तुम्हें, आज-कल वैसे भी तुम अपने मन का ही कर रही हो, सब तरफ से तुम्हारी वाह-वाह ही हो रही है, एक डब्बा मेरे लिए बना दो ताकि मैं चुप-चाप उसमे बैठ जाऊँ" राघव चुप होने का नाम नहीं ले रहा था.

"भाई please आज नहीं, आज ड्रामा मत करना, हंसी-ख़ुशी सब हो जाने दो" नीतू ने राघव से कहा.

"हाँ-हाँ हम तो है ही शोर मचाने वाले, ये सुरभि जो है शांति की मूरत, सब की चहेती कामयाब सुरभि, इनके सामने किसी की क्या औकात, बोला न एक डब्बा बना दो, मेरे लिए बना दो, मैं चुप कर के उसमे बैठ जाऊँगा" राघव चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

"नीतू, मैं जाती हूँ, मैं तुम से कल मिलती हूँ" सुरभि ने वहां से जाना ही ठीक समझा.

"अरे, अरे, अभी मत जाओ" राघव ने सुरभि का रास्ता रोकते बोला,"अभी क्यों जा रही हो, अपने डिब्बों का प्रदर्शन नहीं करोगी क्या ?, क्या पता यहाँ कोई तुम्हारे डिब्बे देख कर आर्डर देदे, और हाँ नीतू और विजय को गिफ्ट भी तो देंगें सब, सबको डब्बों की ज़रुरत होगी, कोई कैटेलॉग तो दिखाओ, कहाँ है कैटेलॉग, लाओ, मोबाइल लाओ, मोबाइल में ज़रूर होगा" राघव बोलते - बोलते सुरभि से उसका मोबाइल खींचने लगा. 

सुरभि ने राघव की बतमीज़ी का जवाब थपड़ से दिया,"अब हमारी शादी नहीं होगी, कभी नहीं होगी, कम-से-कम तुमसे तो कभी नहीं" और सुरभि वहां से चली गयी .

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                                                                     ..............to be continued 

शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

Hindi-Story - हो गया जो होना था

 

"चला गया, क्या मतलब है कहीं चला गया" माँ बोलीं," जाना ही था तो शादी क्यों की ?" .

"मीरा, मीरा" माँ चिलाती हुई मीरा के कमरे में दाखिल हुई,"क्यों री, क्या है ये सब, क्या बोला तूने गिरीश से, हमारी इज़्ज़त का ख्याल भी नहीं रहा, दुनिया को पता चला, तो सब मज़ाक उड़ाएंगें, कहते - कहते माँ की आँखों से आसूं बह रहे थे.

"तुम जाओ यहाँ से, अभी इतना गुस्सा करने का वक़त नहीं है, मुझे बात करने दो मीरा से, जाओ तुम" पिता जी ने कहा.

"हुआ क्या, कुछ तो तुम दोनों में बात हुई होगी, कुछ तो बात हुई होगी तुम्हारे और गिरीश के बीच, शादी को एक हफ्ता ही तो हुआ है, कहाँ चला गया है वो, कुछ तो तुम दोनों बात हुई होगी न" पिता जी ने पुछा.

"पापा, मुझे नहीं पता, जब से शादी हुई है मेरी और उसकी कोई बात ही नहीं हुई है, वो कुछ नाराज़ सा था" मीरा ने सफाई देते हुए कहा .

"इसी ने कुछ कहा होगा, कितनी चाह से इसे मांग कर ले गए थे तो, ये सब कैसे हो सकता है, मैं तो कहती हूँ चलिए अभी, चल कर उन से ही पूछ कर आते है, और हाँ दीदी को भी ले चलते, दीदी ही तो रिश्ता लायी थी" माँ ने कहा .



- 2 -


नवीन धन-धानता हुए अपने कमरे से निकल कर घर से बाहर चला गया, नवीन का मौसेरा भाई, शरद भी उसके पीछे -पीछे चल दिया.

"नवीन, नवीन रुक जाओ, हुआ क्या है, आज ही तो तुम्हारी शादी हुई है, फिर भागे कहाँ जा रहे हो ?

"भाई, मेरे साथ धोखा हुआ है, ये मीरा नहीं है" !

"पर माँ ने सब से यही कहा की लड़की तुम्हारी पसंद की है, मैं, मौसी से बात करता हूँ" .

"मौसी क्या है ये सब, आप ने तो कहा की लड़की नवीन की पसंद की है, पर नवीन तो गुस्से में धन-धनाता कही चला गया है" शरद ने कहा. 

"चला गया तो वापस आ जायेगा, अब शादी हो गयी है, रुक्मणि ही इसकी बीवी है अब" .

"पर, क्यों मौसी, ऐसा क्यों है, माँ-बाप तो बच्चों की हर ज़िद्द मानते हैं, फिर ये क्यों नहीं"!

"मैंने भी इसे यही कहा था, पर मेरी सुनता कौन है" नवीन के पिताजी वहां आ गए,"पर इनकी ज़िद थी, अब ज़िद का क्या अंजाम होगा भगवान ही जाने" 

"कुछ नहीं होगा, अब शादी हो गयी, अब उसे इसीसे निभाना होगा और कोई रास्ता नहीं है" माँ बोलीं . 

"पर, अगर नवीन वापस न आया तो ? बेटा तो आखिर तुम्हारा ही है, और ज़िद्दी भी तुम्हारी ही तरहं है" पिताजी बोले. 


- 3 -


माता जी और पिता जी जाने को तैयार ही थे की दरवाज़े की घंटी बजी, पिता जी ने दरवाज़ा खोला तो गिरीश सामने खड़ा था," मैं आप लोगो से माफ़ी मांगने आया हूँ, मैंने ये शादी ज़ोर-जबरदस्ती में की थी, इसमें मीरा का कोई दोष नहीं है, पर मुझे ये सब करना पड़ा". 

"अरे, गिरीश आओ, बैठो न" मीरा के पिताजी ने कहा .

"क्या मैं मीरा और आप से बात कर सकता हूँ" गिरीश बोला.

"अरे, अकेले क्यों आये हो, घरवाले नहीं आये, बोलो क्या खातिर हो, बातें बड़ी-बड़ी, पर सब खोख़ली" माँ बोलती जा रही थी .

"चलो यहाँ से, बैठो बेटा, मैं मीरा को भेजता हूँ" पिताजी, माँ को वहां से ले गए.

कुछ देर में मीरा लौट आयी, "चला गया क्या, जाने क्यों दिया, उसके घर वालों को यही बुला लेते, अभी के अभी सारा फैसला हो जाता" मीरा की माता जी बोली .

 "पापा, वो तलाक के कागज़ देने आया था" मीरा ने माँ की बात को नज़र अंदाज़ कर पिताजी से कहा. 

"क्या हो रहा है यहाँ, कोई मेरी बात सुन रहा है, शादी-बियाह कोई मज़ाक है क्या, बेटी पर तलाक-शुदा होने का दाग लग जायेगा .

"शुक्र करो की पहले ही पता चल गया, और कम से कम जल्दी पता चल गया" पिताजी ने समझते हुए कहा. 

"मैं अभी फ़ोन करती हूँ दीदी को, बड़ा बढ़ - चढ़ कर रिश्ता लायी थी, अब जवाब भी उन्हें ही लाना होगा और मीरा का घर भी उन्हें ही बसना होगा" माँ कहते हुए फ़ोन उठा लायी , " अभी उनसे भी बात करती हूँ".

"माँ, बस करो अब, अब तो मान लो, जो हो रहा है वो सब क्यों हो रहा है, किसी का दिल दुखा कर कौन खुश रह सकता है, और आपने तो अपनी बेटी का दिल दुखाया है" मीरा बोल कर अपने कमरे में चली गयी 

 

- 4 -


"मौसा जी, नवीन लौट आया है, पर वो अपने कमरे में अपना सामान बाँध रहा है, कुछ बात नहीं कर रहा" शरद ने नवीन के पिताजी को धीरे से कहा, इस से पहले वो दोनों अंदर जाते, अंदर से माँ के ज़ोर-ज़ोर से बोलने की आवाज़ आने लगी .

"सुन रहे हो नवीन, ये सब नहीं चलेगा, रेणुका तुम्हारी बीवी है अब, तुम इससे छोड़ कर नहीं जा सकते, इसे हम बिहा कर लाएं है, दुनिया वालों को क्या जवाब देंगें" माता जी बोले जा रही थी और नवीन अपना सामान बांधने में लगा हुआ था.

"नवीन, एक बार बैठ कर बात कर लो, देखो ये सब ठीक नहीं है, मिल कर बात करते हैं, कोई न कोई हल निकल आएगा" शरद ने नवीन से कहा. 

"नवीन, ये सब नहीं होगा, मैं रेणुका से क्या कहूंगीं, दुनिया वालों से क्या कहूंगीं" नवीन की माता जी रोने लगी. 

"जो माँ अपने बेटे की बात पर गौर न कर सकी, उन को दुनिया का क्या डर ! दुनिया की परवाह है, पर मेरी नहीं" नवीन बोल कर चला गया .


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"आपकी बेटी मीरा कबसे घर नहीं आयीं, कुछ तो बोल कर गयी होगी" नवीन के पिताजी ने मीरा के माता-पिता से पुछा .

"अभी एक घंटा हुआ, बोल रही थी एक घंटे में आती है, क्यों क्या हुआ" मीरा के पिता जी ने चिंता जताते पुछा .

"नवीन दो हफ्ते से घर नहीं आया, रेणुका, जिससे उसकी शादी हुई थी, उसे भी उसके पिता जी ले गए, दुनिया वाले अजीब सी बातें कर रहे हैं" नवीन के पिता जी बोले .

"ये सब इनकी वजह से हुआ है" मीरा के पिताजी मीरा की माता जी की तरफ इशारा कर रहे थे,"न इनकी ज़िद्द होती न हमारे बच्चे हमारे दुश्मन होते, मेरा तो यही कहना है, जब बच्चों की हर ज़िद्द हम दलीलों के बाद मान लेते हैं तो, उनकी इस ज़िद्द पर भी हमें गौर करना चाहिए था". 

"पर अब तो जो होना था वो हो गया, बच्चों को अब ये समझना होगा, ज़िन्दगी कोई खेल थोड़ी है, आज हार गए तो कल जीत जायेंगें, बस जीना पड़ता है, जैसा है वैसा ही" नवीन की माता जी बोलीं .

"अब चुप भी करो, जैसा की आप ने अपने बच्चे को समझा दिया हो, बस करो अब, न जाने नवीन कहाँ होगा" नवीन के पिताजी ने चिंता जताते कहा. 


दरवाज़े की घंटी बजी तो मीरा के पिताजी ने जा कर दरवाज़ा खोल दिया,"मीरा, हो गया काम, ये माला कहा से पहन आयी".

मीरा के पीछे नवीन खड़ा था, "आओ न, बाहर क्यों खड़े हो दोनों, लो जी, हो गया जो होना था, नवीन भी आ गया".


मीरा और नवीन ने अपनी मंज़िल खुद ही तलाश ली .


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शनिवार, 17 सितंबर 2022

मुखौटा - The Mask - Part 2

 Part 1: https://tejinderkkaur.blogspot.com/2022/09/kahani.html

Part 2

"मिली क्या सुजाता" सुजाता की माँ ने नीमा को फ़ोन पर पुछा.

"नहीं, अभी नहीं, शायद वो कुमार के घर गयी है, क्यूंकि दोनों ऑफिस  में नहीं है" नीमा ने चिंता जताते बोला.

"हाँ, वो कुमार के घर ही गयी होगी, तुम्हें अगर वो मिल जाये तो उसके पास मत जाना, दूर ही रहना" माँ ने नीमा से कहा .

"आंटी, दिख रही है वो, वो वहां है, और वहां कुमार भी है" नीमा ने उत्साह पूर्वक कहा .

"नीमा, मेरी बात धयान से सुनो, फ़ोन मत काटना, सुजाता और कुमार के पास मत जाना, आज उसे सच जान लेने दो, एक बार उसे भी धोखा क्या होता, इसका पता चलना चाहिए" माँ ने कहा .

"आंटी, प्लीज, आपको पता है सुजाता बहुत जल्दी उत्सुक्त हो जाती है, और फिर बेहोश भी हो सकती है" नीमा ने कहा. 

नीमा, फ़ोन बंद करती, पर सुजाता माता जी ने जो बोला उसके बाद, उसके होश उड़ गए,"क्या कह रहीं हैं आप, ऐसा कैसे हो सकता, नहीं-नहीं, कम से सुजाता मुझसे झूठ नहीं बोल सकती".

"नीमा, मैं उसकी माँ हूँ , उसके बारे में, मैं झूठ क्यों बोलूगीं, जाने दो उसे, इस बार, एक बार, एहसास तो होने दो उसे.

नीमा ने फ़ोन काट दिया और सुजाता और कुमार की तरफ बढ़ चली , पर एक कदम रखते की वापस लौट गयी, नीमा ने कसम खा ली, जब तक सुजाता माफ़ी नहीं मांगेगी वो उस से बात नहीं करेगी.

पर, सुजाता का पाप माफ़ी के काबिल भी नहीं था . 

कैसा मुखौटा पहन रखा है सुजाता ने, की, किसी को उस मुखोटे का पता भी न चला.



- 3 -

बचपन से सुजाता और नीमा साथ थी, नीमा ने उसका हमेशा साथ दिया, तब भी जब उसने शरद का दिल तोड़ा. 

शरद, सुजाता से बेहद प्यार करता था, सुजाता, नीमा और शरद तीनों सातवीं कक्षा से एक साथ थे, नीमा ने सुजाता का हर रंग में साथ दिया था नीमा ने सुजाता का गुस्सा और शरद के प्रति अपार प्रेम भी देखा था.

जब सुजाता ने शरद को छोड़ कुमार के साथ शादी करनी की बात कही तो भी नीमा ने सुजाता का ही साथ दिया था.

और आज जो सुजाता की माता जी बताया उसका वो विश्वास न कर पायी, सुजाता इतना गिर सकती है, नीमा को इसका ज़रा सा भी विश्वास न था 
सुजाता को सबसे माफ़ी मांगनी होगी, उसके बिना सुजाता के पास कोई और चारा न था. 

- 4 - 

"नीमा, कुमार ने मेरे साथ धोका किया है, शादी का वादा मुझसे किया और अपनी माँ के कहने पर किसी और से शादी कर रहा है, मुझे कह कर गया की course के लिए ऑस्ट्रेलिया जा रहा है, पर वहां गाँव जा कर किसी और से शादी की तैयारी कर रहा है" सुजाता ने आते ही सब एक सांस में बोल दिया.
"अरे ! ऐसा कैसे हो सकता है, मैं बात करती हूँ शरद से, अभी फ़ोन करती हूँ" नीमा ने कहा. 

"नहीं, नहीं, तुझे मेरी कसम, मत करना ऐसा, वो जाना चाहता है तो जाने दे उसे" सुजाता ने कहा .

"सुजाता, जब तुम्हारी गलती ही नहीं है तो डरना कैसा, मुझे एक बार बात तो करने दे शरद से, चल कॉल करके हाल-चाल पूछने दे" नीमा ने सुजाता से कहा. 

"नहीं, प्लीज नहीं, जाने दे उसे, वो किसी और का होना चाहता है तो जाने दे उसे" सुजाता ने कहा.

नीमा अपने ख्यालों में खोयी हुई थी, उसे शरद के ऑस्ट्रेलिया जाने की बात से ले कर सब बातें याद आ रही थी, आखिर ऐसी क्या बात थी, सुजाता ने शरद को धोखा क्यों दिया, इतने में उसे चिलाने की आवाज़ आयी, जा कर देखा तो सुजाता के कपडे जगह-जगह से फटे हुए थे.

 "नीमा, अच्छा हुआ तू आ गयी, ये कुमार, मेरी भावनाओं से खेलने के बाद मेरी इज़्ज़त  से भी खेलना चाहता है, अच्छा हुआ तू आ गयी और तूने मुझे बचा लिया" सुजाता बोलते हुए नीमा के पीछे जा खड़ी हो गयी.

नीमा ने एक नज़र सुजाता को देखा और वो कुमार की तरफ मुड़ कर बोली,"क्यों किया तुमने ऐसा, बोलो कुमार, आज सारे जवाब देने होंगें".

"हां, पुलिस को बुलाओ और डंडे पड़ेगें तो सब बता देगा, "ऐसे आदमी का ऐसा ही हशर होना चाहिए" सुजाता बोलती जा रही थी,"नीमा, पूछ इस से क्यों किया इसने ऐसा, मेरे और मेरी भावनाओं के साथ क्यों खेल रहा है ये".

"हाँ, आज सारे सवालों के जवाब मिल जायेगें, कुमार तुम्हें, मुझे और शरद को भी, है न सुजाता, आज तुम्हें हम सबको जवाब देना होगा" नीमा ने सुजाता की देखते बोला.

"मैं, मैं क्यों जवाब दूंगीं किसी को, और ये शरद, शरद कौन है, मैं नहीं जानती किसी शरद को, मेरा प्यार तो कुमार है, पर इसने........" सुजाता बोलती ही जा रही थी. 

"सुजाता, तुम्हें आज सबके सवालों के जवाब देने ही होंगें" सुजाता की माँ भी वहां आ पहुंची और सब सुजाता की और ही देख रहे थे,"तुम्हारा मुखौटा आज हम सब के सामने उतर कर ही रहेगा" !

"नहीं, मैंने कुछ नहीं किया, सब मुझे तंग करते रहे, मैंने कुछ नहीं किया" सुजाता मुँह छुपाने लगी .....

                                     ..... to be continued 

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शनिवार, 10 सितंबर 2022

मुखौटा ya Dhokha - Part 1

 

"अरे, वाह ! मेरे लिए तोफा है, ये तो कुमार ने भिजवाया है, और, मैं पागल, मुझे लगा वो मेरा जन्मदिन भूल गया है".

"सुजाता, जल्दी खोलो तोफा, शायद शादी की अंगूठी भेजी हो, हमारे कुमार जी थोड़ा शर्मीले हैं शायद सामने न कह पा रहे हों" नीमा और सुजाता बचपन की सहेलियां थी.

"वाह ! खत है" सुजाता ने खत को चूमते कहा .

"इतना बड़ा डिब्बा और एक खत, वाह रे प्यार" नीमा ने चुटकी लेते कहा.

"लो भाई, ऐसी कौनसी बात है जो हमारे होने वाले जीजा जी बोल कर न कह पा रहें हैं, पर खत में लिख दिया हो, जल्दी पढ़ो यार, चलो हमें भी बताओ आखिर क्या है वो बात" नीमा ने खत  को उलटते-पलटते, सुजाता को देते बोला.

"ठीक है, तू जा चाय बना ला, मैं देखती हूँ क्या लिखा है उसने खत में" सुजाता, नीमा के सामने खत नहीं खोलना चाहती थी .

नीमा पैर पटकते चाय बनाने चली गयी.



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नीमा चाय बना लायी,"चल अब बता क्या लिखा है खत में".

कमरे का नज़ारा देखते ही नीमा के हाथों से चाय के कप गिर गए,"सुजाता, सुजाता" एक खत के हज़ारों टुकड़े हो गए थे, और कमरे का सारा सामान बिखरा पड़ा था, और सुजाता बिस्तर पर लेटी रो रही थी,"क्या हुआ, क्या हुआ यहाँ, सुजाता".

"तू भी चली जा यहाँ से, नहीं बात करनी मुझे तुझसे भी" नीमा डर के मारे सुजाता की माता जी को बुला लायी, सुजाता का गुस्सा सारे मोहल्ले में मशहूर था.

"सुजाता, क्या हुआ, रोना बंध कर, तू तो बहुत मजबूत लड़की है, ऐसे क्यों रो रही है" माँ ने पुछा.

"माँ, कुमार शादी कर रहा है" सुजाता ने कहा. 

"फिर" माँ ने पुछा, वो चाहती थी की सुजाता थोड़ा शांत हो जाये, इसलिए कम शब्दों का प्रयोग कर रही थी .

"माँ, वो मुझे-से नहीं, किसी और से शादी कर रहा  है" सुजाता ने अपने को संभालते बोला.



"ओह! तो ये भी, शरद की तरहां ही निकला" माँ ने बोला, "कैसे-कैसे मुखोटे पहन रहे हैं लोगों ने, कौन किसे और कब धोखा दे रहा है पता ही नहीं चलता".

'शरद, माँ को शरद अभी भी याद है, ओह, माँ नहीं जानती की कुमार से शादी करने के लिए मैंने शरद को छोड़ा, कहीं, ऐसा तो नहीं की शरद की आह लग गयी हो मुझे, नहीं-नहीं शरद तो खुश है, सबने यही कहा था, और वो तो ये देश छोड़ कर चला गया था' सुजाता कहीं ख्यालों में खो गयी .

"माँ, सब मेरे साथ ऐसा क्यों करते हैं" सुजाता अपना डर माँ को नहीं दिखाना चाहती थी .

"चल छोड़ न, तेरे लिए नहीं था वो" माँ ने बात को ख़तम करने की कोशिश करते कहा. 

"नहीं माँ, ऐसा नहीं होगा अब, मैं जा कर कुमार से बात करुँगी" सुजाता बोलते ही उठ कर चली गयी. 

"आंटी, क्या मैं भी जाऊ उसके साथ" नीमा ने माँ से पुछा 

"नहीं रहने दो, इस बार उसे अकेले ही जाने दो, हर बार उसकी जीत नहीं होगी, झूठ का परदा फाश होता ही है" माँ बोली.

"क्या बोल रहे हो आंटी, क्या हुआ है, मुझे भी तो कुछ समझाए" नीमा उलझन में थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. 

"और, ये शरद का नाम क्यों लिया आपने, अब वो और गुस्सा हो जाएगी" नीमा बोल कर सुजाता के पीछे चली गयी.

              

to be continued ......


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शनिवार, 27 अगस्त 2022

नगमा की ज़िन्दगी का नगमा - Part 2

Part - 2: https://tejinderkkaur.blogspot.com/2022/08/hindi-ekkahani.html

भाग दो 


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"समर, बधाई हो, लड़का हुआ है" समर की अम्मी बेटे के गले लग गयी, "तूने मेरी ज़िन्दगी सफल कर दी, अब मैं चैन से मर सकती हूँ".

"हाँ, कब का प्रोग्राम है फिर, आपका जाने का" समर गुस्से में आग-बबूला हो रहा था .

"अरे, तेरा बेटा हुआ है, खुशियां मना, मरने-वरने की बातें मत कर" अम्मी बहुत खुश थी. 

"अम्मी, आपने कहा था सब ठीक हो जायेगा, अब्बा जी दुनिया छोड़ गए, नगमा चली गई, पर आप की ज़िद्द कहीं नहीं गयी, सब का वास्ता दे कर आपने हमेशा मन-मानी करी पर अब नहीं" समर की ऑंखें भर आयी 

"हाय रे, कब छोड़ेगी वो लड़की तेरा पीछा, तूने उसे अपनी शादी के बारे में बताया क्यों नहीं, अब तू उसे जाने दे, अच्छा है चली गई, अपनी बीवी और बच्चे को देख" अम्मी ने समर से कहा .

"अम्मी, बस एक ही तो ज़िद्द थी मेरी, वो भी आपने नहीं मानी, जात-पात के चक्कर में अब देखो, चार ज़िन्दगियाँ खराब कर दी आप सबने ,अब नगमा नहीं है तो मैं भी नहीं हूँ, आपको सब मुबारकें" आँखों में आसूं ले समर वहां से जाने लगा.

"समर जी, बच्चा तो ठीक है पर माँ का खून बहुत बह गया गई, उन्हें खून चढ़ाना होगा, आप में से कौन ब्लड डोनेट कर सकता है" डॉक्टर ने समर का रास्ता रोकते बोला.

समर चुप-चाप डॉक्टर के पीछे चल दिया, 'ज़िम्मेदारियों से अब पीछा छुड़ाना ही होगा, नगमा को वापस लाना होगा, वरना, मुझे दुनिया  ही छोड़ जाना होगा'.


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"रेखा, नगमा कहाँ है, एक बार, बस एक बार बता दो" समर ने सबसे पहले रेखा को ही फ़ोन किया. 

"समर, उसने मुझे, तुमसे बात करने के लिए मना किया है, in fact वो किसी से भी बात नहीं कर रही, मैं मजबूर हूँ, तुमसे पहले वो है, मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकती, पता नहीं और कितनी ज़िंदगियाँ झुलसेगीं तुम दोनों के बीच" रेखा ने फ़ोन बंध कर दिया.

"सबा, फ़ोन मत काटना, एक बार, बस एक बार नगमा से बात करवा दो" समर ने नगमा की बहन सबा को फ़ोन पर बोला. 

सबा ने कुछ बोले बिना, फ़ोन अम्मी को दे दिया, "कौन है, किसका फ़ोन है" !

"अम्मी, मैं समर, क्या मैं नगमा से बात कर सकता हूँ" समर ने बोला.

"बेटा, देखो अब नहीं, अब छोड़ दो उसे, पिछले साल, तुम्हारी अम्मी ने जब हमे घर से जलील कर निकाला था तो, तभी मैंने नगमा से कहा था, की ये सब ठीक नहीं, तुम्हें भूल जाये वो, अब नहीं, अब उसका निकाह है आज, तो अब हमारी इज़्ज़त मत उछलना" अम्मी ने बोल कर फ़ोन सबा को वापिस दे दिया. 

"शादी की मिठाई भिजवा दूँ, या तुम्हारे लड़का हुआ है, तो मिठाई-मिठाई cancel कर दें, मैंने नगमा को कई बार बोला था की तुम उसे, पक्का से धोका दोगे, और मैं सही निकली और वो गलत, जाओ बेटा होने की ख़ुशी मनाओ और मेरी बहन को जीने दो .

       


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"नगमा, तीन हफ्ते से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ, कितना मिस किया मैंने तुम्हें, कैसी हो" समर दरगाह के बाहर नगमा को देख उसके सामने जा खड़ा हुआ .

"मैं ठीक हूँ, तुम कैसे हो" नगमा अपने पर काबू करने की पूरी कोशिश कर रही थी, समर, ये वही समर था, जिसके सपने वो दिन-रात देखती थी और उसकी रग-रग में बसा हुआ था और है, पर अब वो किसी और का था, ये सच नगमा को समर से दूर खींच रहा था. 

"नगमा, मुझे पक्का यकीन था की तुम यहाँ ज़रूर आओगी, इसी उम्मीद पर की तुम एक दिन तो आओगी, मैं यही तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था, नगमा क्या तुम्हें एक बार भी मेरी याद नहीं आयी" समर ने सब बोल देना चाहा जो उसके मन में था.

"याद, हाँ मुझे अपने समर की हर बात याद है, पर मुझे तुम्हारी याद नहीं आयी" नगमा की ऑंखें भर आयीं .

"तो फिर, कॉल क्यों नहीं किया, एक बार मुझे सफाई का  मौका तो देती.

"सफाई कोई नहीं है, तुम्हारा अब एक ठिकाना हो गया है, बीवी और बच्चा भी है, तुम अकेले कहाँ हो अब, बहुत सारे लोग हैं तुम्हें चाहने वाले, मेरी चाहत तभी तो भूल गए तुम".

"दुनिया की सब बातें याद रही और मेरा प्यार, मेरे प्यार का क्या, कैसे भूल गयीं तुम मेरा प्यार" समर, नगमा के साथ-साथ चल रहा था .

"एक झूठ की बाढ़ आयी और सारी बातें और प्यार और सारे वादे और सारे सपने सब अपने साथ बहा कर ले गई, अब किसी बात का कोई असर नहीं रहा" नगमा चलती रही, एक बार भी उसने पलट कर समर को नहीं देखा.  

"नगमा, याद है हमने जो घर देखा था, वो मैंने किराये पर ले लिया है, और यही नौकरी भी करता हूँ, चलो नगमा अपने घर चलो, मेरे साथ चलो, अब बस और कुछ नहीं, तुम मेरा प्यार हो, अब हमें कोई अलग नहीं करेगा, मैं सब छोड़ आया हूँ, बस तुम और मैं ही रहेंगें अब. 

चलो, अभी यही शादी कर लेते हैं, और बस हम-तुम साथ रहेंगें, नगमा कुछ तो बोलो" समर ने नगमा का हाथ पकड़ उसे रोकना चाहा. 

"पक्का, अभी, याद कर लो कोई और बहाना अगर याद हो, कहीं आज भी जाना हो, किसीकी तबियत खराब हो, कोई फ़ोन आये और तुम चल दो " नगमा ने समर की देखते बोला.

समर ने अपना मोबाइल नगमा को देते बोला, " नहीं कुछ नहीं, अब कोई हमारे बीच नहीं आएगा .

नगमा और समर ने उसी दिन शादी कर ली और दोनों नगमा के घर की और चल दिए. 

"अम्मी, मैंने शादी कर ली है, समर से" नगमा ने अम्मी के सामने बैठते कहा .

"ठीक ही किया, आओ समर, अच्छा किया तुम दोनों ने शादी कर ली, पिछली बार इसकी शादी वाले दिन लड़के ने ही मना कर दिया, शायद इसीलिए इसकी शादी नहीं हुई क्यूंकि तुम्ही से होनी थी इसकी शादी, अच्छा किया, सबके मुँह पर ताला तो लग जायेगा" अम्मी ने समर से कहा 

"अम्मी, मुझे माफ़ कर दो, मुझे ये पहले ही कर लेना चाहिए था" समर ने अम्मी से गले मिलते कहा 

"जब जो होना होता है तभी होता, अब बस ख्याल रहे,, अपने फ़रज़ से नहीं भागना, तुम दोनों ने बहुत भागम-भाग कर ली अब, अब बस एक साथ रहना और खुश रहना, नगमा, तूने भी अपने मन की कर ही ली अब, अब बस दोनों अपना - अपना फ़रज़ निभाना, खुश रहो बस" अम्मी बोल कर चाय नाश्ता लेने चली गई .


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दोनों अपने घर आ गए, नगमा ने समर का फ़ोन देते कहा, "लो, अब बताओ आगे क्या, अपनी अम्मी से क्या कहोगे".

"नगमा, अब कुछ नहीं, अब तक मैंने उनकी की सुनी, अब बस अपने मन की सुनुँगा, तुम बस अब ये सब छोड़ दो, उनको जब बताना होगा बता देंगें, अब बस मिल कर अपना घर बनाते है, वो सारे सपने पूरे करने की कोशिश में लग जाते हैं जो हमने देखे थे, और बस कुछ नहीं" समर ने नगमा को घर की चाबी देते कहा, लो अपना घर सम्भालो अब".

नगमा को पता था की जिस तरहां समर ने उस से बात छुपाई उसी तरहां वो अपनी अम्मी से ये बात छुपा कर ही रखेगा, पर नगमा को सब मंज़ूर था, उसकी ज़िन्दगी का मकसद पूरा हो गया था, समर उसका प्यार ही नहीं, उसकी नसों में दौड़ता खून था, और अपने से कोई नफरत कैसे कर सकता है, अपनी गलती किसे नज़र आती है, अपने को तो हम बस हालात का मारा ही समझते हैं, और अपनी हर गलती हमें हालात की मजबूरी लगती हैं और यही कारण है की हम ज़िंदा हैं, वरना मरना तो आसान ही है, पर अपने जो हमें प्यार होता है, वो हमें मरने नहीं देता. 


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शनिवार, 20 अगस्त 2022

नगमा की ज़िन्दगी का नगमा - Part 1

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"नगमा, नगमा, चलो यहाँ से, चलो न" रेखा नगमा को खींचते हुए ले गयी .

"रेखा, कैसे कर सकता है वो, अभी पिछले महीने ही मिला था, बोल रहा था की बस दो-तीन महीने में ही शादी कर लेंगें, और अब ये, ये ...... कौनसी बीवी है उसकी जो उसके बच्चे की माँ बनने वाली है".

रेखा चुप कर नगमा की बातें सुन रही थी .

"दस साल से मैं उसके साथ के सपने देख रही हूँ और वो किसी और के सपने सजा रहा था".

रेखा चुप कर बैठी रही, 'शायद बोलने से बात बिगड़ जाये, सो चुप रहना ही ठीक है' .

"पिछले साल बोल रहा था, उसके अब्बा जी बीमार हैं, तो शादी की बात नहीं कर सकते, उस से पहले साल अम्मी बीमार थी, कोई बीमार नहीं था, अपनी शादी की तैयारियां कर रहा था, सो उसके बाद टाइम नहीं था, और मैं सोचती रही वो सब ठीक कर देगा".


नगमा बोलती ही जा रही थी, उसकी आंख से एक भी आसूं न बहा, इतने में उसके मोबाइल की घंटी बजी, रेखा ने नगमा के हाथ से मोबाइल ले लिया,"समर अभी नहीं, बाद में बात करें क्या" रेखा ने मोबाइल उठाते बोला .

नगमा ने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया, "कैसे हो समर".

"मैं ठीक हूँ, तुम इस वक़त रेखा के साथ क्या कर रही हो, घर क्यों नहीं गयी" समर ने नगमा से पुछा. 

'लगता है इसे कुछ पता नहीं चला अभी' नगमा मन ही मन सोच रही थी,"बस जा ही रही थी, थोड़ा काम आ गया था, तुम बताओ, कैसे हो, कहाँ हो अभी, क्या हो रहा है, अम्मी कैसी है अब, उनका बुखार उत्तर गया क्या".

"अरे,अरे, नगमा, आज क्या हुआ तुम्हें, इतने सारे सवाल क्यों, सब ठीक हैं, अगले हफ्ते छुट्टी ले लो, मिलते हैं, बहुत दिन हुए, काम बहुत था, अगले हफ्ते मिल कर सब बताता हूँ".

"ओह, अच्छा, आज काम ख़तम हो गया क्या, कैसा है काम, रंग-रूप कैसा है काम का, तुम पर है या किसी और पर?" नगमा अपने गुस्से को काबू करने की पूरी कोशिश कर रही थी .

"क्या हो गया है, क्या बोल रही हो, इस सब से क्या मतलब है" समर की आवाज़ में थोड़ी कप-कपी सी महसूस हो रहे थी .

"समर, कितने और सालों तक मुझे पागल बनाने का इरादा है, पिछले दस सालों से पागल ही बना रहे थे क्या, अब समय है फैसले का, मेरे नहीं हो सके तो कम से कम उसके तो हो जाओ, जो तुम्हारे बच्चे माँ बनने वाली है, कौन से  हॉस्पिटल में हो, मैं आज ही क्यों गयी तुम्हारे ऑफिस, मेरी गलती है, मुझे तुम्हारे बारे में सबा ने कहा था, पर तुम से ज्यादा मुझे अपने प्यार पर भरोसा था, पर ऐसा क्यों किया तुमने" नगमा ने सब एक सांस में बोल दिया .

 "नगमा, मेरी बात सुनो, मेरी गलती है, पर क्या मेरी एक ख़ामी मेरी बरसों की मोह्बत पर हावी हो जाएगी, तुम मेरा प्यार हो, ये मेरी ये सब मेरी ज़िम्मेदारियाँ है" समर को बोलने के लिए लफ्ज़ नहीं मिल रहे थे .

"और कितनी ज़िम्मेदारियाँ और परेशानियां और मजबूरियाँ है तुम्हारी, सब बहाने है और थे, ज़िम्मेदारियों तुमने सबको दिखा कर निभायीं, मैं अगर तुम्हारा प्यार हूँ तो मुझे ही क्यूँ छुप्पा के रखा है, दुनिया के सामने हमारी सच्चाई बताते शर्म क्यों ?, समर, और सपने नहीं बस करो अब,..... तुम भूल गए की मैं इस दुनिया में रहती हूँ और मुझे भी जवाब देने होते है" ?" नगमा का गला भर आया .

"नगमा मुझे गलत मत समझो, ये सब कैसे हो गया, क्यों आयी तुम यहाँ, मैं ये सब ठीक कर रहा था न, अम्मी-अबू की बात पूरी कर, मैं तुम्हारे पास ही आ रहा था, हमेशा के लिए, एक मौका दे दो मुझे समझाने का, तुम ही बस मेरा प्यार हो, मेरी मंज़िल हो, ये सब बस पड़ाव हैं, मुझे एक मौका दे दो, बस एक और मौका, मैं इन  ज़िम्मेदारियों के बाद बस तुम्हारा हूँ" समर के पास शब्द नहीं थे, उसे अंदाज़ा हो गया था की आज के बाद वो कभी नगमा को देख नहीं पायेगा, ".

बस एक मौका दे दो, मैं अभी, अभी मिलता हूँ तुमसे, बोलो कहाँ हो तुम, अभी मिल कर फैसला कर लेते हैं , मैं ये सब छोड़ तुम्हारे साथ चलता हूँ, नगमा कुछ बोलो, मैं तुमसे ही प्यार करता हूँ, उस, उस घर का सोचो, जो हम दोनों ने मिल कर देखा है, अगले महीने से वहां ही रहेंगें हम, और शादी भी कर लेगें, नगमा मैं ये सब छोड़ तुम्हारे पास ही आ रहा हूँ, कुछ तो बोलो नगमा, नगमा".

नगमा ने अपना मोबाइल पास के गटर में फ़ेंक दिया और बिना रेखा से कुछ कहे, अपने घर की और चल दी, रेखा चुप-चाप उसके पीछे चल दी.


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"अरे, नगमा, कहा थी, तुम्हारा मोबाइल कहाँ है, मैं कब से फ़ोन कर रही हूँ" अम्मी नगमा को देखते ही बरस पड़ीं
"अम्मी, वो जो तुम रिश्ते की बात कर रही थी न, उन्हें हाँ कर दो, मैं निकाह पढ़ने को तैयार हूँ" नगमा ने माँ की गोद में सर रखते बोला .

"अरे, कितनी अच्छी बात कही, रेखा, अच्छा किया, तूने इसे समझाया तो, यहाँ आ मेरे गले लग जा तू भी" अम्मी की ख़ुशी का ठिकाना न था .

रेखा बस मुस्कुरा दी, "शुक्र है, उस समर से इसका पीछा छूटेगा" अम्मी ने रेखा के कान में बोला.

"Thanks, रेखा, आज मेरा साथ देने का, शादी में ज़रूर आना" नगमा ने रेखा के गले मिलते कहा.

रेखा, नगमा को रोकना चाहती थी, गुस्से में वो गलती कर रही थी, "दो ज़िन्दगियाँ पहले ही बर्बाद हो गयी हैं, अभी किसी और क्यों अपने बीच में ला रही हो,थोड़ा समय दो, अपने-आप को" रेखा ने नगमा से कहा .

"देखो, बहुत देर हो गई है, घर जाओ तुम अब, शादी वाले दिन मिलेंगें" नगमा ने रेखा के कंधे पर हाथ रखते बोला.

रेखा चुप-चाप वहां से चली गई, वो जानती थी अब कुछ कहने को और करने को न बचा था, वो जानती थी की उसकी सहेली बहुत ज़िद्दी है, अब समय ही बताएगा क्या होगा.

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शनिवार, 25 जून 2022

कर्मो का फल - Part 2

 

भाग - 1:https://tejinderkkaur.blogspot.com/2022/06/part-1.html

भाग - 2


- 7 - 


"माँ मुझे आप से बात करनी है" दीपेंदर ने कांता के सामने वाली कुर्सी पर बैठते बोला .

"अभी नहीं, अभी मैं पाठ कर रही हूँ, बाद में बात करुँगी, प्रीत आ जाओ पाठ करे" कांता ने प्रीत को आवाज़ देते बोला .

"नहीं माँ मुझे बात करनी, क्या हो गया है, क्यों करवाई मेरी शादी आपने जब मैं अपनी बीवी से बात नहीं कर सकता, न वो मेरे पास बैठ सकती है, क्या चाहती हो आप" दीपेंदर ने प्रीत के आने से पहले ही दरवाज़ा बंध कर दिया.

"छोड़ो मुझे, दरवाज़ा खोलो, बाद में बात करेंगें कहा न" कांता ने गुस्से से कहा .

"नहीं माँ अभी बात करनी होगी" दीपेंदर ने ज़िद करते कहा.

"जब शादी के दुसरे दिन मुझे बिना बताये चले गए, क्या तुमने जाने से पहले पुछा था, तो मैं क्यूँ बताऊ मैं जो कर रही वो क्यों कर रही हूँ, चले जाओ हमें पाठ करने दो, जाओ यहाँ से" कांता ने दरवाज़ा खोल प्रीत को अंदर बुलाया.

प्रीत, दीपेंदर की और ही देख रही थी, "तुमको कितनी बार कहा चलो मेरे साथ, पर तुम भी माँ की तरफ-दारी करती रहती हो" 

प्रीत के माँ-बाप नहीं थे, एक भाई ही था, वो भी दूर शहर चला गया था, प्रीत अपने भाई के दूर चले जाने पर परेशान थी और अपने को अनाथ सा महसूस करती थी, कांता से उसे माँ का प्यार मिला था, कितनी बार उसने कांता से कहा की वो उसे दीपेंदर के पास कुछ रहने के लिए जाने दे, पर कांता हर बार यही कह कर ताल देती की 'मुझे अकेला छोड़ चली जाएगी क्या', कांता के मोह ने उसे बांध रखा था .


- 8 - 


अगली सुबह कांता ने प्रीत को जगाते बोला,"प्रीत उठो जाओ चाय बना लाओ".

प्रीत हाथ-मुँह धो कर रसोई में गयी तो उलटे पैर लौट आयी, उसके सर पर दुपटा भी नहीं था और आँखें पानी से भरी हुई थी. 

"क्या हुआ, हाथ जल गया क्या, कितनी दफा बोला की ध्यान से काम करो" कांता ने प्रीत के आसूं पोछते बोला. 

"माता जी, वो घर छोड़ कर चलें गए है" प्रीत ने चिठ्ठी कांता की ओर बढ़ाते बोला. 

"कौन घर छोड़ कर चला गया है" कांता ने चिठ्ठी लेते पुछा,"अरे, कुछ नहीं हुआ है, शाम को लौट आएगा.

"कोई नहीं आएगा वापस, मान लो माँ, वो अब नहीं आयेंगें, उन्होंने मुझे कहा था की वो अगर चले गए तो कभी नहीं आयेंगें, आप मान लो, आप की बात मान ली उन्होंने, आपने कहा चले जाओ, और वो अब चले गए, मैंने कहा था की मुझे जाने दो, कुछ दिन तो जाने देती, पर नहीं, अब देखो क्या हो गया, अब न वो आपका बेटा रहा और ना ही वो नहीं मेरा पति रहा, वो बंधन से आज़ाद हो गया, अब मैं भी चली जाऊंगीं बस, अब आप कोई चिंता मत करो, अब मैं बस आपके पास ही रहूगीं, अब आपको बार-बार बीमार नहीं होना पड़ेगा,अब मेरा सारा धयान आपके लिए है" प्रीत बोल कर कांता के पैर दबाने लग गयी.






- 9 - 


दीपेंदर को गए एक महीना बीत गया, प्रीत बेसुध हो यहाँ-वहां घूमती रहती, कांता अपने बेटे का पता लगाने में लगी रहती.

"प्रीत चलो तैयार हो जाओ, आज हम दुसरे शहर जायेंगें वहां बहुत महान संतो की टोली आयी हुई है, उनका प्रवचन है" कांता ने अपना सामान बांधते कहा. 

"नहीं मुझे नहीं जाना, और अगर आपने ज़बरदस्ती की तो मैं भी कहीं चली जाउंगी" प्रीत ने ऊंची आवाज़ में बोला, और वो वहां से चली गयी .

कांता अकेले ही चली गयी, उसके वहां पहुंचने से पहले ही प्रवचन शुरू हो गया था. 

प्रवंचन ख़तम होने एक-एक कर सब संत लोग जाने लगे तो कांता ने देखा की संतों में एक संत उसका बेटा था, वो दीपेंदर था.

दीपेंदर माँ को देख वहां से उठ कर चल दिया, कांता उसके पीछे-पीछे चल दी, "रुको बेटा, मुझे माफ़ नहीं करोगो".

दीपेंदर कुछ बोले बिना ही समाधि में बैठ गया .

"संत जी मेरा बेटा कहीं चला गया है मुझसे रूठ कर और मेरी बहु भी पागल सी हो गयी, न जाने, ना जाने मेरे घर को किस की नज़र लग गयी है, आप मुझे कोई रास्ता दिखाएं" कांता ने हाथ जोड़े आँखों में आसूं लिए कहा. 

दीपेंदर कुछ न बोला, उसके पास खड़े एक संत बोले,"माता जी, हम तभी दुखी हैं क्यूंकि हम अपना खोट नहीं देखते, बस दूसरों के खोट निकालते रहते हैं, इसीलिए हम दुखी हैं, जाओ माता जी घर जाओ क्यूंकि कर्मो का फल सबको भुगतना ही होता है".


कांता, दीपेंदर के पास बैठ गयी,"संत जी क्या मेरी एक गलती मेरी सब अछाईयों को भुला देती है".

दीपेंदर ऑंखें मूंदें चुप-चाप बैठा था, दुसरे संत ने कांता को घर जाने को कहा,"जाओ माता जी घर जाओ, ये नहीं बोलेंगें, क्यूंकि इन्होने पांच वर्ष का मौन धारण किया है, जाओ माता जी आप जाओ, सबको अपने कर्मो का फल भुगतना ही होगा"

कांता वहीँ बैठी रही,"नहीं संत जी मैं अपने बेटे के बिना नहीं जाऊगीं" और वो वहीँ दीपेंदर के पास बैठ गयी .


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सुबह कांता की आंख खुली तो देखा वहां कोई नहीं था, सब जा चुके थे, कांता अपने साथ निराशा ले घर वापस आ गयी. 

घर आ प्रीत को खोजने लगी पर प्रीत कहीं नज़र न आयीं, कांता प्रीत को पूरे गांव में खोजती रही पर प्रीत नहीं मिली, एक-एक  कुआँ और एक-एक तलाब भी देख लिया पर प्रीत नहीं मिली.

घर वापस आयीं तो प्रीत आंगन में बैठी थी, "अरे, प्रीत कहाँ चली गयी थी मैं तुम्हें सारे गांव में खोज रही थी"?

प्रीत कुछ न बोली और सो बस कांता की गोद में सर रख कर सो गयी. 

प्रीत की तबियत खराब देख कांता ने डॉक्टर को बुलवा लिया, डॉक्टर ने प्रीत की  जाँच पड़ताल के बाद कांता को बाहर बुला कर बोला, "कांता जी आपकी बहु पागल सी हो गयी है, आपको इसका धयान रखना होगा क्यूंकि वो पेट से है", कांता के पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी,'नहीं ये नहीं हो सकता, ये कैसे हो सकता है, दीपेंदर को गए तो अरसा हो गया'.

कांता गुस्से से भरी प्रीत के पास पहुँच गयी, उसने प्रीत को घर से बाहर निकाल देने का फैसला कर लिया, पर प्रीत को देखते ही उसे रोना आ गया, प्रीत दीपेंदर की तस्वीर को बाँहों में लिए उससे बातें कर हंस रही थी.

कांता ने दीपेंदर का पता लगाया और वो प्रीत को ले दीपेंदर के पास पहुँच गयी.

"संत जी, मुझे पता है आपने मौन धारण किया हुआ है, लेकिन एक बार इस लड़की को देखिये, इसका क्या कसूर है, और अब मैं  इसका क्या करूँ, गांव वाले इसे जीने नहीं देगें, ना जाने कहा से ये पाप कर बैठी है, एक बार देखिये और कुछ तो बताईये".

दीपेंदर ने आँखें खोल प्रीत को देखा तो वो उसका बड़ा पेट देख मुस्कुरा दिया, एक कागज़ पर कुछ लिख कर कांता को दे वहां से चला गया .

कांता, कागज़ पर लिखा पढ़ अपने आसूं पोंछ अपने घर की और चल दी.

कागज़ पर लिखा था,'ये बच्चा, प्रीत के और आपके कर्मो का फल है, आपने मुझे उसके साथ रहने नहीं दिया और प्रीत ने कभी मेरे साथ चलने की बात नहीं मानी, बस हो गया जो होना था, अपने कर्मो का फल सबको भुगतना होता है'.


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शनिवार, 18 जून 2022

कर्मो का फल - Part 1

 भाग - 1

- 1 -


कांता आज बहुत खुश थी, आज उसके इकलौते बेटे की शादी थी, कितने सालों बाद आज ख़ुशी ने उसके घर दस्तक दी थी .

'सारे गांव में मिठाई बाँटूँगीं, भर-भर के मिठाई बाटूँगीं, सब सालों-साल तक याद रखेंगें की कांता के बेटे की शादी थी' कांता सबकुछ खुद ही प्लान कर रही थी, सारी खरीदारी और सारा इंतज़ाम कांता खुद ही कर रही थी.






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"माता जी, लड़की के भाई का फ़ोन आया था, वो मिलने को कह रहा था" दीपेंदर ने माँ से कहा.

"हाँ, हाँ, मिल आते हैं, बताओ कब जाना है, चल कर मिल आते हैं, और शादी की तैयारी के बारे में भी पूछ आते हैं, क्या पता उन्हें हमारी कोई मदद चाहिए हो" कांता ने हामी भरते कहा.

"माता जी, उन्होंने बस मुझे ही बुलाया है, वो मुझे और प्रीत को मिलवाना चाहते है, एक बार शादी से पहले" दीपेंदर ने धीमी आवाज़ में बोला, क्यूंकि वो जनता था की माँ मिलने पर कभी राज़ी नहीं होगी.

"नहीं, मैंने तुमको पहले ही कहा है की ये सब नहीं हो सकता, शादी से पहले लड़का और लड़की नहीं मिल सकते, बस, हमारे यहाँ इसे अपशगुन माना जाता है" कांता ने अपने बेटे की तरफ देखे बिना ही सब कह दिया.

दीपेंदर ने माँ की बात नहीं काटी और वो वहां से चला गया, 'दो बार माँ को बिना बताये मिल आया पर अब नहीं, माँ को पता चला तो बस यूँ नाराज़ होगी, कितनी खुश दिख रही है'. पर, शादी के बाद माँ के बर्ताव के बार में सोच-सोच कर वो बहुत परेशान रहता, माँ अभी किसीसे मिलने नहीं जाने देती, ना जाने बाद में प्रीत को ये सब अच्छा लगे या न लगे 

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कांता के माँ-बाप नहीं थे, एक बहन थी, वो दोनों अपने मामा के घर पली-बड़ी थी, मामा-मामी ने प्यार से पाला था, अपने बच्चों के तरह ही रखा था, बड़े होने पर कांता की शादी एक फौजी के साथ कर दी, मगर शादी के दो साल बाद ही वो कांता की गोद में दो महीने के बच्चे को छोड़ दुनिया से चला गया.

मामा-मामी ने कांता से दूसरी शादी करने को कहा, पर कांता ने मना कर दिया, क्यूंकि कांता अपने बच्चे के साथ और अपने पति की यादों के सहारे ही ज़िन्दगी बिताना चाहती थी.  

कांता अपने बेटे को ले कर हमेशा से सी गंभीर रही, अच्छे स्कूल-कालेज  में पढ़ाने से ले कर खाने-पीने का हमेशा ध्यान रखा, पर कभी-कभी उसका अपने बेटे के प्रति प्यार कुछ अजीब हो जाता, दुसरे शहर नौकरी करने नहीं जाने देना और किसी के घर जा कर न रहने देना, किसी के घर अकेले आने-जाने नहीं देना कांता ने इन सब बातों बड़ी सकती से पालन किया और करवाया.

कांता की बहन ने कितनी बार बोला,'मेरे घर तो आने दो, बेटे की शादी के बाद भी क्या उसे पलु से बाँध कर रखोगी ?' पर कांता साफ़ मना कर देती, कई बार दीपेंदर ने माँ को समझाया और लड़ाई भी की पर कांता नहीं मानी, हर बार यही कह देती 'मेरे मरने पर चले जाना जहाँ जाना हो, चले जाना, कोई रोकने वाला नहीं होगा', दीपेंदर भी अपनी माँ का बहुत ध्यान रखता, माँ की मेहनत दीपेंदर को हर घड़ी याद रहती, पर कभी-कभी माँ के स्वामित्व बर्ताव से उसे बहुत दर लगता. 

  


- 4 - 


बड़ी धूम-धाम से दीपेंदर और प्रीत की शादी हो गयी, कांता बहुत खुश थी, अब उसका घर भरा-भरा हो जायेगा.

"अरे, कांता बहुत ही बढ़िया शादी हो गयी, अब तो तुम free हो गयी हो, चलो न कुछ दिन मेरे साथ रहो, चलो न, बेटे-बहु को अकेला छोड़ दो" कांता की बहन ने कहा.

"नहीं-नहीं, मैं अपने घर में रहूंगीं, बेटे-बहु के साथ, अभी तो बहुत कुछ करना है, घर भी तो देखना है" कांता ने उत्साहपूर्वक कहा .

"अरे, छोड़ो भी अब, अब सब बहु के सपूत कर दो और चलो थोड़ा मेरे साथ घूम आयो, अब इस चार दीवारी से बहार निकलो" बहन ने बहुत समझाया पर कांता नहीं मानी. 

कांता अगली सुबह अपने टाइम से उठ गयी और अपने रोज़ के कामो में लग गयी. 

चाय बना कर बेटे-बहु को आवाज़ दे दी, थोड़ी देर में बहु कमरे में से चली आयी, बेटे के हाथ में सूटकेस देख कांता ने पुछा, "कहाँ जा रहे हो बेटा"
"माँ हम लोग चार दिन के लिए घूमने जा रहे हैं, यहीं पास ही जा रहे हैं, प्रीत के भाई ने surprise gift दिया है" दीपेंदर ने चाय पीते बोला.
"अच्छा, ठीक है, घूम आयो" कांता को बहुत निराशा हुई पर उसने कुछ नहीं कहा .
"मैं नाश्ता बना लाती हूँ, नाश्ता कर चले जाना" कांता ने अपने आसूं छुपाते बोला .
"नहीं माँ, प्रीत के भाई ने गाड़ी भेजी है, अभी निकलना होगा" दीपेंदर ने सामान उठाते कहा.
"ठीक है बेटा" कांता ने भरी आवाज़ में बोला.

- 5 - 

दीपेंदर और प्रीत लौट कर आये तो घर की हालत देख डर गए, दीपेंदर ने देखा माँ पलंग पर पड़ी थी और बिस्तर उलटी में सना था दीपेंदर भाग कर डॉक्टर को ले आया, प्रीत ने सारी सफाई की और कांता के कपडे भी बदल दिए .

"डॉक्टर, सब ठीक है न" दीपेंदर ने पुछा. 

"हाँ, सब ठीक ही लग रहा है, आपकी माता जी ने लगता है कई दिन से खाना नहीं खाया सो बेहोश हो गयी थी, आराम करेंगीं और खाना ठीक से खाएँगीं तो ठीक हो जाएँगी" डॉक्टर दवाई दे कर चला गया.

दीपेंदर समझ गया, अगले कुछ रोज़ उसने माँ के साथ ही बिताये, वहीँ माँ के पास सोता और सारा दिन वहीँ रहता.

कांता कुछ बात नहीं करती, कांता के मामा एक रोज़ मिलने आये,"दीपेंदर मैंने तुम्हारे लिए बहुत बढ़िया नौकरी देखी, रहना खाना वहीँ होगा, बोलो कब जा सकते हो" मामा जी ने पुछा .

इससे पहले दीपेंदर कुछ कहता, कांता ने बोला,"कल ही चल जायेगा, अब मैं बिलकुल ठीक हूँ, अच्छी नौकरी रोज़-रोज़ कहाँ मिलती है" .

दीपेंदर ने हां में सर हिला दिया,"पर माँ अभी आप की तबियत ठीक नहीं हैं, और आप को ऐसे हाल में छोड़ हम कैसे जा सकते हैं".

"अरे, अकेले कहाँ, प्रीत है न, जब तक मैं ठीक नहीं होती प्रीत और मैं यहीं रहेगें" कांता ने सफाई देते कहा.

दीपेंदर चला गया, जब भी वो छुट्टी ले कर आता तो माँ से चलने को कहता, पर कांता हमेशा कोई बहाना बना कर टाल देती और न ही प्रीत को जाने देती.


- 6 - 


दो साल बीत गए, पर कांता न खुद गयी और न ही प्रीत को जाने दिया और जब भी दीपेंदर छुट्टी ले कर आता तो वो बेटे और बहु को साथ न सोने देती, कोई न कोई बहाना बना देती.

एक रोज़ कांता ने देखा की दीपेंदर सूटकेस उठा कर चला आ रहा है,"क्या हुआ दीपेंदर, फिरसे छुट्टी ले ली है क्या" ?

"नहीं माता जी, मुझे इसी शहर में नौकरी मिल गयी है, अब मैं यहीं रहूँगा, आपके और प्रीत के पास" दीपेंदर ने पानी पीते बोला .

कांता समझ न पायी ,"अरे, इतनी अच्छी नौकरी बस इसीलिए छोड़ दी की यहाँ रहना चाहते हो" कांता ने हैरान होते पुछा .

अगले कुछ रोज़ तक कांता नाराज़ सी रही, प्रीत को भी अपने पास ही सुलाती, दीपेंदर और प्रीत को कभी अकेले न छोड़ती.

एक रोज़ कांता की बहन मिलने आयीं,"अरे कांता, खुश खबरी कब मिलेगी, चार साल हो गए".

"मिल जाएगी जल्दी क्या है" कांता ने उसे चुप कराते बोला .

प्रीत के जाते ही कांता की बहन ने कहा,"कांता, दीपेंदर आया था मेरे पास उसने कहा की तुम प्रीत को अपने पास सुलाती हो, पागल हो क्या, बेटे-बहु को मिलने नहीं दोगी तो पोता-पोती कैसे पाओगी".

"अरे, जल्दी क्या है,  हो जायेंगें पोता-पोती, तुम रहने दो, मैं देख लूंगीं" कांता ने बहन को चुप करवा दिया. 

"कांता इस सब का अंजाम ठीक नहीं होगा, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, सब ठीक हो सकता है, प्रीत अभी कुछ बोल नहीं रही है, कहीं तुमसे तंग आ कर वो भी तुम्हारे आगे बोलने लग गयी तो, इस से पहले की बेटे और बहु को खो दो होश में आ जाओ, बेहतर होगा " कांता की बहन ने समझाते हुए बोला.


to be continued ........


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रविवार, 12 जून 2022

प्रेम धोका - Part 2

Part 1 : https://tejinderkkaur.blogspot.com/2022/06/premdhokha-lovestory.html

Part 2: continued .......




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नमिता की आंख खुली तो उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके सर पर हतोड़ा मार दिया हो, नमिता कुछ बोलने लगी तो उसे एहसास हुआ की उसके मुँह पर कपडा बंधा था. रेडियो पर कहीं संगीत बज रहा था, 


 मुझे इश्क़ है तुझीसे, मेरी जान-ए-ज़िंदगानी 
तेरे पास मेरा दिल, मेरे प्यार की निशानी 



"तेरे दम से ही है सलामत मेरे दिल का आशियाना, अरे आप जग गई, चार घंटे से सो रही है आप, कुछ पता है, कुछ खाएँगीं, भूक लगी है या नहीं" आनंद नमिता के सामने कुर्सी पर बैठा था.

नमिता उठ कर बैठ गई, उसके हाथ बंधे हुए थे ओर मुँह पर पटी बंधी थी .

"अगर आप चिलायें न तो मैं ये पटी खोल देता हूँ" आनंद ने नमिता से पुछा.

नमिता ने हाँ में सर हिला दिया, आनंद ने नमिता के मुँह पर बंधी पटी खोल दी. 

"मुझे washroom जाना है" नमिता ने धीरे से बोला.

"हाँ, हाँ, वो रहा सामने, जाइये" आनंद ने प्यार से बोला.

नमिता ने देखा washroom साफ़-सुथरा था, पर वहां कोई खिड़की नहीं थी, नमिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था, 'चिल्लाने की बजाए, आराम से काम लेना होगा, न जाने ये जगह कहां है, जंगल में या शहर में, चिल्लाने से बात बिगड़ सकती है' सोचते-सोचते नमिता बाहर आ गई.

"मैं, खाना ले कर आता हूँ, आप आराम करें, मुझे शायद देर हो जाये, पानी, चाय और कुछ फल यहाँ है, आप अभी यही खा सकती हैं" इतना कह आनंद बाहर से लॉक लगा कर चला गया. नमिता उठ कर दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी, तो उसे एहसास हुआ की उसके पैर में बेड़ी पड़ी हुई थी. किसी जानवर की तरहाँ बेड़ियों से बंधी थी नमिता.


- 7 - 


नमिता को अंदाज़ा भी नहीं रहा की उसे कैद में रहते हुए  कितने दिन बीत गए, सारी-सारी रात और दिन के कई घंटो वो वहां अकेली पड़ी रहती , "नमिता, नमिता", नमिता ने आँखें खोली तो वो आनंद को अपने बहुत करीब पा कर डर गई.

 "नमिता डरो मत, खाना लाया हूँ, खाना खा लो" नमिता ने आनंद के हाथों से खाने का packet ले लिया,"देखो मैं बुरा नहीं हूँ, बस तुमको देखते ही ऐसा लगा कोई अपना मिल गया हो, मेरे दिल और दिमाग पर बस तुम ही तुम छायी रही, रात-दिन, सोते-जागते बस तुम ही तुम मेरे ज़हन में रही ,और फिर जब तुमने वापस जाने की बात की और माँ से तुम्हारे बेटे के बारे में पता लगा तो मैं डर गया, की तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी, और अब जाने-अनजाने में मुझसे ये सब हो गया, अब तुम बताओ ये सब कैसे ठीक होगा" आनंद ने अपने हाथों में अपना चेहरा छुपाते बोला.

"पर ये सब, ये सब कब तक चलेगा, कितने दिन हो गए, न जाने मैंने कबसे कपडे भी नहीं बदले , क्या चाहिए तुम्हें मुझसे" नमिता ने धीमी सी आवाज़ में पुछा.

"शादी, शादी करनी है मुझे तुमसे, अब बताओ क्या जवाब है तुम्हारा, सब को छोड़ बस तुमको मेरी ही होना होगा" आनंद ने नमिता की आँखों में आँखें डाल कर बोला.

"ठीक है, मैं तुमसे शादी करूंगीं, मुझे यहाँ से जाने दो तुम जब बोलोगे, जहाँ भी बोलोगे मैं आ जाऊँगी" नमिता ने पलट कर जवाब दिया.

"और तुम्हारा पति" आनंद आगे कुछ कहता, नमिता ने तुरंत उत्तर दे दिया. 

"नहीं है पति, अब जाने दो, मेरी माँ सच में बहुत बीमार हैं, कितने दिन से उन्हें कॉल भी नहीं किया, न जाने किस हाल में होंगीं वो, please मुझे जाने दो" नमिता ने आग्रह किया.

"नमिता, मेरी नमिता, तुम समझ नहीं रही हो, अब तुम यहाँ से कैसे जाओगी, बाहर सब तुम्हें ढूंढ रहे हैं, पुलिस तुम्हें जंगल में भी खोज रही है, कितनी बार तो मेरे घर भी आ चुके हैं" आनंद ने अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा रखा था.

"ओ, आनंद ये क्या कर दिया तुमने, मेरी माँ को पता चला तो वो मर जाएँगी, कम से कम एक बार मुझसे बात तो कर लेते" नमिता की ऑंखें भर आयी 

नमिता की आँखों में आंसू देख आनंद डर गया,"नमिता ये सब क्या हो गया, क्या करूँ मैं अब, मुझे जेल नहीं जाना, मेरी माँ मर जायगी, अगर उसे ये सब पता लगा तो, क्या कर दिया मैंने, अपने ही हाथों प्रेम का गला घोट दिया, कैसे माफ़ी मिलेगी मुझे, कौन समझेगा मुझे" आनंद बोलता-बोलता वहां से बाहर भाग गया 

"आनंद, मत जाओ, please मैं समझुगी तुमको, वापस आ जाओ आनंद, आनंद" नमिता की आवाज़ खाली दीवारों से टकरा वापस आ गयी, आनंद कब का जा चूका था, नमिता वहीँ बैठ रोने लगी.


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आनंद चार घंटे बाद वापस आया, उसके हाथ में एक बैग था, "कपडे बदल लो पंडित जी आते होंगें और हाँ शादी होते ही हम दोनों तुम्हारी माँ से मिलने चलेंगें मुझे विश्वास हैं की तुम मुझे समझोगी, और !...".

नमिता ने कुछ नहीं कहा, उसे ख़ुशी इस बात की थी की वो इस कैद से निकल सकेगी और वो अपनी माँ से मिलने जा सकेगी.

शादी होते ही आनंद ने अपना वादा पूरा किया और वो नमिता को ले, उसे, उसकी माँ से मिलवाने निकल पड़ा, "नमिता, तुम मुझसे गुस्सा होगी, मुझे पक्का पता है, तुम और मैं अब एक हैं, मैं तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा, मैं बुरा नहीं हूँ बस तुम्हें देखते ही कुछ हो गया था, सुनो, नमिता नौकरी मत छोड़ना, मैंने वहां सबसे कह दिया था की, तुम अपनी माँ से मिलने चली गयी हो, तुम्हारे मोबाइल से सबको मैसेज भी कर दिया था, मुझे माफ़ कर देना, और हाँ वो पुलिस वाली बात और लोगो की तुम्हें ढूढ़ने की बात झूठी थी, मैं बस, डर गया था की ये सब कैसे ठीक होगा, तुम कुछ कहोगी नहीं क्या?". 

"माँ न जाने कैसी होंगीं" नमिता अपने ही ख्यालों में गुम थी.

"लो आ गए हम माँ के पास, नमिता, मेरी बात सुनो, गुस्सा मत होना मैंने तुम्हारी माँ से बोला था की हमने शादी कर ली है, इस बात को नमिता आपसे कह नहीं पाएगी, सो शायद कुछ दिन में फ़ोन करेगी आपको, और हाँ मैं तुम्हारी माँ से रोज़ बात करता था, वो बिल्किल ठीक हैं, I hope की तुम मुझ पर नाराज़ नहीं होगी" आनंद ने सर झुकाये सब बोल दिया. 

"माँ, कैसी हो, रोहन कैसा है" नमिता अपनी माँ के गले लगने को आगे बढ़ी ही थी की माँ ने रोक दिया,"नमिता, आनंद, अरे-अरे रुको आरती तो लाने दो, फिर आना अंदर" नमिता की आँखों से आँसूओं की वर्षा होने लगी.

"आओ देखो आज मैंने सारा खाना तुम्हारी पसंद का बनाया है" माँ ने नमिता को गले लगाते बोला.

"माँ, तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो न" नमिता ने आसूं पोछते कहा.

"हाँ नाराज़ तो हूँ, की ये खुश खबरी तुमने मुझे क्यों नहीं सुनाई, खैर आनंद जब तीन रोज़ पहले घर आया तो उससे मिल कर बहुत अच्छा लगा, अच्छा लड़का है आनंद, मैं खुश हूँ की तुमने आनंद को अपना जीवन साथी बना लिया, रोहन भी आनंद से मिल कर बहुत खुश था" माँ ने सब एक सांस में बोल दिया.


'आनंद घर आया, कौन है आनंद, और ये सब क्या हो रहा, ये सब सपना है या सच' नमिता गुज़रे कुछ दिनों का हिसाब नहीं रख पा रही थी.

रात के खाने के बाद नमिता बालकनी में जा कर बैठ गई, अंदर से रोहन और आनंद की ज़ोर-ज़ोर से हसने की आवाज़ें आ रही थी.

'क्या हुआ है इन कुछ पिछले दिनों में?, आनंद, कौन है ये आनंद ?, कैसे और कब हुआ, जो भी हुआ ?, किसको बताऊ की मेरे साथ क्या हुआ?, क्या जो कुछ हुआ, वो हुआ भी या बस मेरी सोच है वो?' नमिता कुछ समझ नहीं पा रही थी की आखिर हुआ क्या है?

"नमिता" नमिता ने मुड़ कर देखा तो आनंद उसके पीछे खड़ा था.

"नमिता, मैं, अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ, क्या तुम मुझे माफ़ कर पाओगी कभी, तुमको खोने के डर ने मुझसे से वो सब करवाया था" आनंद बोल कर चला गया .

'मैं कौन हूँ किसी को माफ़ करने वाली' नमिता की ऑंखें फिर भर आई.


- 9 - 


"माँ, नमिता" आनंद, नमिता के साथ अपने घर वापस आ गया.

"इतनी जल्दी क्या पड़ी थी, किसी से कुछ पूछ लेते, कुछ सलहा - मशवरा ही ले लेते, कितनी लड़कियां दिखायीं तुम्हें अगर यही पसंद थी, तो कम से कम कुछ कह तो देते" माँ आनंद की तरफ ही देखे जा रही थी. 

आनंद, नमिता और माँ को एक पल के लिए भी अकेला न छोड़ता, उसके अंदर का डर उसे खाये जा रहा था, कई बार सोचा माँ और नमिता दोनों को एक साथ बिठा कर बात कर ले, पर नमिता को खो देने का डर उसे ऐसे रोक लेता.  

देखते-देखते तीन महीने बीत गए, नमिता अंदर ही अंदर  घुटती जा रही थी, कई बार माँ से बात करते आंसूं भर आते तो वो ये कह टाल देती की उसे अपने किये पर बहुत शर्मिंदगी हैं, किसी से बात करने की हिम्मत नहीं थी उसमे, 'माँ को अगर पता चला तो वो मर ही जाएगी, नहीं - नहीं मुझे चुप ही रहना होगा' नमिता के होठों से हसीं कोसो दूर जा चुकी थी. जब भी माँ और रोहन आते तो अपने साथ कुछ हसीं के पल भी ले आते, माँ के सामने नमिता हमेशा खुश रहने की कोशिश करती. पर नमिता की सेहत सोचते रहने से दिन-ब-दिन बिगड़ती ही जा रही थी 

'आनंद बुरा नहीं हैं, जब से शादी हुई, उसने कभी अपनी मर्यादा नहीं तोड़ी, पर जो मर्यादा उसने तोड़ी है भी उसे भुलाये नहीं भुला जा सकता '.


- 10 -


"नमिता, देखो चार रोज़  में तुम दोनों की शादी को छः महीने हो जायेंगें, मैं सोच रही थी एक छोटी सी पार्टी रख लेते हैं, थोड़े से लोगों को बुला लेंगें" आनंद की माता जी ने नमिता से पुछा,"जाओ पेन और पेपर ले आओ मिल कर प्लानिंग कर लेते हैं 

नमिता पेपर ले आयीं, "हाँ, लिखो नाम, और हाँ अपने दोस्तों को बुलाना मत भूलना, जब से शादी हुई, और ये मुआ लॉक-डाउन हुआ न कोई आया और न ही किसी से मिलना ही हुआ, बस सब ऑनलाइन ही  चल रहा हैं, अच्छा सुनो नमिता तुम खुश हो न आनंद के साथ, मुझे पहले-पहल कुछ गुस्सा तो आया था पर तुम्हारी माँ से मिल कर तुम्हारी अन्दर की खूबसूरती का एहसास हुआ, तुम पर इतना चुप-चुप क्यों रहती हो ?तुम दोनों ने ये फैसला कब और कैसे लिया, तुमसे कभी बात करने का मौका ही न मिला, बैठो और आज सब बताओ" आनंद की माता जी के इतना कहते ही नमिता फूट-फूट कर रोने लगी..

"नमिता, अरे नमिता, क्या हुआ, बोलो, रो क्यों रही हो" माता जी ने प्यार से पुछा.

नमिता कुछ बोले बिना वहां से चली गयी.

"नमिता, नमिता, इधर देखो मेरी तरफ, आज तुम्हें बताना ही होगा की बात क्या हैं, न तुम हंसती हो, न तुम कुछ बात करती हो, जब मैं तुमसे पहली बार मिली थी तो तुम ऐसी नहीं थी, बोलो आखिर बात क्या हैं, क्या तुम आनंद के साथ खुश नहीं हो, आनंद थोड़ा ज़िद्दी है पर बुरा नहीं है"?

नमिता रोते-रोते बेहोश हो गयी. 


-11-


"Mr. Anand you are under arrest" इस्पेक्टर ने आनंद को हथकड़ी लगा दी," नमिता, मैं पूरी कोशिश तो कर रहा था, फिर तुमने ये सब क्यों किया" आनंद नमिता को ही देखे जा रहा था.

"नमिता ने कुछ नहीं किया, पुलिस को मैंने बुलाया है" माँ ने आनंद और नमिता के बीच आते बोला, "आनंद, तुमको क्या लगा की कोई जान नहीं पायेगा की तुमने क्या किया, क्यों किया तुमने ऐसा, मुझसे आ कर एक बार बात तो कर लेते".

"माँ, मैं खुद नहीं जानता जो हुआ वो क्यों हुआ, कैसे हुआ, पर एक बार मुझसे पुछा तो होता" आनंद की आँखों से आसूं बहने लगे.

माँ ने आनंद और नमिता के बीच आते बोला, "आनंद, तुमको क्या लगा की कोई जान नहीं पायेगा की तुमने क्या किया, क्यों किया तुमने ऐसा, मुझसे आ कर एक बार बात तो कर लेते"

"माँ, मैं खुद नहीं जानता जो हुआ वो क्यों हुआ, कैसे हुआ, पर एक बार मुझसे पुछा तो होता" आनंद की आँखों से आसूं बहने लगे

"नमिता, मुझे माफ़ कर दो, पर मैं सच में तुमसे प्यार करता हूँ, मैंने कहा न तुम्हें खोने के खौफ ने मुझसे वो सब करवाया था .

"आनंद, जो तुमने किया वो गलत था, तुमने एक नारी के अस्तिव को ठेस पहुंचाई है, दुनिया ने उसके साथ क्या किया, एक औरत ये भूल जाती पर किसी अपने ने उसे जो ठेस पहुंचाई वो नमिता कैसे भूल सकेगी, और यहाँ तो गलती करने वाला ही बचाने वाला है, भूल करने वाला ही भूल को भूल जाने को कह रहा है, अपने किये की सज़ा तुमको भुगतनी होगी, शायद इसी से तुम-दोनों के बीच की दूरियां ख़तम हो पाएं !" माँ ने आनंद के आँसूं पोंछते बोला .

"माँ, पर एक बार मुझसे बात कर लेते, मैं अपने किया पर बहुत शर्मिंदा हूँ, और अपने किये की सज़ा मुझे नमिता की चुपी से मिल ही रही है, फिर ये सब क्यों" आनंद नमिता को ही देख रहा था.

आनंद ने नमिता का हाथ थाम कर कहा,"नमिता, तुम्हारी बेरूखी, तुम्हारा मेरे पास हो कर भी मेरे पास न होना, तुम्हारा मेरी तरफ न देखना, तुम्हारा मुझसे बात न करना ,क्या ये सज़ा मेरे लिए काफी नहीं थी क्या, बोलो नमिता, एक बार तो बोलो, एक बार मुझसे बात कर लो Please ?"

"वो नहीं बोलेगी, औरत है वो, जब औरत के अस्तित्व को ठेस पहुँचती है तो, उसके पास कुछ नहीं रह जाता, तुमने उसके अस्तित्व को ठेस पहुंचाई है: माँ, ने आनंद से कहा.

"अपने किये की सज़ा तुम्हें भुगतनी ही होगी आनंद" माँ ने आनंद से कहा. 

"चलिए Mr. Anand" Police Inspector ने आनंद से कहा .

"ठीक है, काश की कोई मुझे भी समझता" आनंद ने नमिता का हाथ छोड़ते कहा .

"एक मिनट, आनंद, मैं समझुंगिन तुमको, मैं तुम्हारे वापस आने का इंतज़ार करूंगीं" और नमिता अपने आँसूं पोंछ आनंद से लिपट गयी .

"नमिता, अब हर सज़ा मंज़ूर है मुझे" आनंद ने भी अपने आँसूं पोंछ लिए .

माँ ने दोनों को आशीर्वाद दिया और आनंद, नमिता का आनंद बन कर लौटने का वादा कर चला गया गया .


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