शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

बचपन :------


जब बचपन था मैं भोला था ,
कागज़ की नाव ही मेरा प्रिय खिलौना था ,
बरसातों के पानी में नाव चलाना ,
संग-संग मित्रों के नौका दौड़ लगाना ,
हारने पर नौका को हथेलियों से ध्वस्त कर देना ,
अगले ही पल फिर से नयी नाव बना ,
दोस्तों को नौका दौड़ के लिए ललकार लगाना ,
यही मेरा सर्व - श्रेष्ठ खेल था .
लज्जा ,संकोच का मेरे शब्दकोष में ,
पन्ना ही ना अब तक डला था .
अब ना जाने अबोध बचपन कहाँ गया ,
पन्नो की मेरी नौका को संग अपने ,
ना जाने किस भँवर में बहा ले गया ,
और मुझे न जाने क्यूँ यह बरसातो में भी ,
तमन्नाओ के बोझ से लदा ,
छाता गया थमा गया .

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