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रविवार, 4 मार्च 2012

मोहन मेरे .....


है क्या सच तु ही मुझको बतलादे अब,
इस ओर या उस ओर ,
कौन सी ओर है मेरी तूही मुझको रास्ता दिखला दे अब,
भटक-भटक तन मन छलनी हो गया,
अब तो मुझ को राह दिखा दे,
तन, मन, काया और रूह से भी हो गया हु शिथल,
अब तो मुझ को किनारे लगा दे ,
मोहन मेरे कुछ नहीं तो आज मुझको ,
मुझे से ही चुरा ले.
भटक-भटक जन्मो बीते,
अब तो पार लगा दे,
मोहन मेरे आज गर तू आ जाये,
तो मैं, मुझको ही तुझ पर वार कर,
मिलने और जुदा होने की रस्म ही मिटा दू.

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

मेरी भी अर्ज़ सुन लेना......


एक छोटी सी मेरी भी अर्ज़ सुन लेना ,
मुझ को भी खुद से मिलवा देना, 
मेरा जीवन तुम्हारे नाम के मोती बीनते बीते,
एसी माला मुझ को भी पहना जाना !
तुम बिन जीवन वीरान था जीवन,
रंग भर इसमें अब इसको ,
रंगीन बना जाना ,
बस ये अर्ज़ है मेरे मोहन ,
अब की बार रंग ऐसा लाना ,
की जैसे-जैसे जन्मो बीते ,
रंग और भी चटकीला होता जाये.
मधुर गीतों से भर जाये खालीपन,
मोहन मेरे प्रीत  के रंग में डूबी बांसुरी भी ले आना !

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