शनिवार, 7 जनवरी 2023

एक ख़त - नेहा के नाम

         अपने घर, अपने जन्मस्थान पर वापिस आना किसे अच्छा नहीं लगता, और छह साल बाद, अपने घर वापस आ कर नेहा को सब बातें एक-एक कर याद आ रही थी, 'वो लोग बहुत खुश-नसीब होते हैं जो, जो अपने बचपन और जवानी को एक ही घर से जोड़ सकते है, और मैं उनमें से एक खुश-नसीब हूँ' गाड़ी घर वाले मोड़ पर मुड़ी तो नेहा की ऑंखें भी नम सी हो गयीं, सब कुछ वैसा सा ही लग रहा है, बस एक बात है जो वैसी नहीं होगी .   

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नेहा, अर्पित से लिपट सी गयी, "कितनी जल्दी छुट्टियां ख़त्म हो गयी है, बोलो न, फिर कब मिलोगे और कहाँ मिलोगे".

"अरे, पहली बार थोड़ा है है हम छुटियों पर गए थे, फिर चलेंगें कहीं दो-तीन महीनों में" अर्पित ने नेहा को अपनी बाँहों में छुपा लिया, "घर जाओ, और अच्छे से खाना-वाना खाओ और सो जाओ, परसों से ऑफिस भी जाना है, हम बस जल्द ही मिलेंगें, उदास मत हो".

"हर बार तुम इतनी आसानी से कैसे कह देते हो, लगता है मैं ही उदास होती हूँ बिछड़ते हुए , तुम तो कभी उदास नहीं होते नहीं दिखते" नेहा ने छेड़-छाड़ वाली भाषा में बोला.

"ठीक हैं, मैं भी तुम्हारी तरहं हो जाता हूँ, पर उससे क्या फायेदा होगा, एक उदास हो और दूसरा सँभालने वाला हो, तो ज़िन्दगी थोड़ी आसान होती है" अर्पित ने नेहा को सहलाते बोला, "तभी तो कहता हूँ शादी कर लेते हैं चलो".

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नेहा और अर्पित तीन साल से एक साथ थे, अभी एक साल से बस दोनों कुछ और करीब हो गए थे, अर्पित ने शादी की बात छेड़ी पर नेहा को लगा अभी शादी के लिए बहुत जल्दी है, "बस छः महीने का वक़त दो फिर करते है शादी की प्लानिंग" नेहा ने वादा करते कहा.

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"कैसा रहा ट्रिप, शिमला में ठण्ड थी क्या, ज्यादा सर्दी तो नहीं थी न" माँ ने नेहा से पुछा.

"माँ, अभी नहीं, अभी तो आयी हूँ, नहा - वहा लूँ फिर बात करती हूँ न" नेहा ने चिढ़ते हुए बोला.

"अच्छा चल जा नहा ले, मैं खाना लगाती हूँ, फिर  बात करेंगें" माँ ने कहा, "एक बात तो सुन ले, बुआ ने सारिका के लिए एक लड़का देखा है, लड़के के घर वाले आए थे, सारिका को पसंद कर गए, अब लड़के के साथ आयेंगें, शायद अगले रविवार को आ जाएँ, और शायद सौरभ की भी शादी सारिका की शादी के बाद जल्द ही हो जाएगी, चल तू नहा ले फिर बाकी की बात बताती हूँ".

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   नेहा अपने बिस्तर पर लेटते ही शिमला और अर्पित के सपनो में खो गयी, नहा कर वो अर्पित की खुशबु को मिटाना नहीं चाहती थी, 'अर्पित और मैं बस यही ज़िन्दगी है, बाकी सब साइड लाइन है बस, क्या अर्पित को सच में बिछड़ने का गम नहीं होता, होता है तो जताता क्यों नहीं, और ये शादी की बात कहाँ से आयी होगी उसके दिमाग में, कल बात करूंगीं तो शादी वाली बात भी कर लूंगीं'

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"नेहा, नहा लिया क्या, देख तो सही तेरी कोई चिठ्ठी आयी थी, ज़रा खोल के पढ़ तो सही, देखें क्या चिठ्ठी है" माँ बोलते-बोलते कमरे की ओर बढ़ने लगी. 
'अरे, बाबा माँ आ गयीं', नेहा झट से बाथरूम में चली गयी,"अभी आती हूँ माँ, कहाँ से आयी है चिठ्ठी". 
"पता नहीं, मेरा चश्मा नहीं है तो दिख भी नहीं रहा, तू ही आ कर देख ले" माँ बोल कर बिस्तर पर बैठ गयी.
 
तभी नेहा का फ़ोन बजने लगा, माँ ने झट से फ़ोन उठा लिया, "नेहा, मुझे तुमसे बात करनी है शादी की, माँ मेरे लिए रिश्ता ले आयी है, सुन रही हो न नेहा" !
"कौन है, क्या नाम है तुम्हारा, मैं नेहा की मम्मी हूँ, हेलो, हेलो" माँ हेलो - हेलो करती रह गयी ओर अर्पित ने फ़ोन काट दिया.

"लाओ माँ, चिठ्ठी कहाँ है, अरे वाह ये तो जर्मनी से आयी है, माँ मेरा एडमिशन हो गया है मास्टर्स के लिए" नेहा ख़ुशी से नाचने लगी.
"अरे वाह बई वाह, मैंने तो पहले ही कहा था की तेरा एडमिशन हो कर ही रहेगा, अब तो बस सब छोड़ तू जाने की तैयारी कर, तेरी और तेरे पापा की मेहनत रंग ले ही आयी आखिर, चल सब ठीक हो गया और आगे भी होता ही रहेगा, अब तो सौरभ और सारिका की शादी तय हो गयी तो तू उनकी शादी से पहले ही चली जाएगी, चल ठीक है न, जाना है तो जाना ही है, मैं अभी जा कर तेरे पापा को कॉल करती हूँ".

'अब आया न मज़ा, अभी अर्पित को बताती हूँ' नेहा ने फ़ोन उठा कर अर्पित को कॉल कर दिया, पर अर्पित ने फ़ोन नहीं उठाया,'शायद व्यस्त होगा, मैसेज कर देती हूँ'.
'अगर शिमला की खुमारी उतर गयी हो तो कॉल पर बात कर लें, मुझे तुम से बहुत ज़रूरी बात करनी है, प्लीज जल्दी कॉल करो' नेहा ने मैसेज लिख, अर्पित को भेज दिया. 

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       'मुझे भी तुम से बहुत ज़रूरी बात करनी है' सुबह मोबाइल देखा तो नेहा को सबसे पहले अर्पित का ही मैसेज दिखा, 'लो बई दोनों की बात ही ज़रूरी हैं, अब क्या करें, पहले कौन बताएगा, 'पर एक सवाल और है मेरा, दो साल, क्या अर्पित मेरा इंतज़ार कर पायेगा, दो साल, कहीं ऐसा तो नहीं की अगला शिमला का ट्रिप किसी और के साथ ही हो उसका'.

"नेहा, उठ जा लेट हो जाएगी, जाना है न, ऑफिस" माँ की आवाज़ ने नेहा को हिला सा दिया.

'ओ, हो, लेट हो जाऊंगीं, क्या बकवास सोचती रहती हूँ मैं' नेहा जल्दी से तैयार हो गयी.
 
"तो क्या सोचा है, जाने की क्या प्लानिंग है, देख नेहा, तेरी साथ की लड़कियों की शादी की बातें हो रही है, हमने तुझे कभी ज़ोर नहीं दिया, तूने खुद ही ये सब तय किया है, अब किसी भी हाल में मुड़ना मत, बहुत मेहनत की है तेरे पापा ने भी" माँ ने नाश्ता परोसते बोला. 

"माँ, तुम जाएदा मत सोचो, कुछ नहीं होगा, मैं पापा के साथ-साथ आपकी मेहनत भी जाया नहीं जाने दूंगीं" नेहा चाय की चुस्कियां लेने लगी.

"वो जिसका कॉल आता है, वो कहीं तेरे पैरों में बेड़ियाँ न डाल दे, सोच ले अभी भी वक़त है, एक बार फीस भर दी तो वापस नहीं होगी" माँ ने चाय पीते बोला,"ऐसे क्या देख रही है, रात जब तू बाथरूम में थी उसने कॉल किया था, बस इतना ही कह पाया की,उसे तुझसे कोई ज़रूरी बात करनी हैं, आवाज़ से तो अच्छा लग रहा है, पर, क्या वो तेरा दो साल तक इंतज़ार कर पाएगा".. 


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      "नेहा, कहाँ थी तुम, कितनी ज़रूरी बात करनी है मुझे तुमसे" अर्पित, नेहा का हाथ पकड़ते बोला.
 
"मुझे भी तुम्हें एक खुशखबरी सुनानी है" नेहा ने कहा, "तुम बताओ पहले", नेहा से इंतज़ार नहीं हो पाया,"देखो तो और बताओ क्या पेपर हैं ये, मेरा सपना पूरा हो गया, मेरा एडमिशन लेटर आ गया जर्मनी से, दो महीने में ही मुझे जाना होगा"नेहा से सब्र न हुआ और उसने सब एक सांस में ही बोल दिया.
 
"ठीक है, मैं बहुत खुश हूँ तुम्हारे लिए, अब तुम मेरे साथ अभी चलो और चल कर मम्मी से बात कर लेते हैं, शादी करलो फिर जहाँ जाना है चली जाना, कोई नहीं रोकेगा" अर्पित ने खीजते हुए कहा.
 
 "अर्पित, पढ़ो न ये लेटर, मेरा देखा हुआ सपना आज पूरा हो गया है, मम्मी-पापा की मेहनत भी रंग ले आयी है, मैंने अपना सपना बताया और उन्होंने, पूरे मन से मेरा साथ दिया मेरा सपना पूरा करने में" नेहा बोलते-बोलते आर्पित से लिपट गयी, "अब तुम, अपनी ज़रूरी बात बताओ न, जल्दी बताओ".

'नेहा, पर तुमने मेरी बात सुनी ही नहीं' आर्पित अपनी सोच में गुम था.

"बोलो न, क्या खुश-खबरी है" नेहा, अर्पित की और देखने लगी,"पर हाँ, बस एक बात और, तुम भी चलो न मेरे साथ, जर्मनी, ख़ैर, पहले तुम अपनी वाली ज़रूरी बात बताओ न".

"अरे हाँ, मेरी प्रमोशन हो गयी है" अर्पित ने बात को बदल दिया, नेहा की खुशी के सामने वो अपने को छोटा सा महसूस कर रहा था और वो बस मुस्कुरा कर रह गया. 

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अर्पित की बात अधूरी रह गयी, हर बार वो सोचता की आज बता दे, पर जब भी नेहा से मिलता, नेहा बस अपनी जाने की तैयारियों की बात ही करती, अर्पित को अपनी बात कहने का कभी मौका ही नहीं मिला.

"तुम भी चलो न मेरे साथ, दोनों वहां साथ-साथ रहेंगें, बड़ा मज़ा आएगा, तुम भी कोई कोर्स ज्वाइन कर लेना वहां" नेहा अपने मोबाइल से चिपकी अर्पित से बातें करने में मस्त थी.
 
"नेहा, मुझे तुम से कुछ कहना है, वो शादी ............ " अर्पित की बात पूरी भी नहीं हुई थी की नेहा ने फ़ोन काट दिया, और मैसेज कर दिया,'अभी बात करती हूँ, मम्मी आ गयी हैं" 

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       समय बीत गया और नेहा के जाने का दिन भी आ गया,"वहां पहुंचते ही मैं तुम्हें अपना नया नंबर भेज दूंगीं, तुम आ रहे हो न मुझे सी-ऑफ करने" नेहा ने अर्पित से रुआँसे स्वर में पुछा.

"मुझे कुछ घर में काम है, मैं नहीं आ पाउँगा" अर्पित ने कहा.
 
"तुम आज-कल बड़ी छोटी-छोटी बातें करने लगे हो, क्या बात है, मेरे जाने से नाराज़ हो क्या, अभी आउंगी न मैं सात महीनो में, फिर सारी बात कर लेंगें, प्लीज नाराज़ मत हो न, प्लीज" नेहा ने अर्पित को मनाते हुए कहा.
 
"सात महीनों में बहुत कुछ बदल जाता है नेहा, तुम भी तो जर्मनी वाली हो जाओगी और मैं, मैं शायद मैं न रहूं, मैं........." फिर अर्पित की बात पूरी भी नहीं हुई और नेहा ने फ़ोन काट दिया, और मैसेज भेज दिया, 'एयरपोर्ट पहुँच कर कॉल करती हूँ'.

एयरपोर्ट पहुँच कर नेहा ने बहुत कॉल किये पर अर्पित ने फ़ोन नहीं उठाया, 'शायद नाराज़ है, जर्मनी पहुँच कर कॉल करके मना लूंगीं, और उसकी हर बात को आराम से सुन लूंगीं, बहुत समय होगा मेरे पास अर्पित के लिए'.

प्लेन उड़ने के लिए तैयार था, की माँ का कॉल आ गया,"अरे नेहा ठीक से बैठ गयी न, अपना ध्यान रखना, और वहां पहुंचते ही कॉल करना, हम लोग भी बस बुआ के घर आ गएँ है, सारिका की मंगनी है आज, मैं फोटो शेयर करूंगीं, तुझे बड़ा मिस करेंगें, सारिका को कॉल या मैसेज कर देना, थोड़ा नाराज़ हो रही थी, पर उसने भी बेस्ट ऑफ़ लक कहा है" माँ सब कुछ एक सांस में बोल गयी, और प्लेन कर्मचारी की तरफ से फ़ोन बंद करने का फरमान भी आ गया.

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          प्लेन जर्मनी पहुँचने ही वाला था की एयर होस्टेस ने नेहा को एक बंद लिफाफा देते कहा,"मिस नेहा, ये खत आपके लिए है".

खत अर्पित का था, 'हॉस्टल पहुंच कर आराम से पडूंगीं'.

टैक्सी में बैठते ही माँ का कॉल आ गया,"आराम से पहुंच गयी न, कुछ फोटो तो भेज न, देखें तो कैसा लगता है जर्मनी, सारिका की मंगनी ठीक से हो गयी, फोटो देखीं, लड़का भी बहुत ही सुन्दर है, दोनों की जोड़ी बहुत ही अच्छी लग रही थी, नाम भी एक जैसा है दोनों का, 'सारिका और अर्पित', फोटो देख न".

"क्या, क्या नाम बताया लड़के का" नेहा, अर्पित नाम सुन कर कुछ परेशान सी हो गयी.

"अर्पित, अच्छा नाम है न, ........." माँ की बात पूरी भी नहीं हुई थी की नेहा ने फोटो देखने के लिए फ़ोन काट दिया 
फोटो में सारिका के साथ अर्पित ही था, उसका अर्पित, जो अब उसका नहीं रहा था, 'ओ, तो ये बात थी जो वो मुझे बताना चाहता था, यही बात थी की वो चुप सा था, पर अगर ये बात थी तो ख़त क्यों, नेहा ने ख़त को देखा, मन किया फाड़ कर, टैक्सी की खिड़की से फेंक दे पर ख़त के लिफाफे पर लिखा पढ़, नेहा ने खत को सीने से लगा लिया.

- 'आखरी ख़त, अर्पित - जो नेहा का न हो सका'

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घर पहुंचते माँ के गले लगते नेहा की आँखें भर आयीं, यादें भी अजीब होती हैं बस आँखें नम कर देती हैं, बहुत कुछ खो कर, बहुत कुछ पा भी लिया था नेहा ने. 
नेहा आज डॉक्टर नेहा हो गयी थी.

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