बस यूँ ही दिन बीत गए
बस यूँ ही उम्र बीत गयी
सोचते कुछ अपना
ये सोचने का भी समय न मिला
अब, जब
उम्र नज़र आने लगी है
तो अपनी कहानी
अपने चेहरे की लकीरों में
पढ़ लेते है
आइना भी कुछ बेगाना सा हो गया है
मुझे न देख
बस मेरी लकीरों को
ही गिनता रहता है
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