है बस नज़र के ये धोखे
जो पतझड़ में है हर और पते बिखरे
मगर बहार आने पर छुप जाएँगी ये नग्न डालियाँ भी ।
है बस नज़र के ये धोखे
जो रात आने पर तिमिर हो जाते है रास्ते
मगर सुबह का तारा फैला देगा हर और उजियारा।
है बस नज़र के ये धोखे
जो राहा में शोले है बिखरे
मगर शोलो में जल कर ही तो कुंदन है बनता।
है नज़र के ये धोखे
जो तुम्हारे और मेरे है जुदा रास्ते
मगर बस कुछ कदमो के ही है बस ये फासले।
है नज़र के ये धोखे
जो तुम और मै नहीं है एक
मगर बस एक हाँ का ही है असल में ये सारा फेर।
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