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शनिवार, 7 जनवरी 2023

एक ख़त - नेहा के नाम

         अपने घर, अपने जन्मस्थान पर वापिस आना किसे अच्छा नहीं लगता, और छह साल बाद, अपने घर वापस आ कर नेहा को सब बातें एक-एक कर याद आ रही थी, 'वो लोग बहुत खुश-नसीब होते हैं जो, जो अपने बचपन और जवानी को एक ही घर से जोड़ सकते है, और मैं उनमें से एक खुश-नसीब हूँ' गाड़ी घर वाले मोड़ पर मुड़ी तो नेहा की ऑंखें भी नम सी हो गयीं, सब कुछ वैसा सा ही लग रहा है, बस एक बात है जो वैसी नहीं होगी .   

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नेहा, अर्पित से लिपट सी गयी, "कितनी जल्दी छुट्टियां ख़त्म हो गयी है, बोलो न, फिर कब मिलोगे और कहाँ मिलोगे".

"अरे, पहली बार थोड़ा है है हम छुटियों पर गए थे, फिर चलेंगें कहीं दो-तीन महीनों में" अर्पित ने नेहा को अपनी बाँहों में छुपा लिया, "घर जाओ, और अच्छे से खाना-वाना खाओ और सो जाओ, परसों से ऑफिस भी जाना है, हम बस जल्द ही मिलेंगें, उदास मत हो".

"हर बार तुम इतनी आसानी से कैसे कह देते हो, लगता है मैं ही उदास होती हूँ बिछड़ते हुए , तुम तो कभी उदास नहीं होते नहीं दिखते" नेहा ने छेड़-छाड़ वाली भाषा में बोला.

"ठीक हैं, मैं भी तुम्हारी तरहं हो जाता हूँ, पर उससे क्या फायेदा होगा, एक उदास हो और दूसरा सँभालने वाला हो, तो ज़िन्दगी थोड़ी आसान होती है" अर्पित ने नेहा को सहलाते बोला, "तभी तो कहता हूँ शादी कर लेते हैं चलो".

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नेहा और अर्पित तीन साल से एक साथ थे, अभी एक साल से बस दोनों कुछ और करीब हो गए थे, अर्पित ने शादी की बात छेड़ी पर नेहा को लगा अभी शादी के लिए बहुत जल्दी है, "बस छः महीने का वक़त दो फिर करते है शादी की प्लानिंग" नेहा ने वादा करते कहा.

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"कैसा रहा ट्रिप, शिमला में ठण्ड थी क्या, ज्यादा सर्दी तो नहीं थी न" माँ ने नेहा से पुछा.

"माँ, अभी नहीं, अभी तो आयी हूँ, नहा - वहा लूँ फिर बात करती हूँ न" नेहा ने चिढ़ते हुए बोला.

"अच्छा चल जा नहा ले, मैं खाना लगाती हूँ, फिर  बात करेंगें" माँ ने कहा, "एक बात तो सुन ले, बुआ ने सारिका के लिए एक लड़का देखा है, लड़के के घर वाले आए थे, सारिका को पसंद कर गए, अब लड़के के साथ आयेंगें, शायद अगले रविवार को आ जाएँ, और शायद सौरभ की भी शादी सारिका की शादी के बाद जल्द ही हो जाएगी, चल तू नहा ले फिर बाकी की बात बताती हूँ".

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   नेहा अपने बिस्तर पर लेटते ही शिमला और अर्पित के सपनो में खो गयी, नहा कर वो अर्पित की खुशबु को मिटाना नहीं चाहती थी, 'अर्पित और मैं बस यही ज़िन्दगी है, बाकी सब साइड लाइन है बस, क्या अर्पित को सच में बिछड़ने का गम नहीं होता, होता है तो जताता क्यों नहीं, और ये शादी की बात कहाँ से आयी होगी उसके दिमाग में, कल बात करूंगीं तो शादी वाली बात भी कर लूंगीं'

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"नेहा, नहा लिया क्या, देख तो सही तेरी कोई चिठ्ठी आयी थी, ज़रा खोल के पढ़ तो सही, देखें क्या चिठ्ठी है" माँ बोलते-बोलते कमरे की ओर बढ़ने लगी. 
'अरे, बाबा माँ आ गयीं', नेहा झट से बाथरूम में चली गयी,"अभी आती हूँ माँ, कहाँ से आयी है चिठ्ठी". 
"पता नहीं, मेरा चश्मा नहीं है तो दिख भी नहीं रहा, तू ही आ कर देख ले" माँ बोल कर बिस्तर पर बैठ गयी.
 
तभी नेहा का फ़ोन बजने लगा, माँ ने झट से फ़ोन उठा लिया, "नेहा, मुझे तुमसे बात करनी है शादी की, माँ मेरे लिए रिश्ता ले आयी है, सुन रही हो न नेहा" !
"कौन है, क्या नाम है तुम्हारा, मैं नेहा की मम्मी हूँ, हेलो, हेलो" माँ हेलो - हेलो करती रह गयी ओर अर्पित ने फ़ोन काट दिया.

"लाओ माँ, चिठ्ठी कहाँ है, अरे वाह ये तो जर्मनी से आयी है, माँ मेरा एडमिशन हो गया है मास्टर्स के लिए" नेहा ख़ुशी से नाचने लगी.
"अरे वाह बई वाह, मैंने तो पहले ही कहा था की तेरा एडमिशन हो कर ही रहेगा, अब तो बस सब छोड़ तू जाने की तैयारी कर, तेरी और तेरे पापा की मेहनत रंग ले ही आयी आखिर, चल सब ठीक हो गया और आगे भी होता ही रहेगा, अब तो सौरभ और सारिका की शादी तय हो गयी तो तू उनकी शादी से पहले ही चली जाएगी, चल ठीक है न, जाना है तो जाना ही है, मैं अभी जा कर तेरे पापा को कॉल करती हूँ".

'अब आया न मज़ा, अभी अर्पित को बताती हूँ' नेहा ने फ़ोन उठा कर अर्पित को कॉल कर दिया, पर अर्पित ने फ़ोन नहीं उठाया,'शायद व्यस्त होगा, मैसेज कर देती हूँ'.
'अगर शिमला की खुमारी उतर गयी हो तो कॉल पर बात कर लें, मुझे तुम से बहुत ज़रूरी बात करनी है, प्लीज जल्दी कॉल करो' नेहा ने मैसेज लिख, अर्पित को भेज दिया. 

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       'मुझे भी तुम से बहुत ज़रूरी बात करनी है' सुबह मोबाइल देखा तो नेहा को सबसे पहले अर्पित का ही मैसेज दिखा, 'लो बई दोनों की बात ही ज़रूरी हैं, अब क्या करें, पहले कौन बताएगा, 'पर एक सवाल और है मेरा, दो साल, क्या अर्पित मेरा इंतज़ार कर पायेगा, दो साल, कहीं ऐसा तो नहीं की अगला शिमला का ट्रिप किसी और के साथ ही हो उसका'.

"नेहा, उठ जा लेट हो जाएगी, जाना है न, ऑफिस" माँ की आवाज़ ने नेहा को हिला सा दिया.

'ओ, हो, लेट हो जाऊंगीं, क्या बकवास सोचती रहती हूँ मैं' नेहा जल्दी से तैयार हो गयी.
 
"तो क्या सोचा है, जाने की क्या प्लानिंग है, देख नेहा, तेरी साथ की लड़कियों की शादी की बातें हो रही है, हमने तुझे कभी ज़ोर नहीं दिया, तूने खुद ही ये सब तय किया है, अब किसी भी हाल में मुड़ना मत, बहुत मेहनत की है तेरे पापा ने भी" माँ ने नाश्ता परोसते बोला. 

"माँ, तुम जाएदा मत सोचो, कुछ नहीं होगा, मैं पापा के साथ-साथ आपकी मेहनत भी जाया नहीं जाने दूंगीं" नेहा चाय की चुस्कियां लेने लगी.

"वो जिसका कॉल आता है, वो कहीं तेरे पैरों में बेड़ियाँ न डाल दे, सोच ले अभी भी वक़त है, एक बार फीस भर दी तो वापस नहीं होगी" माँ ने चाय पीते बोला,"ऐसे क्या देख रही है, रात जब तू बाथरूम में थी उसने कॉल किया था, बस इतना ही कह पाया की,उसे तुझसे कोई ज़रूरी बात करनी हैं, आवाज़ से तो अच्छा लग रहा है, पर, क्या वो तेरा दो साल तक इंतज़ार कर पाएगा".. 


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      "नेहा, कहाँ थी तुम, कितनी ज़रूरी बात करनी है मुझे तुमसे" अर्पित, नेहा का हाथ पकड़ते बोला.
 
"मुझे भी तुम्हें एक खुशखबरी सुनानी है" नेहा ने कहा, "तुम बताओ पहले", नेहा से इंतज़ार नहीं हो पाया,"देखो तो और बताओ क्या पेपर हैं ये, मेरा सपना पूरा हो गया, मेरा एडमिशन लेटर आ गया जर्मनी से, दो महीने में ही मुझे जाना होगा"नेहा से सब्र न हुआ और उसने सब एक सांस में ही बोल दिया.
 
"ठीक है, मैं बहुत खुश हूँ तुम्हारे लिए, अब तुम मेरे साथ अभी चलो और चल कर मम्मी से बात कर लेते हैं, शादी करलो फिर जहाँ जाना है चली जाना, कोई नहीं रोकेगा" अर्पित ने खीजते हुए कहा.
 
 "अर्पित, पढ़ो न ये लेटर, मेरा देखा हुआ सपना आज पूरा हो गया है, मम्मी-पापा की मेहनत भी रंग ले आयी है, मैंने अपना सपना बताया और उन्होंने, पूरे मन से मेरा साथ दिया मेरा सपना पूरा करने में" नेहा बोलते-बोलते आर्पित से लिपट गयी, "अब तुम, अपनी ज़रूरी बात बताओ न, जल्दी बताओ".

'नेहा, पर तुमने मेरी बात सुनी ही नहीं' आर्पित अपनी सोच में गुम था.

"बोलो न, क्या खुश-खबरी है" नेहा, अर्पित की और देखने लगी,"पर हाँ, बस एक बात और, तुम भी चलो न मेरे साथ, जर्मनी, ख़ैर, पहले तुम अपनी वाली ज़रूरी बात बताओ न".

"अरे हाँ, मेरी प्रमोशन हो गयी है" अर्पित ने बात को बदल दिया, नेहा की खुशी के सामने वो अपने को छोटा सा महसूस कर रहा था और वो बस मुस्कुरा कर रह गया. 

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अर्पित की बात अधूरी रह गयी, हर बार वो सोचता की आज बता दे, पर जब भी नेहा से मिलता, नेहा बस अपनी जाने की तैयारियों की बात ही करती, अर्पित को अपनी बात कहने का कभी मौका ही नहीं मिला.

"तुम भी चलो न मेरे साथ, दोनों वहां साथ-साथ रहेंगें, बड़ा मज़ा आएगा, तुम भी कोई कोर्स ज्वाइन कर लेना वहां" नेहा अपने मोबाइल से चिपकी अर्पित से बातें करने में मस्त थी.
 
"नेहा, मुझे तुम से कुछ कहना है, वो शादी ............ " अर्पित की बात पूरी भी नहीं हुई थी की नेहा ने फ़ोन काट दिया, और मैसेज कर दिया,'अभी बात करती हूँ, मम्मी आ गयी हैं" 

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       समय बीत गया और नेहा के जाने का दिन भी आ गया,"वहां पहुंचते ही मैं तुम्हें अपना नया नंबर भेज दूंगीं, तुम आ रहे हो न मुझे सी-ऑफ करने" नेहा ने अर्पित से रुआँसे स्वर में पुछा.

"मुझे कुछ घर में काम है, मैं नहीं आ पाउँगा" अर्पित ने कहा.
 
"तुम आज-कल बड़ी छोटी-छोटी बातें करने लगे हो, क्या बात है, मेरे जाने से नाराज़ हो क्या, अभी आउंगी न मैं सात महीनो में, फिर सारी बात कर लेंगें, प्लीज नाराज़ मत हो न, प्लीज" नेहा ने अर्पित को मनाते हुए कहा.
 
"सात महीनों में बहुत कुछ बदल जाता है नेहा, तुम भी तो जर्मनी वाली हो जाओगी और मैं, मैं शायद मैं न रहूं, मैं........." फिर अर्पित की बात पूरी भी नहीं हुई और नेहा ने फ़ोन काट दिया, और मैसेज भेज दिया, 'एयरपोर्ट पहुँच कर कॉल करती हूँ'.

एयरपोर्ट पहुँच कर नेहा ने बहुत कॉल किये पर अर्पित ने फ़ोन नहीं उठाया, 'शायद नाराज़ है, जर्मनी पहुँच कर कॉल करके मना लूंगीं, और उसकी हर बात को आराम से सुन लूंगीं, बहुत समय होगा मेरे पास अर्पित के लिए'.

प्लेन उड़ने के लिए तैयार था, की माँ का कॉल आ गया,"अरे नेहा ठीक से बैठ गयी न, अपना ध्यान रखना, और वहां पहुंचते ही कॉल करना, हम लोग भी बस बुआ के घर आ गएँ है, सारिका की मंगनी है आज, मैं फोटो शेयर करूंगीं, तुझे बड़ा मिस करेंगें, सारिका को कॉल या मैसेज कर देना, थोड़ा नाराज़ हो रही थी, पर उसने भी बेस्ट ऑफ़ लक कहा है" माँ सब कुछ एक सांस में बोल गयी, और प्लेन कर्मचारी की तरफ से फ़ोन बंद करने का फरमान भी आ गया.

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          प्लेन जर्मनी पहुँचने ही वाला था की एयर होस्टेस ने नेहा को एक बंद लिफाफा देते कहा,"मिस नेहा, ये खत आपके लिए है".

खत अर्पित का था, 'हॉस्टल पहुंच कर आराम से पडूंगीं'.

टैक्सी में बैठते ही माँ का कॉल आ गया,"आराम से पहुंच गयी न, कुछ फोटो तो भेज न, देखें तो कैसा लगता है जर्मनी, सारिका की मंगनी ठीक से हो गयी, फोटो देखीं, लड़का भी बहुत ही सुन्दर है, दोनों की जोड़ी बहुत ही अच्छी लग रही थी, नाम भी एक जैसा है दोनों का, 'सारिका और अर्पित', फोटो देख न".

"क्या, क्या नाम बताया लड़के का" नेहा, अर्पित नाम सुन कर कुछ परेशान सी हो गयी.

"अर्पित, अच्छा नाम है न, ........." माँ की बात पूरी भी नहीं हुई थी की नेहा ने फोटो देखने के लिए फ़ोन काट दिया 
फोटो में सारिका के साथ अर्पित ही था, उसका अर्पित, जो अब उसका नहीं रहा था, 'ओ, तो ये बात थी जो वो मुझे बताना चाहता था, यही बात थी की वो चुप सा था, पर अगर ये बात थी तो ख़त क्यों, नेहा ने ख़त को देखा, मन किया फाड़ कर, टैक्सी की खिड़की से फेंक दे पर ख़त के लिफाफे पर लिखा पढ़, नेहा ने खत को सीने से लगा लिया.

- 'आखरी ख़त, अर्पित - जो नेहा का न हो सका'

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घर पहुंचते माँ के गले लगते नेहा की आँखें भर आयीं, यादें भी अजीब होती हैं बस आँखें नम कर देती हैं, बहुत कुछ खो कर, बहुत कुछ पा भी लिया था नेहा ने. 
नेहा आज डॉक्टर नेहा हो गयी थी.

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शनिवार, 3 दिसंबर 2022

बंधन मन का

 रितिका : "राधा, राधा, पहचाना मुझे" रितिका अपने कॉलेज की सहेली को देख बहुत ही खुश हुई.

राधा : "रितिका, तुम यहाँ कैसे, कैसी हो".

 रितिका: "मैं ठीक हूँ, तुम तो बिलकुल ही गायब हो गयी, माँ ने बताया की तुम्हारी शादी हो गयी, फिर उसके बाद, मैंने आंटी को अपना नंबर भी दिया, पर तुमने कभी कॉल ही नहीं किया, विदेशी पति क्या मिला तुम तो सबको भूल गई" रितिका ने हँसते हुए कहा, "चलो न मेरे घर चलो, मैं यही पास में ही रहती हूँ, माँ भी तुम्हें देख बहुत खुश होगी".

राधा : "रितिका, तुम बिलकुल भी नहीं बदली, वैसी ही हो, बोलना शुरू करती हो तो चुप ही नहीं करती". 

रितिका : "बदल तो बहुत गई हूँ, डॉक्टर हूँ, बोलना कम और सुनना ज्यादा चाहिए, पर तुम को देख, फिर वही दिन याद आ गए, खैर, चलो घर चलो, बाकी सब बाते वहीँ होंगीं".

रितिका, राधा से ज़िद्द करके उसे अपने घर, ले ही गई .

राधा : "बहुत ही सुन्दर घर है, घर तो ठीक है घरवाले कहाँ हैं ?". 

रितिका : "बस मैं और माँ हैं, हम दोनों ही रहते हैं यहाँ".

रितिका की बात पूरी हुई ही नहीं थी की रितिका की माता जी आ गई. 

रितिका : "माँ, आ गयी तुम, देखो न मुझे आज दुनिया की भीड़ में कौन मिल गया".

माँ राधा को देख कर थोड़ा सक-पका गयीं, राधा भी रितिका की माता जी को देख ज्यादा खुश नहीं हुई. 

रितिका : "अरे क्या हुआ माँ, पहचाना नहीं, राधा है ये, राधा, मेरे कॉलेज की सहेली, पता है माँ, राधा और मैंने वादा किया था की हम दोनों एक साथ ही शादी करेंगें और एक ही शहर में रहेंगें हमेशा, पर ये तो विदेशी पति पा कर, मुझे भूल ही गई".

माँ : "हाँ-हाँ ठीक है, अब चाय तो बना ला, अपनी सहेली के लिए, के बस बातें ही करती रहेगी, जा चाय बना ला". 


रितिका के जाते ही माँ, राधा के नज़दीक बैठ गई.

माँ : "तुमने उसे बताया तो नहीं, क्यों वापस आ गई हो तुम, बड़ी मुश्किल से संभली थी रितिका, अब फिर से नहीं होना चाहिए वो सब".

राधा : "माँ आपने रितिका के साथ - साथ दो ज़िंदगियाँ और खराब कर दी, न रितिका और न ही मैं, राज किसीको न मिला, और.......".

माँ : "बस-बस, मत लो उसका नाम, रितिका ने सुना तो फिर पागल हो जाएगी".

रितिका : "कौन पागल हो जायेगा माँ, किसीकी बातें कर रही हो".

माँ : "तू, तू ही तो है जो पागल है, राधा मैं इसे समझा-समझा कर पागल हो जाउगीं, पर ये न समझ सकी की शादी की उम्र निकलती जा रही है, तू ही कुछ समझा इसे".

रितिका : "माँ, शादी को कब मना किया मैंने, मैं तो बस उसका इंतज़ार कर रही हूँ, बस उसे आने दो फिर देखो, झट मांगनी, पट बियाह हो जायेगा".

राधा : "मैं चलती हूँ अब, बहुत देर हो गई है".

रितिका : "माँ मैं इसे नीचे तक छोड़ कर आती हूँ, आती रहना बहुत अच्छा लगा तुम से मिल कर, ऐसा लगा बचपन लौट आया हो".


राधा : "रीती तुम अगर बुरा न मानो तो एक बात पूछूं".

रितिका : "हाँ, हाँ, पूछो न, तुम्हारी बात का बुरा क्या मानना".

राधा : "तुम ने शादी क्यों नहीं की, और क्यों नहीं की, किस का इंतज़ार है तुमको ?".

रितिका : "राधा, तुझे याद नहीं होगा, वो हमारे ही कॉलेज में पढ़ता था, बस उसी का".

राधा : "और वो वापस न आया तो, तो क्या करोगी ?"

रितिका : "वादा तो नहीं, पर हाँ, उसने कहा था की वो अपनी माता जी को ले कर मेरे घर आएगा, और फिर पता चला वो विदेश चला गया है, बस उसी का इंतज़ार है, क्या पता किसी दिन वो आ जाये और मुझे किसी और का पा कर, उसका दिल ही न टूट जाये !".

राधा : "रितिका ऐसा करो तुम और आंटी कल हमारे यहाँ खाने पर क्यों नहीं आ जाते, मेरी माता जी भी आई हुई हैं, तुम्हें देख बहुत खुश होंगीं, आओगी न, और तुम्हें किसी से मिलवाना भी है".


रितिका ने अपनी माँ के समक्ष राधा का प्रस्ताव रखा, पर माता जी ने साफ़ मना कर दिया, "कल नहीं कभी और चलेंगें और हाँ कल तुमको मुझे डॉक्टर वो नई डॉक्टर के पास ले कर भी तो जाना है, मेरे घुटनों का दर्द बढ़ता ही जा रहा है " माता जी बात को सफाई से बात को टाल दिया.


अगले दिन रितिका माँ को नई डॉक्टर के पास ले गयी तो वहां डॉक्टर को देख हैरान रह गयी, "राधा, तुम और डॉक्टर ?".

राधा : "डॉक्टर नहीं फ़िज़ियोथेरेपिस्ट, आओ न, आईये न आंटी, यहाँ बैठ जाइये". 

रितिका : "लो माँ अपने कहा हम आपकी वजह से राधा के घर नहीं जा सकते और आपकी वजह से ही हम यहाँ आ गए, ये खूब रही, तू बता राधा ये फ़िज़ियोथेरेपिस्ट कैसे बन गयी तू ?".

राधा : "अपने पति की वजह से, शादी के एक हफ्ते बाद ही उनका बहुत भयानक एक्सीडेंट हो गया था, और वो अचल से हो गए थे, डॉक्टर ने कहा उन्हें रेगुलर फिजियोथेरेपी की ज़रुरत है, सो मैंने खुद ही फ़िज़ियोथेरेपिस्ट बनाना तय कर लिया".

रितिका : "क्या कह रही हो, कैसे हैं वो अब, ये सब मुझे क्यों नहीं पता चला, और माँ आपने कहा राधा शादी कर विलायत चली गयी है, वो सब क्या था, क्या आपको इस एक्सीडेंट के बारे में पता था क्या ?".


राधा : "आंटी ने सही कहा था, मैं चली गयी थी वहीँ सब कुछ हुआ, अब दस बरस के बाद ही हम लौटे हैं".

रितिका : "राधा, बहुत अफ़सोस हुआ ये सब जान कर, अब कहाँ है वो, और तुमने मुझे क्यों नहीं बताया ये सब, माँ तुमने भी ये सब नहीं बताया क्यों ?".

माँ : "रीती अब घर चलते हैं, चल, मुझे नहीं करवानी फिजियोथेरेपी, चल अब यहाँ से, बहुत हो गया मिलना - मिलाना ".


राधा : "आंटी, आपको नहीं लगता की दस बरस बहुत होते हैं, रितिका को अब सच जानने का पूरा हक़ है, कब तक आप रीती को सच से छुपा कर रख सकेंगीं ?".

रितिका : "ये सब क्या हो रहा है, राधा, प्लीज मुझे सब जानना है, क्या छुपा कर रखा है मुझसे आप सबने".

राधा : "आओ रीती, मेरा घर यहीं है, और अब तुम भी सब सच जान लो तो ही सही होगा".


कहते - कहते राधा रितिका दुसरे कमरे में ले गयी, उस कमरे में एक बेड था, और एक बड़ा सा टेबल था जिस पर दवाईयां पड़ी थी, "रितिका पहचाना इन्हें !" राधा ने बेड पर लेटे पेशेंट की तरफ इशारा किया. 

राज को देखते ही रितिका की आँखों में आंसू आ गए, 'दस साल से वो जिसका इंतज़ार कर रही थी, वो यहाँ, इस बेड पर सबसे बेख़ौफ़ पड़ा था, और वो इस राज का इंतज़ार में कबसे खुद से ही बेगानी सी हुई पड़ी थी, और राज, वो कैसे सबसे अनजान और खामोश सा चैन से सो रहा था  " राधा ये सब क्या है, राज तुम्हारे पास कैसे आ गया".


 राधा : "राज और उसकी माता जी तुम्हारा रिश्ता ले कर तुम्हारे घर गए थे, पर तुम्हारी माता जी ने कहा की उन्होंने तुम्हारा रिश्ता कहीं और तय कर दिया है, सो मेरी और राज की शादी का प्रस्ताव तुम्हारी माता जी ने राज की माता जी को दिया, बस फिर जल्द ही शादी हो गई, राज को लगा उसकी शादी तुमसे हो रही है, और राज मुझे, तुम्हारी जगह देख परेशान हो गया, बस फिर राज के साथ ये सब हो गया, न वो तुम्हारा हुआ और न मेरा".

माँ (रितिका की माता जी) : "रीती, मुझे माफ़ कर देगी न, मुझे नहीं पता था ये सब हो जायेगा, यकीन मनो मैंने कभी राज का बुरा नहीं चाहा था, मैं तो बस चाहती थी तुम्हारी शादी एक बड़े घर में हो, जहाँ तुम्हें दुनिया के सब सुख मिले, न की किसी ऐसे से जो अभी अपनी ज़िन्दगी को बानाने की शुरुवात कर रहा हो".

रितिका : "एक बार, बस एक बार मुझसे बात तो कर लेती, ये तूफ़ान राधा और मेरी ज़िन्दगी में नहीं आता"


तभी राज ने ऑंखें खोली और रितिका को देखते ही उसकी आँखों में एक नई सी चमक आ आ गयी, और दस साल बाद राज ने जो शब्द बोला वो था  "रीती".

रितिका ने झट से राज का हाथ थाम लिया, राधा ने भी झट-पट राज के डॉक्टर को कॉल कर दिया.


कुछ ही दिनों में राज की सेहत में बहुत सुधार आ गया, और वो अब कुछ-कुछ बात भी करने लगा, एक रोज़ राधा ने मौका देख रितिका और राज के सामने अपने मन की बात रख दी. 

राधा : "रितिका और राज अब बहुत हुआ, प्लीज अब तुम दोनों को एक साथ हो जाना चाहिए और बस शादी कर लेनी चाहिए".

रितिका : "राधा मुझे माफ़ कर दो पिछले कुछ दिनों में, मैं ये भी भूल गई थी, की तुम और राज शादी-शुदा हो, मुझे अब चलना चाहिए, राधा मुझे माफ़ कर दो, आई ऍम रियली सॉरी".

राधा : "रितिका प्लीज ऐसे मत कहो, देखो राज को इसे, तुम्हारा ही इंतज़ार था, मैंने दस बरस में भी राज को ऐसा नहीं देखा, और ये सब बातें छोड़ो, ये जो रितिका और राज है बस इस बारे में सोचो, सब भूल जाओ, क्या तुम अब राज के बिना रह लोगी !".

राज : "रीती, राधा ठीक ही कह रही है, अब प्लीज मुझे छोड़ कर मत जाओ".

रितिका : "राधा, नहीं मैं तुम्हें दुनिया की नज़र में महान नहीं बनने दूंगीं, ये सब बकवास है, और राज, तुम भी बच्चों जैसी बातें कैसे कर सकते हो ?".

राधा : "रीती, राज को भी बात समझ आ गई है, मेरा और राज का रिशत बस 'ऑन पेपर' वाला रिश्ता ही है, उससे बढ़ कर, न कभी हो सका, और न ही होगा कभी, सो दुनिया की छोड़ बस अपने बारे में सोचो, तुम दोनों ने एक दुसरे का इंतज़ार ही तो किया है पिछले दस सालों से, न तुम्हें को कोई और मिला और ना राज को कभी तुम बिन होश आया, रीती, अब तो मान जाओ अब की तुम्हारा और राज का ये बंधन, बंधन मन का बस और बस ये ही सत्य है ".

राज : " मान जाओ रीती, चाहो तो अपनी माता जी से इज़ाजत ले लो, मैं थोड़ा और इंतज़ार कर लूंगा".

रितिका, राधा के गले लग गई, "राधा तुम्हारे बिना ये सब बेकार है".

राधा : "अरे, हाँ बई, मुझे से छुटकारा नहीं मिलेगा तुम्हें, मैं यहीं आस-पास तुम्हारी अच्छी वाली सहेली ही बन कर रहूंगीं, और हाँ थैंकस राज, तुम्हारी वजह से मैं फ़िज़ियोथेरेपिस्ट बन गयी हूँ और वो भी विदेशी स्टैण्डर्ड वाली, देसी वाली नहीं".


तीनों एक दुसरे को देख मुस्कुराने लगे, रितिका और राज की  उंगलियों ने एक दुसरे को कस कर बाँध लिया और तीनों हस्ते - मुस्कुराते खिड़की से मौसम की पहली बर्फ गिरने के नज़ारों में खो गए.


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शनिवार, 19 नवंबर 2022

सुरभि की शादी - Part 2

 


                                                    - 1 -


"सुरभि, क्या बचपना है, ऐसे छोटी-छोटी बातों पर क्या रिश्ता टूट जाता है क्या, अगले महीने तुम्हारी शादी है, कैसे चलेगी शादी ऐसे" पिता जी ने खाने के टेबल पर ही बात छेड़ दी, "कब तक बात नहीं करोगी".

"माँ, खाना बहुत अच्छा है, पिताजी आप राघव को बुला ली जिए, मैं बात करने को तयार हूँ" सुरभि बोल कर चली गयी .


पिता जी ने  शुभ काम कोई देरी न की और राघव, नीतू और विजय और सुरभि और राघव के कुछ और दोस्तों को रात के खाने पर बुला लिया. 

"इतने सारे लोगों को क्यों बुला लिया,"दोनों को अकेले बात कर लेने देते" माता जी ने कहा .

"अब बुला लिया है, देखी जाएगी जो होगा" पिता जी ने बोला.

पिताजी जानते थे सुरभि अब अपने से कभी बात नहीं करेगी, उसका मन भी होगा तब भी न करेगी, थोड़ी ज़िद्दी थी सुरभि, अपना नुक्सान कर लेगी पर अपने उसूलों पर हमेशा कायम रहेगी, पर एक बार कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है .


                                                     -2-


  शाम को सुरभि घर लौटी तो सब तैयारियां देख कर थोड़ी परेशान सी हो गयी, "पापा, ये सब करने की क्या ज़रुरत थी, राघव और मेरा रिश्ता अब बोझ सा हो गया है, और मैं इस वक़त कोई भी बोझ नहीं उठा सकती, I hope आप मेरी बात को समझ रहें हैं".

"सुरु, बेटा मैं जनता हूँ अपनी सुरभि को, पर एक आखरी कोशिश, क्या अपने पापा के लिए नहीं कर सकती, बस यही समझ लो की एक पार्टी है, और सब दोस्त लोग आ रहे हैं" पिताजी ने कहा. 

"थैंक यु, पापा, थैंक यू मुझे समझने के लिए, सब आदमी आप से क्यों नहीं होते" सुरभि ने सोफे पर बैठे पिताजी के कंधे पर अपना सर रख दिया.

"थैंक यु too सुरु, सब आदमी मुझ जैसे इसलिए नहीं होते क्यूंकि, सबके पास मेरी सुरु जैसी बेटी भी तो नहीं होती, चलो अब बताओ काम कैसा चल रहा है, अब जब राघव को वो फैक्ट्री नहीं देनी तो उसे बेच दो, दो-दो फैक्ट्री कैसे चलाओगी ?" पिताजी बोले .

"नहीं पापा बेचूगीं नहीं, बस दोहरी मेहनत करूंगीं, दोनों फैक्ट्री लगभग एक जैसी ही हैं, सो इतनी मुश्किल नहीं होगी, डब्बे और गिफ्ट-पेपर एक जैसे ही होते हैं, सो चल जायेगा काम, और कभी भी मदद की ज़रुरत हुई तो आप हो न" सुरभि ने मुस्कुराते हुए कहा .  


                                                     -3-


"मुझे ख़ुशी है की तुम, राघव से मिलने के लिए तैयार हो गयी, हर किसीको एक मौका ज़रूर मिलना चाहिए" नीतू ने सुरभि के गले लगते कहा.

"नीतू ये तुम मेरी सहेली हो, इसलिए कह रही हो, या, राघव तुम्हारा भाई है इसलिए कह रही हो" सुरभि, राघव की वकालत सुन-सुन कर थकने लगी थी.

"नहीं, सुरभि मुझे गलत मत समझो, मेरा मतलब किसी की वकालत करना नहीं था, देखो किसी दिन किसी और से मिलोगी, उसे जानने में भी तुम्हें वक़त लगेगा, और जिसे हम सालों से जानते हैं, उसी को थोड़ा और क्यों नहीं समझ लेते, समय की भी बचत होगी और भावनाओं को बार-बार चोट भी न पहुँचेगी" नीतू ने सुरभि का हाथ पकड़ते बोला.

"ये बात क्या तुमने अपने भाई को भी समझाई थी क्या" सुरभि ने नीतू को पलट कर देखने को बोला, राघव झूमता - झूमता पार्टी में दाखिल हुआ,"नीतू यहाँ आप किसीको समझा नहीं सकते, तुम अगर समझती हो की मैं ज़िद्दी हूँ तो अपने भाई के बारे में क्या ख्याल है" सुरभि बोल कर वहां से चली गयी. 


                                                  - 4 -


"बोलो शादी की तैयारी कैसी चल रही है" राघव ने सुरभि के पास आ कर धीरे से पुछा.

"बस, चल रही है" सुरभि ने कम बोलना ही ठीक समझा .

"क्यों किया तुमने ऐसा, अपने को इतना समझदार दिखाया और मुझे बेवकूफ बना दिया, देखो मेरा क्या हाल बना दिया तुमने, प्यार किया और छोड़ दिया, यूँ ही अकेले, और अपने डब्बों को चुन लिया, बोलो न बोलती क्यों नहीं" राघव बोलते-बोलते कुर्सी पर बैठ गया, "तुमने, मुझे क्यों छोड़ दिया बोलो, बोलो सुरभि, इतना अच्छा बन कर क्या मिल जायेगा" बोलते-बोलते राघव एक दम से खड़ा हो गया और बात ही पलट दी "क्या कह रही हो सुरभि, क्यों, क्यों नहीं करोगी तुम मुझसे शादी, ऐसा क्यों कर रही हो, क्या तुम नहीं जानती की मैं तुम से कितना प्यार करता हूँ".

सुरभि ने राघव की बात सुन, पलट कर देखा तो नीतू - विजय और पिताजी खड़े थे .

"क्यों कह रही हो ऐसा, क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा, बोलो न, कितना प्यार किया है मैंने तुमसे" राघव बोलते ही जा रहा था .

"सुरभि - राघव तुम दोनों अपना झगड़ा सुलझा लो आज ही बस" नीतू ने बोला,"चलिए अंकल हम लोग यहाँ से चलते हैं.

"रुकिए सब लोग, आज मैंने फैसला कर लिया है" सुरभि ने राघव का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बड़े प्यार से बोला, "राघव, तुमसे दोस्ती और प्यार दोनों किया है, और हम दोनों स्कूल से साथ-साथ हैं, शायद हम-दोनों एक दुसरे को थोड़ा ज्यादा ही जानते हैं, और इसीलिए मैंने फैसला कर लिया है, बल्कि, अपने लिए फैसला कर लिया है, मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती" सुरभि, राघव का हाथ छोड़ अपने पिताजी के पास जा खड़ी हो गयी, चलिए पापा, इस पार्टी को बाय-बाय कह देते हैं और अगली पार्टी की तयारी करते है,"मैं अपनी फैक्ट्री को अब ज़ोर-शोर से लांच कर रही हूँ"


राघव वहीँ खड़ा सुरभि को जाते देखता रहा.

"राघव, भाई, क्या कर रहे हो जाओ उसके पीछे, क्या तुम उससे प्यार नहीं करते" नीतू ने सुरभि को आवाज़ देनी चाही.

"नहीं, नीतू, नहीं, मैं भी उसे जनता हूँ अब उसका फैसला कोई नहीं बदल सकता और अब सुरभि को जीतने से भी कोई नहीं रोक सकता" राघव भी वहां से चला गया.


"मुझे विश्वास है, की जो तुमने किया है, वो सोच समझ कर किया है, और अब अपने किये पर कभी पछताना मत" पिताजी ने सुरभि से कहा.

"पछतावा होगा भी तो भी नहीं पछताऊगीं, मैं खुद को संभाल लूंगीं' सुरभि ने हस्ते हुए बोला.

'हे, भगवान, बस मेरी मदद करना, मुझे अपने पर पछताना न पड़े, राघव मेहनत करना नहीं चाहता और मैं बस मेहनत ही करना चाहती हूँ, अपने काम को ही अपना हमसफ़र बनाना छाती हूँ' सुरभि मन ही मन मुस्कुराने लगी.


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रविवार, 15 अगस्त 2021

मेरा गुरुर _ _ _ _ _

 

क्या है मजबूरी दिल की, की वो दर्द को छोड़ता नहीं,

क्या है मजबूरी दिमाग की, की वो भुलने नहीं देता । 



हम समझते थे की आसान होगा भूलना उसे, बस यू हीं खुद पर कुछ ग़ुरूर सा हो गया था।  एक पल में बस भूल जायेंगे और पता भी न चलेगा, एक दम से भूल जायेंगे और बस वो कभी याद भी न आएगा। जहाँ में बहुत है जिन्हें प्यार की तलाश है, मिल जायेगा कोई, हो जायेंगे हम उसके, प्यार का समंदर बना देंगे।  

एक बस यही भूल थी।  एक लम्हा लगा बस, और सारा गुरुर तिनकों के सामान बिखर गया। दिल को मालूम था दर्द होगा, पर पागल तो बस दर्द में ही रहना चाहता था।  


महोब्बत को तलाशने निकला था में महोब्बत  का ही दिल तोड़ कर। 

पर अब सोचता हूँ की क्या वो मेरी मोहब्बत थी, की बस यु ही कुछ था ?

मोहब्बत होती तो टूटती ही क्यों ?



बस यही सोच कर दिल को बहला लेते है ,'होगी उसकी भी कोई मजबूरी, की वो बेवफ़ा निकला। 🎕

बस एक ही गीत याद आता है,'यूँही तुम मुझसे बात करते हो, या कोई 🎵🎵🎵🎵🎵

Song Link : Yuhin Tum Mujhse baat karti ho

#हिंदी कहानियां 

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

कुछ ख़याल

उम्र भर उम्र तरसती रही
इक उम्र की तलाश में
पर, जब उम्र आई उम्र जीने की
तो उम्र को उम्र ही ना मिली उम्र जीने की।


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रात एक हवा का झोंका था
या तूने पुकारा था भूल से कहीं मुझे
कोई बता दे उसे की
उस से खूबसूरत नहीं है
पल ये उसके इंतज़ार के।


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कोई शराब पी कर जी रहा है
कोई गम खा कर जी रहा है
खाते - पीते जी रहे है सब
ज़िन्दगी है बीता रहे है सब।

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कुछ मेरी है मजबूरियां की मैं बोल नहीं पाती
कुछ तेरी मजबूरियां है की तू बिना बोले सुन नहीं पता।

कुछ मेरी कमियां है की मैं  लिख भी नहीं पाती
कुछ तेरी कमियां है की तू मेरी आँखों में भी पढ़ नहीं पता।

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रंगहीन लगते थे जब पल उसे
तो, याद करता था हर पल वो हमें
अब, जब, दुनिया के रंग मिलें है उसे
तो, हम ही रंगहीन लगते है उसे।

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एक पल था जब,
तेरी याद सोने नहीं देती थी,
उस पल को हमने तेरे बिन ही गुज़ार दिया,
अब ये पल है जो उस पल को गुजरने नहीं देते,
याद के समंदर में डूबते है हर रोज़ अब हम,
की वो पल ही अब जीन नहीं देते।




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