कलम उठा कर लिखते है
तो दर्द ही निकलता है
हम दिल से लिखते है
तो दुआ ही निकलती है
अब यूँ ही लिखने की सोचते है
तो बस आहा ही निकलती है
हाथ उठा कर झुड़ा से मांगने की सोचते हैं
तो, क्या मांगें और क्या न मांगे
इसी असमंजस में घड़ियतां निकल जाती हैं
तुमको मांगने की सोचते है
तो गुमान होता है की तुम
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