मंगलवार, 14 अगस्त 2012

विडंबना...............


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जड़ की है ये विडंबना की,                                    
कोई उसे देख नहीं पाता,
पर पौधे का अस्तित्व बिना उसके,
हो ही नहीं सकता.

चित की भी है ये विडंबना,
की उसे भी कोई देख नहीं पाता,
इसलिए किस के सीने में,
कैसा और कितना गम है,
इसका कोई और अनुमान नहीं लगा सकता.

काजल से भरी आँखों से,
सब धोखा खा जाते है,
इसलिए उनमे बसे आंसुओं का,
कोई अनुमान नहीं लगा सकता.

एक नज़र में चेहरे की सुर्खी,
मदहोश कर देती है,
इसलिए दूसरी नज़र में कोई,
दर्द की लकीरें नहीं गिनता.

गुलाबी वस्त्रों से काया की कोमलता,                                       

तो सब को  दिख जाती है,
पर अन्दर जो शिरा-शिरा छलनी है,
उसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता.

जीवन की विडंबना ये है की,
जीना ना भी रास आये तो भी जीना पड़ता है.

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