गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

मै और नहीं हूँ जीना चाहती..................

 

 

बांध लो मुझको कंटीले तारों से,
के अब मै उड़ते-उड़ते भी थक गयी हूँ।
घायल कर दो मुझे को छलनी-छलनी करके,
क्यूंकि अब तो बस तुम्हारे पास हूँ मै रहना चाहती।
आँखों के आगे खेड़िया लगवा दो,
के अब मै तुम्हारे सिवा कुछ नहीं हूँ देखना चाहती।
मेरे अंग-अंग पर अपने नाम की स्याही रचा दो,
क्यूंकि अब मुझे कोई और रंग ही नहीं बहाता।
मेरी रूह को निकाल कर खुद में कहीं छुपा लो,
के अब मै और नहीं हूँ जीना चाहती।


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