शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

अपने दाएरे ----


खुद के बनाये दायरे को
खुद ही तोड़ने लगते हैं हम 
रंगीन सराब की रंगीनियों में 
क्यों डूबने लगते हैं हम 
यकीन होते हुए भी की 
रंगीन सराब पालक झपकते ही खो जायेगा 
उसकी खुशबु से दिल क्यों
महकाने लग जाते हैं हम 

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