बुधवार, 29 अगस्त 2012

एक सवाल ...............


 ना मझधार है, ना  पार है,  
ना इकरार है, ना इंकार है,
ना चलता है, ना रुकता है,
ना बहता है, ना बहाता है,
ये कैसा एक सवाल है,
क्यूँ ज़िन्दगी से तकरार है,
आने वाले पल का इंतज़ार है,
मगर वो सब एक सपना है,
हकीकत तो ये जिंदगानी है,
जो एक दिन मिट्टी में मिल जानी है,
फिर क्यूँ ये उदासी है, क्यूँ ये तनहाई है,
क्यूँ ये झमेले है, इतने लोगों में भी,
क्यूँ हम अकेले है!!!


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