सोमवार, 16 जुलाई 2012

जीवन, जीवन सा हो -----------


हर अजनबी चेहरे के पीछे छुपी होती है कहानी कोई,
या तो मैं सब कुछ गोर से देखता हूँ,
या फिर चेहरे पड़ना मेरी आदत सी हो गई है.

हर बार तुमको देख कर लगता है,
कहीं तुम से ही तो नहीं जुड़ी कहानी मेरी,
हर बार न जाने क्यूँ हताश सा हो रह जाता हु मैं.

ना जाने क्यूँ जीवन उलझा सा लगने लग गया है अब तो,
ना जाने क्यूँ नहीं उलझन सुलझा पाता हु मैं.

ना जाने क्यूँ पुष्प माला नहीं बन पाती है मुझसे,
ना जाने क्यूँ हताश सा हो द्वारे से ही लौट आता हूँ मैं,
और उपासना की आस दिल में लिए खाली हाथ ही लौट आता हु मैं.

ना जाने क्यूँ नहीं बन पाती मूरत मुझसे,
या फिर क्यूँ नहीं मिट जाती हर आस मुझ में से,
जीवन बस जीवन सा हो,
बस यही उम्मीद पूरी क्यूँ नहीं हो पाती मुझसे.

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