शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

रिश्तों में पारदर्शिता होना अनिवार्य है...




 "सच में कितना सुंदर है न ये, और इसका रंग तो देखो एकदम सफ़ेद है, आस्मां के सफ़ेद बदल के जैसा, और कितना मुलायम है न एकदम दादी की कहानियों वाली  राजकुमारी के कपड़ों जैसा"
" हाँ अबोली देखा मैंने ने कहाँ था ना की मेरी पिताजी  मेरे लिए एक बहुत सुंदर खिलौना लायेंगें, सो वो ले आये, मैंने पिताजी को बोला था की मेरे लिए एक बहुत सुंदर खिलौना लाना और देखो तो कितना सुंदर है ये"
" हाँ सुम्मी ये तो बहुत ही सुंदर है, थोड़े दिनों के लिए मुझे दे दो न, में इसे बिलकुल संभाल कर रखूंगी किसी को न दूंगीं, रात क सोते वक़त भी अपने पास ही रखूंगी"
"नहीं! नहीं अबोली ये मैं ना दूंगीं ये तो बस मेरा टेडी है मैं किसी को ना दूंगीं, जब से पिताजी लायें है तब से मैं इसे अपने पास ही रखती हूँ, रात को सोते वक़त भी ये मेरे साथ ही होता है और मुझे अब रात को डर भी नहीं लगता"
"पर एक दिन के लिए तो दे दो न, मैं सच में इसे अपने पास ही रखूंगी और फिर कल तुम ले जाना, तुम चाहे तो मेरा कोई भी खिलौना ले जाओ बदले में"
" नहीं अबोली ये मैं ना दूंगीं"
इतने में अबोली की माँ भी वहां आ पहुंची, अबोली ने माँ को टेडी दिखाया और बोली," देखो न माँ कितना अदभुत है न, माँ सुम्मी से कहो न की मुझे दे दे बस एक दिन के लिए, मैं भी तो इसे अपने खिलोने देती हूँ ना"
"अबोली वो नहीं देना चाहती अगर तो रहने दो ना क्यूँ तुम जिद्द कर रही हो" .
सुम्मी ने अपना खिलौना अबोली के हाथ से छीना और मुस्कुराती-नाचती अपने घर की ओर चल दी.
अबोली सारी रात उस खिलोने के बारे में ही सोचती रही और रात भर सो भी ना सकी. सुबह उठ कर माँ से बोली, माँ मुझे भी ले दो ना वैसा ही टेडी, फिर में तुम से कभी कुछ ना मांगूगी. माँ हलकी सी मुस्कराहट अपने चहेरे पर ला कर बोली ठीक है ले देंगें. और अबोली ख़ुशी-ख़ुशी अपने कमरें में जा कर खेलने लग गयी. माँ भी जानती थी की उसकी गुड़िया ने पहली बार कुछ लेन को बोला था, नहीं तो जो देदो उसी में खुश रहती है.
अबोली ने सुम्मी को भी बताया की उसकी माँ भी उसे ऐसा ही खिलौना ला कर देगी. दिन हफ़्तों में बदल गए पर अबोली को अपना खिलौना अभी ना मिला था. माँ से दुबारा कहना उसे ठीक ना लगा था, माँ नाराज़ हो गयी तो क्या पता उसे खिलौना मिले ही ना.
कुछ दिन से अबोली भी सुम्मी के घर जादा जाने लग गयी थी, अबोली को सुम्मी के खिलोने के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता था. जब भी वो सुम्मी के घर जाती तो  बस उसी खिलोने को उठाई रखती, हर दम उसे सीने से लगायी रहती.
एक दिन अबोली स्कूल से लोटी तो उसने सुम्मी की माँ को अपने घर से निकलते देखा, वो कुछ गुस्से में लग रही थी.
अबोली ने अन्दर जा कर अपना बस्ता रखा ओर माँ से कुछ पूछना चाहा पर उसने देखा माँ भी कुछ परेशान लग रही थी.
अबोली चुप करके हाथ-मुह धोह कर खाना खाने बैठ गयी. खाना खा कर वो माँ से बोली," माँ मैं सुम्मी के घर खेलने जाऊ".
"नहीं तुम आज से कहीं नहीं जाओगी, और सुम्मी के घर तो बिलकुल भी नहीं, बस घर में ही रहोगी" माँ गुस्से में बोली.
अबोली चुप करके अपने कमरें में चली गई. उसकी समझ में ना आ रहा था की माँ क्यूँ गुस्से में है.
अगले दिन फिर से स्कूल से आ कर अबोली ने माँ से सुम्मी के घर जाने के लिए पूछा, माँ ने आज भी गुस्से से मना कर दिया, ओर फिर कभी ना पूछने के लिए भी कह दिया.
आज माँ को गुस्सा हुए दो दिन हो गए थे. माँ अबोली से ठीक से बात भी न कर रही थी. अबोली ने सोचा आज तो माँ गुस्सा ना करेगी आज तो उसका जन्मदिन था. अबोली ने स्कूल से आ कर माँ से पूछा," माँ क्या आज मैं सुम्मी के घर जाऊ, आज तो मेरा जन्मदिन है, उसे मिठाई भी दे दूंगीं".
माँ चुप करके अन्दर गई और अबोली को एक बड़ा सा पार्सल सा ला कर दिया, अबोली ने पार्सल खोला तो उसमें से सुम्मी के खिलोने जैसा ही पर उससे भी बड़ा टेडी  निकला, अबोली ख़ुशी के मारे नाचने लग गई और माँ के साथ लिपट गई और बोली," माँ ये तो बहुत ही सुंदर है"
माँ गुस्से में बोली," अब तुम खुश होना तो सुम्मी का खिलौना लोटा दो, सुम्मी भी खुश हो जाएगी"
नन्हीं अबोली को आज पता चला कि सुम्मी क़ी माँ उस दिन घर क्यूँ आई थी और माँ उससे दो दिन से क्यूँ नाराज़ थी.
अबोली ने वो अपने वाला खिलौना माँ के पास रखा और माँ से बोली," माँ मैंने सुम्मी का खिलौना नहीं चुराया" और फिर वो अपने कमरे में चली गयी.
उस दिन अबोली कि माँ शाम को सुम्मी के घर जब अबोली के जन्मदिन कि मिठाई देने गई तो सुम्मी कि माँ ने बताया कि सुम्मी का खिलौना कल ही मिल गया था, सुम्मी के भाई ने उसका खिलौना कहीं छुपा दिया था.
अबोली कि माँ झट से घर लौट आई और सीधी अबोली के कमरें में गई ओर देखा तो अबोली ने वो बड़ा सा टेडी एक कोने में रखा हुआ था और वो अपने पुराने खिलोनो से खेल रही थी.
उस दिन अबोली ने छोटी सी उम्र में एक बहुत बड़ा सबक सीख लिया था कि रिश्तों में पारदर्शिता होना कितना अनिवार्य है.

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