मंगलवार, 16 जुलाई 2013

धुंधली सी...............

लिखने बैठती हु जब कभी भी लफ्ज़ उलझे-उलझे से लगते है  ना जाने क्यूँ खाली कागज़ पर ख्यालों का द्वन्द सा चल रहा लगता है...


राहा धुंधली सी
हो गयी है
कुछ नज़र आता नहीं आगे अब तो....

की अब तो लफ्ज़ भी
अनजान से हो गए है
पास अब आते नहीं ये भी मेरे.....

लिखने बैठती हु जब कभी भी
लफ्ज़ उलझे-उलझे से लगते है 
ना जाने क्यूँ खाली कागज़ पर
ख्यालों का द्वन्द सा चल रहा लगता है...
राहें धुंधली और अनजान सी लगती है अब तो...

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