बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

छल.............

दोष .... ना तुम्हारा था ना मेरा था रस्मे जहाँ तुम निभाते रहे रस्मे मुहबत हम निभाते रहे

तुम्हारे नयन                                       
मकसद खोजते रहे,
मेरे नयन
वफा की बरसात करते रहे
            
तुम्हारा मन
मेरी चाल सझता रहा
मेरा मन
तुम्हारा होता रहा

तुम्हारा दिल
मुझे नादान समझता रहा
मेरा दिल
तुममे रमता रहा

तुम मुझे
झूठा समझते रहे
और मै
तुम्हे रूह में र-माती रही

दोष ....
ना तुम्हारा था
ना मेरा था
रस्मे जहाँ तुम निभाते रहे
रस्मे मुहबत हम निभाते रहे ........

                                       

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