तुम्हारा मन
मेरी चाल सझता रहा
मेरा मन
तुम्हारा होता रहा
तुम्हारा दिल
मुझे नादान समझता रहा
मेरा दिल
तुममे रमता रहा
तुम मुझे
झूठा समझते रहे
और मै
तुम्हे रूह में र-माती रही
दोष ....
ना तुम्हारा था
ना मेरा था
रस्मे जहाँ तुम निभाते रहे
रस्मे मुहबत हम निभाते रहे ........
ना तुम्हारा था
ना मेरा था
रस्मे जहाँ तुम निभाते रहे
रस्मे मुहबत हम निभाते रहे ........
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें