"अबोली मुझे तो घबराहट हो रही है. आज पहला दिन है कॉलेज का, सब कुछ कैसा होगा? लोग कैसे होंगें? अद्यापक कैसे होंगें? हमें वहां अच्छा न लगा तो?"
"पगली है तू तो! सब ठीक ही होगा, क्यूँ चिंता करती है. अद्यापक तो अच्छे होंगें ही शहर का बेस्ट कॉलेज जो ठहरा, और जहां तक लोगों के अच्छे होने की बात है तो सब लोग अच्छे ही होंगें इतना क्यूँ डरती है तू, सब हमारे जैसे पहली बार कॉलेज आये स्टुडेंट्स ही होंगें, तो अच्छे तो होंगें ही ना"
अबोली और सुम्मी दोनों बस स्टैंड पर बस का इंतज़ार करने लग गई, बस आते ही दोनों बस में चढ़ गयी और बस हवा से बातें करती हुई कॉलेज की ओर बढने लगी. घबराहट तो अबोली को भी हो रही थी पर वह उसे ज़ाहिर करके वह सुम्मी को और नहीं डराना चाहती थी, और माँ भी कई दिनों से समझा कम और डरा अधिक रही थी. माँ तो शायद सुम्मी से भी अधिक डरी हुए थी,और पिताजी को कई बार कह चुकी थी,' पहले दिन तो आप छोड़ आईये न बच्चियों को'.पिताजी ने यह कह मना कर दिया,'हम और तुम कहाँ-कहाँ तक साथ जायेंगें बच्चो के साथ'.
अबोली पहली बार अकेले बस में सफ़र कर रही थी, यु तो कई बार बस में सफ़र कर चुकी थी पर अकेले पहली बार कहीं भी जाना व्यक्ति के आत्मविश्वास को और भी प्रबल बनाता है. अबोली अपने ख्यालों में गुम थी कैसा होगा कॉलेज? कैसा होंगें लोग? अबोली अपना ध्यान बटाने के लिए बस में बैठे लोगों को देखने लगी, बस में कई लड़के-लड़कियां थे जो पहली बार कॉलेज जा रहे थे, सभी अपने दोस्तों के साथ बातों में व्यस्त थे, उसने सुम्मी की ओर देखा तो सुम्मी खिड़की से बहर देखने में अधिक व्यस्त थी. तभी अबोली की नज़र सबसे पहली सीट पर बैठे एक लड़के की तरफ गयी, वो ना तो किसी से बातें कर रहा था और न ही यहाँ-वहां देख रहा था, वह तो बस अपनी किताब की और नज़र गड़ाए हुए था.
"पसंद आ गया क्या?"
"क्या! क्या कह रही हो सुम्मी, तुम भी ना,में बस यु ही देख रही थी, किसी को देखना गुनाह है क्या?"
"हाँ-हाँ पहले बस देखा जाता है, और फिर अगर मन को बाह जाये तो बस देखते ही रहना पड़ता है"
"पागल है तू तो! कुछ भी बोले जाती है, कोई इंसान किसी को देख भी नहीं सकता क्या "
"मेरी प्यारी सखी, 'देखना'.और 'देखते ही जाना' दोनों में बहुत फर्क होता है"
"बस-बस चल अब हमारी मज़िल आ गई है, सीट छोड़ो और उतरने की तयारी करो"
दोनों सखियाँ अपनी सीट छोड़ बस के आगे के दरवाज़े की और बढने लगी. अबोली उस लड़के के बिकुल सामने खड़ी थी, उसकी नज़र उस लड़के से हट ही नहीं रही थी.इतने में बस स्टैंड आया और दोनों सखियाँ उतर गयी, अबोली गर्दन घुमा कर उसे देखती रही जब तक की बस उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गयी.
कॉलेज बस स्टैंड से कुछ ही दूरी पर था, दोनों अपनी क्लास में पहुँच कर सबसे आगे वाली सीट पर बैठ गयी. पहला दिन जैसे-तैसे गुज़र गया.घर वापस जाते हुए सुम्मी ने तो बस कॉलेज की बातें करनी शुरू करीं तो उसने चुप होने का नाम ही नहीं लिया, मगर अबोली का ध्यान तो बस की सबसे आगे वाली सीट पर था. ना जाने उसमें क्या बात थी अबोली उसे फिर से एक बार देखना चाहती थी.
दुसरे दिन दोनों सखियाँ फिर से उसी बस में सवार हुई और इतेफाक से उन्हें कल वाली ही सीट मिली, और अबोली ने नज़र उठा कर देखा तो उस सीट पर बैठा वो आज फिर अपनी किताब पढ़ रहा था.
"क्यूँ मेरी जान तेरी तो लाटरी लग गई"
"पागल है तू तो,ये बता तुने अध्यापक का कहा हुआ अध्याय पढ़ा क्या, जो कल अध्यापक जी ने बोला था?"
"हाँ मैंने पढ़ा और, मज़ा आ गया, बड़ा ही दिलचस्प था, मैंने तो दो बार पढ़ डाला"
"सच कहा तुने, सच में पढ़ने में मज़ा तभी है जब अपने मन-पसंद का विषय हो"
तीसरे दिन अबोली ने उस लड़के को फिर से देखा, और अबोली को अब तो बस सुबह होने का इंतज़ार रहता, और रवि-वार के दिन तो अबोली का मन ही ना लगता, अबोली को लगता कब ये दिन गुज़रे और कब सुबह हो और कब वो बस में बैठे और कब वो उसे देखे. और जिस दिन वो नज़र ना आता अबोली का तो बस दिन ही बुरा जाता,और अबोली का मन भी उस दिन बुझा-बुझा सा रहता.
देखते-देखते कॉलेज का एक साल भी निकल गया, सारी छुट्टियाँ अबोली ने बस उसी को याद करते-करते गुज़ार देती. उसका सावला रंग, किताब पढ़ते हुए उसके हाव-भाव, वो उसका खिड़की से बाहर देखना, और किताब में कुछ दिलचस्प बात पढ़ उसके चेहरे की हलकी सी मुस्कराहट उसे भुलाई नहीं भूलती. सुम्मी ने उसे कई बार कहा' मेरी जान तुझे प्यार हो गया है' पर अबोली उसकी बात हंस कर टाल देती. प्यार हो या कुछ और वो तो बस उसे ही देखना चाहती थी बस.
आज पूरे दो साल हो गए थे सुम्मी और अबोली को कॉलेज आते-आते, बस एक साल ओर फिर ये सिल-सिला भी ख़तम हो जायेगा, अबोली उसे ना देख पाने के डर से घबरा जाती. पर वो करती भी तो क्या करती. ज़िन्दगी इसी का नाम है, यहाँ वो नहीं मिलता जो दिल चाहता है,पर वो मिलता है जो किस्मत में लिखा होता है, हर कदम पर समझोता करना ज़िन्दगी की परिभाषा है शायद.
आज अबोली लम्बी छुटियों के बाद कॉलेज जा रही थी. और आज तो वो अकेली ही थी, सुम्मी अपनी छुटियों के बाद भी नानी के घर से लोटी नहीं थी. अबोली बस में जा बैठी, और देखा तो वो भी आज नहीं आया था, उसका तो मन ही खराब हो गया. ना तो सुम्मी आई और ना ही वो आया. अबोली अपनी किताब निकाल के पढने लग गई. उसकी पास वाली सीट जो की अभी तक खाली थी वहां अब कोई आ कर बैठ गया था, अबोली अपनी किताब पड़ती रही उसने चेहरा उठा कर भी ना देखा की कौन है. तभी उसने देखा की पास बैठे व्यक्ति ने भी किताब निकाली और उसे पढने लग गया. अबोली का ध्यान उसके हाथों पर गया तो उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लग गया, उसने धीरे से अपना चेहरा उठा कर पास बैठे व्यक्ति को देखा तो वो भी उसकी तरफ देख रहा था, उसके चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट थी.अबोली का दिल और भी जोर से धड़कने लग गया उसे लगा की उसके बदन में से सारा खून निकल गया हो और उसका बदन ठंडा पड़ गया है, घबराहट के मारे उसे क़प-कंपी होने लग गई.
"तुम्हारा नाम अबोली है ना, मैं तुम्हें रोज़ देखता हूँ, शायद हम-दोनों एक दुसरे को रोज़ देखते है"
अबोली को लगा की उसका बदन वहीँ जड़ बन गया हो, कुछ बोलना तो दूर उसे तो अब कुछ सुनाई भी नहीं दे रहा था, उसने कभी जिसकी कल्पना भी नहीं की थी वो हो रहा था. यु तो सपनो में वो उससे रोज़ बातें करती थी पर आज ये सब सच था और वो उससे बातें कर रहा था.
"अबोली मुझे तुम अच्छी लगती हो, रोज़ मैं सुबह होने का इंतज़ार करता हूँ , सिर्फ तुम्हें एक नज़र देखने के लिए,अगर तुम्हारा कोई बॉय-फ्रेंड हो तो बता देना मैं तुम्हें फिर कभी तंग नहीं करूंगा"
अबोली ज़ोर-ज़ोर से चिला कर ना बोलना चाहती थी, और उसे नज़र भर के देखना चाहती थी, पर उसने बस 'ना' में गर्दन हिला कर इशारा किया.
"इसका मतलब ना है ना अबोली"
अबोली के इतना कहते ही उसने अबोली के हाथ में एक छोटी सी डब्बी रखते हुए बोला,"अभी यही है मेरे पास पर जल्द ही सुंदर सी, चाँद सी चमकती हुई, सफ़ेद सी अंगूठी तुमको पहना, तुमको अपना बना कर, अपने साथ ले जाऊगा, बस मेरा इंतज़ार करना , करोगी न मेरा इंतज़ार.
अबोली ने हां में गर्दन हिला दी, और शर्म और घबराहट के मारे खिड़की से बाहर झाँकने लग गई. कुछ देर में वो भी उठ कर चला गया. अबोली को लगा कही वो नाराज़ तो नहीं हो गया की 'मैंने उससे बात नहीं की'. पर बोलती भी तो क्या बोलती,कहती भी तो क्या कहती.उसे पता था प्यार-व्यार को माँ पिताजी ना समझेंगें और वो कभी पिताजी को तो दूर माँ से भी ना कह पायेगी इस बारे में.
अबोली उसे जाते देखती रही, कुछ देर और मिल जाती उसके के साथ कि तो अबोली उसे से बहुत सी बातें करना चाहती थी। पर मजबूरियां उससे ऐसा नहीं करने दे रही थीं। उसकी दी हुई डब्बी जब अबोली ने खोल कर देखी तो अबोली कि ऑंखें भर आयी,' हे भगवान् ख़ुशी के पलों कि उम्र छोटी क्यूँ होती है'.
उस डब्बी में चाँद सी चमकती अँगूठी थी। अबोली मुस्कुराये बिना न रह सकी, ये पल उसके दिल में उम्मीद का दीप जला गया।
अगले दिन सुम्मी भी आ गई, अबोली की जान में जान आई. सुम्मी ने बताया की कॉलेज ख़तम होते ही उसकी शादी हो जाएगी उसी लड़के से जिसे काफी सालों से वह पसंद करती थी, जिसे वो तब मिली थी जब वो दसवीं की छुट्टियों में नानी के घर रहने गई थी, लड़के को देखते ही उसे पसंद कर लिया था उसने और नानी को भी बता दिया था, सो नानी ने उसकी माँ से बात की और बस बात बनते-बनते बन ही गई थी.
दोनों सखियाँ बस में बैठ गई पर आज अबोली ने उस ओर नहीं देखा, अबोली किसी को झूठी आस नहीं देना चाहती थी ओर न ही झूठी आस के सहारे जीना चाहती थी.
दिन बीते महीने बीते और फिर साल भी बीत गया. कॉलेज ख़तम हो गया, सुम्मी की शादी भी हो गई थी. माँ-पिताजी अबोली के लिए भी लड़का तलाश कर रहे थे. कभी माँ को और कभी पिताजी को लड़का पसंद ना आता.
अबोली को उस बस वाले लड़के की बहुत याद आती थी, उसकी दी हुई छिठी अबोली दिन में कई बार पड़ती थी,'अबोली गर तुम भी मुझे पसंद करती हो तो एक बार बोल दो'.
पर वो हाँ बोलने वाला दिन आ ही ना सका, और वो भी दुनिया की भीड़ में कहीं खो गया था. पर यादें ज़ालिम होती है छोड़ कर जाती ही नहीं, और चैन से जीने भी नहीं देती.
"अबोली तयार हो गई, लड़के वाले तुम्हे बुला रहे है,लड़का भी साथ आया है, चलो मुझे और तुम्हारे पिताजी को लड़का बहुत पसंद है, पर गुड़िया रानी कोई जल्दी नहीं है, तुमको ना पसंद आये तो ना कह देना, घबराना मत ये तेरी सारी ज़िन्दगी का सवाल है" माँ ने अबोली को प्यार से समझाया और उसे उस कमरें में ले गई जहां लड़के वाले बैठे थे. अबोली ने एक बार भी नज़र उठा कर किसी को भी नहीं देखा.
थोड़ी दीर में लड़के की भाबी अबोली को दुसरे कमरें में ले गए और उससे सवाल पूछने लग गई,"तुम्हें क्या-क्या अच्छा लगता है? खाना बना लेती हो? और क्या-क्या शोंक है तुम्हारे?" अबोली ने सभी प्रशनों के उतर दे डाले. फिर वह बोली अबोली,"देवर जी तुमसे कुछ पूछना कहते है". कमरें में किसी के दाखिल होते सभी वहां से चले गए.
अबोली हाथ में हाथ डाले बैठी निचे कि ओर ही देखती रही। उस लड़के ने अबोली का हाथ अपने हाथ में लिया और तभी उसे जानी-पहचानी, कभी ना भूल पाने वाली आवाज़ सुनाई दी,"अबोली मुझे तुम अच्छी लगती हो, रोज़ मैं सुबह होने का इंतज़ार करता हूँ,सिर्फ तुम्हे एक नज़र देखने के लिए,अगर तुम्हारा कोई बॉय-फ्रेंड हो तो बता देना मैं तुम्हें फिर कभी तंग नहीं करूंगा"
अबोली ने झट से गर्दन उठाई और धीरे से बोली," मुझे भी तुम बहुत अच्छे लगते हो, और मेरा कोई बॉय-फ्रेंड नहीं है, क्या तुम बनोंगे मेरे बॉय-फ्रेंड"?
अबोली में तुम्हें अपने साथ ले जाने आया हु, अब तो बस मेरे साथ चलना होगा बस।
और इतना बोलते ही औसने अबोली कि ऊँगली से चांदी कि अंगूठी उतार कर चाँद सी चमकती प्लैटिनम (Platinum) कि अंगूठी पहना दी।
ज़िदगी भी आजीब होती है, हर बार इंसान को नतमस्तक करके ही दम लेती है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें