रविवार, 7 नवंबर 2021

सुधा - एक कहानी


 "सुधा ये क्या किया तुमने"

"पापा, मैं बच्ची नहीं हूँ, मैं जानती हूँ मैं क्या कर रही हूँ "

सुधा ने बहुत सोचा, की जो वो करने जा रही है उस से रोहित, उसकी और उनके बच्चों की ज़िन्दगियों में क्या परिवर्तन आएगा। पर सबके बारे में सोचना सिर्फ उसका ही काम है क्या ? बच्चे बड़े हो गए, अपनी ज़िन्दगी में सब व्यस्त हो गए, सुधा ने ये सब ज़िम्मेदारी पूरे मन से निभाई थी। 

रोहित की क्या ज़िम्मेदारी रही है, मकान को घर बनाने में रोहित का क्या योगदान रहा, बस खर्चा देना, खर्चा तो सुधा भी चला लेती, उसके लिए रोहित की क्या ज़रुरत थी। 

शादी का मतलब बस बच्चे पैदा करना और खानदान को आगे बढ़ाना ही है क्या ? सुधा, रोहित की ज़िन्दगी जी कर अब थक  चुकी थी, अब वो अपनी ज़िन्दगी जीना चाहती है। 

"सुधा, मेरी बात सुनो, रोहित को माफ़ कर दो, ये सब मत करो, इस सब से तुम्हारा घर टूट जायेगा, और रोहित की ज़िन्दगी ख़राब हो जाएगी, ये सब करके तुम कहाँ जाओगी, सुखी रह पाओगी क्या अकेली ?"

"माँ, मेरे सुख का क्या, इतने सालों से मैंने कुछ नहीं कहा, कह दो की तुम नहीं जानती रोहित मेरे साथ क्या कर रहा था ?"

"औरत का दूसरा नाम ही सहन-शीलता है"

"नहीं माँ, मैं भगवान नहीं हूँ की माफ़ कर दूँ, मेरे सब्र के सब बांध टूट गए है अब  ?"

सुबह रोहित का फ़ोन आया तो सुधा चाय की चुस्कियां ले रही थी, रोहित उसे आज का प्लान बता रहा था। शाम को पार्टी है, कहाँ और कब आने को कह कर बस फ़ोन बंद कर दिया।  

'बस इतनी ही बात थी तो मैसेज कर देता, इसके लिए कॉल करने की क्या ज़रुरत थी' सुधा चाय की चुस्की लेते सोच रही थी। 

बीस साल हुए सुधा और रोहित की शादी को। इतने सालों में अभी भी उसे ऐसा लगता था की वो रोहित को नहीं जानती, जानना तो दूर उसे रोहित को पास से देखे न जाने कितने बरस बीत गए।  

पहले दिन जब रोहित को देखा, तो सुधा ने सोचा, रोहित उससे शादी करने से मना कर देगा।  रोहित किसी फिल्म का हीरो दीखता था, सुधा को लगा की रोहित उस जैसी सीधी - साधी लड़की से शादी क्यों करेगा।  पर जब माँ ने बताया की उसने हाँ कर दी है तो सुधा को लगा शायद रोहित को उसकी सादगी पसंद आ गयी है। 

रोहित का अपनी बेटियों से बहुत लगाव था।  सुधा ने कई बार सोचा की वो रोहित से बात करे अपने रिश्ते को समझने के लिए, पर रोहित घर पर कहाँ रहता था।  

रोहित ने हमेशा दुसरे शहर में रहना और नौकरी करना पसंद किया। दूर रहने से दूरियां और बड़ गयी।  सुधा ने भी फ़िक्र करना छोड़ दिया।  रोहित के बारे में बहुत कुछ सुनने को मिलता पर सुधा को इसकी कोई फ़िक्र नहीं होती। 

रोहित के बारे में आये दिन सुन - सुन कर सुधा परेशान हो जाती, पर हर बार यही उत्तर देती,' क्या मैं रोहित हूँ ?, क्या मैं उसकी माँ हूँ ?, तो मैं क्या करूँ, वो कोई बच्चा नहीं है, वो जो कुछ भी कर रहा है सोच-समझ कर ही कर रहा होगा।' 
' पर मैं अब कोई उत्तर दूँ ही क्यों, क्यों मैं सफाई देती रहूं, जो जुर्म मैंने किया ही नहीं , उसकी सज़ा क्यों मिले मुझे'
 
सुधा के सब्र का बांध जिस दिन टूटा, उस दिन को गुज़रे अभी कुछ ही साल हुए थे  । एक पूरा दिन रोहित घर पर ही था, न उस दिन करवा चौथ था, न दिवाली और न ही होली, और हाँ किसी बच्चे का जन्मदिन भी न था।  फिर रोहित घर पर क्यों था ? सुधा को दोपहर तक एहसास हुआ की रोहित कुछ कहना चाहता था, और शाम को रोहित ने कहा की वो देश छोड़ रहा है, क्योंकि वो किसी और के साथ रहना चाहता है, न तलाक की बात की और न ही बच्चों की बात की, बस इतना कह कर रोहित चला गया। 

सुधा ने पहले सोचा किस से वो ये बात करे, किसे बताये की क्या हुआ है। पर सुधा ने चुप रहना ही बेहतर समझा।  उस दिन के बाद सुधा अपने में और मस्त हो गयी।  रोहित कब आता कब जाता, उसे, जैसे इस बात से कोई मतलब ही न था। 
 
'रोहित को जहाँ जाना है वो जा सकता है, बच्चों के बड़े हो जाने के बाद, सुधा को साथी की कमी तो खलती थी, पर रोहित उस से बहुत दूर जा चूका था, और ऐसे में रिश्तों में दूरियां मिटाना नामुमकिन सा हो जाता है ।  

"सुधा, सुधा, क्या तुम जानती हो ?, तुमने मुझे क्यों नहीं बताया ?"
माँ की आवाज़ सुधा को बाहर से ही आ गयी थी। सुधा ने माँ की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, बस वो अपने कपड़े इस्त्री करती रही।
  
"सुधा मैं तुम से बात कर रही हूँ, क्या तुम जानती थी, बोलती क्यों नहीं ?" 
"माँ तुम जान कर क्या करती, क्या रोहित को रोक लेती, और रोक भी लेती तो क्या ?, क्या रोहित के मन को बांध लेती ?"

"अब सुनो मेरी बात, रोहित को समझा दिया है, और उसे बात समझ आ गयी है, अब तुम्हारी बारी है, थोड़ा ध्यान दो रोहित पर, तुम्हारा पति है वो, भूल तो नहीं गयी तुम ?, कोई और तो पसंद नहीं आ गया तुम्हें" 
"माँ, तुम घर जाओ, मैं कर लूंगीं" 

"क्या कर लूंगीं"
"माँ, जाने दो उसे, रोक कर क्या कर लोगी, किसी का मन कैसे बांध लोगी, उसका मन अब नहीं है यहाँ, और शायद कभी था भी नहीं !"
"कैसी बातें कर रही हो ?, क्या जाने दो, जाने दो बोल रही हो, पति है तुम्हारा"
"माँ, पति है, कोई बंधुआ मज़दूर तो नहीं है न, सो ही, कह रही हूँ जाने दो उसे, जाओ माँ तुम अपना काम करो, छोड़ो उसे और मुझे "
"पर तुम करोगी क्या, कहाँ जाओगी !"
"माँ, तुम हो, पापा हैं, बच्चे हैं, और मेरा काम हैं, ज़िन्दगी जीने के लिए हैं, बिताने के लिए नहीं, जीने दो उसे" 
बात कब आयी - गयी हो गयी पता ही नहीं चला, और रोहित, वही सब, अपनी मर्ज़ी से आना - जाना, दुसरे शहर नौकरी करना, सब वही चलने लग गया। 
किसने क्या कहा, किसके कहने से रोहित रुका, सुधा को इन् बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।  
सुधा अपनी ज़िन्दगी और अपने बच्चों में मस्त रहने लग गयी  ।  



सब लोग इस बात को भूल गए पर सुधा के लिए भूलना मुश्किल था, रोहित का दिया हर ज़ख़्म उससे याद था, ज़ख्मों को सूखने का समय ही नहीं मिला था, क्यूंकि आये दिन रोहित की बातें सुधा के ज़ख्मो को कुरेदने का काम करती रहती। कुछ दिन से रोहित का व्यवहार बदला - बदला सा था, वो सुधा से बात करने के जैसे बहाने खोजता रहता, दिवाली पर उसने सुधा से अपने साथ फोटो खिचवाने की ज़िद्द भी की, जो की रोहित का सामान्य वयवहार से बहुत अलग था। अचानक रोहित के व्यवहार में बदलाव सुधा को थोड़ा अजीब लग रहा था, वो इस सब के पीछे का रोहित का मकसद नहीं समझ पा रही थी। 

आज पार्टी में जाने को जब रोहित का फ़ोन आया तो सुधा को थोड़ा गुस्सा तो आया पर अब वो पार्टी में जा कर देखना चाहती थी की बात क्या है। पार्टी पर से आने के बाद सुधा को सब समझ आ गया, रोहित का मकसद, उसका व्यवहार परिवर्तन सब समझ आ गया। 

रोहित राजनीती में अपना भविष्य बना रहा था, तो ये सब बदलाव रोहित अपनी छवि सुधारने और अपने को पत्नी - वृता और घरेलू दिखाने के लिए कर रहा था। 
सुधा ने बहुत सोच - विचार करने पर ये फैसला लिया की वो रोहित के आत्म-मकसद में अपने को नहीं शामिल होने दे गई। सुधा रोहित को और मौका नहीं देगी की वो उसे जैसे भी चाहे इस्तेमाल कर सकता है।  

सुधा ने रोहित से कानूनी तौर पर अलग होने का फैसला कर लिया, यही वजह थी की हर कोई उससे समझाने के लिए आ रहा था।  माँ - बाबूजी, भाई - बहन सब। पर सब अब क्यों आ रहे थे, रोहित को समझाने कोई क्यों नहीं आया कभी ? 
पर सुधा ने किसी की एक न सुनी, क्यूंकि अब उसने फैसला कर लिया था। 

अपनी ज़िन्दगी से जुड़े फैसले अगर हम खुद नहीं लेंगें तो कोई और हमारे लिए फैसले ले लेगा  ..... ये एक और कहानी, मेरी ओर से।


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