"हेलो, निधि"
"जी, आप कौन"?
"मैं, राकेश, पिछले हफ्ते हम पार्टी में मिले थे" राकेश अपना परिचय देते बोला
"ओह !, जी बोलिये" निधि को बिकुल याद न आ रहा था,'कौन राकेश, कब मिली मैं इस राकेश से' निधि ने दिमाग पर ज़ोर डाल बहुत सोचने की कोशिश की, पर याद नहीं आया, 'मैं तो एक ही पार्टी मैं गयी थी पिछले हफ्ते, पर वहां कोई राकेश था, पता नहीं।
"जी-जी बोलिये, कैसे फ़ोन किया" ? निधि ने अपनी उलझन को छुपाते कहा।
"कैसी हैं आप, मेरे पास आपके लिए एक job ऑफर हैं, क्या आप interested हैं" राकेश ने अपना प्रस्ताव रखते बोला
"sorry, आप मुझे job offer क्यों दे रहे हैं, न मैं आपको जानती हूँ, न आप मुझे" ? निधि ने हैरानी भरी आवाज़ में बोला।
"लगता हैं, आपने मुझे पहचाना नहीं, पहचान तो साथ-साथ काम करने हो जाएगी, क्या आप जहाँ काम कर रही हैं, क्या आप इन लोगो को जानती थी पहले "?
"बात तो सही हैं, सो काम क्या हैं, मेरा मतलब हैं job profile "" ? निधि ने बात को समझने की कोशिश करनी चाही।
"आपको Estate Manager का काम करना होगा, बस यही काम हैं" राकेश ने अपना प्रस्ताव रखा।
" पर मुझे Estate Manage करने का कोई experience नहीं हैं, बहरहाल आपके कॉल का शुक्रिया, मैं असल में इस शहर से बहार कोई job ढूढ़ रही हूँ, thanks for your call" निधि ने सब एक सांस में बोल दिया और फ़ोन रख दिया।
रोज़ शाम आती थी 🎵🎵, राकेश का फ़ोन आने से पहले निधि गाना सुनने में मस्त थी और गाने को रोक कर बीच में कॉल लेना में उसे परेशानी लगी, सो वो रिसीवर रखते ही अपना गाने सुनने में मस्त हो गयी।
बात आयी-गयी हो गयी। दिन पर दिन बीत गए, निधि को याद भी न रहा की उसने किसी राकेश से बात की थी।
दो हफ्ते बाद निधि शाम को ऑफिस का काम ख़तम कर घर जाने लगी तो फ़ोन की घंटी फिर बजी !
"निधि, कैसी हो" राकेश ने हलकी आवाज़ में बोला।
"जी, मैं ठीक हूँ, आप कौन" ? निधि ने अपना सामान समेटते बोला।
"मैं राकेश, हमने पिछले हफ्ते बात की थी याद हैं आपको, job के बारे में"
"oh! okay, yes please tell me, मैंने आपको बोला न, I am not interested, मैं अभी जॉब नहीं ढूंढ रही, इस शहर में तो बिलकुल नहीं" निधि ने झुंझलाते हुए कहा।
"निधि जी, देखिये मेरे पास एक job offer हैं, आपके लिए दिल्ली का नहीं बल्कि मनाली का, वहां एक गेस्ट हाउस, मैं चाहता हूँ आप वहां जा कर रहें और उसकी देख-भाल करें" राकेश ने बहुत ही सहजता से अपना प्रस्ताव निधि के समक्ष रखा।
"पर मुझे Guest House Manage करने का कोई experience नहीं हैं" निधि ने चिंता जताते हुए कहा।
उसकी चिंता मत करो, वहां और भी लोग हैं तुम्हारी हेल्प के लिए, और वहां रहने और खाने का भी इंतज़ाम हैं, और सैलरी भी डबल, बोलो कब जा सकती हो" राकेश ने एक बार फिर निधि के समक्ष अपना प्रस्ताव रखा।
"क्या हम कल शाम को मिल सकते हैं, मिल कर सब बातें discuss कर लेंगें"? राकेश ने अपनी बात साफ़ शब्दों में निधि के समष्क रख दी।
समय और जगह तय करके निधि ने फ़ोन रख दिया। 'कौन है ये लोग, कैसे किसी पर भरोसा कर सकते हैं, खैर बड़ी लोग बड़ी बातें' निधि ने बात को जाएदा तव्जों न दी और अपने काम में मस्त हो गयी।
ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय
कभी तो हसाये, कभी ये रुलाये
तय समय पर निधि राकेश से मिलने पहुँच गयी। निधि को इंतज़ार करते आधा घंटा बीत गया पर राकेश नहीं आया। 'लगता है राकेश जी भूल गए टाइम दे कर, या फिर राकेश जी कोई है ही नहीं, खैर चलो चलें'। निधि जाने लगी तो एक आदमी उसके पास आ कर बोला,"निधि, आपका नाम ही निधि है क्या"?
"जी, आप कौन" निधि ने पुछा।
"मेरा नाम विनोद है, मैं राकेश जी के मनाली गेस्ट हाउस में काम करता हूँ, मनाली का गेस्ट हाउस बहुत ही बढ़िया है, I am sure आपको वहां बहुत अच्छा लगेगा" विनोद ने एक सांस में बोल दिया।
"I hope so, क्या बर्फ पड़ती है वहां" ? निधि ने बात को आगे बढ़ाने की कोशिश करी।
विनोद ने अपने बैग से documents निकाले और निधि के सामने रखते बोला,"ये आपके joining documents आप आराम से पढ़ लीजिये, फिर sign कर दी जिए, जब आप joining के लिए आयेंगीं, उस दिन आपको, आपके documents मिल जायेंगें" .
'Joining Documents, कुछ जल्दी नहीं हो रहा सब' ?
"Joining Documents !, पर अभी तो बात ही करनी थी, मुझे ये भी नहीं पता की Job description क्या है, Salary क्या है" निधि ने अपना प्रश्न एक साँस में कह डाला।
"निधि जी, हमारे Boss ने अपनी company में सब employees ऐसे ही रखें है, उनको वो लोग ही पसंद आते हैं जो common sense, commonly प्रयोग में लाते हैं" विनोद ने निधि की चिंता भांपते हुए कहा, " आप documents आराम से पढ़ ले, मुझे आप कल तक बता देना, और आप कब company join कर सकती ये भी बता देना, see you soon, चलता हूँ, मैं आपके call का इंतज़ार करूँगा" राकेश अपनी बात कह कर चला गया।
कई बार यूँ भी होता है
के ये जो मन की सीमा रेखा है
मन तोड़ने लगता है
'ये तो ठीक है, सुमित को कैसे बताऊ, पर अब घर में क्या बताऊ, पर घर है कहाँ और बताना किसे है, पर फिर भी माँ ने कहा था 'एक बार घर छूटा तो मुश्किल है फिर कभी बन पाए', पर आज तक कहाँ की मैंने ज़माने की परवाह, देखा जायेगा जो होगा, पैसा किसे अच्छा नहीं लगता, कितना मुश्किल है अपने लिए कोई भी फैसला लेना, पर इसी का नाम ज़न्दगी है, चलते हैं, देखा जायेगा जो होगा' निधि खुद से बातें करती घर वापस पहुँच गयी।
जाने का दिन भी आ गया, सुमित ने कभी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं करी, और निधि ने कुछ नहीं सोचा और चल दी।
वहां पहुँच कर अच्छा लगा, बड़े शहर की दौड़-भाग से दूर,'चलो ज़िन्दगी कुछ पल तो सुकून वाली जगह में बीतेंगे। निधि को देखते ही जगह पसंद आ गयी।
निधि को देखते ही जगह पसंद आ गयी।
"निधि जी, सफर कैसा रहा, आशा है सफर मैं कोई तकलीफ नहीं हुई" राकेश ने निधि के हाथ से सामान पकड़ते कहा।
"आईये मैं आपको पहले जगह दिखा देता हूँ, यहाँ हमारे पास काम लोग है, यहाँ हम सबको अपना सामान खुद ही carry करने को कहते हैं, महामारी के बाद से हम इससे remotely working space कहने लगे हैं, कहानी लेखक, कविता लिखने वाले लोगों के बीच ये जगह बहुत popular है, आप 10 मिनट लेट पहुंची, राकेश जी अभी-अभी निकले हैं" विनोद ने आस-पास की जगह दिखते कहा।
दिन बीतते रहे, निधि को जगह बहुत पसंद आ गयी। निधि ने अपना काम भी समझ लिया।
"निधि जी, आज से आप इस जगह की Manager हैं, मेरा कान ख़तम हो गया, मुझे गोवा शिफ्ट कर दिया गया हैं, it was nice working with you" विनोद के जाने का दिन भी आ गया, वो यहाँ निधि को ट्रेनिंग देने ही आया था।
"बहुत शुक्रिया, it was pleasure learning from you, see you soon, take care" निधि ने राकेश से हाथ मिलते कहा।
"ओ हाँ राकेश जी आये थे, जल्दी मैं थे तो आपसे मिल नहीं पाए, बोल रहे थे अगली बार ज़रूर मिलेंगें" राकेश ने बोला।
"कमाल की बात हैं मुझे यहाँ आये छः महीने हो गए पर बॉस के दर्शन नहीं हुए" निधि ने हस्ते हुए कहा।
"अगली बार ही जायेगें" राकेश ने हस्ते हुए कहा।
"निधि जी आपके नाम खत हैं" चौकीदार ने खत पकड़ते कहा।
खत, सुमित का था, 'निधि, मुझे पता था की तुम हमेशा से छोटे शहर मैं काम करना चाहती थी, आशा करता हम तुम खुश होगी, ये नौकरी मुझे किसी ने बताई थी, तो तुम्हारे behalf पर मैने apply कर दिया, निधि हमारा रिशत ख़तम करने का समय आ गया हैं, मैं Australia जा रहा हूँ, अपना ध्यान रखना, आशा करता हूँ फिर मिलेंगें दो दोस्तों की तरहं' सुमित ने इतने बड़ी बातें इतनी आसानी से कैसे कह दी। निधि को अचानक से हल्का महसूस होने लगा, 'हम्म, तो सब ठीक हो गया, ठीक भी हैं, कब तक मरे हुए रिश्ते की लाश उठा कर घुमते रहेगें हम दोनों' निधि की आखों से पानी छलक आया।
इतने में किसी ने पीछे से आवाज़ दी, "निधि, कैसा लग रहा हैं यहाँ, मुझे पता था आप ये काम कर लेंगीं" राकेश ने धीमी आवाज़ में कहा।
"जी आपने सही कहा था", निधि ने आखें पोंछते कहा।
"ओह, लगता हैं मैं गलत समय आ गया, निधि, जीवन आसान नहीं हैं, तुम जानती हो, मेरे पास तुम्हारी application आयी तो उसके साथ एक खत था, जिस पर लिखा था की आप अनाथ हैं और जॉब की तलाश में हैं, पता लगाने पर आपकी कहानी के कुछ-कुछ पन्ने पड़ने को मिले, मुझे एहसास हुआ की आप इस post के लिए perfect candidate हैं, किसे अपनी ज़िन्दगी जीनी हो उसे किसी बात की कोई परवाह नहीं होती" राकेश ने निधि का दिल हल्का करने को बहुत कुछ कह दिया," i hope मैंने कुछ जाएदा नहीं बोल दिया"
"नहीं-नहीं आपने बिलकुल ठीक कहा, thanks मुझ पर ट्रस्ट करने का" मुझ पर ट्रस्ट करने का, निधि को समझ नहीं आ रहा था क्या कहे, राकेश वहां से चला गया, वो निधि को समय देना चाहता था।
निधि को सब सपना सा लग रहा था, 'ज़िन्दगी अचानक से कितनी आसान हो गयी हैं, कोई भोझ नहीं अब, बस अपनी ज़िन्दगी अपनी तरहं से जीने का एक और मौका मिला हैं, अब इसका भरपूर फायदा उठना होगा, सुमित ने भी कितना बड़ा एहसान कर दिया, और जब कल की चिंता ही नहीं रही तो आज को भरपूर जी लेंगें अब' निधि को अचानक से बहुत हल्का महसूस होने लगा।
कहानी का अंत हमेशा दो लोगो के साथ से हो जरूरी नहीं, एक कहानी का अंत अपने आप का साथ मिल जाने पर हो ये भी एक तरहं का Happily ever after है।
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