शनिवार, 2 अप्रैल 2022

एक कहानी


एक एहसास जो मरता नहीं, दीपक समझ नहीं पा रहा था की रीमा को कैसे समझाए की वो प्रेम करता है उससे, और वो, वो इस रिश्ते को ख़तम करना चाहती है। क्यों अभी कल ही तो दो साल पूरे हुए हैं उनकी शादी को, रीमा ऐसा कैसे कर सकती है। 

'सात साल हो गए, हमारा साथ बने, क्या वो प्रेम नहीं था, क्या और कब ऐसा हुआ की नौ साल पुराना रिश्ता पलक झपकते ही ख़तम कर दिया उसने, रीमा ऐसा कैसे कर सकती है' ?

रीमा पुरानी दिल्ली एक मध्यम परिवार में पली बड़ी थी, तीन बहनों और दो भाइयों में सबसे छोटी थी। बड़ी उम्र की औलाद और भाई-बहनों  में सबसे छोटी थी रीमा सो सब भाई-बहनों ने बड़े प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया था। पर लाढ-प्यार में पढ़ाई-लिखाई और दुनिया-दारी सिखाना तो भूल ही गए थे। बड़ी हुई तो सजने-धजने में ही वक़त गुज़रता था।

 दीपक, रीमा के घर के पास ही रहता था, रीमा की सुंदरता उसे दीवाना बना गयी, और दीपक का अंदाज़ रीमा को दीवाना बना गया।  दीपक उन सब से अलग था, उसकी सोच, उसका अंदाज़, उसकी ज़िंदादिली, उसका रहन-सहन रीमा को बहुत भा गया था। रीमा भी उड़ना चाहती थी, खुले आकाश को में उड़ना चाहती थी, सो, दीपक को रीमा की सुंदरता और रीमा को दीपक की ज़िंदादिली एक साथ ले आयी। 


रीमा को नयी ज़िन्दगी बहुत ही भा गई। घूमना-फिरना, देश-बिदेश में घूमना रीमा को दीवाना सा बना गया। रीमा ने खुले आकाश को अपना बना लिया।  नयी ज़िन्दगी रीमा के सर चढ़ बोलने लगी। रीमा भी भाई-बहन सबको भुला बस अपनी ज़िन्दगी में खो गई।  

जो रीमा पुरानी दिल्ली की गलियों से भी न निकली थी आज वो दुनिया के कोने-कोने में घूम रही थी। दीपक, रीमा को खुश रखने का हर प्रयास करता। रीमा को क्या अच्छा लगता है, रीमा की पसंद-नापसंद ही उसकी ज़िन्दगी थी। 




पर रीमा इस नयी ज़िन्दगी में सब कुछ भूल गयी, अल्हड उम्र की चाहत उसे गलत रहा पर ले गयी ले गयी। रीमा ने इसे छुपाने की बजाए, दीपक को सब बताना बेहतर समझा। 

"क्या कह रही हो, तुम्हें किसी से प्यार हो गया है" दीपक कुछ समझ नहीं पा रहा था, "कहीं पागल तो नहीं हो गई हो, प्यार का मतलब जानती हो, कैसे कह दिया तुमने की तुमको प्यार हो गया है" 
रीमा सर नीचे करे बैठी रही, उसे जो कहना था वो कह दिया अब वो और कुछ नहीं कहना चाहती थी। 

"रीमा, मेरी तरफ देखो, तुम क्या कह रही हो, मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा, अगर तुमको अब प्यार हुआ है तो नौ साल से तुम्हें मेरे साथ क्या था, क्यों रही मेरे साथ इतने साल" ? दीपक शांत हो कर बात को समझने की कोशिश कर रहा था। 

"मुझे नहीं पता, पर, बस अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती, मेरे दिल में रितेश बस चूका है, मुझे कुछ नहीं पता, मुझे बस जाने दो, मुझे नहीं पता कुछ भी, क्यों, कब, कैसे कुछ नहीं पता मुझे, मुझे बस इतना कहना है की मुझे रितेश से प्यार हो गया है और हम दोनों ने एक हो जाने का फैसला कर लिया है" रीमा को समझ नहीं आ रहा था की वो इस सबसे कैसे निकलेगी। 

दीपक भी अब इस लम्हें के गुज़र जाने, और सब कुछ पहले जैसा हो जाने की चाहत में वहां से चला गया। उसे लगा शायद जब वो वापस आएगा तो सब कुछ वैसा ही हो जायेगा।  

आँखों में नमी और दिल में हलकी सी आस लिए दीपक वहां से चला गया। 
एक छोटे से शहर में पैदा हुआ और ज़िन्दगी से लड़ता दीपक आज यहाँ पहुंचा था, हर कदम पर कांटे बिछे थे पर दीपक ने सब काँटों को कुचल दिया था, आज वो मुंबई में अपने फ्लैट में रहता था। हर मुश्किल को उसने आसान बना दिया था, हर तकलीफ का उसने डट कर सामना किया था, पर अब ज़िन्दगी की इस लड़ाई को कैसे पार करेगा ये बात सोच-सोच कर दीपक की ऑंखें भर आयी थी। 




रीमा ने दीपक की आँखों में पहली बार आसूं देखे थे, पर रीमा को बिलकुल रोना नहीं आ रहा था।  दीपक अगले चार दिनों तक घर वापस नहीं आया। रीमा को अपनी बात अधूरी सी लग रही थी। दीपक सही था,'अगर रितेश मेरा प्यार है, तो दीपक कौन था'। 

चार दिन बाद दीपक नहीं पर दीपक के भेजे हुए कागज़ आये। कागज़ भेज कर दीपक ने अपने प्यार का सबूत दे दिया था। पर रीमा दीपक का एहसान कैसे पूरा करेगी, दीपक ने उसे उड़ने के लिए खुला आसमान दिया था, वो आसमान जिसमें रीमा अपने पंख खोल कर उड़ सकी, पर अफ़सोस वही पंख उसे दीपक से कितना दूर ले गए। 

रीमा और दीपक एक कल की कहानी बन गए और रीमा और रितेश अपनी कहानी लिखने निकल पड़े।  


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