शनिवार, 23 जुलाई 2022

अजीब सा फैसला Part - 2

 

 भाग १ :https://tejinderkkaur.blogspot.com/2022/07/part-1-hindistory.html


भाग २ 


- 6 -

"नेहा कहाँ है" पारुल ने अनंत से पुछा.
"जी, मुझे नहीं पता, शायद लेट हो गयीं है" अनंत ने सादगी से जवाब दिया. 
"ठीक है, जैसे ही आ जाये, उसे कहना, डायरेक्टर सर बुला रहें है" पारुल बोल कर चली गयी.
पारुल के जाते ही नेहा भी आ गयी.
"हाँ, बई कैसे हो, और वो खास दोस्त कैसा है?" नेहा ने चुटकी लेते पुछा.
"जी, वो ठीक है, पारुल मैडम आयी थी, आपको डायरेक्टर सर बुला रहें है, पारुल जी अभी-अभी यहाँ से गयी है" अनंत ने जल्दी-जल्दी सब बोल दिया.
"ओह, ओके, मैं अभी आती हूँ, तुम वो फाइल निकालो जो मैंने तुम्हें शुक्रवार को दी थी" नेहा बोल कर चली गयी, अनंत फाइल खोजने में जुट गया. 
"लो जी, सामान बांधो फिर से, शुक्र है अभी आ गया ये टूर, बाद में जाना ही न हो पाता, और ये काम हाथ से निकल जाता" नेहा ने एक सांस में सब बोल दिया. 
"अच्छा, देखो मुझे तीन-चार दिन के लिए जाना होगा, यहाँ का काम तुम संभालोगे, और हाँ मुझे फ़ोन पर अपडेट देते रहना" नेहा फाइल के पने पलटते बोल रही रही थी. 

"क्या मैं भी आपके साथ चल सकता हूँ?" अनंत ने नेहा से पुछा. 
"तुम, तुम सही में जाना चाहते हो?, ठीक है, डायरेक्टर सर तो बोल ही रहे थे, चलो ठीक है, तुम भी चलो फिर" नेहा ने अनंत को बोला. 

- 7 - 


नेहा कैब मैं बैठी अनंत का इंतज़ार कर रही थी.
"यहाँ अकेले रहते हो" नेहा ने अनंत से पुछा. 
"जी नहीं, roomates भी हैं" ओह ओके, बहुत बढ़िया" नेहा आँखें बंध कर आराम से बैठ गयी, "अच्छा सुनो, मुझे शायद वहां समय न मिले पर, तुम समय निकाल कर घूमने ज़रूर जाना, बहुत बढ़िया जगह है. 

दो दिन काम करते ही बीत गए, तीसरे दिन अनंत के ज़िद करने पर नेहा सुबह-सुबह तैयार हो गई और दोनों पैदल ही सैर पर निकल गए.
"तो, गर्ल फ्रेंड का क्या हाल है, क्या करती है वो" नेहा ने पुछा.
"गर्ल फ्रेंड नहीं है अभी, कोई ऐसा मिला ही नहीं" अनंत ने भोला सा मुँह बना कर बोला.
'स्मार्ट, उस दिन restaurant में किसके साथ थे फिर, ख़ैर छोड़ो, "अच्छा, चलो वापस चलें" नेहा उठ कर जाने लगी तो अनंत ने उसका हाथ पकड़ लिया, "रुकिए न, यहाँ बहुत बढ़िया नाश्ते वाला है, जो फ्रेश नाश्ता बनाता है, चलिए न वहां चलते हैं" अनंत, नेहा का हाथ छोड़ दूकान की ओर चल दिया. 

'ये.....  क्या हुआ अभी' नेहा बिना कुछ कहे ही अनंत के पीछे-पीछे चल दी. 
"अरे, साहब तो आप आ गए, यही हैं क्या वो, आज मैंने आपके कहे अनुसार गोभी के परांठे बनाये हैं" दुकानदार ने अनंत को देखते बोला.

"तो ये प्लानिंग कब से चल रही है, मुझे यहाँ लाने की, और तुम्हें कैसे पता चला की मुझे गोभी के परांठे पसंद हैं" नेहा ने चुटकी लेते बोला. 
"नेहा जी, आप इतने लगन और धैर्य से मुझे काम सीखा रही हैं तो मेरा इतना तो फ़र्ज़ बनता ही है की मैं आपके लिए भी कुछ करूँ !" अनंत ने नेहा को परांठे की प्लेट पकड़ाते बोला.

- 8 - 

आज सुबह की सैर के बाद नेहा ने अनंत से कोई बात नहीं की.
'न नेहा शाम की चाय के लिए आयी और न ही रात के खाने पर, क्या हुआ होगा, कहीं मुझसे नाराज़ तो नहीं !' अनंत सोचते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ चला, रास्ते में देखा तो नेहा स्विमिंग पूल में थी, "नेहा, कहाँ थी आप, मैं सारा दिन आपको ही को खोज रहा था".
"एक दिन और रुक जाएँ तो कोई एतराज़ तो नहीं है न" नेहा, अनंत को देखे बिना बोला.

अनंत के जवाब न देने पर नेहा ने मुड़ कर देखा तो अनंत उसके पीछे खड़ा था, अनंत की उँगलियाँ, नेहा के हाथों  को जकड़ रही थी, नेहा ने आज से पहले कभी ऐसा महसूस नहीं किया था, नेहा के तन-बदन में एक नयी सी लहर दौड़ने लगी, उसके रोम-रोम में अनंत का एहसास दौड़ने लगा, अनंत के अघोष में नेहा पूरी तरहं पिघल सी गई
"नेहा, ये सब पहले क्यों नहीं बताया" अनंत ने धीरे से बोला, अनंत आगे कुछ न बोल पाया और रात यूँ ही बीत गई.

अगले दिन सुबह अनंत की आँख खुली तो नेहा उसके पास ही तैयार हुई बैठी थी, "आपने कल कहा था की हम आज नहीं कल जायेंगें, तो सो जाइये" अनंत ने नेहा के बाल सहलाते बोला.
"चलो, तैयार हो जाओ जाना है" नेहा ने अनंत की बात का जवाब नहीं दिया. 
"पर, इतनी सुबह जाना कहाँ है" अनंत ने नेहा को अपनी और खींचते बोला.
"शादी करने" नेहा ने अनंत की आँखों में आँखें डाल धीरे से बोला बोला.

- 9 -


"क्यों किया तुमने ऐसा नेहा, क्या तू, सच में किसी से नहीं डरती ?" माँ ने आसूं पोंछते पुछा  
दरवाज़े की घंटी बजी तो माँ कांप गई, "क्या हुआ माँ, क्यों डर गई, दरवाज़े की घंटी ही तो बजी है, मैं देखती हूँ कौन आया है, शायद अनंत हो".
"उसे अभी जाने को कह दो, मुझे नहीं मिलना उससे, सारी मुसीबत की जड़ ही वो है, ना वो तेरी ज़िन्दगी में आता, और न ये सब होता" माँ ने गुस्से में बोला. 
"माँ, क्या ये सब उसी की गलती है क्या, बस करो प्लीज, वो बहुत अच्छा है, ऐसा मत बोलो" नेहा दरवाज़ा खोलने चली गई. 
दरवाज़े पर अभिनव था,"ओह, तुम तो यहीं मिल गई, मैंने सोचा तुमसे बात करने के लिए तुम्हारे हनीमून से आने का इंतज़ार करना होगा".
"जब सब पता चल ही गया तो यहाँ किस लिए आये हो" नेहा ने सोफे पर बैठते बोला. 

"देखने आया हूँ की मेरे प्यार का रंग हसीं था या तुम्हारे प्यार का रंग हसीं है" अनंत ने मुस्कुराते बोला,"पर तुम पर तो असमंजस का रंग चढ़ा हुआ है, लगता है तुम अपने फैसले से खुश नहीं हो, तो क्यों किया ऐसा?".
"तुम जा सकते हो, जो बीत गई सो बात गई, मुझे तुमसे और कोई बात नहीं करनी" नेहा दरवाज़े के पास जा कर खड़ी हो गई.
"नेहा, याद रखना किसी का दिल दुखा कर कोई खुश नहीं रहता, पर मैं तुम्हारी ख़ुशी के लिए दुआ करूँगा " अभिनव आँखों में आसूं ले चला गया.
अभिनव के जाते ही दरवाज़े की घंटी फिर से बज गई, नेहा ने खीजते हुए दरवाज़ा खोला,"अब क्या है?"
"अरे, किस पर इतना गुस्सा निकला जा रहा है" अनंत ने मुस्कुराते पुछा.

"कुछ नहीं बस यूँ ही, आओ न, माँ अंदर है" नेहा ने अनंत से कहा. 
"मैं माँ से मिल कर आता हूँ, ओह, ये गिफ्ट-बैग बहार पड़ा था, तुम्हारा नाम है इस पर, शायद कोई तुमसे मिले बिना ही चला गया, शायद जल्दी में था" 
'अभिनव ही होगा' बैग में एक खाली फोटो फ्रेम था और एक कार्ड था, उस पर लिखा था, 'मेरे प्रेम की अधूरी कहानी की तरहं, ये फ्रेम भी अधूरा सा है, अगर तुम्हें अपने प्रेम की कहानी पूरी सी लगने लगे तो इस फ्रेम में अपनी तस्वीर लगा लेना '  

                                                                     to be continued .................

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