एक
अजीब-सी उलझन है, क्या मैं खुद से अनजान हूँ या अनजान हैं सब मुझसे? एक अजीब-सा ख़याल है, कि मैं नाराज़ हूँ खुद से या सब नाराज़ हैं मुझसे? एक अजीब-सा एहसास है, कि मैं खुद से तन्हा हूँ या किसी की बेरुखी सबसे तन्हा कर गयी मुझे |
'हिंदी कवितायेँ 'और कुछ 'हिंदी कहानियाँ' सपनो में गुज़र रही है ज़िन्दगी, ख्यालो में बना रखा है हमने अपना घर, दिल की बात को शब्दों की माला में पिरोते रहना, बस इतना ही बना रखा है हमने अपना दायरा, जीने के लिए बस जो ज़रूरी है उतने में ही समेट रखा है हमने अपना जहां। 'Hindi Poems' and some 'Hindi Stories'
मंगलवार, 9 सितंबर 2025
अजीब-सी उलझन
सोमवार, 4 अगस्त 2025
हम भी क्या दीवाने रहे
सोमवार, 21 जुलाई 2025
अजीब सुकून है
सोमवार, 10 मार्च 2025
ज़िंदा - ज़िंदा सा
अपनी खुशबु से महका दो मुझको
कि आज कुछ होश-होश सा लग रहा है मुझको
एक बार फिर अपने प्यार में डूबा दो मुझको
कि ना जाने क्यूँ खुद से ही बेगाना सा लग रहा है मुझको
बस आज अपने प्यार से दीवाना बना दो मुझको
की ना जाने क्यों तन्हां-तन्हां सा लग रहा है मुझको
बस आज मुझको, मुझ से ही चुरा लो
की ना जाने क्यों ज़िंदा - ज़िंदा सा लग रहा है मुझको
#hindiblog
#kahaanikaar
सोमवार, 24 फ़रवरी 2025
बस इतना सा ही जहां होता
एक नज़र का ख़्वाब
होता,
कोई मीठा सा हिसाब
होता,
तेरी बाहों में सिमट जाती
मैं,
या फिर कोई नया
ख्वाब होता।
रास्ते
चुपचाप चलते,
हम कहीं दूर तक
चलते,
ना कोई मंज़िल की
फ़िक्र होती,
ना कोई डर साथ
पलते।
बादलों
से गुफ़्तगू करते,
चाँद की चुप्पी को
पढ़ते,
सांसों की धड़कनें सुनते,
ख़ामोशी में लफ़्ज़ बुनते।
पर ये दुनिया रोक
देती है,
हर कदम पे टोक
देती है,
कभी रिवाज़ों की ज़ंजीरें,
कभी रस्मों की दीवारें खींच
देती हैं।
फिर
भी सोचती हूं हर पल,
अगर ये सब ना
होता,
एक मैं और एक
तुम,
बस इतना सा ही
जहां होता
: इतना सा जहां : |
|
शनिवार, 21 जनवरी 2023
बस यूँ ही
शनिवार, 26 नवंबर 2022
बस लिख देते हैं
जो कह नहीं सकते, वो लिख देते हैं
जो समझा नहीं सकते, वो लिख लेते हैं
जो कहा नहीं जाता वो भी, बस लिख देते हैं
शब्दों से शब्द जुड़ते जाते है,
और हम बस लिख देते हैं .....
शनिवार, 8 अक्टूबर 2022
कुछ बातें
दर्द सा होता था जिसकी ख़ामोशी से कभी
अब उसकी, उसी ख़ामोशी से दिल बहल जाता है
तरसती रही ऑंखें उसकी एक नज़र के लिए
अब उसीकी एक नज़र का, ख्याल ही बहला देता है हमको
बड़ा सुकून मिलता है बे आराम सा रहने में अब
की आराम भी, बे-आराम सा लगने लगा है
शनिवार, 3 सितंबर 2022
दिल की थोड़ी और
#hindi
शनिवार, 13 अगस्त 2022
बस वही - एक एहसास - सुरूर पुराने गानो का !
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ये शाम भी कुछ अजीब है
जहाँ पहली बार मिले थे हम
जिस जगह से संग चले थे हम
ये रहें याद करती है
ये गुलशन याद करता है
बेदर्दी बालमा तुझको
मेरा मन याद करता है
मोहबत में इतना न हमको सताओ
आजा तेरी याद आयी
ओ बालम हरजाई
के आजा तेरी याद आयी
आवाज़ दे कर हमें तुम बुलाओ
मोहबत में इतना न हमको सताओ
विरहा की इस चिता से
तुम ही मुझे निकालो
जो तुम न आ सको
मुझे स्वपन में बुला लो
माने ना मन मतवाला
अब आके तुम्हीं समझाओ
मैने अब तक बहुत संभाला
आजा तेरी याद आयी
ओ बालम हरजाई