सोमवार, 1 सितंबर 2025

नादानियाँ

 

कुछ कच्ची उम्र

की

नादानियाँ थी

वो

अब पक्की उम्र में

लौट आयी हैं

 

नादानियाँ भी ऐसी

जो न

बालों की चाँदी देखती है

और न

उम्र की लकीरों का

तकाज़ा करती हैं

 

बस वो कच्ची उम्र वाले

लिहाफ ओढ़े

मुझे अपने में

समेटने को आती हैं

  

कोई जा कर कह दे

उन कच्ची उम्र की

नादानियों से

की अब हम

ज़माने को न छोड़ पायेंगें

और न ही

वो कच्ची उम्र वाला

लिहाफ ओढ़े पायेंगें



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