कुछ कच्ची उम्र
की
नादानियाँ थी
वो
अब पक्की उम्र में
लौट आयी हैं
नादानियाँ भी ऐसी
जो न
बालों की चाँदी देखती है
और न
उम्र की लकीरों का
तकाज़ा करती हैं
बस वो कच्ची उम्र वाले
लिहाफ ओढ़े
मुझे अपने में
समेटने को आती हैं
कोई जा कर कह दे
उन कच्ची उम्र की
नादानियों से
की अब हम
ज़माने को न छोड़ पायेंगें
और न ही
वो कच्ची उम्र वाला
लिहाफ ओढ़े पायेंगें

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