रविवार, 16 नवंबर 2014

यूँ ही ...............

गर ये सिर्फ मोहब्बत होती,
पल दो पल की बात होती,
तो आसान होती ।
पर मेरी जान ,
ये तो उम्र के साथ की बात है,
साथ हर पल में,
साथ उस पल में ,
जब मैं नाराज़ सी रहूँगीं
साथ उस पल में,
जब मै बिना बात ख़फा सी रहूँगीं,
जब तुम मुझे देखना भी गवारा न करोगे,
सात जन्म की छोड़ो,
इस उम्र की बोलो,
क्या तुम साथ दे पाओगे ,
क्या मेरी लकीरों में ,
प्यार खोज पाओगे,
क्या मेरी ढलती काया को,
नरम हाथों का स्पर्श दे पाओगे,
गर तुम ...
सात वादों के पार सब वादे निभापोगे ,
तो आओ इस दुनिया में,
हम अपनी दुनिया बसा लेते,
मेरी जान ...
आओ हम सितारों तक का सफ़र,
इक दूजें की बाँहों के सहारें गुज़र कर लेते है।
आओ प्यार को अपनी 
मलकियत बना लेते है ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें