शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

कुछ ख़याल कुछ पंगतियाँ। ……


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ये जिस रंग मैं रंग डाली है, तूने मेरी ज़िन्दगी,
हो सके तो इस रंग का नाम भी बता दे,
क्यूंकि कल ही कोई पूछ रहा था,
किस रंग में रंगे हो आजकल 

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ना पूछ मुझसे मेरी दास्तान,
मैं और मेरी तन्हाई के चर्चे आम हो जायेंगें .

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कोरे पनों को...अधूरे शब्दों को अपनी कहानी कहने दो .

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बेदर्द ज़माने मैं दर्द ढूढ़ रहे हो ..... दीवाने लगते हो.

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चलो हाथ उठा  मांगें उस खुद से नेमतें जो कर रहा है सब पर नेमतें 
कोशिश करने वालों की हार न हो, बस इतनी रहें उसकी रहमतें। 


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धोखेबाज़ों की किताब में कोई हमारा भी नाम दर्ज करवा दे 
एक अरसा हो गया हमे खुदको प्यार के नाम पर धोखा देते हुए।


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वो जो जहाँ की दीवारों पर बेवफाओं का नाम लिखती फिरती है,
पगली खुद का नाम लिखना क्यों नहीं जानती।

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वो जो माँ के आँचल को समझती थी अपना जहाँ,
आज वो हर शाम धुएं का आँचल है बनती पगली।
वो जिसका जहाँ माँ के आँचल तक ही था कभी,
आज वो कश पर कश लगा ढूढ़ती है अपना जहाँ। 
भटकने की अदा तो देखो उसकी,
खुद में बस खोई रहती है वो कहीँ ,
उस अंचल की तलाश में बस जिए जाती है पगली। 

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पर कटे पंछियों का सयाद भी नहीं होता,
जहाँ में जिनके लिए कुछ नहीं होता,
उन्हें कुछ गवाने का डर भी नहीं होता। 

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