कुछ ये सुरूर है की तुम याद आते हो
और फिर, मैं खुद ही जुदा हो जाता हूँ
पल आते है, जाते है
दुनिया की रस्में चलती रहती है
तुम्हारी कमी सी खलती है !
कभी - कभी लगता है
क्यों जी रहे हैं
कौन सा क़र्ज़ है
जो उतरते ही नहीं बनता
याद किये नहीं बनता
क्या तुमसे कोई वादा किया था !
अब मिलो तो याद करवा देना
वादा पूरा कर पाएं
हो सकता है मुमकिन न हो,
पर वो जो अधूरा कर्ज़ है
उसका यकीन तो हो जायेगा
मरने की भी जल्दी नहीं
उस पार तुम मिल जाओगे,
इस का यकीन भी तो नहीं I
अब आ ही गए है
तो दुनिया के हर सितम
देख कर ही जायेंगें
सितमों का हिसाब
करके, ही जायेंगें
उस पार इन सितमो
को संग नहीं ले जायेंगें
गम , ख़ुशी
सबका हिसाब यहीं करके जायेंगें
उस पार कुछ न ले जायेंगें
फिर आयें न आयें
सब हिसाब अब की बार ही
बराबर कर जायेंगें
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