"बाजी, ओ बाजी, अब चलो भी, तुम तो देर कर दोगी, डॉक्टर चला गया तो फिर न जाने कब नंबर मिले"
"ज़रुरत क्या है इन्हें ले कर जाने की, तुम तो बस ज़िद पकड़ लो तो सुनती कहाँ हो किसी की"
"हर बार अकेले छोड़ कर जाना अच्छा भी नहीं लगता" सितारा ने अपने पति को चुप कराते बोला ।
"देखो अब उन से कुछ न कहना, अब उनकी उम्र हो चली है, अच्छा नहीं लगता" सितारा जानती थी की बहन-भाई के बीच में बोलना अब उसे बंद करना होगा ।
हर एक की अपनी ज़िन्दगी है, बर्बाद है या आबाद, इसका फैसला कैसे हो। जिसे जो अच्छा लगा वही वो करता गया। समीरा बाजी को देख बुरा तो लगता है, पर क्या किया जाये। किसके दिल में क्या है इसका पता कैसे चले।
बहुत वक़त गुज़र गया समीरा बाजी ने बात करना भी अब बंध सा कर दिया था, बस मतलब का ही बोलती थी। शिकायत तो यु भी कभी नहीं करती थी पर अब तो कुछ कहती भी नहीं थी। खाना बहुत पसंद था पर अब वो भी कम कर दिया था। पहले कभी-कबार कहीं चली जाती थी, अपनी बहन या दूसरे भाई से मिलने पर अब वो भी अब बंद कर दिया था।
लोग कहते हैं जब जवान थी तो, नाक पर मक्खी भी न बैठने देती थी, बस, शायद यही गुरु ले डूबा इन्हें ।
कौन जाने किसके मन में क्या है, समीरा बाजी को देख कर लगता है, कहीं न कहीं वो समय के गुजरने का अंदाज़ा न लगा पायीं, अपनी ही धुन में रही, समझौता भी नहीं कर पायी। दूसरों से समझौता करना फिर भी आसान होता है, पर खुद से समझौता कैसे किया जाये, बहुत मुश्किल है अपने आप को समझाना।
एक दो बार लड़का देखना - दिखाना भी हुआ, पर शायद आत्मविष्वास की कमी ही रही होगी, बाजी अपनी न कह कर बस अपने भाई बहनों की सुनाती रहती। और सामने वाला चीड़ कर खुद ही बोल - चाल बंध कर देता। पर लगता है वो सबको भगाने के लिए ही ऐसी बातें करती।
बाल काले कर बुढ़पा दीखता नहीं पर चेहरे की झुर्रियां सब बयान कर देती है, और फिर बालों की चांदी यूँ बढ़ने लग जाती है की बस फिर कुछ छुपाये नहीं छुपता। उम्र का आकंड़ा घटा कर बताने से भी कोई फरक नहीं पड़ता, ऑंखें सब बयान कर देती है।
हस्ती खेलती बाजी एक दिन बस चुप सी हो गयी। अब न तो हस्ती हैं और न ही रोती है। शादी न सही कुछ अपना ही कर लेती, दो पैसे हाथ में होते तो ये सब न देखना पड़ता।
ज़िन्दगी बड़ी अजीब सी होती है, अपना - अपना कह कर बस सब ठगते ही हैं। मिया - बीवी भी बूढ़े होने पर ही एक दुसरे को समझते हैं, उस से पहले तो बस यु ही चलता रहता है।
" बाजी वहां सब सच-सच बताना, कुछ छुपाना मत " समीरा बाजी ने अपनी भाई की बात सुन बस सर हिला दिया।
कुछ दिन से बहुत बीमार सी लग रही थी, सो सितारा के कहने पर डॉक्टर के पास जाने को तयार भी हो गयी।
डॉक्टर ने जाँच के बाद बताया की समीरा बाजी रोज़ खाने वाली दवाई बंध कर दी है, और, और डॉक्टर ने कुछ नहीं कहा, समीरा बाजी ने डॉक्टर को चुप करवा दिया और सबसे वापस चलने को कहा।
सितारा का डर अब यकीन में बदल गया था, उसे कुछ दिन से महसूस हो रहा था की बाजी अब जीना नहीं चाहती, बस सब ख़तम कर देना चाहती हैं।
"बाजी, कुछ तो बोलो क्या हुआ" गाड़ी में बैठने से पहले ही सितारा ने पति को कहा था की अब कुछ मत कहना और कुछ मत पूछना, मगर वो सब बेकार गया।
"मैंने जाने का फैसला कर लिया हैं" ऐसा लगा समीरा बाजी ने न जाने कितने सालों बाद कुछ बोला, पर बोला भी तो जाने के लिए।
"ठीक हैं, मैं टिकट निकाल दूंगा, कब जाना चाहती हो"
समीर बाजी चुप - चाप बैठी रहीं।
"बोलती क्यों नहीं, कब जाना चाहती हो, और कहाँ"
सितारा ने पति के हाथ को दबोच कर इशारा करना चाहा।
वापस घर पहुँच कर समीरा बाजी बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गयी। भाई ने आवाज़ दी पर वो भी न सुनी।
बाजी की ये रात आखरी रात रही, बिना कुछ कहे वो चुप - चाप ही चली गयी, न टिकट निकालनी पड़ी और न ही बाजी ने कुछ बात की।
क्या ज़िन्दगी रही, कुछ लोग कह रहे थे बस चली गयी, पर देखा जाये तो बाजी अपनी ज़िन्दगी अपनी शर्तो पर जी कर गयीं, जाते हुए भी किसीको कुछ न बता कर चली गयी। और उनकी कहानी ही रह गयी।
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