अजीब से मोड़ ! ज़िन्दगी के, हैरान कर देते है, कई सवाल है जो मन में उठते हैं, क्या करें और क्या न करे बस यही असमंजस सा रहता है। और बस इन्हीं सवालों में ज़िन्दगी बीत जाती है, किसी ने सच ही कहा है 'जब ज़िन्दगी समझ आने लगती है, तब तक उम्र ही बीत जाती है'।
टूटा हुआ दिल, बिखरी हुई ज़िन्दगी दोनों मिल कर परेशान तो करते हैं और वो जो सवाल, कभी खुद से पूछे जाते थे उन सब प्रशनो के उत्तर भी मिलने लग जाते हैं। क्या यही ज़िन्दगी है, क्या सबके साथ यही होता है ?
आखिर मकसद क्या है ज़िन्दगी का?
क्यों जीते रहते हैं ?
किस आस में दिन पर दिन गुज़र रहें हैं ?
और आस है, की टूटती भी नहीं।
और, अब जब उम्र बीतने को आयी तो एहसास हुआ की, बे वजह इतनी सर खपाई करने की ज़रुरत ही नहीं थी, बस जीना ही था, दिन जैसे थे वैसे ही बीता देने थे, बस बात इतनी सी थी की, जो मिला वो अपना था, और जो नहीं मिला वो सपना था, और सपने, सच नहीं होते।
पर जब तक ये समझ आया, तब तक उम्र ही बीत गयी थी। पर अब क्या, अभी भी तो है, कुछ साल अपने, उनको कैसे जीना है।
कई बार जब में बड़े उम्र के लोगों को देखती थी तो उनके चेहरे पर एक अजीब सी शांति और ठहराव सा देख कर लगता था, 'क्या इनको तनाव का मतलब भी पता होगा? तनाव से कैसे लड़े होंगें ये लोग।
अब समझ आता है, लड़े तो होंगें पर अब समझौता सा कर लिया है, और तनाव को अपने पर हावी नहीं होने देते।
आईना देख कर लगता है, ये चाँदी सी लकीरें कहाँ से आयी हैं, कब बालों का अंधेरा, चांदनी सी रौशनी में बदल गया एहसास ही नहीं हुआ, पर गिनती करने पर एहसास होता है कितनी लम्बी ज़िदगी थी पर बस लगता है पलक झपकते बीत गई।
क्यों इतनी जल्दी थी जीने की ? एक-एक पल जीना था, साल दर साल अपने मन की करनी थी, और प्यार करना था, पल-पल हंसना-हँसाना था। ।
कुछ युवाओं को देख कर लगता है की, इनको बता दूँ की जीवन को जी लो, खुल कर, पर फिर समझ आ जाता है की जाने दो, यही सब तो है ज़िन्दगी, गलती करो और सीखो और आगे बढ़ो। और जब हमें कोई बताये तो कैसा लगता है ?
तो, इस सब का सार यही है, जो है वो अपना है, जो नहीं मिला वो सब सपना ही समझो, और बस खुश रहो, तनाव बेकार है।
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