सुरूर हिंदी ६०,७० और ८० के दशक के गानो का :
एक शनिवार की शाम थी और पूरा हफ्ता काम करने के बाद बहुत थका - थका सा महसूस हो रहा था, और बस :
रोती हैं आज हम पर तन्हाईयाँ हमारी
रोती है आज हम पर तन्हाईयाँ हमारी
वो भी न पाये शायद परछाईयाँ हमारी
बढ़ते ही जा रहे हैं मायूसियों के साये
लो आ गयी उनकी याद वो नहीं आए 🎵🎵🎵
तुम्हारा ख्याल आ गया, होंठ गुन-गुनाने लगे, मन का पंछी तुम्हारे पास उड़ चला, तुम न जाने मुझे याद करते भी हो या नहीं।
एक एहसास सा है जो मरता नहीं। मन तो बहुत करता है तुमसे पूछने का, पर ये सोच कर की कॉल करने पर कहीं तुम ये न पूछ बैठो ....'तुम कौन, याद नहीं आ रहा' ..... हाथ फोन की तरफ बढ़ते ही नहीं। क्या पता तुम्हें, मैं याद भी हूँ की नहीं, तुमने नंबर तो बदल नहीं लिया, पर पर तुम, तुम भूले नहीं भूलते। मन का पंछी तुम्हारे पास उड़ जाने को करता हैं, पर कहाँ हो तुम, कहाँ ढूँढू तुमको, क्युंकि :
मौत भी आती नहीं आस भी जाती नहीं
दिल को ये क्या हो गया, कोई शय भाति नहीं
लूट कर मेरा जहाँ, छुप गए हो तुम कहाँ
तुम न जाने किस जहाँ में खो गए
हम भरी दुनिया में तन्हां हो गया 🎵🎵🎵
ज़िन्दगी का सवाल पीछा कब छोड़ता है, जब ज़िन्दगी में अपने मन की न कर पाएं, तो ज़िन्दगी के मायने क्या ?
क्यों है बेबस सी ज़िन्दगी, क्यों है चाहत की कमी
जो मिले उसी में गुज़र,
क्यों कर लेते हैं
हम भी क्या हैं के बस यु ही बसर कर लेते हैं
किस बात पर जी रहे हैं, किसकी आस में चले जा रहे हैं, क्यों हर पल मन को मार कर होठों पर हसीं सी रखे रहते हैं। उम्र बढ़ती जा रही, पर एहसास को कहाँ उम्र के बढ़ने का अंदाज़ा है। काया ढलने को है पर एक एहसास है जो अभी भी जवाँ-जवाँ से हैं। तुम्हारी याद आते ही बदन में सर-सराहट सी होने लगती है, और मन तुम्हारे आग़ोश में खो जाने को करता है। और दिल से आह सी निकलती है :
मन है की जा बसा है, अनजान एक नगर में
कुछ खोजता है पागल, खोई हुई डगर में
तुम्हें याद करते-करते, जाएगी रैन सारी
तुम ले गए हो अपने, संग नींद भी हमारी
तुम्हें याद करते-करते...🎵🎵🎵
एक एहसास सा है जो मरता नहीं। तुम्हारी याद आते ही मन बच्चा सा हो जाता है। दौड़ कर तुम्हारे आग़ोश में समा जाने को कहता है। बच्चा सा मन तुम से लिपट जाना चाहता है। मन कहता है 'काश मैं सय्याद होता ओर तुम पंछी होते, दिल के पिंजरे में तुमको कैद करके रख लेते'। पर प्रेम है तो कैद भी नहीं किया जाता। पर खुला छोड़ देने का भी मन नहीं करता। डरता है मन की क्या मालूम तुम वापस आओ न आओ।
..... फिर सोच आती है की कहीं ये मेरा बस, डर ही तो नहीं, एक बार तुमसे बात करलूं तो शायद तभी ये सब बातें खुल जाएँ। पर, कैसे, कैसे हो वो बात, कैसे मिले तुमसे, कैसे पूछे तुमसे, उफ़, क्या मजबूरी है, पुछा जाता नहीं, बताने की हिम्मत नहीं होती। ओर फिर मन से आह निकल आती है :
दिल को तेरी ही तमना, दिल को तुझसे ही प्यार
चाहे तू आए न आए, हूँ करेंगें इंतज़ार
ये मेरा दीवाना पन है, या मोहब्बत का सुरूर 🎵🎵🎵
एक एहसास सा है जो मरता नहीं। न जाने कब से ये सुरूर चढ़ा हुआ है, तुम्हारे होने का एहसास दिल न जाने कब से लिए बैठा है। तुम आस-पास ही कहीं लगते हो। पर देखूं तो दिखते नहीं। मन कहता है तुम यही हो, मेरे पास। मन कहता है अभी वो पल आएगा जिसमें बस हम-तुम होंगें, सारे पल वहीँ सिमट जायेंगें, निगाहें, निगाहों में खो जायेंगीं, ये फ़िज़ा हम को अपने में छुपा लेगी। मन कहता है वो पल आने वाला जिसमें मौत का भी तुम्हारे ओर मेरे लिए कोई वजूद नहीं रह जायेगा। पर डरता है मन क्यूंकि ये एहसास है जो एहसास है वो बस एहसास ही तो है, न दिखाई देता है, न उसका कोई वजूद होता है। और फिर बस यही कहता है मन :
रात और दिन के ये दो चेहरे, कब तक पहनू कुछ तो कह रे
कौन हूँ मैं, क्या हूँ, सच हूँ या साया हूँ
आवारा ए मेरे दिल जाने कहाँ है तेरी मंज़िल 🎵🎵🎵
इन अशआर से गुज़रना भी एक अहसास ही रहा - किसी बहती धारा के साथ-साथ बहते चले जाने क अहसास।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपके समय का
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