Part 1 : https://tejinderkkaur.blogspot.com/2022/06/premdhokha-lovestory.html
Part 2: continued .......
नमिता की आंख खुली तो उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके सर पर हतोड़ा मार दिया हो, नमिता कुछ बोलने लगी तो उसे एहसास हुआ की उसके मुँह पर कपडा बंधा था. रेडियो पर कहीं संगीत बज रहा था,
"तेरे दम से ही है सलामत मेरे दिल का आशियाना, अरे आप जग गई, चार घंटे से सो रही है आप, कुछ पता है, कुछ खाएँगीं, भूक लगी है या नहीं" आनंद नमिता के सामने कुर्सी पर बैठा था.
नमिता उठ कर बैठ गई, उसके हाथ बंधे हुए थे ओर मुँह पर पटी बंधी थी .
"अगर आप चिलायें न तो मैं ये पटी खोल देता हूँ" आनंद ने नमिता से पुछा.
नमिता ने हाँ में सर हिला दिया, आनंद ने नमिता के मुँह पर बंधी पटी खोल दी.
"मुझे washroom जाना है" नमिता ने धीरे से बोला.
"हाँ, हाँ, वो रहा सामने, जाइये" आनंद ने प्यार से बोला.
नमिता ने देखा washroom साफ़-सुथरा था, पर वहां कोई खिड़की नहीं थी, नमिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था, 'चिल्लाने की बजाए, आराम से काम लेना होगा, न जाने ये जगह कहां है, जंगल में या शहर में, चिल्लाने से बात बिगड़ सकती है' सोचते-सोचते नमिता बाहर आ गई.
"मैं, खाना ले कर आता हूँ, आप आराम करें, मुझे शायद देर हो जाये, पानी, चाय और कुछ फल यहाँ है, आप अभी यही खा सकती हैं" इतना कह आनंद बाहर से लॉक लगा कर चला गया. नमिता उठ कर दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी, तो उसे एहसास हुआ की उसके पैर में बेड़ी पड़ी हुई थी. किसी जानवर की तरहाँ बेड़ियों से बंधी थी नमिता.
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नमिता को अंदाज़ा भी नहीं रहा की उसे कैद में रहते हुए कितने दिन बीत गए, सारी-सारी रात और दिन के कई घंटो वो वहां अकेली पड़ी रहती , "नमिता, नमिता", नमिता ने आँखें खोली तो वो आनंद को अपने बहुत करीब पा कर डर गई.
"नमिता डरो मत, खाना लाया हूँ, खाना खा लो" नमिता ने आनंद के हाथों से खाने का packet ले लिया,"देखो मैं बुरा नहीं हूँ, बस तुमको देखते ही ऐसा लगा कोई अपना मिल गया हो, मेरे दिल और दिमाग पर बस तुम ही तुम छायी रही, रात-दिन, सोते-जागते बस तुम ही तुम मेरे ज़हन में रही ,और फिर जब तुमने वापस जाने की बात की और माँ से तुम्हारे बेटे के बारे में पता लगा तो मैं डर गया, की तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी, और अब जाने-अनजाने में मुझसे ये सब हो गया, अब तुम बताओ ये सब कैसे ठीक होगा" आनंद ने अपने हाथों में अपना चेहरा छुपाते बोला.
"पर ये सब, ये सब कब तक चलेगा, कितने दिन हो गए, न जाने मैंने कबसे कपडे भी नहीं बदले , क्या चाहिए तुम्हें मुझसे" नमिता ने धीमी सी आवाज़ में पुछा.
"शादी, शादी करनी है मुझे तुमसे, अब बताओ क्या जवाब है तुम्हारा, सब को छोड़ बस तुमको मेरी ही होना होगा" आनंद ने नमिता की आँखों में आँखें डाल कर बोला.
"ठीक है, मैं तुमसे शादी करूंगीं, मुझे यहाँ से जाने दो तुम जब बोलोगे, जहाँ भी बोलोगे मैं आ जाऊँगी" नमिता ने पलट कर जवाब दिया.
"और तुम्हारा पति" आनंद आगे कुछ कहता, नमिता ने तुरंत उत्तर दे दिया.
"नहीं है पति, अब जाने दो, मेरी माँ सच में बहुत बीमार हैं, कितने दिन से उन्हें कॉल भी नहीं किया, न जाने किस हाल में होंगीं वो, please मुझे जाने दो" नमिता ने आग्रह किया.
"नमिता, मेरी नमिता, तुम समझ नहीं रही हो, अब तुम यहाँ से कैसे जाओगी, बाहर सब तुम्हें ढूंढ रहे हैं, पुलिस तुम्हें जंगल में भी खोज रही है, कितनी बार तो मेरे घर भी आ चुके हैं" आनंद ने अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा रखा था.
"ओ, आनंद ये क्या कर दिया तुमने, मेरी माँ को पता चला तो वो मर जाएँगी, कम से कम एक बार मुझसे बात तो कर लेते" नमिता की ऑंखें भर आयी
नमिता की आँखों में आंसू देख आनंद डर गया,"नमिता ये सब क्या हो गया, क्या करूँ मैं अब, मुझे जेल नहीं जाना, मेरी माँ मर जायगी, अगर उसे ये सब पता लगा तो, क्या कर दिया मैंने, अपने ही हाथों प्रेम का गला घोट दिया, कैसे माफ़ी मिलेगी मुझे, कौन समझेगा मुझे" आनंद बोलता-बोलता वहां से बाहर भाग गया
"आनंद, मत जाओ, please मैं समझुगी तुमको, वापस आ जाओ आनंद, आनंद" नमिता की आवाज़ खाली दीवारों से टकरा वापस आ गयी, आनंद कब का जा चूका था, नमिता वहीँ बैठ रोने लगी.
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आनंद चार घंटे बाद वापस आया, उसके हाथ में एक बैग था, "कपडे बदल लो पंडित जी आते होंगें और हाँ शादी होते ही हम दोनों तुम्हारी माँ से मिलने चलेंगें मुझे विश्वास हैं की तुम मुझे समझोगी, और !...".
नमिता ने कुछ नहीं कहा, उसे ख़ुशी इस बात की थी की वो इस कैद से निकल सकेगी और वो अपनी माँ से मिलने जा सकेगी.
शादी होते ही आनंद ने अपना वादा पूरा किया और वो नमिता को ले, उसे, उसकी माँ से मिलवाने निकल पड़ा, "नमिता, तुम मुझसे गुस्सा होगी, मुझे पक्का पता है, तुम और मैं अब एक हैं, मैं तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा, मैं बुरा नहीं हूँ बस तुम्हें देखते ही कुछ हो गया था, सुनो, नमिता नौकरी मत छोड़ना, मैंने वहां सबसे कह दिया था की, तुम अपनी माँ से मिलने चली गयी हो, तुम्हारे मोबाइल से सबको मैसेज भी कर दिया था, मुझे माफ़ कर देना, और हाँ वो पुलिस वाली बात और लोगो की तुम्हें ढूढ़ने की बात झूठी थी, मैं बस, डर गया था की ये सब कैसे ठीक होगा, तुम कुछ कहोगी नहीं क्या?".
"माँ न जाने कैसी होंगीं" नमिता अपने ही ख्यालों में गुम थी.
"लो आ गए हम माँ के पास, नमिता, मेरी बात सुनो, गुस्सा मत होना मैंने तुम्हारी माँ से बोला था की हमने शादी कर ली है, इस बात को नमिता आपसे कह नहीं पाएगी, सो शायद कुछ दिन में फ़ोन करेगी आपको, और हाँ मैं तुम्हारी माँ से रोज़ बात करता था, वो बिल्किल ठीक हैं, I hope की तुम मुझ पर नाराज़ नहीं होगी" आनंद ने सर झुकाये सब बोल दिया.
"माँ, कैसी हो, रोहन कैसा है" नमिता अपनी माँ के गले लगने को आगे बढ़ी ही थी की माँ ने रोक दिया,"नमिता, आनंद, अरे-अरे रुको आरती तो लाने दो, फिर आना अंदर" नमिता की आँखों से आँसूओं की वर्षा होने लगी.
"आओ देखो आज मैंने सारा खाना तुम्हारी पसंद का बनाया है" माँ ने नमिता को गले लगाते बोला.
"माँ, तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो न" नमिता ने आसूं पोछते कहा.
"हाँ नाराज़ तो हूँ, की ये खुश खबरी तुमने मुझे क्यों नहीं सुनाई, खैर आनंद जब तीन रोज़ पहले घर आया तो उससे मिल कर बहुत अच्छा लगा, अच्छा लड़का है आनंद, मैं खुश हूँ की तुमने आनंद को अपना जीवन साथी बना लिया, रोहन भी आनंद से मिल कर बहुत खुश था" माँ ने सब एक सांस में बोल दिया.
'आनंद घर आया, कौन है आनंद, और ये सब क्या हो रहा, ये सब सपना है या सच' नमिता गुज़रे कुछ दिनों का हिसाब नहीं रख पा रही थी.
रात के खाने के बाद नमिता बालकनी में जा कर बैठ गई, अंदर से रोहन और आनंद की ज़ोर-ज़ोर से हसने की आवाज़ें आ रही थी.
'क्या हुआ है इन कुछ पिछले दिनों में?, आनंद, कौन है ये आनंद ?, कैसे और कब हुआ, जो भी हुआ ?, किसको बताऊ की मेरे साथ क्या हुआ?, क्या जो कुछ हुआ, वो हुआ भी या बस मेरी सोच है वो?' नमिता कुछ समझ नहीं पा रही थी की आखिर हुआ क्या है?
"नमिता" नमिता ने मुड़ कर देखा तो आनंद उसके पीछे खड़ा था.
"नमिता, मैं, अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ, क्या तुम मुझे माफ़ कर पाओगी कभी, तुमको खोने के डर ने मुझसे से वो सब करवाया था" आनंद बोल कर चला गया .
'मैं कौन हूँ किसी को माफ़ करने वाली' नमिता की ऑंखें फिर भर आई.
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"माँ, नमिता" आनंद, नमिता के साथ अपने घर वापस आ गया.
"इतनी जल्दी क्या पड़ी थी, किसी से कुछ पूछ लेते, कुछ सलहा - मशवरा ही ले लेते, कितनी लड़कियां दिखायीं तुम्हें अगर यही पसंद थी, तो कम से कम कुछ कह तो देते" माँ आनंद की तरफ ही देखे जा रही थी.
आनंद, नमिता और माँ को एक पल के लिए भी अकेला न छोड़ता, उसके अंदर का डर उसे खाये जा रहा था, कई बार सोचा माँ और नमिता दोनों को एक साथ बिठा कर बात कर ले, पर नमिता को खो देने का डर उसे ऐसे रोक लेता.
देखते-देखते तीन महीने बीत गए, नमिता अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी, कई बार माँ से बात करते आंसूं भर आते तो वो ये कह टाल देती की उसे अपने किये पर बहुत शर्मिंदगी हैं, किसी से बात करने की हिम्मत नहीं थी उसमे, 'माँ को अगर पता चला तो वो मर ही जाएगी, नहीं - नहीं मुझे चुप ही रहना होगा' नमिता के होठों से हसीं कोसो दूर जा चुकी थी. जब भी माँ और रोहन आते तो अपने साथ कुछ हसीं के पल भी ले आते, माँ के सामने नमिता हमेशा खुश रहने की कोशिश करती. पर नमिता की सेहत सोचते रहने से दिन-ब-दिन बिगड़ती ही जा रही थी
'आनंद बुरा नहीं हैं, जब से शादी हुई, उसने कभी अपनी मर्यादा नहीं तोड़ी, पर जो मर्यादा उसने तोड़ी है भी उसे भुलाये नहीं भुला जा सकता '.
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"नमिता, देखो चार रोज़ में तुम दोनों की शादी को छः महीने हो जायेंगें, मैं सोच रही थी एक छोटी सी पार्टी रख लेते हैं, थोड़े से लोगों को बुला लेंगें" आनंद की माता जी ने नमिता से पुछा,"जाओ पेन और पेपर ले आओ मिल कर प्लानिंग कर लेते हैं
नमिता पेपर ले आयीं, "हाँ, लिखो नाम, और हाँ अपने दोस्तों को बुलाना मत भूलना, जब से शादी हुई, और ये मुआ लॉक-डाउन हुआ न कोई आया और न ही किसी से मिलना ही हुआ, बस सब ऑनलाइन ही चल रहा हैं, अच्छा सुनो नमिता तुम खुश हो न आनंद के साथ, मुझे पहले-पहल कुछ गुस्सा तो आया था पर तुम्हारी माँ से मिल कर तुम्हारी अन्दर की खूबसूरती का एहसास हुआ, तुम पर इतना चुप-चुप क्यों रहती हो ?तुम दोनों ने ये फैसला कब और कैसे लिया, तुमसे कभी बात करने का मौका ही न मिला, बैठो और आज सब बताओ" आनंद की माता जी के इतना कहते ही नमिता फूट-फूट कर रोने लगी..
"नमिता, अरे नमिता, क्या हुआ, बोलो, रो क्यों रही हो" माता जी ने प्यार से पुछा.
नमिता कुछ बोले बिना वहां से चली गयी.
"नमिता, नमिता, इधर देखो मेरी तरफ, आज तुम्हें बताना ही होगा की बात क्या हैं, न तुम हंसती हो, न तुम कुछ बात करती हो, जब मैं तुमसे पहली बार मिली थी तो तुम ऐसी नहीं थी, बोलो आखिर बात क्या हैं, क्या तुम आनंद के साथ खुश नहीं हो, आनंद थोड़ा ज़िद्दी है पर बुरा नहीं है"?
नमिता रोते-रोते बेहोश हो गयी.
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"Mr. Anand you are under arrest" इस्पेक्टर ने आनंद को हथकड़ी लगा दी," नमिता, मैं पूरी कोशिश तो कर रहा था, फिर तुमने ये सब क्यों किया" आनंद नमिता को ही देखे जा रहा था.
"नमिता ने कुछ नहीं किया, पुलिस को मैंने बुलाया है" माँ ने आनंद और नमिता के बीच आते बोला, "आनंद, तुमको क्या लगा की कोई जान नहीं पायेगा की तुमने क्या किया, क्यों किया तुमने ऐसा, मुझसे आ कर एक बार बात तो कर लेते".
"माँ, मैं खुद नहीं जानता जो हुआ वो क्यों हुआ, कैसे हुआ, पर एक बार मुझसे पुछा तो होता" आनंद की आँखों से आसूं बहने लगे.
माँ ने आनंद और नमिता के बीच आते बोला, "आनंद, तुमको क्या लगा की कोई जान नहीं पायेगा की तुमने क्या किया, क्यों किया तुमने ऐसा, मुझसे आ कर एक बार बात तो कर लेते"
"माँ, मैं खुद नहीं जानता जो हुआ वो क्यों हुआ, कैसे हुआ, पर एक बार मुझसे पुछा तो होता" आनंद की आँखों से आसूं बहने लगे
"नमिता, मुझे माफ़ कर दो, पर मैं सच में तुमसे प्यार करता हूँ, मैंने कहा न तुम्हें खोने के खौफ ने मुझसे वो सब करवाया था .
"आनंद, जो तुमने किया वो गलत था, तुमने एक नारी के अस्तिव को ठेस पहुंचाई है, दुनिया ने उसके साथ क्या किया, एक औरत ये भूल जाती पर किसी अपने ने उसे जो ठेस पहुंचाई वो नमिता कैसे भूल सकेगी, और यहाँ तो गलती करने वाला ही बचाने वाला है, भूल करने वाला ही भूल को भूल जाने को कह रहा है, अपने किये की सज़ा तुमको भुगतनी होगी, शायद इसी से तुम-दोनों के बीच की दूरियां ख़तम हो पाएं !" माँ ने आनंद के आँसूं पोंछते बोला .
"माँ, पर एक बार मुझसे बात कर लेते, मैं अपने किया पर बहुत शर्मिंदा हूँ, और अपने किये की सज़ा मुझे नमिता की चुपी से मिल ही रही है, फिर ये सब क्यों" आनंद नमिता को ही देख रहा था.
आनंद ने नमिता का हाथ थाम कर कहा,"नमिता, तुम्हारी बेरूखी, तुम्हारा मेरे पास हो कर भी मेरे पास न होना, तुम्हारा मेरी तरफ न देखना, तुम्हारा मुझसे बात न करना ,क्या ये सज़ा मेरे लिए काफी नहीं थी क्या, बोलो नमिता, एक बार तो बोलो, एक बार मुझसे बात कर लो Please ?"
"वो नहीं बोलेगी, औरत है वो, जब औरत के अस्तित्व को ठेस पहुँचती है तो, उसके पास कुछ नहीं रह जाता, तुमने उसके अस्तित्व को ठेस पहुंचाई है: माँ, ने आनंद से कहा.
"अपने किये की सज़ा तुम्हें भुगतनी ही होगी आनंद" माँ ने आनंद से कहा.
"चलिए Mr. Anand" Police Inspector ने आनंद से कहा .
"ठीक है, काश की कोई मुझे भी समझता" आनंद ने नमिता का हाथ छोड़ते कहा .
"एक मिनट, आनंद, मैं समझुंगिन तुमको, मैं तुम्हारे वापस आने का इंतज़ार करूंगीं" और नमिता अपने आँसूं पोंछ आनंद से लिपट गयी .
"नमिता, अब हर सज़ा मंज़ूर है मुझे" आनंद ने भी अपने आँसूं पोंछ लिए .
माँ ने दोनों को आशीर्वाद दिया और आनंद, नमिता का आनंद बन कर लौटने का वादा कर चला गया गया .
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