भाग - 1
- 1 -
कांता
आज बहुत खुश थी,
आज उसके इकलौते बेटे
की शादी थी, कितने
सालों बाद आज ख़ुशी
ने उसके घर दस्तक दी थी .
'सारे
गांव में मिठाई बाँटूँगीं,
भर-भर के मिठाई
बाटूँगीं, सब सालों-साल तक
याद रखेंगें की कांता के
बेटे की शादी थी'
कांता सबकुछ खुद ही प्लान
कर रही थी, सारी
खरीदारी और सारा इंतज़ाम
कांता खुद ही कर
रही थी.
- 2-
"माता
जी, लड़की के भाई
का फ़ोन आया था,
वो मिलने को कह रहा
था" दीपेंदर ने माँ से
कहा.
"हाँ,
हाँ, मिल आते हैं,
बताओ कब जाना है,
चल कर मिल आते
हैं, और शादी की
तैयारी के बारे में
भी पूछ आते हैं,
"माता
जी, उन्होंने बस मुझे ही
बुलाया है, वो मुझे
और प्रीत को मिलवाना चाहते
है, एक बार शादी
से पहले" दीपेंदर ने धीमी आवाज़
में बोला,
"नहीं,
मैंने तुमको पहले ही कहा
है की ये सब
नहीं हो सकता, शादी
से पहले लड़का और
लड़की नहीं मिल सकते,
बस, हमारे यहाँ इसे अपशगुन
माना जाता है" कांता
ने अपने बेटे की तरफ देखे बिना ही सब कह
दिया.
दीपेंदर ने माँ की बात नहीं काटी और वो वहां से चला गया, 'दो बार माँ को बिना बताये मिल आया पर अब नहीं, माँ को पता चला तो बस यूँ नाराज़ होगी, कितनी खुश दिख रही है'. पर, शादी के बाद माँ के बर्ताव के बार में सोच-सोच कर वो बहुत परेशान रहता, माँ अभी किसीसे मिलने नहीं जाने देती, ना जाने बाद में प्रीत को ये सब अच्छा लगे या न लगे
कांता के माँ-बाप नहीं थे, एक बहन थी, वो दोनों अपने मामा के घर पली-बड़ी थी, मामा-मामी ने प्यार से पाला था, अपने बच्चों के तरह ही रखा था, बड़े होने पर कांता की शादी एक फौजी के साथ कर दी, मगर शादी के दो साल बाद ही वो कांता की गोद में दो महीने के बच्चे को छोड़ दुनिया से चला गया.
मामा-मामी ने कांता से दूसरी शादी करने को कहा, पर कांता ने मना कर दिया, क्यूंकि कांता अपने बच्चे के साथ और अपने पति की यादों के सहारे ही ज़िन्दगी बिताना चाहती थी.
कांता अपने बेटे को ले कर हमेशा से सी गंभीर रही, अच्छे स्कूल-कालेज में पढ़ाने से ले कर खाने-पीने का हमेशा ध्यान रखा, पर कभी-कभी उसका अपने बेटे के प्रति प्यार कुछ अजीब हो जाता, दुसरे शहर नौकरी करने नहीं जाने देना और किसी के घर जा कर न रहने देना, किसी के घर अकेले आने-जाने नहीं देना कांता ने इन सब बातों बड़ी सकती से पालन किया और करवाया.
कांता की बहन ने कितनी बार बोला,'मेरे घर तो आने दो, बेटे की शादी के बाद भी क्या उसे पलु से बाँध कर रखोगी ?' पर कांता साफ़ मना कर देती, कई बार दीपेंदर ने माँ को समझाया और लड़ाई भी की पर कांता नहीं मानी, हर बार यही कह देती 'मेरे मरने पर चले जाना जहाँ जाना हो, चले जाना, कोई रोकने वाला नहीं होगा', दीपेंदर भी अपनी माँ का बहुत ध्यान रखता, माँ की मेहनत दीपेंदर को हर घड़ी याद रहती, पर कभी-कभी माँ के स्वामित्व बर्ताव से उसे बहुत दर लगता.
- 4 -
बड़ी धूम-धाम से दीपेंदर और प्रीत की शादी हो गयी, कांता बहुत खुश थी, अब उसका घर भरा-भरा हो जायेगा.
"अरे, कांता बहुत ही बढ़िया शादी हो गयी, अब तो तुम free हो गयी हो, चलो न कुछ दिन मेरे साथ रहो, चलो न, बेटे-बहु को अकेला छोड़ दो" कांता की बहन ने कहा.
"नहीं-नहीं, मैं अपने घर में रहूंगीं, बेटे-बहु के साथ, अभी तो बहुत कुछ करना है, घर भी तो देखना है" कांता ने उत्साहपूर्वक कहा .
"अरे, छोड़ो भी अब, अब सब बहु के सपूत कर दो और चलो थोड़ा मेरे साथ घूम आयो, अब इस चार दीवारी से बहार निकलो" बहन ने बहुत समझाया पर कांता नहीं मानी.
कांता अगली सुबह अपने टाइम से उठ गयी और अपने रोज़ के कामो में लग गयी.
दीपेंदर और प्रीत लौट कर आये तो घर की हालत देख डर गए, दीपेंदर ने देखा माँ पलंग पर पड़ी थी और बिस्तर उलटी में सना था दीपेंदर भाग कर डॉक्टर को ले आया, प्रीत ने सारी सफाई की और कांता के कपडे भी बदल दिए .
"डॉक्टर, सब ठीक है न" दीपेंदर ने पुछा.
"हाँ, सब ठीक ही लग रहा है, आपकी माता जी ने लगता है कई दिन से खाना नहीं खाया सो बेहोश हो गयी थी, आराम करेंगीं और खाना ठीक से खाएँगीं तो ठीक हो जाएँगी" डॉक्टर दवाई दे कर चला गया.
दीपेंदर समझ गया, अगले कुछ रोज़ उसने माँ के साथ ही बिताये, वहीँ माँ के पास सोता और सारा दिन वहीँ रहता.
कांता कुछ बात नहीं करती, कांता के मामा एक रोज़ मिलने आये,"दीपेंदर मैंने तुम्हारे लिए बहुत बढ़िया नौकरी देखी, रहना खाना वहीँ होगा, बोलो कब जा सकते हो" मामा जी ने पुछा .
इससे पहले दीपेंदर कुछ कहता, कांता ने बोला,"कल ही चल जायेगा, अब मैं बिलकुल ठीक हूँ, अच्छी नौकरी रोज़-रोज़ कहाँ मिलती है" .
दीपेंदर ने हां में सर हिला दिया,"पर माँ अभी आप की तबियत ठीक नहीं हैं, और आप को ऐसे हाल में छोड़ हम कैसे जा सकते हैं".
"अरे, अकेले कहाँ, प्रीत है न, जब तक मैं ठीक नहीं होती प्रीत और मैं यहीं रहेगें" कांता ने सफाई देते कहा.
दीपेंदर चला गया, जब भी वो छुट्टी ले कर आता तो माँ से चलने को कहता, पर कांता हमेशा कोई बहाना बना कर टाल देती और न ही प्रीत को जाने देती.
- 6 -
दो साल बीत गए, पर कांता न खुद गयी और न ही प्रीत को जाने दिया और जब भी दीपेंदर छुट्टी ले कर आता तो वो बेटे और बहु को साथ न सोने देती, कोई न कोई बहाना बना देती.
एक रोज़ कांता ने देखा की दीपेंदर सूटकेस उठा कर चला आ रहा है,"क्या हुआ दीपेंदर, फिरसे छुट्टी ले ली है क्या" ?
"नहीं माता जी, मुझे इसी शहर में नौकरी मिल गयी है, अब मैं यहीं रहूँगा, आपके और प्रीत के पास" दीपेंदर ने पानी पीते बोला .
कांता समझ न पायी ,"अरे, इतनी अच्छी नौकरी बस इसीलिए छोड़ दी की यहाँ रहना चाहते हो" कांता ने हैरान होते पुछा .
अगले कुछ रोज़ तक कांता नाराज़ सी रही, प्रीत को भी अपने पास ही सुलाती, दीपेंदर और प्रीत को कभी अकेले न छोड़ती.
एक रोज़ कांता की बहन मिलने आयीं,"अरे कांता, खुश खबरी कब मिलेगी, चार साल हो गए".
"मिल जाएगी जल्दी क्या है" कांता ने उसे चुप कराते बोला .
प्रीत के जाते ही कांता की बहन ने कहा,"कांता, दीपेंदर आया था मेरे पास उसने कहा की तुम प्रीत को अपने पास सुलाती हो, पागल हो क्या, बेटे-बहु को मिलने नहीं दोगी तो पोता-पोती कैसे पाओगी".
"अरे, जल्दी क्या है, हो जायेंगें पोता-पोती, तुम रहने दो, मैं देख लूंगीं" कांता ने बहन को चुप करवा दिया.
"कांता इस सब का अंजाम ठीक नहीं होगा, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, सब ठीक हो सकता है, प्रीत अभी कुछ बोल नहीं रही है, कहीं तुमसे तंग आ कर वो भी तुम्हारे आगे बोलने लग गयी तो, इस से पहले की बेटे और बहु को खो दो होश में आ जाओ, बेहतर होगा " कांता की बहन ने समझाते हुए बोला.
to be continued ........
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