- 1 -
"ठीक है मैं सब्ज़ी और राशन ले आऊंगा" आनंद कॉल खत्म कर मुस्कुराने लगा.
'कितने साल लगे नमिता को मनाने में, पर आज सब कुछ भूल कर दोनों कितने खुश है, पति और पत्नी, नमिता आनंद सिंह, नमिता पहले ही मान जाती तो आज दो-चार बच्चे भी हो जाते' मन ही मन आनंद सोच कर मुस्कुराने लगा
सब सामान और नमिता के लिए गज़रा ले आनंद घर की ओर बढ़ चला, घर का दरवाज़ा खुला था, "नमिता, अरे बई, दरवाज़ा क्यों ......."
आनंद आगे कुछ न कह पाया, सामने का नज़ारा देखते ही सब समान बिखर गया और आनंद ज़मीन पर बैठ गया, "नमिता, ऐसा क्यों किया तुमने, मेरे प्यार में क्या कमी रह गयी थी" ?
"माँ, तुम भी" आनंद और कुछ न कह पाया, बस अपना चेहरा हाथों में छुपा रोने लगा
- 2 -
"अरे, आनंद लेट हो गए, लड़की देखने गए थे क्या ?, शादी कर लो यार, किसी को तो पसंद कर लो, बड़े दिन हुए शादी का खाना खाये, अब तो शादी कर ही लो, मेरी पार्टी के लिए ही कर लो" नरेश ने आनंद को छेड़ते हुए कहा .
"सुबह-सुबह मत शुरू हो जाया करो, बस करो, नहीं करनी मुझे शादी, माँ को hospital ले कर गया था, और बताओ आज की क्या खबर है" आनंद ने अपने work table पर settle होते पुछा .
"आज हमारे Office में new employee आयीं हैं, आज ही join किया है, यहीं quarters में रहेंगी" नरेश ने आनंद को आज की खबर सुनाई.
"हम्म्म, एक नयी employee, किस department में है ?, चलो अच्छा है रूपा को company मिल गयी, quarters में कोई तो उसके साथ रहेगा" आनंद ने अपने paper सँभालते कहा.
"थोड़ी उम्र की लगती हैं, ना जाने बड़े शहर से छोटे शहर में क्यों आयीं है" नरेश ने चाय की चुस्की लेते कहा.
"कहा से आयीं है, नाम क्या है ?" आनंद ने चाय का कप उठाते पुछा.
"नाम, याद नहीं रहा, पर....." नरेश ने कहा.
"चलो बई, अपना काम करें हमे क्या नाम-वाम से, अभी आ जायेगीं जान-पहचान भी हो जाएगी, उम्र का क्या है, अभी आ जायेंगीं पूछ लेंगें" आनंद ने अपना काम करते बोला.
"यार, वो छोड़ो, वो जो रविवार को लड़की देखने गए थे उसके बारे में क्या सोचा, तुम्हारी मम्मी को पसंद आ गयीं शादी करलो, तुमको भी पसंद आ ही जाएगी, उम्र हो जाएगी फिर कब शादी करोगे" नरेश ने आनंद से पुछा
"यार, मम्मी को तो सब पसंद आ जाती है, पर मेरा दिल नहीं मानता, कोई ऐसा हो जिसे देखते ही बस ....."
आनंद आगे कुछ न कह पाया, वो जो सामने से चल कर आ रही थी, वही है वो, जिसे वो कब से खोज रहा था, 'कहाँ थी तुम, कितना खोजा मैंने तुमको, और बस तुम यूँ ही बिन बताये चली आयी, ऐसा क्यों किया, देखो मुझे क्या-क्या न करना पड़ा,....... ये रूप, ये चाल, ये आँखें, ये अदा, कितनी बार मैंने सपने में देखीं और तुम ......, कब हुआ ऐसा की तुम मेरे सपने से निकल यहाँ आ गयीं,...... कल रात सपने में बता देती, की तुम आने वाली हो, मैं तुम्हारी राहों में फूल बिछा देता, आओ अब, बस अब मुझे अपने अघोष में ले लो और फिर कभी न जाना, और न मुझे छोड़ना कभी, वादा करो, खाओ मेरी कसम, करो वादा' आनंद, बस मंत्रमुग्ध हो गया, उसे लगा उसे वो मिल गया जिसकी उसे बरसों से तलाश थी.
"Hello, Mr, Anand मेरा नाम नमिता है" नमिता ने अपना हाथ छुड़ाते बोला.
"ओह, Hello, welcome to our organisation" आनंद ने नमिता का हाथ हड़बड़ाहट में छोड़ दिया और झिझकते बोला.
- 3 -
"आ गए बेटा, खाना लगवा दूँ क्या, हाथ-मुँह धो लो, तुमसे कुछ बात करनी हैं" माँ ने कहा.
"माँ आज मैं, खाना खा कर आया हूँ, आप खाना खा लो, मुझे नींद आ रही है, कल बात करते हैं" आनंद आते ही अपने कमरे में चला गया.
'नींद कैसे आएगी, वो जो ख्वाबों में आती थी वो तो आज सामने थी, ऐसा कैसे हुआ की मुझे पता नहीं चला, नमिता आनंद सिंह, बस यहीं होगा अब, तुम मेरी हो और बस मेरी' सोचते-सोचते आनंद की आँख कब लग गई.
"आनंद, सुना तुमने, कोई अजीब सी बीमारी, महामारी बन दुनिया में तेज़ी से फैल रही है" माँ ने नाश्ते पर आनंद से बात करनी चाही
आनंद कुछ बोले बिना ही दफ्तर की और चल दिया.
आनंद की निगाहें नमिता को ही खोज रही थी, 'कहाँ हो तुम मेरे दिल के चैन, मेरी ख़्वाबों की मलिका, कहाँ हो तुम'.
"ओ, आनंद आ गए तुम, कुछ सुना दफ्तर 15 दिनों के लिए बंद हो रहे है, असल में सब कुछ बंध हो रहा है, न दुकाने खुलेंगीं और न ही बाजार लगेंगे, बस घर में बैठना पड़ेगा, पर यार ये महामारी 15 दिन में कहाँ चली जाएगी, समझ नहीं आ रहा" नरेश अपना सामान संभाल रहा था.
"चलो यार यहाँ सब समेट कर घर चलते हैं, राशन-पानी का बंदोबस्त भी करना होगा" नरेश अपना सामान बैग में डाल रहा था, "आनंद, यार घर में कैसे रहेंगें, चलो कुछ दिन आराम कर लेंगें, संभल कर रहना, ये माहवारी-वाहवारी से बच कर ही रहना, कहने को बस सर्दी-जुक़ाम है, पर जान लेवा भी है, आनंद.........ओ आनंद भाई, कहाँ हो"? नरेश ने आनंद को झकझोड़ते बोला.
"हाँ, यही, चलो काम शुरू करते है" आनंद ने मानो नरेश की कोई बात ही न सुनी हो.
"भाई, कहाँ खोये हो, कहाँ हो, किसके ख्यालों में हो, सुना नहीं दफ्तर पंद्रह दिनों के लिए बंद हो रहे है, दफ्तर ही नहीं सब कुछ बंद हो रहा है" नरेश ने फिर से दोहराया.
"बंद हो रहे हैं, पर ऐसे कैसे, अभी तो कहानी शुरू हुई है, सब बंध हो गया तो कहानी आगे कैसे बढ़ेगी" आनंद अपने ही ख्यालों में था, उसकी निगाहें बस नमिता को ही खोज रही थी.
"कौन सी कहानी है ये, हम भी तो सुने" रूपा ने पुछा.
आनंद ने पलट कर देखा और,'ओह, तो तुम यहाँ हो, मीता, मेरी नमिता, मीता, इतनी देर से क्यों आयी' आनंद की निगाहें नमिता पर ही टिकी थी.
"चलो भाई, मिलते हैं पंद्रह दिन बाद, take care and stay safe" रूपा ने नरेश और आनंद से बोला.
"आप तो यहीं रहेंगीं न, या वापस चली जायेंगीं" नरेश ने नमिता से पुछा.
"मैं, यहीं अपने quarters में ही रहूंगीं, अभी तो नौकरी शुरू हुई है, जाने से गड़बड़ हो सकती है, वापस न आ पाऊँ तो, इसलिए यही रहूंगी" नमिता ने नरेश की ओर देखते कहा .
"अच्छा, बई हम चलते है, मिलते है पंद्रह दिन बाद, चले नमिता ?" रूपा ने नमिता से पुछा
नमिता जा रही थी, आनंद को लगा की उसका दिल कोई निकाल कर ले जा रहा हो, 'पंद्रह दिन......., कोई बात नहीं, तुमसे बात करने की हिमम्त भी तो जुटानी हैं, और तुम को अपना बनाने की तरकीब भी भी तो सोचनी हैं' आनंद सोच-सोच कर मंद-मंद मुस्कुराने लगा.
- 4 -
देखते-देखते पांच दिन बीत गए, आनंद रोज़ जब घर का सामान लेने बाहर जाता तो नमिता के quarter की तरफ से ही जाता, शायद कभी तो नमिता का दीदार हो जाये, पर नमिता का दीदार बस दो ही बार हो सका, और लॉक-डाउन की वजह से आनंद एक बार से जाएदा घर से बाहर निकल भी न पाता. 'नमिता, क्या तुम जानती हो तुम्हारी मुस्कुराहट मेरे रोम-रोम को रोशन कर देती है क्या तुम मेरे बारे में सोचती हो, नमिता, क्या तुमको पता है, की, तुम को देख कर मुझे ऐसा लगा की मुझे कोई अपना मिल गया है, तुम्हारी ऑंखें भी क्या मुझे खोजती हैं, नमिता, चाहे कुछ भी हो जाये, तुम और मैं एक हो कर ही रहेंगें, मैं तुम्हें अपनी बाँहों से दूर न जाने दूंगा, ये बाहें ही अब तुम्हारा घर होंगीं , क्या तुमको भी लगता है की हम जन्म-जन्म के साथी हैं, कुछ तो बोलो, कम से कम ख़यालों में ही मुझसे बात तो करो, बस एक बार, क्या है तुम्हारे मन में बस एक बार बता दो' आनंद के दिलो-दिमाग पर बस नमिता का ही अक्स छाया हुआ था, प्रेम की अग्नि उसे अंतर-आत्मा तक भिगो चुकी थी.
"आनंद, सुनो आनंद" माँ की आवाज़ से आनंद सपनों की दुनिया छोड़ हकीकत में आ गया,"आनंद, क्या हो गया है तुमको, क्यों हर पल खोये-खोये रहते हो, बोलो न" माँ ने पुछा .
"माँ, मुझे प्रेम हो गया है" आनंद इतना कह घर से बहार चला गया .
आनंद घर से निकल सैर को चल दिया, कुछ दूर जाने पर उसे नमिता दिखी, जो सामने के बाग़ में टहल रही थी.
"नमिता जी, कैसी हैं' आनंद हिमम्त जुटा नमिता के पास पहुँच गया .
"अरे, आप, अंदर बैठे-बैठे बोरियत सी हो रही थी, सोचा थोड़ा बहार ही घूम लेती हूँ, कितना अच्छा लग रहा है यहाँ" नमिता ने bench पर बैठते कहा.
"सही कहा आपने, बस ऑफिस खुल जाएँ अब, ये महामारी-वाहामारी बड़े शहर की बिमारी हैं, छोटे शहर के दफ्तर तो खुल ही जाने चाहिये" आनंद ने बात को आगे बढ़ाते कहा.
"बस, train-bus के रास्ते खुल जाएँ, मैं वापस ही चली जाऊंगी, माँ बीमार हैं, यहाँ आना नहीं चाहती चल-फिर नहीं सकती न, घर छोड़ना नहीं चाहती, और मैं नौकरी छोड़ नहीं सकती, सो मुझे जाना ही होगा" नमिता ने एक सांस में सब बोल दिया.
"अरे, जाना क्यों यही रहें न, माँ को यही ले आईये, उन्हें यहाँ अच्छा लगेगा, यहाँ का मौसम कितना हसीन है और खुली वादियों में उन्हें बहुत अच्छा लगेगा, अच्छी सेहत के लिए डॉक्टर भी पहाड़ो में जाने को कहते हैं, याद नहीं हिंदी फिल्मो के dialogue "इन्हें पहाड़ों पर ले जाएँ, सेहत ठीक हो जाएगी और पहड़ों मे........
नमिता, आनंद के dialogue बोलने के अंदाज़ से खिल-खिला कर हसने लगी .
"अरे आप हंस रही रही हैं, मैं सच कह रहा हूँ, यकीन नहीं तो चलिए डॉक्टर के पास, और हाँ मैं आपके साथ चल, माँ को यही ले आऊंगा" आनंद ने नमिता से कहा.
"नहीं, मुझे ही जाना होगा माँ नहीं आएंगीं, एक बरस हुए पिताजी को गए, माँ कहती है वो पिताजी के पास वही से जाएँगी, वो घर से निकलना ही नहीं चाहती, सो मुझे ही जाना होगा" नमिता ने आनंद से कहा.
"मेरे घर चलेंगी, आपको चाय पिलाता हूँ, मैं बहुत अच्छी चाय बनता हूँ" आनंद ने नमिता से पुछा?
"औ, नहीं-नहीं, आप क्यों तकलीफ करते हैं" नमिता ने सोचा कहीं जाएदा बात तो नहीं कर ली.
"माँ, आप से मिल खुश हो जाएँगी, चलिए न" आनंद ने ज़िद करके कहा .
"माँ, औ माँ, देखो तो कौन आया है, माँ ये नमिता है, मेरे ऑफिस में नयी ही आयी हैं, आप बैठें मैं चाय बना कर लता हूँ" आनंद रसोई में चाय बनाने चला गया.
"ओ, तो ये है वो" माँ ने रात के खाने पर बात करनी चाही.
"माँ" आनंद, शर्मा गया.
"माँ हूँ तुम्हारी, तुम्हारे चहरे पर लिखा है हर जगह की ये वही है, पर क्या तुम जानते हो उसका एक बेटा भी है, बिना किसीको जाने प्यार हो गया, अब क्या करोगे" माँ ने आनंद से पुछा .
"बेटा......., नहीं, ये बात नहीं हुई अभी" आनंद खाना ख़तम कर अपने कमरे में चला गया .
'बेटा, बेटा है तो पति भी होगा, पति है तो, अच्छा तभी जाना चाहती है नमिता, नहीं भगवान् ये खेल मत खेलो मेरे साथ' आनंद सोचते-सोचते सो गया.
- 5 -
सुबह-सुबह आनंद सैर के लिए घर से निकल गया, पार्क के पास अपनी गाड़ी में बैठा वो नमिता का इंतज़ार करने लगा, सुबह से शाम हो गयी, नमिता दिन ढलने पर आयी.
"नमिता जी आईये न, आपको गाड़ी में घुमा कर लता हूँ" आनंद ने गाड़ी का दरवाज़ा खोलते कहा.
नमिता गाड़ी में बैठ गई,"चलिए, आज यही सही".
"लीजिये, जूस है, माँ ने बनाया, मैं आपके लिए भी ले आया" आनंद ने जूस की बोतल नमिता की ओर बढ़ाते कहा.
नमिता जूस पीते ही सो गई.
To be continued........
#hindi #hindikahani #hindistory
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें