शनिवार, 20 अगस्त 2022

नगमा की ज़िन्दगी का नगमा - Part 1

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"नगमा, नगमा, चलो यहाँ से, चलो न" रेखा नगमा को खींचते हुए ले गयी .

"रेखा, कैसे कर सकता है वो, अभी पिछले महीने ही मिला था, बोल रहा था की बस दो-तीन महीने में ही शादी कर लेंगें, और अब ये, ये ...... कौनसी बीवी है उसकी जो उसके बच्चे की माँ बनने वाली है".

रेखा चुप कर नगमा की बातें सुन रही थी .

"दस साल से मैं उसके साथ के सपने देख रही हूँ और वो किसी और के सपने सजा रहा था".

रेखा चुप कर बैठी रही, 'शायद बोलने से बात बिगड़ जाये, सो चुप रहना ही ठीक है' .

"पिछले साल बोल रहा था, उसके अब्बा जी बीमार हैं, तो शादी की बात नहीं कर सकते, उस से पहले साल अम्मी बीमार थी, कोई बीमार नहीं था, अपनी शादी की तैयारियां कर रहा था, सो उसके बाद टाइम नहीं था, और मैं सोचती रही वो सब ठीक कर देगा".


नगमा बोलती ही जा रही थी, उसकी आंख से एक भी आसूं न बहा, इतने में उसके मोबाइल की घंटी बजी, रेखा ने नगमा के हाथ से मोबाइल ले लिया,"समर अभी नहीं, बाद में बात करें क्या" रेखा ने मोबाइल उठाते बोला .

नगमा ने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया, "कैसे हो समर".

"मैं ठीक हूँ, तुम इस वक़त रेखा के साथ क्या कर रही हो, घर क्यों नहीं गयी" समर ने नगमा से पुछा. 

'लगता है इसे कुछ पता नहीं चला अभी' नगमा मन ही मन सोच रही थी,"बस जा ही रही थी, थोड़ा काम आ गया था, तुम बताओ, कैसे हो, कहाँ हो अभी, क्या हो रहा है, अम्मी कैसी है अब, उनका बुखार उत्तर गया क्या".

"अरे,अरे, नगमा, आज क्या हुआ तुम्हें, इतने सारे सवाल क्यों, सब ठीक हैं, अगले हफ्ते छुट्टी ले लो, मिलते हैं, बहुत दिन हुए, काम बहुत था, अगले हफ्ते मिल कर सब बताता हूँ".

"ओह, अच्छा, आज काम ख़तम हो गया क्या, कैसा है काम, रंग-रूप कैसा है काम का, तुम पर है या किसी और पर?" नगमा अपने गुस्से को काबू करने की पूरी कोशिश कर रही थी .

"क्या हो गया है, क्या बोल रही हो, इस सब से क्या मतलब है" समर की आवाज़ में थोड़ी कप-कपी सी महसूस हो रहे थी .

"समर, कितने और सालों तक मुझे पागल बनाने का इरादा है, पिछले दस सालों से पागल ही बना रहे थे क्या, अब समय है फैसले का, मेरे नहीं हो सके तो कम से कम उसके तो हो जाओ, जो तुम्हारे बच्चे माँ बनने वाली है, कौन से  हॉस्पिटल में हो, मैं आज ही क्यों गयी तुम्हारे ऑफिस, मेरी गलती है, मुझे तुम्हारे बारे में सबा ने कहा था, पर तुम से ज्यादा मुझे अपने प्यार पर भरोसा था, पर ऐसा क्यों किया तुमने" नगमा ने सब एक सांस में बोल दिया .

 "नगमा, मेरी बात सुनो, मेरी गलती है, पर क्या मेरी एक ख़ामी मेरी बरसों की मोह्बत पर हावी हो जाएगी, तुम मेरा प्यार हो, ये मेरी ये सब मेरी ज़िम्मेदारियाँ है" समर को बोलने के लिए लफ्ज़ नहीं मिल रहे थे .

"और कितनी ज़िम्मेदारियाँ और परेशानियां और मजबूरियाँ है तुम्हारी, सब बहाने है और थे, ज़िम्मेदारियों तुमने सबको दिखा कर निभायीं, मैं अगर तुम्हारा प्यार हूँ तो मुझे ही क्यूँ छुप्पा के रखा है, दुनिया के सामने हमारी सच्चाई बताते शर्म क्यों ?, समर, और सपने नहीं बस करो अब,..... तुम भूल गए की मैं इस दुनिया में रहती हूँ और मुझे भी जवाब देने होते है" ?" नगमा का गला भर आया .

"नगमा मुझे गलत मत समझो, ये सब कैसे हो गया, क्यों आयी तुम यहाँ, मैं ये सब ठीक कर रहा था न, अम्मी-अबू की बात पूरी कर, मैं तुम्हारे पास ही आ रहा था, हमेशा के लिए, एक मौका दे दो मुझे समझाने का, तुम ही बस मेरा प्यार हो, मेरी मंज़िल हो, ये सब बस पड़ाव हैं, मुझे एक मौका दे दो, बस एक और मौका, मैं इन  ज़िम्मेदारियों के बाद बस तुम्हारा हूँ" समर के पास शब्द नहीं थे, उसे अंदाज़ा हो गया था की आज के बाद वो कभी नगमा को देख नहीं पायेगा, ".

बस एक मौका दे दो, मैं अभी, अभी मिलता हूँ तुमसे, बोलो कहाँ हो तुम, अभी मिल कर फैसला कर लेते हैं , मैं ये सब छोड़ तुम्हारे साथ चलता हूँ, नगमा कुछ बोलो, मैं तुमसे ही प्यार करता हूँ, उस, उस घर का सोचो, जो हम दोनों ने मिल कर देखा है, अगले महीने से वहां ही रहेंगें हम, और शादी भी कर लेगें, नगमा मैं ये सब छोड़ तुम्हारे पास ही आ रहा हूँ, कुछ तो बोलो नगमा, नगमा".

नगमा ने अपना मोबाइल पास के गटर में फ़ेंक दिया और बिना रेखा से कुछ कहे, अपने घर की और चल दी, रेखा चुप-चाप उसके पीछे चल दी.


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"अरे, नगमा, कहा थी, तुम्हारा मोबाइल कहाँ है, मैं कब से फ़ोन कर रही हूँ" अम्मी नगमा को देखते ही बरस पड़ीं
"अम्मी, वो जो तुम रिश्ते की बात कर रही थी न, उन्हें हाँ कर दो, मैं निकाह पढ़ने को तैयार हूँ" नगमा ने माँ की गोद में सर रखते बोला .

"अरे, कितनी अच्छी बात कही, रेखा, अच्छा किया, तूने इसे समझाया तो, यहाँ आ मेरे गले लग जा तू भी" अम्मी की ख़ुशी का ठिकाना न था .

रेखा बस मुस्कुरा दी, "शुक्र है, उस समर से इसका पीछा छूटेगा" अम्मी ने रेखा के कान में बोला.

"Thanks, रेखा, आज मेरा साथ देने का, शादी में ज़रूर आना" नगमा ने रेखा के गले मिलते कहा.

रेखा, नगमा को रोकना चाहती थी, गुस्से में वो गलती कर रही थी, "दो ज़िन्दगियाँ पहले ही बर्बाद हो गयी हैं, अभी किसी और क्यों अपने बीच में ला रही हो,थोड़ा समय दो, अपने-आप को" रेखा ने नगमा से कहा .

"देखो, बहुत देर हो गई है, घर जाओ तुम अब, शादी वाले दिन मिलेंगें" नगमा ने रेखा के कंधे पर हाथ रखते बोला.

रेखा चुप-चाप वहां से चली गई, वो जानती थी अब कुछ कहने को और करने को न बचा था, वो जानती थी की उसकी सहेली बहुत ज़िद्दी है, अब समय ही बताएगा क्या होगा.

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