रविवार, 18 सितंबर 2022

मुखौटा - Mask - Part 3

Part 1 : मुखौटा - Part 1

Part 2 : मुखौटा - The Mask


Part - 3


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"सुजाता, कौन तंग करता है तुम्हें, मुझे नहीं बताओगी". 

सुजाता, ये आवाज़ पहचानती थी, आवाज़ सुनते ही वो झेंप गयी,'नहीं ऐसा नहीं हो सकता, वो वापस नहीं आ सकता, मैंने उसे ख़तम कर दिया था', सुजाता कुछ समझ नहीं पा रही थी .

"मेरे तरफ देखो सुजाता, मुझे नहीं पहचानती तुम, कितना प्यार करता हूँ मैं तुम से, और अब तक करता हूँ, एक बार देखो न मेरी तरफ".

सुजाता ने चेहरा अपने हाथों में छुपा रखा था, 'नहीं-नहीं शरद वापस नहीं आ सकता, शरद को तो मैंने".

"सुजाता, ऑंखें खोलो और देखो" माँ ने कहा "तुम, भगवान् नहीं हो किसी को मिटा दोगी, देखो सुजाता" शायद अपनी करनी पर कुछ शर्मिंदगी हो.

सुजाता ने पलट कर देखा तो कुमार उसके सामने खड़ा था, "मेरी आँखों में देखो, पहचानो मुझे, मुझे लगा तुम मुझे एक पल में पहचान लोगी, पर शायद मेरे ही प्यार में कोई कमी रह गयी थी, एक पल क्या तुम मुझे पिछले एक साल से भी न पहचान पायी".

"कुमार, नहीं - नहीं तुम तो शरद हो, पर तुम को तो" सुजाता कांप रही थी,"तुम शरद ही हो, कैसे न पहचान पायी तुम्हें मैं" .



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"शायद तुम्हारी आँखों पर पैसों की पट्टी बंधी थी, कैसे भूल गयी मुझे" शरद, सुजाता के हाथ अपने हाथों में लिए सवाल कर रहा था, "क्या हुआ था उस दिन, मैं पहाड़ से कैसे गिर गया था, और तुम कहाँ थी, तुम्हें तो कोई चोट नहीं आयी थी न" शरद बहुत प्यार से बोल रहा था.

"पहाड़ से गिर गए थे ?, पर सुजाता ने तो बोला की तुम ऑस्ट्रेलिया चले गए हो, फिर ये पहाड़ कहाँ से बीच में आ गया, कोई मुझे भी बताएगा हुआ क्या था ?" नीमा कुछ समझ नहीं पा रही थी, बहुत ही उलझन में थी.

"सुजाता, नीमा कुछ पूछ रही है, तुम बताओगी या ये काम मुझे ही करना होगा ?" माँ ने सुजाता से पुछा.

"माँ, तुम भी सब जानती हो, पर मुझे टोका क्यों नहीं, कुछ समझाया क्यों नहीं" सुजाता अब सब और से घिर गयी थी, वो समझ नहीं पा रही थी क्या करे और क्या कहे. 

"कभी-कभी, बात समझाने से भी समझ नहीं आती और तुम, तुम तो सातवें आस्मां पर थी, तुम पर समझाना काम कहाँ आता, तो ये सब होना ही था" माँ ने कहा .

"सही कह रही हो, माँ, मैं सातवें आस्मां पर ही थी, समझाने से कहाँ समझती मैं, तो ये सब होना ही था, शरद, मैंने ही तुम्हारी ड्रिंक में नींद की गोलियां डाली थी, और वो मैं ही थी जिसने तुम्हें पहाड़ से धक्का दिया था, शायद मैं तुम्हारे प्यार से तंग आ गयी थी, हद से अधिक ही प्यार किया था तुमने मुझे, बस वही सब रास नहीं आया, कुछ और पाने की तमन्ना मुझे न जाने किस रास्ते पर ले गयी, तुम कुमार बन कर आये तो भी मैं अपने नशे में थी तुम्हें पहचान नहीं पायी" सुजाता एक खाली-पन में देख कर बोल रही थी .

"इतना सब हो गया और मुझे किसीने कुछ नहीं बताया, पर शरद तुम कुमार कैसे बन गए !" नीमा ने पुछा.
शरद के बोलने से पहले सुजाता ही बोल पड़ी "मैंने शरद को पहाड़ से फेकने से पहले उसके ऊपर तेज़ाब फेंक दिया था, ताकि मरने पर उसे कोई पहचान न पाए, और मेरा गुनाह, कोई जान न पाए  न जाने मैंने वो सब क्यों किया और कैसे किया, आज भी सोच कर लगता है, मैंने वो किया या वो सब मेरे दिमाग की सोच है, माँ, तुम ठीक कह रही हो, समझाने से कैसे समझती मैं ये सब, कुछ और पाने की चाह ने मुझसे न जाने क्या-क्या करवा दिया" सुजाता अभी भी खाली-पन मैं ही देख कर बोल रही थी.

"सुजाता........" शरद कुछ कह पाता, इससे पहले पुलिस वह आ पहुंची.

"पुलिस, पुलिस क्यों, यहाँ इनका क्या काम" नीमा थोड़ा डर गयी थी.

"मैने फ़ोन किया है, मेरा गुनाह, सज़ा के काबिल ही है, और किसी में कहाँ इतनी हिम्मत की मुझे कुछ कह पाए, चुप न करवा दूंगीं" सुजाता, शरद को देख मुस्कुराई और पुलिस की और बड़ चली.

"सुजाता, तुम्हारे गुन्हा की सज़ा मैं ही दुँगां, क्यूंकि पीड़ित मैं ही तो हूँ" शरद ने अपनी जेब से अंगूंठी निकाल कर सुजाता को पहना दी, "अब कहाँ जाओगी, अब कहीं मत जाना, मैं शादी की तैयारी करूँगा, अब लौट कर मेरे पास ही आना, आओगी न सुजाता ?".

"और कहाँ जाऊगीं, तुम्हारे जैसा प्रेम मुझे करेगा कौन ?" सुजाता शरद के गले लग गयी. 

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