"अरे, वाह ! मेरे लिए तोफा है, ये तो कुमार ने भिजवाया है, और, मैं पागल, मुझे लगा वो मेरा जन्मदिन भूल गया है".
"सुजाता, जल्दी खोलो तोफा, शायद शादी की अंगूठी भेजी हो, हमारे कुमार जी थोड़ा शर्मीले हैं शायद सामने न कह पा रहे हों" नीमा और सुजाता बचपन की सहेलियां थी.
"वाह ! खत है" सुजाता ने खत को चूमते कहा .
"इतना बड़ा डिब्बा और एक खत, वाह रे प्यार" नीमा ने चुटकी लेते कहा.
"लो भाई, ऐसी कौनसी बात है जो हमारे होने वाले जीजा जी बोल कर न कह पा रहें हैं, पर खत में लिख दिया हो, जल्दी पढ़ो यार, चलो हमें भी बताओ आखिर क्या है वो बात" नीमा ने खत को उलटते-पलटते, सुजाता को देते बोला.
"ठीक है, तू जा चाय बना ला, मैं देखती हूँ क्या लिखा है उसने खत में" सुजाता, नीमा के सामने खत नहीं खोलना चाहती थी .
नीमा पैर पटकते चाय बनाने चली गयी.
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नीमा चाय बना लायी,"चल अब बता क्या लिखा है खत में".
कमरे का नज़ारा देखते ही नीमा के हाथों से चाय के कप गिर गए,"सुजाता, सुजाता" एक खत के हज़ारों टुकड़े हो गए थे, और कमरे का सारा सामान बिखरा पड़ा था, और सुजाता बिस्तर पर लेटी रो रही थी,"क्या हुआ, क्या हुआ यहाँ, सुजाता".
"तू भी चली जा यहाँ से, नहीं बात करनी मुझे तुझसे भी" नीमा डर के मारे सुजाता की माता जी को बुला लायी, सुजाता का गुस्सा सारे मोहल्ले में मशहूर था.
"सुजाता, क्या हुआ, रोना बंध कर, तू तो बहुत मजबूत लड़की है, ऐसे क्यों रो रही है" माँ ने पुछा.
"माँ, कुमार शादी कर रहा है" सुजाता ने कहा.
"फिर" माँ ने पुछा, वो चाहती थी की सुजाता थोड़ा शांत हो जाये, इसलिए कम शब्दों का प्रयोग कर रही थी .
"माँ, वो मुझे-से नहीं, किसी और से शादी कर रहा है" सुजाता ने अपने को संभालते बोला.
"ओह! तो ये भी, शरद की तरहां ही निकला" माँ ने बोला, "कैसे-कैसे मुखोटे पहन रहे हैं लोगों ने, कौन किसे और कब धोखा दे रहा है पता ही नहीं चलता".
'शरद, माँ को शरद अभी भी याद है, ओह, माँ नहीं जानती की कुमार से शादी करने के लिए मैंने शरद को छोड़ा, कहीं, ऐसा तो नहीं की शरद की आह लग गयी हो मुझे, नहीं-नहीं शरद तो खुश है, सबने यही कहा था, और वो तो ये देश छोड़ कर चला गया था' सुजाता कहीं ख्यालों में खो गयी .
"माँ, सब मेरे साथ ऐसा क्यों करते हैं" सुजाता अपना डर माँ को नहीं दिखाना चाहती थी .
"चल छोड़ न, तेरे लिए नहीं था वो" माँ ने बात को ख़तम करने की कोशिश करते कहा.
"नहीं माँ, ऐसा नहीं होगा अब, मैं जा कर कुमार से बात करुँगी" सुजाता बोलते ही उठ कर चली गयी.
"आंटी, क्या मैं भी जाऊ उसके साथ" नीमा ने माँ से पुछा
"नहीं रहने दो, इस बार उसे अकेले ही जाने दो, हर बार उसकी जीत नहीं होगी, झूठ का परदा फाश होता ही है" माँ बोली.
"क्या बोल रहे हो आंटी, क्या हुआ है, मुझे भी तो कुछ समझाए" नीमा उलझन में थी, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
"और, ये शरद का नाम क्यों लिया आपने, अब वो और गुस्सा हो जाएगी" नीमा बोल कर सुजाता के पीछे चली गयी.
to be continued ......
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