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"सुरभि, क्या बचपना है, ऐसे छोटी-छोटी बातों पर क्या रिश्ता टूट जाता है क्या, अगले महीने तुम्हारी शादी है, कैसे चलेगी शादी ऐसे" पिता जी ने खाने के टेबल पर ही बात छेड़ दी, "कब तक बात नहीं करोगी".
"माँ, खाना बहुत अच्छा है, पिताजी आप राघव को बुला ली जिए, मैं बात करने को तयार हूँ" सुरभि बोल कर चली गयी .
पिता जी ने शुभ काम कोई देरी न की और राघव, नीतू और विजय और सुरभि और राघव के कुछ और दोस्तों को रात के खाने पर बुला लिया.
"इतने सारे लोगों को क्यों बुला लिया,"दोनों को अकेले बात कर लेने देते" माता जी ने कहा .
"अब बुला लिया है, देखी जाएगी जो होगा" पिता जी ने बोला.
पिताजी जानते थे सुरभि अब अपने से कभी बात नहीं करेगी, उसका मन भी होगा तब भी न करेगी, थोड़ी ज़िद्दी थी सुरभि, अपना नुक्सान कर लेगी पर अपने उसूलों पर हमेशा कायम रहेगी, पर एक बार कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है .
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शाम को सुरभि घर लौटी तो सब तैयारियां देख कर थोड़ी परेशान सी हो गयी, "पापा, ये सब करने की क्या ज़रुरत थी, राघव और मेरा रिश्ता अब बोझ सा हो गया है, और मैं इस वक़त कोई भी बोझ नहीं उठा सकती, I hope आप मेरी बात को समझ रहें हैं".
"सुरु, बेटा मैं जनता हूँ अपनी सुरभि को, पर एक आखरी कोशिश, क्या अपने पापा के लिए नहीं कर सकती, बस यही समझ लो की एक पार्टी है, और सब दोस्त लोग आ रहे हैं" पिताजी ने कहा.
"थैंक यु, पापा, थैंक यू मुझे समझने के लिए, सब आदमी आप से क्यों नहीं होते" सुरभि ने सोफे पर बैठे पिताजी के कंधे पर अपना सर रख दिया.
"थैंक यु too सुरु, सब आदमी मुझ जैसे इसलिए नहीं होते क्यूंकि, सबके पास मेरी सुरु जैसी बेटी भी तो नहीं होती, चलो अब बताओ काम कैसा चल रहा है, अब जब राघव को वो फैक्ट्री नहीं देनी तो उसे बेच दो, दो-दो फैक्ट्री कैसे चलाओगी ?" पिताजी बोले .
"नहीं पापा बेचूगीं नहीं, बस दोहरी मेहनत करूंगीं, दोनों फैक्ट्री लगभग एक जैसी ही हैं, सो इतनी मुश्किल नहीं होगी, डब्बे और गिफ्ट-पेपर एक जैसे ही होते हैं, सो चल जायेगा काम, और कभी भी मदद की ज़रुरत हुई तो आप हो न" सुरभि ने मुस्कुराते हुए कहा .
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"मुझे ख़ुशी है की तुम, राघव से मिलने के लिए तैयार हो गयी, हर किसीको एक मौका ज़रूर मिलना चाहिए" नीतू ने सुरभि के गले लगते कहा.
"नीतू ये तुम मेरी सहेली हो, इसलिए कह रही हो, या, राघव तुम्हारा भाई है इसलिए कह रही हो" सुरभि, राघव की वकालत सुन-सुन कर थकने लगी थी.
"नहीं, सुरभि मुझे गलत मत समझो, मेरा मतलब किसी की वकालत करना नहीं था, देखो किसी दिन किसी और से मिलोगी, उसे जानने में भी तुम्हें वक़त लगेगा, और जिसे हम सालों से जानते हैं, उसी को थोड़ा और क्यों नहीं समझ लेते, समय की भी बचत होगी और भावनाओं को बार-बार चोट भी न पहुँचेगी" नीतू ने सुरभि का हाथ पकड़ते बोला.
"ये बात क्या तुमने अपने भाई को भी समझाई थी क्या" सुरभि ने नीतू को पलट कर देखने को बोला, राघव झूमता - झूमता पार्टी में दाखिल हुआ,"नीतू यहाँ आप किसीको समझा नहीं सकते, तुम अगर समझती हो की मैं ज़िद्दी हूँ तो अपने भाई के बारे में क्या ख्याल है" सुरभि बोल कर वहां से चली गयी.
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"बोलो शादी की तैयारी कैसी चल रही है" राघव ने सुरभि के पास आ कर धीरे से पुछा.
"बस, चल रही है" सुरभि ने कम बोलना ही ठीक समझा .
"क्यों किया तुमने ऐसा, अपने को इतना समझदार दिखाया और मुझे बेवकूफ बना दिया, देखो मेरा क्या हाल बना दिया तुमने, प्यार किया और छोड़ दिया, यूँ ही अकेले, और अपने डब्बों को चुन लिया, बोलो न बोलती क्यों नहीं" राघव बोलते-बोलते कुर्सी पर बैठ गया, "तुमने, मुझे क्यों छोड़ दिया बोलो, बोलो सुरभि, इतना अच्छा बन कर क्या मिल जायेगा" बोलते-बोलते राघव एक दम से खड़ा हो गया और बात ही पलट दी "क्या कह रही हो सुरभि, क्यों, क्यों नहीं करोगी तुम मुझसे शादी, ऐसा क्यों कर रही हो, क्या तुम नहीं जानती की मैं तुम से कितना प्यार करता हूँ".
सुरभि ने राघव की बात सुन, पलट कर देखा तो नीतू - विजय और पिताजी खड़े थे .
"क्यों कह रही हो ऐसा, क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा, बोलो न, कितना प्यार किया है मैंने तुमसे" राघव बोलते ही जा रहा था .
"सुरभि - राघव तुम दोनों अपना झगड़ा सुलझा लो आज ही बस" नीतू ने बोला,"चलिए अंकल हम लोग यहाँ से चलते हैं.
"रुकिए सब लोग, आज मैंने फैसला कर लिया है" सुरभि ने राघव का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बड़े प्यार से बोला, "राघव, तुमसे दोस्ती और प्यार दोनों किया है, और हम दोनों स्कूल से साथ-साथ हैं, शायद हम-दोनों एक दुसरे को थोड़ा ज्यादा ही जानते हैं, और इसीलिए मैंने फैसला कर लिया है, बल्कि, अपने लिए फैसला कर लिया है, मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती" सुरभि, राघव का हाथ छोड़ अपने पिताजी के पास जा खड़ी हो गयी, चलिए पापा, इस पार्टी को बाय-बाय कह देते हैं और अगली पार्टी की तयारी करते है,"मैं अपनी फैक्ट्री को अब ज़ोर-शोर से लांच कर रही हूँ"
राघव वहीँ खड़ा सुरभि को जाते देखता रहा.
"राघव, भाई, क्या कर रहे हो जाओ उसके पीछे, क्या तुम उससे प्यार नहीं करते" नीतू ने सुरभि को आवाज़ देनी चाही.
"नहीं, नीतू, नहीं, मैं भी उसे जनता हूँ अब उसका फैसला कोई नहीं बदल सकता और अब सुरभि को जीतने से भी कोई नहीं रोक सकता" राघव भी वहां से चला गया.
"मुझे विश्वास है, की जो तुमने किया है, वो सोच समझ कर किया है, और अब अपने किये पर कभी पछताना मत" पिताजी ने सुरभि से कहा.
"पछतावा होगा भी तो भी नहीं पछताऊगीं, मैं खुद को संभाल लूंगीं' सुरभि ने हस्ते हुए बोला.
'हे, भगवान, बस मेरी मदद करना, मुझे अपने पर पछताना न पड़े, राघव मेहनत करना नहीं चाहता और मैं बस मेहनत ही करना चाहती हूँ, अपने काम को ही अपना हमसफ़र बनाना छाती हूँ' सुरभि मन ही मन मुस्कुराने लगी.
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