शनिवार, 5 नवंबर 2022

सुरभि की शादी - Part 1

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"सुरभि ने अपने को कल से बंद कर रखा है, न कुछ बोलती है और न बाहर ही आती है, बस खाने के लिए मैसेज कर देती है, और बाहर रख दो तो उठा लेती है, कब तक चलेगा ऐसा" माँ ने चिंत्ता जताते बोला.

"कुछ दिन छोड़ दो उसे, खुद ही वापस आ जाएगी, ज्यादा ज़ोर देने से कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ" ! पिता जी ने कहा, " हम-तुम को तो डर था बड़ों का, आज-कल कहाँ डर है इन बच्चों को हमारा".

"ठीक ही कहा आपने, शादी होते-होते बस यु ही......." माता जी बोलीं .

"बस, अब ये शादी की बात सुरभि के सामने कभी न हो" पिता जी बोले, "जो हुआ नहीं, उसके बारे में बात क्यों करनी" .


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"लहंगा, कपडे, कार, चादर-तकिये, सब नए होने चाहिए, शादी के बाद बस सब नया ही चाहिए, एक जीवन नया शुरू हो रहा है, उसमें बस सब नया ही होगा" सुरभि ने कहा. 

"अरे, मैडम, इसी लिए मैंने, नया घर भी देख लिया" राघव ने सुरभि को टोकते हुए बोला. 

"अरे, ऐसे कैसे, मुझे भी देखना है घर कैसा है, अगर मुझे पसंद न आया तो ?" सुरभि गुस्से में बोली. 

"देखो, घर मेरी पसंद का और घर के अंदर जो होगा वो सब तुम्हारी पसंद का होगा" राघव ने बोला .

"ठीक हैं, बाबा, गुस्सा मत हो, जो तुम कहो, अब जब ज़िन्दगी में तुम हो तो तुम्हारी बात माननी ही होगी" सुरभि बोलते - बोलते राघव से लिपट गयी.




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सुरभि और राघव पांच साल से साथ थे, अब पांच साल बाद सब के बहुत कहने पर दोनों ने शादी करने का फैसला ले लिया, पर सुरभि अभी भी, शादी के लिए तयार नहीं थी, 'शादी की साथ आने वाली जिम्मेदारी का क्या, उसे कैसे पूरा कर पाउंगीं मैं', यही सब सोच-सोच कर उसे शादी की बात से ही डर लगता था, और राघव भी अभी कोई काम में सेटल नहीं था, शादी की जिम्मेदारी उसके लिए भी अजीब थी .  

सुरभि, स्कूल की पढ़ाई पूरी कर तीन साल तक यही सोचती रही की अब क्या करूँ, घर में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी, घर के बाहर दो-तीन गाड़ियां थी, जब जो चाहिए था सब मिल जाता था, कोई कुछ कहने वाला न था, सो ज़िन्दगी दिशा हीन सी हो गई थी, और दोस्तों और पार्टियों में दिन गुज़र रहे थे.

राघव, स्कूल से निकल कर लन्दन पढ़ने चला गया, पर एक साल में ही लौट आया, भागती-दौड़ती दुनिया का हिस्सा न बन पाया, नौकरों-चाकरों और बड़ी-बड़ी घड़ी में घूमने वाले राघव को पढ़ाई-लिखाई समय की बर्बादी लगने लगी.

सुरभि से शादी कर वो ज़िन्दगी को नए सिरे से शुरू करना चाहता था, पर विवाह का फैसला जब राघव ने अपने पिता के सामने रखा तो उन्होंने विवाह के लिए एक शरत रख दी की अगर राघव को शादी करनी है तो खुद कमाना होगा.

राघव के पिताजी ने एक दूकान की ज़िम्मेदारी उसे दे दी, पर राघव ये सब नहीं करना चाहता था, वो तो बस दुनिया घूमना चाहता था. 

दूसरी और सुरभि अपनी मेहनत से कुछ कर दिखाना चाहती थी, सो उसने एक नया काम करने की ठान ली. सुरभि ने एक डब्बे बनाने की फैक्ट्री खोल ली, और अपनी मेहनत से उसने कुछ ही समय में बहुत कुछ हासिल कर लिया था .


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समय बीतते, सुरभि का काम चलने लगा, वो थोड़ा व्यस्त रहने लगी, राघव, सुरभि को पार्टी में चलने को कहता तो वो काम की वजह से मना कर देती, राघव को सुरभि की ये बात बिलकुल न भाति, और ऊपर से उसे अपना काम न चलने का भी गम था. 

राघव को लगने लगा की सुरभि उसे नज़र-अंदाज़ करने लगी है, और वो सुरभि से नाराज़ सा रहने लगा, बात-बात पर लड़ने की राघव की आदत सी हो गयी थी.

सुरभि, राघव का साथ देना चाहती थी, वो राघव को आगे बढ़ते देखना चाहती थी, मेहनत करते देखना चाहती थी, इसलिए उसने राघव के जन्मदिन पर राघव को एक फैक्ट्री खरीद कर देने का प्लान बनाया, उसे लगा की राघव की अगर अपनी फैक्ट्री होगी तो शायद उसका काम में मन लग जाये. 

सुरभि ने राघव से मौका देख बात करनी चाही पर राघव अपनी ही मस्ती में मस्त रहता, सुरभि की बात को तवज्जो भी न देता, एक दिन सुरभि ने अपना प्रस्ताव उसके सामने रख ही दिया "मैं एक नयी फैक्ट्री खरीद रही हूँ, क्या तुन उसे चलाने में मेरी मदद करोगे !".

"पर, फैक्ट्री में बनता क्या है, और किसकी है, कुछ पता तो करो" राघव, सुरभि की और देखते पुछा. 

सुरभि जानती थी की राघव को शायद उसका ये प्रस्ताव पसंद न आये, पर फिर भी डरते-डरते उसने कहा,"फैक्ट्री छोटी सी है, वहां packaging materiel बनता है, पर हम दोनों मिल कर उसमें और addition  भी कर सकते हैं, उसे और आगे ले जा सकते हैं".

"छोटी सोच है तुम्हारी, बड़े शहर की बड़ी गलियों में रहने वाली और सोच छोटी, अफ़सोस होता है मुझे तुम पर, डब्बे बनाने की फैक्ट्री खोलोगी, कोई मेकअप के समान की बात करो, कोई खाने वाली फैक्ट्री की बात करो, ये क्या डब्बे बनाने वाली फैक्ट्री क्या लेनी" राघव हस्ते हुए बोला.

"राघव, मुझे लगता है तुम्हें कुछ करना ही नहीं है, सो तुम यहाँ बैठो मैं जाती हूँ, हर सुझाव को बस न करने की आदत सी हो गयी है तुम्हारी" सुरभि ने चिढ़ते हुए बोला, और वो वहां से चली गयी.

"हाँ-हाँ जाओ, पर आज रात पार्टी में आना मत भूलना, सभी आ रहे हैं, तुम भी ज़रूर आना, अपने डब्बों को थोड़ी देर अकेले छोड़ देना वो बुरा न मानेगें" राघव की हंसी आज सुरभि को बिलकुल अच्छी नहीं लगी.


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'पार्टी में जाने का मन तो नहीं है, पर जाना पड़ेगा, नहीं तो नीतू और विजय बुरा मान जायेंगें' सुरभि बे-मन सी पार्टी में जाने को तैयार हो गयी,'शायद आज राघव का मूड ठीक रहे'. 

सुरभि ने पार्टी में पहुंच कर सबसे पहले राघव को ही देखा, राघव ज़ोर-ज़ोर बातें कर रहा था, उसकी आवाज़ से पता चल रहा था की उसने पार्टी में आने से पहले से ही बहुत शराब पी रखी थी, 'हे भगवान्, इस शाम को बस जल्दी ख़तम कर देना, बिना किसी ड्रामे के' सुरभि मन ही मन सोच रही थी .

सुरभि को देखते ही राघव उसकी और बढ़ने लगा,"अरे, राघव देखो तो नीतू और विजय दोनों एक साथ कितने अच्छे लग रहे हैं, याद है आज से तीन महीने पहले पहले हमारी सगाई यहीं हुई थी" सुरभि बोलते - बोलते नीतू और विजय की ओर बढ़ चली.

"सुरभि, अगर तुम नहीं आती तो मैं तुमसे कभी बात नहीं करती, बहुत busy हो गयी हो आज-कल पता है पर दोस्तों के लिए टाइम हमेशा अलग से होता है" नीतू ने सुरभि के गले लगते कहा .

 "सुरभि को आज-कल डब्बों से प्यार हो गया है, एक डब्बा मेरे लिए भी बना दो न, कितने का डब्बा होगा ?" राघव ने तंज कस्ते कहा .

सुरभि ने मुस्कुरा कर बात को टाल दी, पर राघव आज अलग ही मूड में था, "राघव आज नहीं, नीतू तुम्हारी बहन है, उसके लिए ही बस चुप हो जाओ" सुरभि ने धीरे से राघव को बोला.

"चुप ही तो हूँ मैं, कब से, कुछ कहा तुम्हें, आज-कल वैसे भी तुम अपने मन का ही कर रही हो, सब तरफ से तुम्हारी वाह-वाह ही हो रही है, एक डब्बा मेरे लिए बना दो ताकि मैं चुप-चाप उसमे बैठ जाऊँ" राघव चुप होने का नाम नहीं ले रहा था.

"भाई please आज नहीं, आज ड्रामा मत करना, हंसी-ख़ुशी सब हो जाने दो" नीतू ने राघव से कहा.

"हाँ-हाँ हम तो है ही शोर मचाने वाले, ये सुरभि जो है शांति की मूरत, सब की चहेती कामयाब सुरभि, इनके सामने किसी की क्या औकात, बोला न एक डब्बा बना दो, मेरे लिए बना दो, मैं चुप कर के उसमे बैठ जाऊँगा" राघव चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

"नीतू, मैं जाती हूँ, मैं तुम से कल मिलती हूँ" सुरभि ने वहां से जाना ही ठीक समझा.

"अरे, अरे, अभी मत जाओ" राघव ने सुरभि का रास्ता रोकते बोला,"अभी क्यों जा रही हो, अपने डिब्बों का प्रदर्शन नहीं करोगी क्या ?, क्या पता यहाँ कोई तुम्हारे डिब्बे देख कर आर्डर देदे, और हाँ नीतू और विजय को गिफ्ट भी तो देंगें सब, सबको डब्बों की ज़रुरत होगी, कोई कैटेलॉग तो दिखाओ, कहाँ है कैटेलॉग, लाओ, मोबाइल लाओ, मोबाइल में ज़रूर होगा" राघव बोलते - बोलते सुरभि से उसका मोबाइल खींचने लगा. 

सुरभि ने राघव की बतमीज़ी का जवाब थपड़ से दिया,"अब हमारी शादी नहीं होगी, कभी नहीं होगी, कम-से-कम तुमसे तो कभी नहीं" और सुरभि वहां से चली गयी .

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                                                                     ..............to be continued 

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