रविवार, 9 जनवरी 2022

कुछ वैसी प्रेम कहानी

 

  अपना कोई हो, और उस अपने को खोजने कहाँ तक जा सकता है कोई, कई सारे किस्से-कहानियाँ जिनका वजूद तो नहीं है पर वो हैं, और वो कई बार सामने आ जाती हैं, प्रेम पर विश्वास बनाये रखती हैं, कोई चाहने वाला हो इस जहाँ में अपना बस इतना ही दिल चाहता हैं : 


"तुम्हारा लिफाफा मेज़ पर रख दिया है" मंजरी ने लक्ष्य के नाक पर चुम्मा देते हुए बोला और अपना बैग उठा, जाने को तैयार थी। 

"फिर कब मिलोगी" ? लक्ष्य ने चाहत और उम्मीद भरी नज़रों से मंजरी से पुछा। 

"मिस्टर ! माना, की तुम हैंडसम हो, पर मुझे कोई वजह नहीं दिखती की मैं तुम से मिलूं, अपना काम बहुत अच्छे से करते हो, बस अपना काम करो और टाटा-बाय-बाय" मंजरी को लक्ष्य से यूँ बात करना अच्छा न लगा पर ज़िन्दगी यूँ ही है, जितना प्रैक्टिकल रहो, उतना आसान होता है ज़िन्दगी जीना। 

लक्ष्य, मंजरी को बहुत पसंद था, लक्ष्य के छूते ही मंजरी का बदन पिघलने सा लगता था, लक्ष्य के अघोष में जाते ही मजंरी सब कुछ भूल जाती थी। लक्ष्य के साथ होते हुए मंजरी को ज़िन्दगी हसीन लगती थी। मंजरी जब लक्ष्य के साथ होती तो, लक्ष्य की निगाहें बस मंजरी पर ही रहती, मंजरी के एक-एक अंग को कैसे सहलाना है, मंजरी के दिल को कैसे दहलाना है, मंजरी को कहाँ छूना और कहाँ नहीं छूना लक्ष्य ने ये दो ही मुलाकातों में जान लिया था।  

मंजरी कॉफ़ी हाउस में बैठी सोच रही थी, 'बस, अब जा कर सो जाऊगीं, कल ऑफिस में बहुत काम है, काश ज़िन्दगी इस वीकेंड की तरहं ही हसीन होती, काश लक्ष्य और वो एक साथ हो सकते, पर, क्या किया जाए, लक्ष्य के अपने लक्ष्य हैं और वो उनको पूरा करने के लिए अपना काम कर रहा, और मैं अपना, पर वीकेंड बहुत ही हसीन था, लक्ष्य की बाँहों में सब कुछ भुला देने में कितना मज़ा है, लक्ष्य, और मर्दों की तरहं नहीं था, उसे किसी भी बात की कोई जल्दी नहीं होती, धीरे-धीरे कैसे चाहत को बढ़ाना है, और कहाँ और कितना छूना है, कब बाँहों में जकड़ना है और कब ......... बस,....बस......, वीकेंड ख़तम हो गया, पर काश एक बार आने से पहले लक्ष्य के माथे को कस कर चूमा होता, खैर, थैंक-यू लक्ष्य, हसीं पलों का'।  


आज न जाने क्यों लक्ष्य के साथ बिताये हर पल का एहसास मंजरी को सोने भी न दे रहा था, मोबाइल की घंटी ने मंजरी को और झुँझला दिया,'अब कौन है, संडे को कोई फ़ोन करता ही क्यों है', "हैल्लो, कौन" ?

"क्या तुम घर पहुँच गयी"?

"ये पूछने के लिए फ़ोन क्यों किया, बस मैसेज ही कर दिया होता, मुझे नींद से उठा दिया" मंजरी ने अपनी आवाज़ में झुंझलाहट लाते हुए बोला। 

"एकबार बस, कल डिनर के लिए मिलोगी, प्लीज" लक्ष्य ने गहरी सी आवाज़ में पुछा। 

'हाँ', मंजरी का रोम-रोम लक्ष्य के पास भाग जाने को कर रहा था, "नहीं ! मैं नहीं मिल सकती, देखो, हमारा कोई रिश्ता नहीं बन सकता, तुम ने काम किया, मैंने पैसे दे दिए, बस ख़तम कहानी, दुबारा कॉल मत करना वरना, मुझे तुम्हारी कंप्लेंट करनी होगी" 

लक्ष्य ने बिना जवाब दिए फ़ोन रख दिया, 'सॉरी, पर, और क्या कहूं तुमसे' मंजरी को बहुत बुरा लग रहा था। 'कौन है रोकने वाला, किसको जवाब देना है, एक बार और सही, क्या पता लक्ष्य ही हो वो, वो जिसका कभी मिलने का वादा है, वो जो मुझे, मुझ से चुरा ले, पर नहीं अब जोखिम उठाने की उम्र न बची है, फिर दर्द हुआ तो, और सब क्या कहेंगें, माँ ने तो बात भी करना छोड़ दिया, अब भाई-भाभी ने बात करना छोड़ दिया तो' सोचते-सोचते मंजरी न जाने कब सो गयी।  

सुबह चाय पीते लक्ष्य का ख्याल मंजरी के मन को फिर से मचला रहा था। 
'क्या हो गया है मुझे, हे भगवान, मुझे हिम्मत दो, अपने आप पर काबू रखने की, कितना जानती हूँ मैं लक्ष्य को, उसने काम किया, मैंने पैसे दिए, और वो काम करता है जिसके बारे में बोला भी जा सकता, पर क्या पता उसकी कोई मजबूरी है, एक बार, एक डिनर में क्या जायेगा, नहीं.... ! बिलकुल नहीं, बातों में से ही बातें निकलती है, नहीं......, अपने पर काबू रखो मंजरी, ज़माना क्या कहेगा, पर कौन है ये ज़माना, बस......बस......, देर हो जाएगी आज ऑफिस को, और नहीं, और नहीं सोचना अब'। 



"मंजरी इस वीकेंड का क्या प्लान है' ? सुधा ने पुछा तो मंजरी डर सी गयी, कहीं सबको पता तो नहीं चल गया, मैं वीकेंड में क्या करती हूँ !

"मंजरी - कहाँ हो, वीकेंड का क्या प्लान, एक पार्टी है, चलोगी' सुधा ने पूछा, कई बार पूछा पर मंजरी ने हमेशा मना कर दिया। 
"हाँ चलो, कहाँ है पार्टी" ?
"मेरे एक स्कूल के दोस्त की पार्टी है, उसने एक नयी कंपनी खोली है, बस उसी की पार्टी है, तो शाम को सात बजे तैयार रहना, फाइव-स्टार होटल में है पार्टी, मज़े करेंगें, अब ये मत कहना की तुम वहां किसीको जानती नहीं, तो पार्टी में जा कर क्या करुँगी" !
"अरे !....... नहीं मुझे ऐसी पार्टी बहुत अच्छी लगती है जहाँ मैं किसीको जानती नहीं, हस्ते-मुस्कुराते ही वक़्त निकल जाता है, चल मिलते है शाम को"
"गुड ! सी-यू, मेरी गाड़ी से चलेंगें, मैं सात बजे तुम्हें लेने पहुंच जाउगीं" सुधा गाती-गुनगुनाती वहां से चली गयी। 


'बढ़िया है, क्या पार्टी होगी, न किसीको जानो, ना बेकार की बातों में फसों' मंजरी मन ही मन मुस्कुराने लगी। 



"पार्टी तो बड़ी शानदार है, चल तू एन्जॉय कर, मैं कुछ दोस्तों से मिल कर आती हूँ" सुधा अपने दोस्तों से मिलने चली गयी। 
'हस्ते-मुस्कुराते अनजान चेहरे कितने अच्छे लगते हैं, किसके अंदर क्या छुपा है कोई जानता ही नहीं,सबकी अपनी कहानी होगी' मंजरी मुस्कुराती पार्टी में लोगों को देख अपनी ड्रिंक एन्जॉय कर रही थी। 


"अब, अगर कोई अचानक मिल जाये, और वो बात करे, तो कंप्लेंट तो नहीं होगी ना"
मंजरी ने पलट कर देखा तो लक्ष्य उसकी और देख मुस्कुरा रहा था। 
"तुम ! यहाँ" मंजरी ने मन की ख़ुशी को छुपाते पुछा। 

"जी, जिस कंपनी के खुलने की पार्टी है, मैं, उस कंपनी का मुलाजिम हूँ, बस नौकरी मिल गयी, शुक्र है" 
"अरे, वाह, मुबारक हो, नई नौकरी की, अब वो पुरानी नौकरी का क्या" ?
"वो, तो टाइम पास थी, पैसे चाहिए थे"
"पैसे कमाने के और भी कई तरीके हैं" मंजरी ने मज़ाक उड़ाते कहा। 
"और, पैसे खर्च करने के भी, कई तरीके हैं" लक्ष्य ने मंजरी की लट, उसके चेहरे से हटाते बोला। 
"ये बात, बात तो सही है, पाप तो पाप है"
"नहीं, कोई पाप नहीं है, मजबूरी है, मेरी थी और तुम्हारी भी होगी, मेरी मजबूरी है की मैं अनाथ हूँ, पर ज़िन्दगी तो जीनी है" 


"लक्ष्य ! बहुत बढ़िया, प्रैक्टिकल लोग मुझे बहुत अच्छे लगते है" 

"पहली बात, मेरा नाम मानव है और दूसरी बात, अब तो डिनर पर चलोगी" मानव ने मंजरी का हाथ थामते पुछा। 


"मैं क्यों, मैं तुमसे बहुत बड़ी हूँ, और अपने साथ दो टूटी हुई शादियों का बोझ ले कर चल रही हूँ" ? मंजरी ने हैरान होते पुछा। 
"सुनो, मेरी तरफ देखो, हमेशा ज़िंदा नहीं रहना यहाँ, तो इतना बोझ ले कर मत चलो, जबसे तुमको देखा, तुमको छुया है, कुछ अलग सा महसूस कर रहा था, आज तुम मिली तो यकीन हो गया, कुछ तो है जो ऊपर वाला हमें बताना चाहता है, अब मिलेगें तो पता चलेगा, क्या है वो" 
मंजरी मुस्कुराने लगी, "सच कहा, मिलने पर ही पता चलेगा"। 



"मानव, बहुत ही खूबसूरत नाम है" मंजरी ने मानव के माथे को चूमते, मानव के हाथ में अपना हाथ थमा दिया। 

"उस दिन मेरा माथा चूमे बिना क्यों चली गयी थी"। मानव ने शरारत भरी आँखों से मंजरी से पुछा 
मंजरी ने मानव के होठों को चूमते अपना सर मानव के कंधे पर रख दिया। और शुरू हो गयी एक और प्रेम कहानी।    




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