शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

Hindi-Story - हो गया जो होना था

 

"चला गया, क्या मतलब है कहीं चला गया" माँ बोलीं," जाना ही था तो शादी क्यों की ?" .

"मीरा, मीरा" माँ चिलाती हुई मीरा के कमरे में दाखिल हुई,"क्यों री, क्या है ये सब, क्या बोला तूने गिरीश से, हमारी इज़्ज़त का ख्याल भी नहीं रहा, दुनिया को पता चला, तो सब मज़ाक उड़ाएंगें, कहते - कहते माँ की आँखों से आसूं बह रहे थे.

"तुम जाओ यहाँ से, अभी इतना गुस्सा करने का वक़त नहीं है, मुझे बात करने दो मीरा से, जाओ तुम" पिता जी ने कहा.

"हुआ क्या, कुछ तो तुम दोनों में बात हुई होगी, कुछ तो बात हुई होगी तुम्हारे और गिरीश के बीच, शादी को एक हफ्ता ही तो हुआ है, कहाँ चला गया है वो, कुछ तो तुम दोनों बात हुई होगी न" पिता जी ने पुछा.

"पापा, मुझे नहीं पता, जब से शादी हुई है मेरी और उसकी कोई बात ही नहीं हुई है, वो कुछ नाराज़ सा था" मीरा ने सफाई देते हुए कहा .

"इसी ने कुछ कहा होगा, कितनी चाह से इसे मांग कर ले गए थे तो, ये सब कैसे हो सकता है, मैं तो कहती हूँ चलिए अभी, चल कर उन से ही पूछ कर आते है, और हाँ दीदी को भी ले चलते, दीदी ही तो रिश्ता लायी थी" माँ ने कहा .



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नवीन धन-धानता हुए अपने कमरे से निकल कर घर से बाहर चला गया, नवीन का मौसेरा भाई, शरद भी उसके पीछे -पीछे चल दिया.

"नवीन, नवीन रुक जाओ, हुआ क्या है, आज ही तो तुम्हारी शादी हुई है, फिर भागे कहाँ जा रहे हो ?

"भाई, मेरे साथ धोखा हुआ है, ये मीरा नहीं है" !

"पर माँ ने सब से यही कहा की लड़की तुम्हारी पसंद की है, मैं, मौसी से बात करता हूँ" .

"मौसी क्या है ये सब, आप ने तो कहा की लड़की नवीन की पसंद की है, पर नवीन तो गुस्से में धन-धनाता कही चला गया है" शरद ने कहा. 

"चला गया तो वापस आ जायेगा, अब शादी हो गयी है, रुक्मणि ही इसकी बीवी है अब" .

"पर, क्यों मौसी, ऐसा क्यों है, माँ-बाप तो बच्चों की हर ज़िद्द मानते हैं, फिर ये क्यों नहीं"!

"मैंने भी इसे यही कहा था, पर मेरी सुनता कौन है" नवीन के पिताजी वहां आ गए,"पर इनकी ज़िद थी, अब ज़िद का क्या अंजाम होगा भगवान ही जाने" 

"कुछ नहीं होगा, अब शादी हो गयी, अब उसे इसीसे निभाना होगा और कोई रास्ता नहीं है" माँ बोलीं . 

"पर, अगर नवीन वापस न आया तो ? बेटा तो आखिर तुम्हारा ही है, और ज़िद्दी भी तुम्हारी ही तरहं है" पिताजी बोले. 


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माता जी और पिता जी जाने को तैयार ही थे की दरवाज़े की घंटी बजी, पिता जी ने दरवाज़ा खोला तो गिरीश सामने खड़ा था," मैं आप लोगो से माफ़ी मांगने आया हूँ, मैंने ये शादी ज़ोर-जबरदस्ती में की थी, इसमें मीरा का कोई दोष नहीं है, पर मुझे ये सब करना पड़ा". 

"अरे, गिरीश आओ, बैठो न" मीरा के पिताजी ने कहा .

"क्या मैं मीरा और आप से बात कर सकता हूँ" गिरीश बोला.

"अरे, अकेले क्यों आये हो, घरवाले नहीं आये, बोलो क्या खातिर हो, बातें बड़ी-बड़ी, पर सब खोख़ली" माँ बोलती जा रही थी .

"चलो यहाँ से, बैठो बेटा, मैं मीरा को भेजता हूँ" पिताजी, माँ को वहां से ले गए.

कुछ देर में मीरा लौट आयी, "चला गया क्या, जाने क्यों दिया, उसके घर वालों को यही बुला लेते, अभी के अभी सारा फैसला हो जाता" मीरा की माता जी बोली .

 "पापा, वो तलाक के कागज़ देने आया था" मीरा ने माँ की बात को नज़र अंदाज़ कर पिताजी से कहा. 

"क्या हो रहा है यहाँ, कोई मेरी बात सुन रहा है, शादी-बियाह कोई मज़ाक है क्या, बेटी पर तलाक-शुदा होने का दाग लग जायेगा .

"शुक्र करो की पहले ही पता चल गया, और कम से कम जल्दी पता चल गया" पिताजी ने समझते हुए कहा. 

"मैं अभी फ़ोन करती हूँ दीदी को, बड़ा बढ़ - चढ़ कर रिश्ता लायी थी, अब जवाब भी उन्हें ही लाना होगा और मीरा का घर भी उन्हें ही बसना होगा" माँ कहते हुए फ़ोन उठा लायी , " अभी उनसे भी बात करती हूँ".

"माँ, बस करो अब, अब तो मान लो, जो हो रहा है वो सब क्यों हो रहा है, किसी का दिल दुखा कर कौन खुश रह सकता है, और आपने तो अपनी बेटी का दिल दुखाया है" मीरा बोल कर अपने कमरे में चली गयी 

 

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"मौसा जी, नवीन लौट आया है, पर वो अपने कमरे में अपना सामान बाँध रहा है, कुछ बात नहीं कर रहा" शरद ने नवीन के पिताजी को धीरे से कहा, इस से पहले वो दोनों अंदर जाते, अंदर से माँ के ज़ोर-ज़ोर से बोलने की आवाज़ आने लगी .

"सुन रहे हो नवीन, ये सब नहीं चलेगा, रेणुका तुम्हारी बीवी है अब, तुम इससे छोड़ कर नहीं जा सकते, इसे हम बिहा कर लाएं है, दुनिया वालों को क्या जवाब देंगें" माता जी बोले जा रही थी और नवीन अपना सामान बांधने में लगा हुआ था.

"नवीन, एक बार बैठ कर बात कर लो, देखो ये सब ठीक नहीं है, मिल कर बात करते हैं, कोई न कोई हल निकल आएगा" शरद ने नवीन से कहा. 

"नवीन, ये सब नहीं होगा, मैं रेणुका से क्या कहूंगीं, दुनिया वालों से क्या कहूंगीं" नवीन की माता जी रोने लगी. 

"जो माँ अपने बेटे की बात पर गौर न कर सकी, उन को दुनिया का क्या डर ! दुनिया की परवाह है, पर मेरी नहीं" नवीन बोल कर चला गया .


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"आपकी बेटी मीरा कबसे घर नहीं आयीं, कुछ तो बोल कर गयी होगी" नवीन के पिताजी ने मीरा के माता-पिता से पुछा .

"अभी एक घंटा हुआ, बोल रही थी एक घंटे में आती है, क्यों क्या हुआ" मीरा के पिता जी ने चिंता जताते पुछा .

"नवीन दो हफ्ते से घर नहीं आया, रेणुका, जिससे उसकी शादी हुई थी, उसे भी उसके पिता जी ले गए, दुनिया वाले अजीब सी बातें कर रहे हैं" नवीन के पिता जी बोले .

"ये सब इनकी वजह से हुआ है" मीरा के पिताजी मीरा की माता जी की तरफ इशारा कर रहे थे,"न इनकी ज़िद्द होती न हमारे बच्चे हमारे दुश्मन होते, मेरा तो यही कहना है, जब बच्चों की हर ज़िद्द हम दलीलों के बाद मान लेते हैं तो, उनकी इस ज़िद्द पर भी हमें गौर करना चाहिए था". 

"पर अब तो जो होना था वो हो गया, बच्चों को अब ये समझना होगा, ज़िन्दगी कोई खेल थोड़ी है, आज हार गए तो कल जीत जायेंगें, बस जीना पड़ता है, जैसा है वैसा ही" नवीन की माता जी बोलीं .

"अब चुप भी करो, जैसा की आप ने अपने बच्चे को समझा दिया हो, बस करो अब, न जाने नवीन कहाँ होगा" नवीन के पिताजी ने चिंता जताते कहा. 


दरवाज़े की घंटी बजी तो मीरा के पिताजी ने जा कर दरवाज़ा खोल दिया,"मीरा, हो गया काम, ये माला कहा से पहन आयी".

मीरा के पीछे नवीन खड़ा था, "आओ न, बाहर क्यों खड़े हो दोनों, लो जी, हो गया जो होना था, नवीन भी आ गया".


मीरा और नवीन ने अपनी मंज़िल खुद ही तलाश ली .


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