सोमवार, 29 नवंबर 2021

मृगतृष्णा


 
कुछ पल थे 
तेरे और मेरे 
अब सोचती हूँ 
क्या वो हंसी थे 
या फिर
ये पल हंसी है 

तुम आज साथ होते 
तो ये पल न होते 
तुम मेरे होते 
तो ये प्रेम, क्या होता ?

मिल जाये वो मोहबत क्या 
पूरी हो जाये वो आरजू ही क्या 
एक उम्र में ही दुआएं कबूल हो जाये 
तो, उम्मीद को कौन पूछता 

हकीकत, और ख्याब में 
यही फरक है
हकीकत, परायी होती है 
और
ख्याब अपने होते है 

तो जो हकीकत है 
वो परायी सी लगती है
और
ख्याब, मृगतृष्णा से हैं
बस खूबसूरत से ही लगते हैं 
पर हकीकत में होते नहीं 

तो वो जो पल थे 
तेरे और मेरे
वो और कुछ नहीं
मृगतृष्णा ही तो थी 



2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या कहूँ इन अशआर के लिए? कुछ सूझ नहीं रहा। सच पूछिए तो कुछ कहने का जी भी नहीं कर रहा है। बस महसूस कर रहा हूँ उस जज़्बे को जो इन लफ़्ज़ों में छुपा है।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुक्रिया, बस जो मन में आता है, बस लिख देती हूँ

    जवाब देंहटाएं