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शनिवार, 4 जून 2022

प्रेम धोखा - Part 1


- 1 -

"ठीक है मैं सब्ज़ी और राशन ले आऊंगा" आनंद कॉल खत्म कर मुस्कुराने लगा.

'कितने साल लगे नमिता को मनाने में, पर आज सब कुछ भूल कर दोनों कितने खुश है, पति और पत्नी, नमिता आनंद सिंह, नमिता पहले ही मान जाती तो आज दो-चार बच्चे भी हो जाते' मन ही मन आनंद सोच कर मुस्कुराने लगा 

सब सामान और नमिता के लिए गज़रा ले आनंद घर की ओर बढ़ चला, घर का दरवाज़ा खुला था, "नमिता, अरे बई, दरवाज़ा क्यों ......." 

आनंद आगे कुछ न कह पाया, सामने का नज़ारा देखते ही सब समान बिखर गया और आनंद ज़मीन पर बैठ गया, "नमिता, ऐसा क्यों किया तुमने, मेरे प्यार में क्या कमी रह गयी थी" ?

"माँ, तुम भी" आनंद और कुछ न कह पाया, बस अपना चेहरा हाथों में छुपा रोने लगा 






- 2 - 


"अरे, आनंद लेट हो गए, लड़की देखने गए थे क्या ?, शादी कर लो यार, किसी को तो पसंद कर लो, बड़े दिन हुए शादी का खाना खाये, अब तो शादी कर ही लो, मेरी  पार्टी के लिए ही कर लो" नरेश ने आनंद को छेड़ते हुए कहा .

"सुबह-सुबह मत शुरू हो जाया करो, बस करो, नहीं करनी मुझे शादी, माँ को hospital ले कर गया था, और बताओ आज की क्या खबर है" आनंद ने अपने work table पर settle होते पुछा .

"आज हमारे Office में new employee आयीं हैं, आज ही join किया है, यहीं quarters में रहेंगी" नरेश ने आनंद को आज की खबर सुनाई.

"हम्म्म, एक नयी employee, किस department में है ?, चलो अच्छा है रूपा को company मिल गयी, quarters में कोई तो उसके साथ रहेगा" आनंद ने अपने paper सँभालते कहा.

"थोड़ी उम्र की लगती हैं, ना जाने बड़े शहर से छोटे शहर में क्यों आयीं है" नरेश ने चाय की चुस्की लेते कहा.

"कहा से आयीं है, नाम क्या है ?" आनंद ने चाय का कप उठाते पुछा. 

"नाम, याद नहीं रहा, पर....." नरेश ने कहा.

"चलो बई, अपना काम करें हमे क्या नाम-वाम से, अभी आ जायेगीं जान-पहचान भी हो जाएगी, उम्र का क्या है, अभी आ जायेंगीं पूछ लेंगें" आनंद ने अपना काम करते बोला.

"यार, वो छोड़ो, वो जो रविवार को लड़की देखने गए थे उसके बारे में क्या सोचा, तुम्हारी मम्मी को पसंद आ गयीं शादी करलो, तुमको भी पसंद आ ही जाएगी, उम्र हो जाएगी फिर कब शादी करोगे" नरेश ने आनंद से पुछा 

"यार, मम्मी को तो सब पसंद आ जाती है, पर मेरा दिल नहीं मानता, कोई ऐसा हो जिसे देखते ही बस ....." 

आनंद आगे कुछ न कह पाया, वो जो सामने से चल कर आ रही थी, वही है वो, जिसे वो कब से खोज रहा था, 'कहाँ थी तुम, कितना खोजा मैंने तुमको, और बस तुम यूँ ही बिन बताये चली आयी, ऐसा क्यों किया, देखो मुझे क्या-क्या न करना पड़ा,....... ये रूप, ये चाल, ये आँखें, ये अदा, कितनी बार मैंने सपने में देखीं और तुम ......, कब हुआ ऐसा की तुम मेरे सपने से निकल यहाँ आ गयीं,...... कल रात सपने में बता देती, की तुम आने वाली हो, मैं तुम्हारी राहों में फूल बिछा देता, आओ अब, बस अब मुझे अपने अघोष में ले लो और फिर कभी न जाना, और न मुझे छोड़ना कभी, वादा करो, खाओ मेरी कसम, करो वादा' आनंद, बस मंत्रमुग्ध हो गया, उसे लगा उसे वो मिल गया जिसकी उसे बरसों से तलाश थी.

"Hello, Mr, Anand मेरा नाम नमिता है" नमिता ने अपना हाथ छुड़ाते बोला.

"ओह, Hello, welcome to our organisation" आनंद ने नमिता का हाथ हड़बड़ाहट में छोड़ दिया और झिझकते बोला.



- 3 - 


"आ गए बेटा, खाना लगवा दूँ क्या, हाथ-मुँह धो लो, तुमसे कुछ बात करनी हैं" माँ ने कहा. 

"माँ आज मैं, खाना खा कर आया हूँ, आप खाना खा लो, मुझे नींद आ रही है, कल बात करते हैं" आनंद आते ही अपने कमरे में चला गया. 

'नींद कैसे आएगी, वो जो ख्वाबों में आती थी वो तो आज सामने थी, ऐसा कैसे हुआ की मुझे पता नहीं चला, नमिता आनंद सिंह, बस यहीं होगा अब, तुम मेरी हो और बस मेरी' सोचते-सोचते आनंद की आँख कब लग गई.

"आनंद, सुना तुमने, कोई अजीब सी बीमारी, महामारी बन दुनिया में तेज़ी से फैल रही है" माँ ने नाश्ते पर आनंद से बात करनी चाही 

आनंद कुछ बोले बिना ही दफ्तर की और चल दिया.

आनंद की निगाहें नमिता को ही खोज रही थी, 'कहाँ हो तुम मेरे दिल के चैन, मेरी ख़्वाबों की मलिका, कहाँ हो तुम'.

"ओ, आनंद आ गए तुम, कुछ सुना दफ्तर 15 दिनों के लिए बंद  हो रहे है, असल में सब कुछ बंध हो रहा है, न दुकाने खुलेंगीं और न ही बाजार लगेंगे, बस घर में बैठना पड़ेगा, पर यार ये महामारी 15 दिन में कहाँ चली जाएगी, समझ नहीं आ रहा" नरेश अपना सामान संभाल रहा था. 

"चलो यार यहाँ सब समेट कर घर चलते हैं, राशन-पानी का बंदोबस्त भी करना होगा" नरेश अपना सामान बैग में डाल रहा था, "आनंद, यार घर में कैसे रहेंगें, चलो कुछ दिन आराम कर लेंगें, संभल कर रहना, ये माहवारी-वाहवारी से बच कर ही रहना, कहने को बस सर्दी-जुक़ाम है, पर जान लेवा भी है, आनंद.........ओ आनंद भाई, कहाँ हो"? नरेश ने आनंद को झकझोड़ते बोला.

"हाँ, यही, चलो काम शुरू करते है" आनंद ने मानो नरेश की कोई बात ही न सुनी हो. 

"भाई, कहाँ खोये हो, कहाँ हो, किसके ख्यालों में हो, सुना नहीं दफ्तर पंद्रह दिनों के लिए बंद हो रहे है, दफ्तर ही नहीं सब कुछ बंद हो रहा है" नरेश ने फिर से दोहराया.

"बंद हो रहे हैं, पर ऐसे कैसे, अभी तो कहानी शुरू हुई है, सब बंध हो गया तो कहानी आगे कैसे बढ़ेगी" आनंद अपने ही ख्यालों में था, उसकी निगाहें बस नमिता को ही खोज रही थी.

"कौन सी कहानी है ये, हम भी तो सुने" रूपा ने पुछा. 

आनंद ने पलट कर देखा और,'ओह, तो तुम यहाँ हो, मीता, मेरी नमिता, मीता, इतनी देर से क्यों आयी' आनंद की निगाहें नमिता पर ही टिकी थी. 

"चलो भाई, मिलते हैं पंद्रह दिन बाद, take care and stay safe" रूपा ने नरेश और आनंद से बोला.

"आप तो यहीं रहेंगीं न, या वापस चली जायेंगीं" नरेश ने नमिता से पुछा.

"मैं, यहीं अपने quarters में ही रहूंगीं, अभी तो नौकरी शुरू हुई है, जाने से गड़बड़ हो सकती है, वापस न आ पाऊँ तो, इसलिए यही रहूंगी" नमिता ने नरेश की ओर देखते कहा .

"अच्छा, बई हम चलते है, मिलते है पंद्रह दिन बाद, चले नमिता ?" रूपा ने नमिता से पुछा 

नमिता जा रही थी, आनंद को लगा की उसका दिल कोई निकाल कर ले जा रहा हो, 'पंद्रह दिन......., कोई बात नहीं, तुमसे बात करने की हिमम्त भी तो जुटानी हैं, और तुम को अपना बनाने की तरकीब भी भी तो सोचनी हैं' आनंद सोच-सोच कर मंद-मंद मुस्कुराने लगा.



- 4 -


  देखते-देखते पांच दिन बीत गए, आनंद रोज़ जब घर का सामान लेने बाहर जाता तो नमिता के quarter की तरफ से ही जाता, शायद कभी तो नमिता का दीदार हो जाये, पर नमिता का दीदार बस दो ही बार हो सका, और लॉक-डाउन की वजह से आनंद एक बार से जाएदा घर से बाहर निकल भी न पाता. 'नमिता, क्या तुम जानती हो तुम्हारी मुस्कुराहट मेरे रोम-रोम को रोशन कर देती है  क्या तुम मेरे बारे में सोचती हो, नमिता, क्या तुमको पता है, की, तुम को देख कर मुझे ऐसा लगा की मुझे कोई अपना मिल गया है, तुम्हारी ऑंखें भी क्या मुझे खोजती हैं, नमिता, चाहे कुछ भी हो जाये, तुम और मैं एक हो कर ही रहेंगें, मैं तुम्हें अपनी बाँहों से दूर न जाने दूंगा, ये बाहें ही अब तुम्हारा घर होंगीं , क्या तुमको भी लगता है की हम जन्म-जन्म के साथी हैं, कुछ तो बोलो, कम से कम ख़यालों में ही मुझसे बात तो करो, बस एक बार, क्या है तुम्हारे मन में बस एक बार बता दो' आनंद के दिलो-दिमाग पर बस नमिता का ही अक्स छाया हुआ था, प्रेम की अग्नि उसे अंतर-आत्मा तक भिगो चुकी थी.

"आनंद, सुनो आनंद" माँ की आवाज़ से आनंद सपनों की दुनिया छोड़ हकीकत में आ गया,"आनंद, क्या हो गया है तुमको, क्यों हर पल खोये-खोये रहते हो, बोलो न" माँ ने पुछा .

"माँ, मुझे प्रेम हो गया है" आनंद इतना कह घर से बहार चला गया .

आनंद घर से निकल सैर को चल दिया, कुछ दूर जाने पर उसे नमिता दिखी, जो सामने के बाग़ में टहल रही थी.

"नमिता जी, कैसी हैं' आनंद हिमम्त जुटा नमिता के पास पहुँच गया .

"अरे, आप, अंदर बैठे-बैठे बोरियत सी हो रही थी, सोचा थोड़ा बहार ही घूम लेती हूँ, कितना अच्छा लग रहा है यहाँ" नमिता ने bench पर बैठते कहा.

"सही कहा आपने, बस ऑफिस खुल जाएँ अब, ये महामारी-वाहामारी बड़े शहर की बिमारी हैं, छोटे शहर के दफ्तर तो खुल ही जाने चाहिये" आनंद ने बात को आगे बढ़ाते कहा.

"बस, train-bus के रास्ते खुल जाएँ, मैं वापस ही चली जाऊंगी, माँ बीमार हैं, यहाँ आना नहीं चाहती चल-फिर नहीं सकती नघर छोड़ना नहीं चाहती, और मैं नौकरी छोड़ नहीं सकती, सो मुझे जाना ही होगा" नमिता ने एक सांस में सब बोल दिया. 

"अरे, जाना क्यों यही रहें न, माँ को यही ले आईये, उन्हें यहाँ अच्छा लगेगा, यहाँ का मौसम कितना हसीन है और खुली वादियों में उन्हें बहुत अच्छा लगेगा, अच्छी सेहत के लिए डॉक्टर भी पहाड़ो में जाने को कहते हैं, याद नहीं हिंदी फिल्मो के dialogue "इन्हें पहाड़ों पर ले जाएँ, सेहत ठीक हो जाएगी और पहड़ों मे........

नमिता, आनंद के dialogue बोलने के अंदाज़ से  खिल-खिला कर हसने लगी .

"अरे आप हंस रही रही हैं, मैं सच कह रहा हूँ, यकीन नहीं तो चलिए डॉक्टर के पास, और हाँ मैं आपके साथ चल, माँ को यही ले आऊंगा" आनंद ने नमिता से कहा.

"नहीं, मुझे ही जाना होगा माँ नहीं आएंगीं, एक बरस हुए पिताजी को गए, माँ कहती है वो पिताजी के पास वही से जाएँगी, वो घर से निकलना ही नहीं चाहती, सो मुझे ही जाना होगा" नमिता ने आनंद से कहा.

"मेरे घर चलेंगी, आपको चाय पिलाता हूँ, मैं बहुत अच्छी चाय बनता हूँ" आनंद ने नमिता से पुछा? 

"औ, नहीं-नहीं, आप क्यों तकलीफ करते हैं" नमिता ने सोचा कहीं जाएदा बात तो नहीं कर ली.

"माँ, आप से मिल खुश हो जाएँगी, चलिए न" आनंद ने ज़िद करके कहा .

"माँ, औ माँ, देखो तो कौन आया है, माँ ये नमिता है, मेरे ऑफिस में नयी ही आयी हैं, आप बैठें मैं चाय बना कर लता हूँ" आनंद रसोई में चाय बनाने चला गया.

"ओ, तो ये है वो" माँ ने रात के खाने पर बात करनी चाही.

"माँ" आनंद, शर्मा गया.

"माँ हूँ तुम्हारी, तुम्हारे चहरे पर लिखा है हर जगह की ये वही है, पर क्या तुम जानते हो उसका एक बेटा भी है, बिना किसीको जाने प्यार हो गया, अब क्या करोगे" माँ ने आनंद से पुछा .

"बेटा......., नहीं, ये बात नहीं हुई अभी" आनंद खाना ख़तम कर अपने कमरे में चला गया .

'बेटा, बेटा है तो पति भी होगा, पति है तो, अच्छा तभी जाना चाहती है नमिता, नहीं भगवान् ये खेल मत खेलो मेरे साथ' आनंद सोचते-सोचते सो गया.


- 5 - 


सुबह-सुबह आनंद सैर के लिए घर से निकल गया, पार्क के पास अपनी गाड़ी में बैठा वो नमिता का इंतज़ार करने लगा, सुबह से शाम हो गयी, नमिता दिन ढलने पर आयी. 

"नमिता जी आईये न, आपको गाड़ी में घुमा कर लता हूँ" आनंद ने गाड़ी का दरवाज़ा खोलते कहा. 

नमिता गाड़ी में बैठ गई,"चलिए, आज यही सही". 

"लीजिये, जूस है, माँ ने बनाया, मैं आपके लिए भी ले आया" आनंद ने जूस की बोतल नमिता की ओर बढ़ाते कहा. 

नमिता जूस पीते ही सो गई.




To be continued........

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सोमवार, 18 अप्रैल 2022

Nidhi - कहानी निधि की

 

"हेलो, निधि" 

"जी, आप कौन"?

"मैं, राकेश, पिछले हफ्ते हम पार्टी में मिले थे" राकेश अपना परिचय देते बोला

"ओह !, जी बोलिये" निधि को बिकुल याद न आ रहा था,'कौन राकेश, कब मिली मैं इस राकेश से' निधि ने दिमाग पर ज़ोर डाल बहुत सोचने की कोशिश की, पर याद नहीं आया, 'मैं तो एक ही पार्टी मैं गयी थी  पिछले हफ्ते, पर वहां कोई राकेश था, पता नहीं। 


"जी-जी बोलिये, कैसे फ़ोन किया" ? निधि ने अपनी उलझन को छुपाते कहा। 

"कैसी हैं आप, मेरे पास आपके लिए एक job ऑफर हैं, क्या आप interested हैं" राकेश ने अपना प्रस्ताव रखते बोला 

"sorry, आप मुझे job offer क्यों दे रहे हैं, न मैं आपको जानती हूँ, न आप मुझे" ? निधि ने हैरानी भरी आवाज़ में बोला। 

"लगता हैं, आपने मुझे पहचाना नहीं, पहचान तो साथ-साथ काम करने हो जाएगी, क्या आप जहाँ काम कर रही हैं, क्या आप इन लोगो को जानती थी पहले "?


"बात तो सही हैं, सो काम क्या हैं, मेरा मतलब हैं job profile "" ? निधि ने बात को समझने की कोशिश करनी चाही। 
"आपको Estate Manager का काम करना होगा, बस यही काम हैं" राकेश ने अपना प्रस्ताव रखा। 
" पर मुझे Estate Manage करने का कोई experience नहीं हैं, बहरहाल आपके कॉल का शुक्रिया, मैं असल में इस शहर से बहार कोई job ढूढ़ रही हूँ, thanks for your call" निधि ने सब एक सांस में बोल दिया और फ़ोन रख दिया।  



रोज़ शाम आती थी 🎵🎵, राकेश का फ़ोन आने से पहले निधि गाना सुनने में मस्त थी और गाने को रोक कर बीच में कॉल लेना में उसे परेशानी लगी, सो वो रिसीवर रखते ही अपना गाने सुनने में मस्त हो गयी।  

बात आयी-गयी हो गयी। दिन पर दिन बीत गए, निधि को याद भी न रहा की उसने किसी राकेश से बात की थी।  
दो हफ्ते बाद निधि शाम को ऑफिस का काम ख़तम कर घर जाने लगी तो फ़ोन की घंटी फिर बजी !

"निधि, कैसी हो" राकेश ने हलकी आवाज़ में बोला। 
"जी, मैं ठीक हूँ, आप कौन" ? निधि ने अपना सामान समेटते बोला। 
"मैं राकेश, हमने पिछले हफ्ते बात की थी याद हैं आपको, job के बारे में" 
"oh! okay, yes please tell me, मैंने आपको बोला न, I am not interested, मैं अभी जॉब नहीं ढूंढ रही, इस शहर में तो बिलकुल नहीं" निधि ने झुंझलाते हुए कहा।
 
"निधि जी, देखिये मेरे पास एक job offer हैं, आपके लिए दिल्ली का नहीं बल्कि मनाली का, वहां एक गेस्ट हाउस, मैं चाहता हूँ आप वहां जा कर रहें और उसकी देख-भाल करें" राकेश ने बहुत ही सहजता से अपना प्रस्ताव निधि के समक्ष रखा।  
 
"पर मुझे Guest House Manage करने का कोई experience नहीं हैं" निधि ने चिंता जताते हुए कहा। 

उसकी चिंता मत करो, वहां और भी लोग हैं तुम्हारी हेल्प के लिए, और वहां रहने और खाने का भी इंतज़ाम हैं, और सैलरी भी डबल, बोलो कब जा सकती हो" राकेश ने एक बार फिर निधि के समक्ष अपना प्रस्ताव रखा। 

"क्या हम कल शाम को मिल सकते हैं, मिल कर सब बातें discuss कर लेंगें"? राकेश ने अपनी बात साफ़ शब्दों में निधि के समष्क रख दी। 
समय और जगह तय करके निधि ने फ़ोन रख दिया। 'कौन है ये लोग, कैसे किसी पर भरोसा कर सकते हैं, खैर बड़ी लोग बड़ी बातें' निधि ने बात को जाएदा तव्जों न दी और अपने काम में मस्त हो गयी। 

ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय
कभी तो हसाये, कभी ये रुलाये 

तय समय पर निधि राकेश से मिलने पहुँच गयी। निधि को इंतज़ार करते आधा घंटा बीत गया पर राकेश नहीं आया। 'लगता है राकेश जी भूल गए टाइम दे कर, या फिर राकेश जी कोई है ही नहीं, खैर चलो चलें'।  निधि जाने लगी तो एक आदमी उसके पास आ कर बोला,"निधि, आपका नाम ही निधि है क्या"?
"जी, आप कौन" निधि ने पुछा। 
"मेरा नाम विनोद है, मैं राकेश जी के मनाली गेस्ट हाउस में काम करता हूँ, मनाली का गेस्ट हाउस बहुत ही बढ़िया है, I am sure आपको वहां बहुत अच्छा लगेगा" विनोद ने एक सांस में बोल दिया। 

"I hope so, क्या बर्फ पड़ती है वहां" ? निधि ने बात को आगे बढ़ाने की कोशिश करी।  
विनोद ने अपने बैग से documents निकाले और निधि के सामने रखते बोला,"ये आपके joining documents आप आराम से पढ़ लीजिये, फिर sign कर दी जिए, जब आप joining के लिए आयेंगीं, उस दिन आपको, आपके documents  मिल जायेंगें" .

'Joining Documents, कुछ जल्दी नहीं हो रहा सब' ?

"Joining Documents !, पर अभी तो बात ही करनी थी, मुझे ये भी नहीं पता की Job description क्या है, Salary क्या है" निधि ने अपना प्रश्न एक साँस में कह डाला।  

"निधि जी, हमारे Boss ने अपनी company में सब employees ऐसे ही रखें है, उनको वो लोग ही पसंद आते हैं जो common sense, commonly प्रयोग में लाते हैं" विनोद ने निधि की चिंता भांपते हुए कहा, " आप documents आराम से पढ़ ले, मुझे आप कल तक बता देना, और आप कब company join कर सकती ये भी बता देना, see you soon, चलता हूँ,  मैं आपके call का इंतज़ार करूँगा" राकेश अपनी बात कह कर चला गया।  


कई बार यूँ भी होता है
के ये जो मन की सीमा रेखा है 
मन तोड़ने लगता है 



'ये तो ठीक है, सुमित को कैसे बताऊ, पर अब घर में क्या बताऊ, पर घर है कहाँ और बताना किसे है, पर फिर भी माँ ने कहा था 'एक बार घर छूटा तो मुश्किल है फिर कभी बन पाए', पर आज तक कहाँ की मैंने ज़माने की परवाह, देखा जायेगा जो होगा, पैसा किसे अच्छा नहीं लगता, कितना मुश्किल है अपने लिए कोई भी फैसला लेना, पर इसी का नाम ज़न्दगी है, चलते हैं, देखा जायेगा जो होगा' निधि खुद से बातें करती घर वापस पहुँच गयी। 

जाने का दिन भी आ गया, सुमित ने कभी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं करी, और निधि ने कुछ नहीं सोचा और चल दी।

वहां पहुँच कर अच्छा लगा, बड़े शहर की दौड़-भाग से दूर,'चलो ज़िन्दगी कुछ पल तो सुकून वाली जगह में बीतेंगे। निधि को देखते ही जगह पसंद आ गयी। 

निधि को देखते ही जगह पसंद आ गयी। 

"निधि जी, सफर कैसा रहा, आशा है सफर मैं कोई तकलीफ नहीं हुई" राकेश ने निधि के हाथ से सामान पकड़ते कहा। 
"आईये मैं आपको पहले जगह दिखा देता हूँ, यहाँ हमारे पास काम लोग है, यहाँ हम सबको अपना सामान खुद ही carry करने को कहते हैं, महामारी के बाद से हम इससे remotely working space कहने लगे हैं, कहानी लेखक, कविता लिखने वाले लोगों के बीच ये जगह बहुत popular है, आप 10 मिनट लेट पहुंची, राकेश जी अभी-अभी निकले हैं" विनोद ने आस-पास की जगह दिखते कहा।

दिन बीतते रहे, निधि को जगह बहुत पसंद आ गयी। निधि ने अपना काम भी समझ लिया। 
"निधि जी, आज से आप इस जगह की Manager हैं, मेरा कान ख़तम हो गया, मुझे गोवा शिफ्ट कर दिया गया हैं, it was nice working with you" विनोद के जाने का दिन भी आ गया, वो यहाँ निधि को ट्रेनिंग देने ही आया था। 
"बहुत शुक्रिया, it was pleasure learning from you, see you soon, take care" निधि ने राकेश से हाथ मिलते कहा।  

"ओ हाँ राकेश जी आये थे, जल्दी मैं थे तो आपसे मिल नहीं पाए, बोल रहे थे अगली बार ज़रूर मिलेंगें" राकेश ने बोला।  
"कमाल की बात हैं मुझे यहाँ आये छः महीने हो गए पर बॉस के दर्शन नहीं हुए" निधि ने हस्ते हुए कहा। 
"अगली बार ही जायेगें" राकेश ने हस्ते हुए कहा। 
"निधि जी आपके नाम खत हैं" चौकीदार ने खत पकड़ते कहा। 
खत, सुमित का था, 'निधि, मुझे पता था की तुम हमेशा से छोटे शहर मैं काम करना चाहती थी, आशा करता हम तुम खुश होगी, ये नौकरी मुझे किसी ने बताई थी, तो तुम्हारे behalf पर मैने apply कर दिया, निधि हमारा रिशत ख़तम करने का समय आ गया हैं, मैं Australia जा रहा हूँ, अपना ध्यान रखना, आशा करता हूँ फिर मिलेंगें दो दोस्तों की तरहं' सुमित ने इतने बड़ी बातें इतनी आसानी से कैसे कह दी। निधि को अचानक से हल्का महसूस होने लगा, 'हम्म, तो सब ठीक हो गया, ठीक भी हैं, कब तक मरे हुए रिश्ते की लाश उठा कर घुमते रहेगें हम दोनों' निधि की आखों से पानी छलक आया। 

 इतने में किसी ने पीछे से आवाज़ दी, "निधि, कैसा लग रहा हैं यहाँ, मुझे पता था आप ये काम  कर लेंगीं" राकेश ने धीमी आवाज़ में कहा। 
"जी आपने सही कहा था", निधि ने आखें पोंछते कहा। 
"ओह, लगता हैं मैं गलत समय आ गया, निधि, जीवन आसान नहीं हैं, तुम जानती हो, मेरे पास तुम्हारी application आयी तो उसके साथ एक खत था, जिस पर लिखा था की आप अनाथ हैं और जॉब की तलाश में हैं, पता लगाने पर आपकी कहानी के कुछ-कुछ पन्ने पड़ने को मिले, मुझे एहसास हुआ की आप इस post के लिए perfect candidate हैं, किसे अपनी ज़िन्दगी जीनी हो उसे किसी बात की कोई परवाह नहीं होती" राकेश ने निधि का दिल हल्का करने को बहुत कुछ कह दिया," i hope मैंने कुछ जाएदा नहीं बोल दिया" 

"नहीं-नहीं आपने बिलकुल ठीक कहा, thanks मुझ पर ट्रस्ट करने का" मुझ पर ट्रस्ट करने का, निधि  को समझ नहीं आ रहा था क्या कहे, राकेश वहां से चला गया, वो निधि को  समय देना चाहता था। 

निधि को सब सपना सा लग रहा था, 'ज़िन्दगी अचानक से कितनी आसान हो गयी हैं, कोई भोझ नहीं अब, बस अपनी ज़िन्दगी अपनी तरहं से जीने का एक और मौका मिला हैं, अब इसका भरपूर फायदा उठना होगा,  सुमित ने भी कितना बड़ा एहसान कर दिया, और जब कल की चिंता ही नहीं रही तो आज को भरपूर जी लेंगें अब' निधि को अचानक से बहुत हल्का महसूस होने लगा। 

कहानी का अंत हमेशा दो लोगो के साथ से हो जरूरी नहीं, एक कहानी का अंत अपने आप का साथ मिल जाने पर हो ये भी एक तरहं का Happily ever after है।  

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शनिवार, 2 अप्रैल 2022

एक कहानी


एक एहसास जो मरता नहीं, दीपक समझ नहीं पा रहा था की रीमा को कैसे समझाए की वो प्रेम करता है उससे, और वो, वो इस रिश्ते को ख़तम करना चाहती है। क्यों अभी कल ही तो दो साल पूरे हुए हैं उनकी शादी को, रीमा ऐसा कैसे कर सकती है। 

'सात साल हो गए, हमारा साथ बने, क्या वो प्रेम नहीं था, क्या और कब ऐसा हुआ की नौ साल पुराना रिश्ता पलक झपकते ही ख़तम कर दिया उसने, रीमा ऐसा कैसे कर सकती है' ?

रीमा पुरानी दिल्ली एक मध्यम परिवार में पली बड़ी थी, तीन बहनों और दो भाइयों में सबसे छोटी थी। बड़ी उम्र की औलाद और भाई-बहनों  में सबसे छोटी थी रीमा सो सब भाई-बहनों ने बड़े प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया था। पर लाढ-प्यार में पढ़ाई-लिखाई और दुनिया-दारी सिखाना तो भूल ही गए थे। बड़ी हुई तो सजने-धजने में ही वक़त गुज़रता था।

 दीपक, रीमा के घर के पास ही रहता था, रीमा की सुंदरता उसे दीवाना बना गयी, और दीपक का अंदाज़ रीमा को दीवाना बना गया।  दीपक उन सब से अलग था, उसकी सोच, उसका अंदाज़, उसकी ज़िंदादिली, उसका रहन-सहन रीमा को बहुत भा गया था। रीमा भी उड़ना चाहती थी, खुले आकाश को में उड़ना चाहती थी, सो, दीपक को रीमा की सुंदरता और रीमा को दीपक की ज़िंदादिली एक साथ ले आयी। 


रीमा को नयी ज़िन्दगी बहुत ही भा गई। घूमना-फिरना, देश-बिदेश में घूमना रीमा को दीवाना सा बना गया। रीमा ने खुले आकाश को अपना बना लिया।  नयी ज़िन्दगी रीमा के सर चढ़ बोलने लगी। रीमा भी भाई-बहन सबको भुला बस अपनी ज़िन्दगी में खो गई।  

जो रीमा पुरानी दिल्ली की गलियों से भी न निकली थी आज वो दुनिया के कोने-कोने में घूम रही थी। दीपक, रीमा को खुश रखने का हर प्रयास करता। रीमा को क्या अच्छा लगता है, रीमा की पसंद-नापसंद ही उसकी ज़िन्दगी थी। 




पर रीमा इस नयी ज़िन्दगी में सब कुछ भूल गयी, अल्हड उम्र की चाहत उसे गलत रहा पर ले गयी ले गयी। रीमा ने इसे छुपाने की बजाए, दीपक को सब बताना बेहतर समझा। 

"क्या कह रही हो, तुम्हें किसी से प्यार हो गया है" दीपक कुछ समझ नहीं पा रहा था, "कहीं पागल तो नहीं हो गई हो, प्यार का मतलब जानती हो, कैसे कह दिया तुमने की तुमको प्यार हो गया है" 
रीमा सर नीचे करे बैठी रही, उसे जो कहना था वो कह दिया अब वो और कुछ नहीं कहना चाहती थी। 

"रीमा, मेरी तरफ देखो, तुम क्या कह रही हो, मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा, अगर तुमको अब प्यार हुआ है तो नौ साल से तुम्हें मेरे साथ क्या था, क्यों रही मेरे साथ इतने साल" ? दीपक शांत हो कर बात को समझने की कोशिश कर रहा था। 

"मुझे नहीं पता, पर, बस अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती, मेरे दिल में रितेश बस चूका है, मुझे कुछ नहीं पता, मुझे बस जाने दो, मुझे नहीं पता कुछ भी, क्यों, कब, कैसे कुछ नहीं पता मुझे, मुझे बस इतना कहना है की मुझे रितेश से प्यार हो गया है और हम दोनों ने एक हो जाने का फैसला कर लिया है" रीमा को समझ नहीं आ रहा था की वो इस सबसे कैसे निकलेगी। 

दीपक भी अब इस लम्हें के गुज़र जाने, और सब कुछ पहले जैसा हो जाने की चाहत में वहां से चला गया। उसे लगा शायद जब वो वापस आएगा तो सब कुछ वैसा ही हो जायेगा।  

आँखों में नमी और दिल में हलकी सी आस लिए दीपक वहां से चला गया। 
एक छोटे से शहर में पैदा हुआ और ज़िन्दगी से लड़ता दीपक आज यहाँ पहुंचा था, हर कदम पर कांटे बिछे थे पर दीपक ने सब काँटों को कुचल दिया था, आज वो मुंबई में अपने फ्लैट में रहता था। हर मुश्किल को उसने आसान बना दिया था, हर तकलीफ का उसने डट कर सामना किया था, पर अब ज़िन्दगी की इस लड़ाई को कैसे पार करेगा ये बात सोच-सोच कर दीपक की ऑंखें भर आयी थी। 




रीमा ने दीपक की आँखों में पहली बार आसूं देखे थे, पर रीमा को बिलकुल रोना नहीं आ रहा था।  दीपक अगले चार दिनों तक घर वापस नहीं आया। रीमा को अपनी बात अधूरी सी लग रही थी। दीपक सही था,'अगर रितेश मेरा प्यार है, तो दीपक कौन था'। 

चार दिन बाद दीपक नहीं पर दीपक के भेजे हुए कागज़ आये। कागज़ भेज कर दीपक ने अपने प्यार का सबूत दे दिया था। पर रीमा दीपक का एहसान कैसे पूरा करेगी, दीपक ने उसे उड़ने के लिए खुला आसमान दिया था, वो आसमान जिसमें रीमा अपने पंख खोल कर उड़ सकी, पर अफ़सोस वही पंख उसे दीपक से कितना दूर ले गए। 

रीमा और दीपक एक कल की कहानी बन गए और रीमा और रितेश अपनी कहानी लिखने निकल पड़े।  


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रविवार, 20 फ़रवरी 2022

रिश्ता साथ का

 

"निम्मी, ऐसा क्यों किया तुमने, अपनी उम्र का ख्याल तो करा होता"

"जिंदगी मिली है जीने के लिए, एक दिन बस ऑंखें बंध और बस, गए जहाँ से हम, एक ही ज़िदगी है, क्यों न हर रिस्क ले ही लिया जाये, शायद कुछ प्यार भरे एहसास मिल जाएँ साथ ले कर जाने को" ! 

"पर, जवान बेटे का ख्याल तो किया होता, क्या कहेगा वो, दुनिया क्या कहेगी की, .....बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम....., कुछ तो लिहाज़ किया होता"

"दीदी, प्लीज, आप, अगर मेरी ख़ुशी में शामिल न होना चाहें कोई बात नहीं, पर प्लीज ऐसा कुछ न कहें जिससे आपके और मेरे रिश्ते में कोई दरार आये, मैं आपकी बहुत इज़्ज़त करती हूँ, आप ने मेरा बहुत साथ दिया, अपने भाई से ज्यादा आपने मेरा ख्याल किया, अब प्लीज मेरे और  मेरे बेटे के बीच में न आएं, मैं और वो खुद फैसला कर लेंगें, गलत और सही का"

"तुम मुझे जाने को कह रही हो, मत भूलो ये मेरे भी भाई का घर है" 

"नहीं, दीदी, आप मेरी माँ की तरहं है, मैंने हमेशा आप की तरफ देखा है, इस बार भी एक आखरी बार बस एक बार, दुनिया क्या कहेगी का चश्मा उतार कर देखें और बताएं की मैंने जो किया वो गलत है या सही"

आपके भाई के होते मैंने वही किया जो उन्हें अच्छा लगता है, मैंने उनकी ज़िन्दगी जी, और आप हमेशा मुझे हिम्मत देती रही, आपने ही तो मुझे जीना सिखाया, अब आप ही मुझे उदास ज़िन्दगी जीने को कह रही हैं, आप मानव को पसंद न करें, पर कम से कम मेर साथ तो दें, मेरी ख़ुशी में खुश हो जाएँ, आपके भाई चले गएँ हैं, पर मैं ज़िंदा हूँ, और मैं बस जीना चाहती हूँ"। 

"पागल हो गयी हो तुम, निम्मी, वो लड़का है, तुमको धोखा दे जायेगा, जिस दिन उसे तुम्हारे बुढ़ापे और अपनी जवानी वाली दीवार नज़र आ गयी उस दिन वो तुम्हें छोड़ देगा, फिर क्या करोगी, दुनिया को अभी ठुकराओगी, तो ये दुनिया तुम्हें तब ठुकरा देगी"  


"कौन किसको ठुकरा देगा भई !, नीमो ! रेडी हो न, चलें क्या ?"

"लो आ गए समझदार" सुधा दीदी ने व्यंग कस्ते बोला। 

"दीदी, आप भी चलो न हमारे साथ, डिनर भी बाहर ही करेंगें" मानव ने मुस्कुराते हुए बोला। 

"मैं, तुम्हारी बहन नहीं हूँ, तुम निम्मी के पति होगे, पर इसका मतलब ये नहीं मैं तुम्हारी बहन हूँ, आ गए भाई बनने" सुधा दीदी गुस्से मैं पैर पटकती चली गयी। 

"अरे अरे  ! कोई आज बहुत गुस्सा है"

"छोड़ो सबको, ये बताओ दिन कैसा था तुम्हारा, वैसे भी दीदी एक हफ्ते में चली जायेंगीं, फिर तो हम ही होंगें बस ?" निम्मी ने मानव की तरफ प्यार से देखते हुए कहा

"नीमो, मुझे किसीकी बात से कोई फरक नहीं पड़ता, बस मैं इतना चाहता हूँ की हम दोनों एक दुसरे पर विश्वास बनाये रखें, लोगो का क्या है, वो तो बोलेंगें ही"

 ......... तू दे-दे मेरा साथ, थाम ले हाथ, चाहे जो भी हो बात ......🎵🎵🎵

"बस तुम्हारी इन्हीं बातों ने हमें लूट लिया" निम्मी ने मानव के कधें पर सर रखते कहा। 

"लूट तो तुमने लिया हमें"



"अच्छा जी, ये बताओ जब मेरे चेहरे पर झुर्रियां छा जाएँगी तब भी ये जज़्बात ऐसे ही रहेंगें क्या ?" 

"नीमो, मेरी तरफ देखो" मानव ने निम्मी के हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "सुनो, आज, अभी, इस वक़त, ये लम्हा तुम्हारा और मेरा है, इसे ऐसे ही रहने दो, इस में 'कल क्या होगा' की सोच मत आने दो, इसे ऐसे ही खूबसूरत रहने दो, तुम्हारे मन की तरहं खूबसूरत, मन से मन का रिश्ता है ये,रिश्ता साथ का, बिना किसी मकसद के, कल बहुत दूर है और मैं और तुम आज और अभी में साथ हैं, उसे उस वक़त देखेंगें, आने वाले पल की सोच में ये पल न बीत जाये, बस इसका ख़याल करो, बाकी आने वाले पल को आने दो, फिर देखेगें उस पल में क्या करना है।  "


"हम्म्म, अब पता चला" निम्मी ने छेड़ते हुए कहा। 

"क्या, क्या पता चल गया"

"की, मैंने इतनी समझदारी कैसे दिखाई, तुमसे शादी करके, कोई वादा नहीं, न कस्मे, बस हर पल जीने की तमन्ना" 

"और इतने में ही बस कर लेते हैं, कल क्या होगा, आज जी लें, कल की कल सोच लेंगें, 

रिश्ता मकसद का हो तो, मकसद में गुम जाता है, बस ये जान लो, तुम्हारा और मेरा रिश्ता मकसद का नहीं साथ का है, रिश्ता साथ का, बिना किसी मकसद के, तुम्हारी उम्र क्या है, मेरी उम्र क्या है, यहाँ ये important नहीं है, यहाँ 'हम साथ हैं' बस यही इम्पोर्टेन्ट, तुमको मेरा और मुझे तुम्हारा साथ चाहिए था और वो मिल गया बस, लोग क्या कहेंगें, ये लोगो पर छोड़ो और तुम बस मुझे देखो बस, अपनी हर प्यार भरी नज़र मुझे देदो" मानव ने निम्मी को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा। 


'सही तो कहा मानव ने, आज तो जी ले, कल की कल देख लेगें, आज की कल्पना बीते हुए कल में कभी नहीं की तो, आने वाले कल की कल्पना क्या करनी, अभी मानव है मैं हूँ और ये ख़ामोशी है, बस यही तो ज़िन्दगी है।  

"चलो तैयार हो जाओ, चलते हैं" मानव ने निम्मी का माथा चूमते बोला। 

"पर, जायेंगें कहाँ"

"दुनिया के बीच में, अभी में जीने" 

'मानव ने सही कहा, 'अभी में जीना' बस यही तो सच है ज़िन्दगी का' निम्मी अपने रोम-रोम को प्रेम में डूबा देना चाहती थी। 

आने वाला पल जाने वाला है, हो सके इसमें ज़िन्दगी बीता दो, पल जो ये जाने वाला है 🎵🎵🎵 



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रविवार, 9 जनवरी 2022

कुछ वैसी प्रेम कहानी

 

  अपना कोई हो, और उस अपने को खोजने कहाँ तक जा सकता है कोई, कई सारे किस्से-कहानियाँ जिनका वजूद तो नहीं है पर वो हैं, और वो कई बार सामने आ जाती हैं, प्रेम पर विश्वास बनाये रखती हैं, कोई चाहने वाला हो इस जहाँ में अपना बस इतना ही दिल चाहता हैं : 


"तुम्हारा लिफाफा मेज़ पर रख दिया है" मंजरी ने लक्ष्य के नाक पर चुम्मा देते हुए बोला और अपना बैग उठा, जाने को तैयार थी। 

"फिर कब मिलोगी" ? लक्ष्य ने चाहत और उम्मीद भरी नज़रों से मंजरी से पुछा। 

"मिस्टर ! माना, की तुम हैंडसम हो, पर मुझे कोई वजह नहीं दिखती की मैं तुम से मिलूं, अपना काम बहुत अच्छे से करते हो, बस अपना काम करो और टाटा-बाय-बाय" मंजरी को लक्ष्य से यूँ बात करना अच्छा न लगा पर ज़िन्दगी यूँ ही है, जितना प्रैक्टिकल रहो, उतना आसान होता है ज़िन्दगी जीना। 

लक्ष्य, मंजरी को बहुत पसंद था, लक्ष्य के छूते ही मंजरी का बदन पिघलने सा लगता था, लक्ष्य के अघोष में जाते ही मजंरी सब कुछ भूल जाती थी। लक्ष्य के साथ होते हुए मंजरी को ज़िन्दगी हसीन लगती थी। मंजरी जब लक्ष्य के साथ होती तो, लक्ष्य की निगाहें बस मंजरी पर ही रहती, मंजरी के एक-एक अंग को कैसे सहलाना है, मंजरी के दिल को कैसे दहलाना है, मंजरी को कहाँ छूना और कहाँ नहीं छूना लक्ष्य ने ये दो ही मुलाकातों में जान लिया था।  

मंजरी कॉफ़ी हाउस में बैठी सोच रही थी, 'बस, अब जा कर सो जाऊगीं, कल ऑफिस में बहुत काम है, काश ज़िन्दगी इस वीकेंड की तरहं ही हसीन होती, काश लक्ष्य और वो एक साथ हो सकते, पर, क्या किया जाए, लक्ष्य के अपने लक्ष्य हैं और वो उनको पूरा करने के लिए अपना काम कर रहा, और मैं अपना, पर वीकेंड बहुत ही हसीन था, लक्ष्य की बाँहों में सब कुछ भुला देने में कितना मज़ा है, लक्ष्य, और मर्दों की तरहं नहीं था, उसे किसी भी बात की कोई जल्दी नहीं होती, धीरे-धीरे कैसे चाहत को बढ़ाना है, और कहाँ और कितना छूना है, कब बाँहों में जकड़ना है और कब ......... बस,....बस......, वीकेंड ख़तम हो गया, पर काश एक बार आने से पहले लक्ष्य के माथे को कस कर चूमा होता, खैर, थैंक-यू लक्ष्य, हसीं पलों का'।  


आज न जाने क्यों लक्ष्य के साथ बिताये हर पल का एहसास मंजरी को सोने भी न दे रहा था, मोबाइल की घंटी ने मंजरी को और झुँझला दिया,'अब कौन है, संडे को कोई फ़ोन करता ही क्यों है', "हैल्लो, कौन" ?

"क्या तुम घर पहुँच गयी"?

"ये पूछने के लिए फ़ोन क्यों किया, बस मैसेज ही कर दिया होता, मुझे नींद से उठा दिया" मंजरी ने अपनी आवाज़ में झुंझलाहट लाते हुए बोला। 

"एकबार बस, कल डिनर के लिए मिलोगी, प्लीज" लक्ष्य ने गहरी सी आवाज़ में पुछा। 

'हाँ', मंजरी का रोम-रोम लक्ष्य के पास भाग जाने को कर रहा था, "नहीं ! मैं नहीं मिल सकती, देखो, हमारा कोई रिश्ता नहीं बन सकता, तुम ने काम किया, मैंने पैसे दे दिए, बस ख़तम कहानी, दुबारा कॉल मत करना वरना, मुझे तुम्हारी कंप्लेंट करनी होगी" 

लक्ष्य ने बिना जवाब दिए फ़ोन रख दिया, 'सॉरी, पर, और क्या कहूं तुमसे' मंजरी को बहुत बुरा लग रहा था। 'कौन है रोकने वाला, किसको जवाब देना है, एक बार और सही, क्या पता लक्ष्य ही हो वो, वो जिसका कभी मिलने का वादा है, वो जो मुझे, मुझ से चुरा ले, पर नहीं अब जोखिम उठाने की उम्र न बची है, फिर दर्द हुआ तो, और सब क्या कहेंगें, माँ ने तो बात भी करना छोड़ दिया, अब भाई-भाभी ने बात करना छोड़ दिया तो' सोचते-सोचते मंजरी न जाने कब सो गयी।  

सुबह चाय पीते लक्ष्य का ख्याल मंजरी के मन को फिर से मचला रहा था। 
'क्या हो गया है मुझे, हे भगवान, मुझे हिम्मत दो, अपने आप पर काबू रखने की, कितना जानती हूँ मैं लक्ष्य को, उसने काम किया, मैंने पैसे दिए, और वो काम करता है जिसके बारे में बोला भी जा सकता, पर क्या पता उसकी कोई मजबूरी है, एक बार, एक डिनर में क्या जायेगा, नहीं.... ! बिलकुल नहीं, बातों में से ही बातें निकलती है, नहीं......, अपने पर काबू रखो मंजरी, ज़माना क्या कहेगा, पर कौन है ये ज़माना, बस......बस......, देर हो जाएगी आज ऑफिस को, और नहीं, और नहीं सोचना अब'। 



"मंजरी इस वीकेंड का क्या प्लान है' ? सुधा ने पुछा तो मंजरी डर सी गयी, कहीं सबको पता तो नहीं चल गया, मैं वीकेंड में क्या करती हूँ !

"मंजरी - कहाँ हो, वीकेंड का क्या प्लान, एक पार्टी है, चलोगी' सुधा ने पूछा, कई बार पूछा पर मंजरी ने हमेशा मना कर दिया। 
"हाँ चलो, कहाँ है पार्टी" ?
"मेरे एक स्कूल के दोस्त की पार्टी है, उसने एक नयी कंपनी खोली है, बस उसी की पार्टी है, तो शाम को सात बजे तैयार रहना, फाइव-स्टार होटल में है पार्टी, मज़े करेंगें, अब ये मत कहना की तुम वहां किसीको जानती नहीं, तो पार्टी में जा कर क्या करुँगी" !
"अरे !....... नहीं मुझे ऐसी पार्टी बहुत अच्छी लगती है जहाँ मैं किसीको जानती नहीं, हस्ते-मुस्कुराते ही वक़्त निकल जाता है, चल मिलते है शाम को"
"गुड ! सी-यू, मेरी गाड़ी से चलेंगें, मैं सात बजे तुम्हें लेने पहुंच जाउगीं" सुधा गाती-गुनगुनाती वहां से चली गयी। 


'बढ़िया है, क्या पार्टी होगी, न किसीको जानो, ना बेकार की बातों में फसों' मंजरी मन ही मन मुस्कुराने लगी। 



"पार्टी तो बड़ी शानदार है, चल तू एन्जॉय कर, मैं कुछ दोस्तों से मिल कर आती हूँ" सुधा अपने दोस्तों से मिलने चली गयी। 
'हस्ते-मुस्कुराते अनजान चेहरे कितने अच्छे लगते हैं, किसके अंदर क्या छुपा है कोई जानता ही नहीं,सबकी अपनी कहानी होगी' मंजरी मुस्कुराती पार्टी में लोगों को देख अपनी ड्रिंक एन्जॉय कर रही थी। 


"अब, अगर कोई अचानक मिल जाये, और वो बात करे, तो कंप्लेंट तो नहीं होगी ना"
मंजरी ने पलट कर देखा तो लक्ष्य उसकी और देख मुस्कुरा रहा था। 
"तुम ! यहाँ" मंजरी ने मन की ख़ुशी को छुपाते पुछा। 

"जी, जिस कंपनी के खुलने की पार्टी है, मैं, उस कंपनी का मुलाजिम हूँ, बस नौकरी मिल गयी, शुक्र है" 
"अरे, वाह, मुबारक हो, नई नौकरी की, अब वो पुरानी नौकरी का क्या" ?
"वो, तो टाइम पास थी, पैसे चाहिए थे"
"पैसे कमाने के और भी कई तरीके हैं" मंजरी ने मज़ाक उड़ाते कहा। 
"और, पैसे खर्च करने के भी, कई तरीके हैं" लक्ष्य ने मंजरी की लट, उसके चेहरे से हटाते बोला। 
"ये बात, बात तो सही है, पाप तो पाप है"
"नहीं, कोई पाप नहीं है, मजबूरी है, मेरी थी और तुम्हारी भी होगी, मेरी मजबूरी है की मैं अनाथ हूँ, पर ज़िन्दगी तो जीनी है" 


"लक्ष्य ! बहुत बढ़िया, प्रैक्टिकल लोग मुझे बहुत अच्छे लगते है" 

"पहली बात, मेरा नाम मानव है और दूसरी बात, अब तो डिनर पर चलोगी" मानव ने मंजरी का हाथ थामते पुछा। 


"मैं क्यों, मैं तुमसे बहुत बड़ी हूँ, और अपने साथ दो टूटी हुई शादियों का बोझ ले कर चल रही हूँ" ? मंजरी ने हैरान होते पुछा। 
"सुनो, मेरी तरफ देखो, हमेशा ज़िंदा नहीं रहना यहाँ, तो इतना बोझ ले कर मत चलो, जबसे तुमको देखा, तुमको छुया है, कुछ अलग सा महसूस कर रहा था, आज तुम मिली तो यकीन हो गया, कुछ तो है जो ऊपर वाला हमें बताना चाहता है, अब मिलेगें तो पता चलेगा, क्या है वो" 
मंजरी मुस्कुराने लगी, "सच कहा, मिलने पर ही पता चलेगा"। 



"मानव, बहुत ही खूबसूरत नाम है" मंजरी ने मानव के माथे को चूमते, मानव के हाथ में अपना हाथ थमा दिया। 

"उस दिन मेरा माथा चूमे बिना क्यों चली गयी थी"। मानव ने शरारत भरी आँखों से मंजरी से पुछा 
मंजरी ने मानव के होठों को चूमते अपना सर मानव के कंधे पर रख दिया। और शुरू हो गयी एक और प्रेम कहानी।    




गुरुवार, 6 जनवरी 2022

जहाँ में सबको प्यार मिलता है ?

 

"मैडम जी, लिफ्ट नहीं चल रही, सीढ़ी से ही जाना होगा"

"आज भी नहीं चल रही, पैसे तो समय से पहले चाहिए, पर काम कोई नहीं करना", 'आज भी सीढ़ियों से जाना होगा, शुक्र है आज शुक्रवार है, थोड़ा आराम कर लुंगी आज, पर नहीं आराम नहीं, जाना है मुझे आज, निमिष के साथ डिनर है आज, कितने दिन लगे उसे डिनर के लिए मनाने में, अब इस मोके को कैसे जाने दूँ' पांचवी मंज़िल तक सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते रीमा के ख्यालों के घोड़े दौड़ते ही जा रहे थे। 


पांचवी मंज़िल पर पहुंच कर रीमा ने गुस्से में तीन-चार बार घंटी बजा दी। माँ के दरवाज़ा खोलते ही रीमा माँ पर बरस पड़ी,"कितनी देर लगा दी, माँ, चाय बना दो जल्दी, मैं कपडे बदल कर आती हूँ, खाना नहीं खाऊगीं, आज मेरा ओफ़्फ़िशिअल डिनर है, मुझे जाना होगा, शायद बहुत देर हो जाये, तुम खाना खा कर सो जाना, मैं अपनी चाबी ले जाऊगी"। 


माँ ने चाय बना कर स्टील के गिलास में ला कर रख दी। रीमा की निगाहें मोबाइल मे ही गड़ी थी, माँ की ओर देखा भी नहीं, चाय का कप उठाने को हाथ बढ़ाया, स्टील के गिलास को हाथ लगाते ही, रीमा ने गिलास वापस पटक दिया, "स्टील का गिलास, माँ, स्टील का गिलास क्यों, स्टील के गिलास  मे कौन चाय पीता है, और मेरा वाला कप कहाँ है, माँ जाओ मेरे कप मे चाय लाओ, क्या हो गया है, पांच मंज़िल सीडियां चढ़ो, और फिर ये सब, आज दिन ही कुछ अजीब सा जा रहा है, माँ प्लीज चाय ला दो, बहुत थकान हो रही है, और अभी ओफ़्फ़िशिअल डिनर पर भी जाना है, जला हुआ हाथ ले कर मैं डिनर पर नहीं जाना चाहती"।  


रीमा चाय पी कर, तैयार होने चली गयी। ' लाल ड्रेस पहन लूँ, नहीं जाएदा हो जायेगा !, हम्म्म  ........... काली नहीं, हरी नहीं, पीली भी नहीं, कौन से कपड़े पह्नु, ओफ्हो ! ये क्या हो रहा है मुझे, ऐसे तो रात यही निकल जाएगी, निमिष को मानाने मे महीनो लगे, और अब क्या पह्नु ये तय मैं, मैं मिंटो में कैसे कर लूँ' ? । 


'निमिष, औ, निमिष, कितना तंग किया तुमने मुझे। कितना तड़पी, मैं तुम्हारे लिए, निमिष और रीमा, सोच कर ही कितना प्यारा लगता है, तो जब हम साथ होंगें तो देखना, लोगों के दिल जलेगें, क्या, तुमको भी ऐसा लगता है ! लगता तो होगा, तभी तो तुम आज मुझसे मिलने आ रहे हो। औ...हो ..., सर में दर्द हो जायेगा, सोच-सोच कर, एक बार बस, एक बार तुम मिल जाओ, बस फिर हम दोनों होंगें, कोई और नहीं, कोई भी नहीं, मैं और तुम मिल कर एक नया जहाँ बनाएगें, और वो नीमा, सबक मिल जायेगा उसे। निमिष, मैं और तुम, देखना मैं तुमको इतना प्यार दूंगीं की तुमको कोई याद नहीं आएगा,अपने अघोष से कभी भी छूटने दूंगीं, अपनी ज़ुल्फ़ों में ऐसा उलझा लुंगी के तुम मेरे सिवा किसी और को देख ही नहीं पाओगे, उस नीमा को तुम्हारी ज़िन्दगी से निकाल बाहर कर दूंगीं मैं'।  


'पर... मैं..., निमिष के साथ बात कैसे शुरू करुँगी, कैसे उसे कहूं की वो नीमा को छोड़ दे ओर मेरा हो जाये !, बड़ी दुविधा है, काश सिया होती, मेरी प्यारी सिया, कितना प्यारा साथ था हमारा, हर बात का समाधान होता था मेरी प्यारी सिया के पास, बहुत मिस करती हूँ उसे, अभी होती तो यहाँ मेरे सामने बैठ कर मुझको तैयार होने में मदद कर देती, पर वो भी बेवफा निकली !, प्रदीप के पीछे मुझे छोड़ दिया, ऐसा तो कुछ था भी नहीं उस प्रदीप में'।  

'खैर, माँ से पूछती हूँ'।

"माँ, माँ, कहाँ हो", डाइनिंग टेबल को सजा देख रीमा को हैरानी सी हुई, "माँ..., कोई डिनर पर आ रहा है क्या " ?

"माँ, डिनर पर कौन आ रहा है" ?

"नीमा और निमिष, डिनर पर नीमा और निमिष आ रहे हैं, मैंने बुलाया है, मुझे नहीं पता था की तुम डिनर पर बाहर जा रही हो" !

"नीमा और निमिष, निमिष..... कैसे आ सकता है यहाँ, माँ तुमको किसने कहा की वो यहाँ आ रहा है" रीमा हैरान हो माँ की और देख रही थी। 

इतने में दरवाज़े की घंटी बजी, रीमा ने दरवाज़ा खोला, "औ, तुम, माँ नीमा है, निमिष नहीं आया" ?

"निमिष, ऑफिस से सीधा यही आयेंगें" नीमा ने बिना रीमा ओर देखे बोला। 

"मैं अकेली आयी हूँ"

'हाँ, अकेली ही रह जाओगी, क्यूंकि, निमिष अब तुम्हारे नहीं, मेरे साथ होगा, और तुम हमेशा के लिए अकेली रह जाओगी' रीमा मन ही मन सोच कर मुस्कुराने लगी।  

"तुम्हारा, दिल तोड़ते हुआ बुरा लग रहा है, रीमा जी, पर निमिष ऑफिस से सीधा यहाँ नहीं आयेंगें, और अब तुम सपने देखना बंद कर दो, हकीकत ये है की निमिष और तुम अब .........." 

माँ ने रीमा को आगे कुछ नहीं बोलने दिया, माँ के थपड ने रीमा को हिला दिया। इससे पहले रीमा कुछ कहती माँ ने रीमा को एक और थपड लगा दिया। 

"माँ, नहीं, नहीं माँ....." नीमा ने माँ को संभाला। 

रीमा ने खुद को संभाला और सोफे पर जा बैठी, "मुझे क्यों मार रही हो, मेरा क्या कसूर, अगर निमिष मेरे साथ आना चाहता है तो मैं क्या करूँ" !

"रीमा, बस करो, बस करो अब रीमा, तुम्हारे पापा मुझे कहते रह गए की, 'अपनी बेटी को संभाल लो', पर मुझे लगा तुम संभल जाओगी, पर तुमने हर हद पार कर दी, सिया और प्रदीप को अलग न कर सकी, तो अपनी बहन का घर ही उजाड़ने लगी, कैसे सोच लेती हो ये सब ?, इतना ज़हर कहाँ से आया है तुम्हारे अंदर" माँ गुस्से से भरी हुई थी। 

"सिया जब प्रदीप के साथ, तुम्हारे पापा के गुज़र जाने के बाद मुझसे मिलने आई, तो प्रदीप ने मुझे बताया की तुमने कैसे उसके साथ बद-सलूकी की, बेचारे की नौकरी भी खा गयी तुम, वो तो सिया से प्यार था उसे, इस लिए उसने तुम्हारे किये पर पर्दा डाल दिया, पर तुम उसी को कोसती रही, मैंने सोचा तुम बदल जाओगी, पर तुम तो अपने बहनोई पर ही डोरे डालने लगी, नीमा के बारे में भी नहीं सोचा, तुम्हारी बहन है, उसी का घर उजाड़ने का कैसे सोच लिया तुमने"। 


"तुमने सही कहा, निमिष यहाँ नहीं आ रहा, बल्कि हम..., मैं और नीमा उसके पास जा रहे हैं, मैं भी उनके साथ जा रही हूँ, निमिष ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया, और तुम्हारे मेसेजेस भी पढ़ाये, वो सब पढ़ने पर मुझे यकीन हो गया, की तुम्हारे पापा सही कहते थे"। 

"माँ, तुम मुझे अकेला छोड़ कर नहीं जा सकती, मैंने कुछ नहीं किया, निमिष ही आया था मेरे पास"

"कौन हो तुम ! क्या समझती हो तुम अपने आपको ?"

"तुम स्वार्थी हो ये तो पता था, पर इतनी स्वार्थी हो इसका पता अब चला, अपने ही घर में डाका दाल दिया। कभी एहसास होता है की सिया के साथ क्या किया तुमने, जान देती थी तुम पर वो, पर तुमने तो उसके घर में ही आग लगाने का प्लान बना लिया था, वो तो प्रदीप ने सिया को संभाल लिया वरना, सिया कुछ कर लेती तो उसका इलज़ाम तुम पर ही आता। और, अब अपनी ही बहन का घर उजाड़ने की, कैसे सोच लिया तुमने ?, सब दोस्त तुम्हें जान गए इसलिए ही अब तुम अकेली हो, बस बहन बची थी, अब वो भी गयी"  

"निमिष, नीमा और मैं ये शहर छोड़ कर जा रहें हैं, जब तुम अपनी ज़न्दगी से थक जाओ तब मुझे कॉल कर देना, अपनों का मतलब समझ आ जाये तो मुझे कॉल कर देना"। 

'माँ , माँ भी चली गयी, क्या में इतनी बुरी हूँ' 
फ़ोन की घंटी ने रीमा के होश वापस ला दिए," कौन"

"रीमा, मैं हूँ सिया, तुम्हारी बहुत याद आती है, कैसी हो, मैं गलत वक़त कॉल तो नहीं किया"
"सिया, मेरी सिया, नहीं, बिलकुल सही वक़त पर कॉल किया है, मुझे तुमसे माफ़ी मांगनी है, क्या तुम मुझे माफ़ करोगी, पर सबसे पहले मुहे माँ से माफ़ी मांगनी है"


'माँ मुझे छोड़ कर मत जाओ, मैं मरना नहीं चाहती अभी'
रीमा माँ को रोकने के लिए दरवाज़े की तरफ भागी, इतने मैं माँ ने दरवाज़ा खोल दिया। रीमा माँ के गले लग गयी। 

"मैं डर गयी थी, कहीं तुम कुछ कर न बैठो"

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रविवार, 26 दिसंबर 2021

ज़िन्दगी - जो मिला अपना, जो नहीं मिला वो सपना

 

अजीब से मोड़ ! ज़िन्दगी के, हैरान कर देते है, कई सवाल है जो मन में उठते हैं, क्या करें और क्या न करे बस यही असमंजस सा रहता है। और बस इन्हीं सवालों में ज़िन्दगी बीत जाती है, किसी ने सच ही कहा है 'जब ज़िन्दगी समझ आने लगती है, तब तक उम्र ही बीत जाती है'। 

टूटा हुआ दिल, बिखरी हुई ज़िन्दगी दोनों मिल कर परेशान तो करते हैं और वो जो सवाल, कभी खुद से पूछे जाते थे उन सब प्रशनो के उत्तर भी मिलने लग जाते हैं। क्या यही ज़िन्दगी है, क्या सबके साथ यही होता है ?

आखिर मकसद क्या है ज़िन्दगी का? 

क्यों जीते रहते हैं ?

किस आस में दिन पर दिन गुज़र रहें हैं ?

और आस है, की टूटती भी नहीं। 

और, अब जब उम्र बीतने को आयी तो एहसास हुआ की, बे वजह इतनी सर खपाई करने की ज़रुरत ही नहीं थी, बस जीना ही था, दिन जैसे थे वैसे ही बीता देने थे, बस बात इतनी सी थी की, जो मिला वो अपना था, और जो नहीं मिला वो सपना था, और सपने, सच नहीं होते। 

पर जब तक ये समझ आया, तब तक उम्र ही बीत गयी थी। पर अब क्या, अभी भी तो है, कुछ साल अपने, उनको कैसे जीना है।  


कई बार जब में बड़े उम्र के लोगों को देखती थी तो उनके चेहरे पर एक अजीब सी शांति और ठहराव सा देख कर लगता था, 'क्या इनको तनाव का मतलब भी पता होगा? तनाव से कैसे लड़े होंगें ये लोग। 

अब समझ आता है, लड़े तो होंगें पर अब समझौता सा कर लिया है, और तनाव को अपने पर हावी नहीं होने देते। 

आईना देख कर लगता है, ये चाँदी सी लकीरें कहाँ से आयी हैं, कब बालों का अंधेरा, चांदनी सी रौशनी में बदल गया एहसास ही नहीं हुआ, पर गिनती करने पर एहसास होता है कितनी लम्बी ज़िदगी थी पर बस लगता है पलक झपकते बीत गई। 

क्यों इतनी जल्दी थी जीने की ? एक-एक पल जीना था, साल दर साल अपने मन की करनी थी, और प्यार करना था, पल-पल हंसना-हँसाना था। । 

कुछ युवाओं को देख कर लगता है की, इनको बता दूँ की जीवन को जी लो, खुल कर, पर फिर समझ आ जाता है की जाने दो, यही सब तो है ज़िन्दगी, गलती करो और सीखो और आगे बढ़ो। और जब हमें कोई बताये तो कैसा लगता है ?

तो, इस सब का सार यही है, जो है वो अपना है, जो नहीं मिला वो सब सपना ही समझो, और बस खुश रहो, तनाव बेकार है। 


रविवार, 28 नवंबर 2021

पांच सबसे उपयोगी वेबसाइट

 

बच्चो और बड़ो दोनों के काम की पांच ऐसी वेबसाइट, जो आपको अपने बच्चो का होम वर्क करने में भी मदद करेंगीं। आज कल जब बच्चे घर से ही क्लासेज कर रहे है और होम-वर्क करने पर भी तरहं-तरह के सवाल पूछते हैं, तो उस समाये ये वेबसाइट आपके बहुत काम आ सकती है। 

उपयोगी होने के साथ-साथ ये वेबसाइट बहुत से दिलचस्प तथ्ये भी प्रदान करती हैं, आप खुद ही जान जायेगें।  



ये वेबसाइट हैं :

1. www.mathway.com : यह वेबसाइट स्टूडेंट्स (students) के लिए बहुत गई उपयोगी साइट (sites) है। इस वेबसाइट के ज़रिये छात्र अलजेब्रा (बीजगणित) ही नहीं बल्कि कलन  (Calcus) और रसायन विज्ञान (chemistry) के प्रोब्लेम्स को भी क्रमशय हल करती है। किसी भी गणित के सवाल को step by step हल करता है, जिससे समझने में भी आसानी होती है। ये वेबसाइट स्टूडेंट्स (students) और उनके माता - पिता के लिए उपयोगी साइट है।  

2. www.myfridgefood.com : जब भी माँ पूछती हैं 'क्या बनाऊ आज' तो बच्चों का यही उत्तर होता है 'कुछ भी' अब माँ कहाँ जाये क्या बनाये। तो यह साइट मम्मी लोगो के लिए  बहुत ही उपयोगी और दिलचस्प वेबसाइट है, आपके फ्रिज या रसोई में क्या सामग्री है, बस इतना ही आपको इस साइट को बताना है और फिर ये साइट आपको ये बता देगी की आप क्या बना सकते है। तो अब जो भी सामग्री आपकी रसोई में है वो आप इस वेबसाइट पर बानी सूची में डाल दे और यह वेबसाइट आपको एक नयी डिश बनाने की विधि तुरंत ही बता देगी।

3. www.thetruesize.com : अगर आपको किसी भी देश का वास्तविक आकर जानना है तो ये वेबसाइट आपके लिए है, आप इस वेबसाइट पर किसी भी देश का वास्तविक आकर जान सकते हैं और दो से तीन देशों के आकर को तुलना भी कर सकते हैं। 

4. www.innerbody.com : यह वेबसाइट आपको मानव शरीर रचना विज्ञान को पड़ने और समझने में मदद करता है। बच्चो को पढ़ाने और आसानी से समझाने का काम इस  वेबसाइट की मदद से किया जा सकता है। यह वेबसाइट मानव शरीर की  विभिन प्रणालियों और खंडो का अध्ययन करने के लिए एक आसान तरीका है। Digestive System, Nervous System व् Endocrine System व् अन्य मानव शरीर की प्रलाणियों के बारे में गहन अध्ययन कर सकते हैं, और बच्चो को भी विस्तार से समझा सकते हैं।  


 

5. www.screamintothevoid.com : कभी मन जब उदास या परेशान होता है तो चिल्लाने का बड़ा मन करता है।  अगर आपका भी मन कभी - कभी चिल्लाने का करता है तो ये वेबसाइट आपके लिए है।  वर्तमान में आप क्या महसूस कर रहे है बस इस वेबसाइट पर टाइप करे और नीचे दिए स्क्रीम (SCREAM) बटन को क्लिक (click) कर दें बस अपने मन की भड़ास निकल दे सारी की सारी। कभी - कभी जब कुछ करने का मन नहीं करता तो यही करके देख लें।

तो आप भी लोग-इन कर के देखें। और भी बहुत सी ऐसी वेबसाइट हैं जो हमारी रोज़ की ज़िन्दगी हमारी मदद कर सकती हैं। बस उन्हें कैसे खोजना है ये सीखना है, सोशल साइट्स को छोड़ आप भी नयी और मज़ेदार साइट्स की खोज में लग जाये और अपना ज्ञान बढ़ाएं।  



बुधवार, 10 नवंबर 2021

लोककथा - अलसायोनि और सिस्क्स (Alcyone and Ceyx)

 

कई लोक कथाएं और मिथक हैं जो प्यार के इर्द - गिर्द घूमती हैं, रोमियो - जूलिएट, हीर - राँझा, शीरी - फरहाद, बहुत सी कहानियां हैं, दुनिया के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे सभी देशों में बहुत सी प्रेम कहानियाँ हैं। एक कहानी ये भी है की :  

यह कहानी ग्रीक परौराणिक कथाओं में से है :

अलसायोनि और सिस्क्स (Alcyone and Ceyx (Aslisiyoni and Saex)


ग्रीक पौराणिक कथाओं में त्रकिस (Trachis) नाम का एक शहर था और अलस्योनी (Alcyone) और सिक्स (Ceyx) वहां के राजा और रानी थे। वे एक दुसरे से इन्तेहाँ प्रेम करते थे, और उनके इस इन्तेहाँ प्रेम को देख कर देवता और मनुष्ये दोनों उनके रिश्ते की प्रशंसा करते थे।



दिन गुज़रते गए, धीरे - धीरे उनकी प्रशंसा उनके सर चढ़ गयी, और उन दोनों ने अपने आप को हेरा (Hera) और ज्यूस (Zeus) से भी ऊपर समझना और बोलना शुरू कर दिया।  

ग्रीक पौराणिक कथाओं में ज़ीउस (Zeus) देवताओँ के राजा (King of Gods) जाने जाते है और हेरा (Hera) उनकी पत्नी विवाह की देवी (Goddess of Mariage) के रूप में जानी जाती है।  

एक दिन जब सिस्क्स (Ceyx) अपनी पत्नी के पास वापस जा रहा था, ज़ीउस (Zeus) ने सिस्क्स (ceyx)  को मारने और उसके जहाज़ को उलटने के लिए आंधी तूफ़ान भेजा दिया 

अलस्योनी (Alcyone) समुद्र तट पर अपने लापता पति के प्रकट होने के लिए दिन-रात इंतज़ार करती और फिर थक हार कर उसने हेरा से प्रार्थना की ,कि वह सिक्स (cyex) को उसके पास लौटा दे।

हेरा को उस पर दया आ गयी और उसने सिक्स (Ceyx) के शरीर को इंतज़ार करती अलसियोनि (Alcyone) के पास समुन्द्र तट पर पहुंचा दिया ताकि उसे अपने पति का इंतज़ार न करना पड़े। 

अलस्योनी अपने पति को देख कर शोक में डूब गयी, और समुन्दर में डूबकर खुदखुशी करने का फैसला कर लिया। 

लेकिन ज़ीउस (zeus) ने उन दोनों के प्यार को अमर करने के लिए, उन दोनों को सुन्दर पक्षियों में बदल दिया।  

आज भी साल में सात दिनों तक जब ग्रीस में समुन्दर शांत होता है तो माना जाता है की अलस्योनी (Alcyone) और सिक्स (Ceyx) पक्षियों के रूप में नए जीवन को रूप देने आते है।

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